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This Article is From Nov 19, 2019

हिन्दी प्रदेश के अभिशप्त नौजवानों JNU से कुछ सीखो, क्या चुप ही रहोगे?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 19, 2019 13:36 pm IST
    • Published On नवंबर 19, 2019 13:35 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 19, 2019 13:36 pm IST

जेएनयू को ख़त्म किया जा रहा है ताकि हिन्दी प्रदेशों के ग़रीब नौजवानों के बीच अच्छी यूनिवर्सिटी का सपना ख़त्म कर दिया जाए. सरकार को पता है. हिन्दी प्रदेशों के युवाओं की राजनीतिक समझ थर्ड क्लास है. थर्ड क्लास न होती तो आज हिन्दी प्रदेशों में हर जगह एक जे एन यू के लिए आवाज़ उठ रही होती. ये वो नौजवान हैं जो अपने ज़िले की ख़त्म होती यूनिवर्सिटी के लिए लड़ नहीं सके. क़स्बों से लेकर राजधानी तक की यूनिवर्सिटी कबाड़ में बदल गई. कुछ जगहों पर युवाओं ने आवाज़ उठाई मगर बाक़ी नौजवान चुप रह गए. आज वही हो रहा है. जे एन यू ख़त्म हो रहा है और हिन्दी प्रदेश सांप्रदायिकता की अफ़ीम को राष्ट्रवाद समझ कर खांस रहा है.

यह इस वक्त का कमाल है. राष्ट्रवाद के नाम पर युवाओं को देशद्रोही बताने के अभियान के बाद भी जे एन यू के छात्र अपने वक्त में होने का फ़र्ज़ निभा रहे हैं. इतनी ताकतवर सरकार के सामने पुलिस की लाठियां खा रहे हैं. उन्हें घेर कर मारा गया. सस्ती शिक्षा मांग किसके लिए है? इस सवाल का जवाब भी देना होगा तो हिन्दी प्रदेशों के सत्यानाश का एलान कर देना चाहिए. क़ायदे से हर युवा और मां-बाप को इसका समर्थन करना चाहिए मगर वो चुप हैं. पहले भी चुप थे जब राज्यों के कालेज ख़त्म किए जा रहे थे. आज भी चुप हैं जब जे एन यू को ख़त्म किया जा रहा है. टीवी चैनलों को गुंडों की तरह तैनात कर एक शिक्षा संस्थान को ख़त्म किया जा रहा है.

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विपक्ष अनैतिकताओं के बोझ से चरमरा गया है. वो हर समय डरा हुआ है कि दरवाज़े पर जो घंटी बजी है वो ईडी की तो नहीं है. सीबीआई की साख मिट्टी हो गई तो अब प्रत्यर्पण निदेशालय से डराया जा रहा है. भारत का विपक्ष आवारा हो गया है. जनता पुकार रही है मगर वो डरा सहमा दुबका है.

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इन युवाओं को लाठियां खाता देख दिल भर आया है. ये अपना भविष्य दांव पर लगा कर आने वाली पीढ़ी का भविष्य बचा रहे हैं. कौन है जो इतना अधमरा हो चुका है जिसे इस बात में कुछ ग़लत नज़र नहीं आता कि सस्ती और अच्छी शिक्षा सबका अधिकार है. साढ़े पांच साल हो गए और शिक्षा पर चर्चा तक नहीं है.

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अर्धसैनिक बल लगा कर सड़क को क़िले में बदल दिया गया है. छात्र निहत्थे हैं. उनके साथ उनका मुद्दा है. देश भर के कई राज्यों में कालेजों की फ़ीस बेतहाशा बढ़ी है और उसके ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी हो रहे. प्राइवेट मेडिकल कालेजों में बड़ी संख्या में पढ़ने वाले छात्र भी परेशान हैं. मगर सब जे एन यू से किनारा कर लेते हैं क्यों? क्या ये सबकी बात नहीं है? क्या हिन्दी प्रदेशों के नौजवानों अभिशप्त ही रहेंगे?

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