दिवाली के दिन यह गलती मत करना दोस्तो...

दिवाली के दिन यह गलती मत करना दोस्तो...

आज सुबह से व्हाट्स अप शांत ही नहीं हो रहा था. जितने मैसेज मिटा रहा था, उतने उग आ रहे थे. आज दिन तो राम का था मगर लोगों के ज़ेहन पर राम नहीं रावण छाया रहा. हर किसी को हर जगह रावण नज़र आ रहा था. यहां रावण बचा हुआ है, वहां रावण बचा हुआ है. यहां थोड़ा सा बच गया है तो वहां और अधिक बढ़ गया है. रावण न हो गया घास हो गया. इधर से काटकर आए नहीं कि उधर उग आया है. अंदर-बाहर रावण मिटाने की प्रतिज्ञा देखकर हंसी भी आ रही थी और मन भी उचाट हो रहा था. हम नाहक विजयादशमी के दिन को नैतिक उत्सव के रूप में बदलने का प्रयास करते रहते हैं. यह मौज-मस्ती का दिन होता है. इसी रूप में जगह-जगह पर लोगों ने पुतला दहन की कल्पना की है. रावण जलाते हैं और गोल गप्पा खाकर घर आ जाते हैं, लेकिन आज इतने मैसेज आए कि उन्हें पढ़ते हुए लगा कि सब नैतिक शिक्षा के मास्टर बन गए हैं और पढ़ने वाला कोई छात्र मिल नहीं रहा है.

विजयादशमी के दिन स्मार्टफोन नैतिक शिक्षा की इस सबसे बड़ी कक्षा से कराहने लगा. ऐसा लगा कि फोन अपने सारे दुर्गुण मैसेजों को डिलिट कर संत हो जाएगा. मैसेज भेजने वाला ऐसे भेज रहा था कि भाई हमसे न हो पाएगा, तुम देख लो.. अपने अंदर का रावण मार सको तो मार लेना. सबके सब आदर्श शिक्षक हो गए थे. ख़ुद को राम समझकर दूसरे में थोड़े बहुत बचे हुए रावण की याद दिलाने के लिए मैसेज भेजते रहते हैं. सुबह से ही लोग रावण का पुतला दहन कर रहे थे. शाम होते-होते रावण के चेहरे पर नवाज़ शरीफ़ से लेकर आतंकवाद से लेकर भ्रष्टाचार, गंदगी, भ्रूण हत्या सब चढ़ा दिए गए. हम जहां-तहां बचे हुए रावण को लेकर शर्मिंदा होने लगे. इन मैसेजों ने रामलीला, रामायण और दशहरा इन तीनों का मतलब नितांत उचाट नैतिक संदेशों में बदल दिया है. इनसे रस, आध्यात्म और उत्सव का रंग चला गया है. ऐसा लग रहा था कि पोकेमॉन टाइप रावण खोजो प्रतियोगिता चल रही हो. लोग सड़क किनारे कार पार्क कर झाड़ियों में रावण खोज रहे हैं कि देखों यहां बचा मिला है. मार दो, जला दो.
 
आज के दिन हर स्मार्टफोन और माइक वाला रावण पर अपनी पीएचडी लिए घूम रहा था. सब रावण पर अपना लघु शोध पत्र दूसरे के फोन में ठेले जा रहे थे. सब रावण के बचे होने का अपराध बोध लिए अपनी बोरियत दूसरे के फोन में धकेलते रहे. किसी ने लिखा रावण मरे न मरे, मेरे अंदर का राम ज़िदा रहे. अंदर का राम या अंदर का रावण क्या होता है. क्या राम आंशिक तौर पर भी किसी के अंदर हो सकते हैं, जिसके अंदर आंशिक तौर पर रावण भी हो सकता है. तमाम मैसेजों को पढ़ते हुए लगा कि हमने राम और रावण का मतलब कितना सीमित कर दिया है. किसी भी मैसेज में राम होने की संभावना नहीं थी. हर किसी में रावण के कहां-कहां होने की संभावना थी. असत्य पर सत्य की विजय और अहंकार की हार. जो यह शुभकामनाएं भेज रहा है वो ख़ुद ही गारंटी नहीं कर सकता कि वो इससे मुक्त है या नहीं. जिससे हम मुक्त नहीं हो सकते क्या हम वही दूसरों के लिए भी चाहते हैं या फिर ये तमाम मैसेज यह बता रहे थे कि चिंता मत करो... तुम्हीं अकेले नहीं हो. इस दुनिया में कोई राम नहीं हो सकता. हां, आयकर खुलासे में काला धन को सफेद कराने वाले ज़रूर इस दशहरा थोड़ा राम टाइप फील कर रहे होंगे कि स्कीम के कारण बच गए वर्ना रावण का एक पुतला हम भी हो सकते थे. गिल्ट फ्री दशहरा मना रहे होंगे. मजे लेकर दूसरों को रावण मारने का मैसेज भेज रहे होंगे ये.

रावण की राजनीतिक-सामाजिक व्याख्या भी हो रही थी. चंद्रभान ने लिखा कि बुराई का सबसे बड़ा प्रतीक रावण तो ब्राह्मण था.. तो क्या यह पहला एंटी ब्राह्मण आंदोलन था. किसी ने लिखा कि रावण का वध भारत का पहला सर्जिकल स्ट्राइक था. ऐसा लग रहा था कि रावण को देखते ही सबको स्कूल की पुरानी किताबें याद आने लगी हों. अच्छाई और बुराई का मिक्सचर बिक रहा था. दालमोट ही असली सत्य है. सब घोंटकर मिला दो. फिर लोगों को आशीर्वाद देते रहो कि चना तुम बन जाओ और सेव तुम. एक मैसेज में कार्टून बना था कि मैंने अपने अंदर के रावण को मार दिया. मेघनाद का भी मार दिया. बस कुम्भकर्ण नहीं मर रहा. कार्टन का किरदार गहरी नींद में मुस्कुरा रहा है. शिवानंद तिवारी का मैसेज था कि विभीषण जो रावण के राज में रहकर भी नहीं बिगड़े और कैकेयी जो राम के राज में भी रहकर नहीं सुधरीं. सुधरना और बिगड़ना केवल मनुष्य की सोच और स्वभाव पर निर्भर करता है, माहौल पर नहीं. विजयादशमी की शुभकामनाएं.

ऐसा लगता है लोगों ने दशहरा कम मनाया, दर्शन ज़्यादा बघारते रहे. दशहरा के दिन भारत में सबसे अधिक लोग दार्शनिक पैदा हो जाते हैं. भगवान जाने अगले दिन ये दार्शनिक अपने दर्शन का क्या करते हैं. किसी ने मुझे भेजा है कि रावण के पुतले के साथ आपके जीवन का सारा तनाव जल जाए. वकील कुमार कुंज रमण मिश्रा की यह शुभकामना व्यावहारिक लगी. दफ़्तर के तनाव से लेकर ईएमआई का तनाव. ये तनाव शुभकामनाओं से नहीं दूर होते हैं. किसी पुतले के साथ नहीं जलते हैं. वर्ना कितने ही प्रधानमंत्रियों का पुतला जलते कवर किया है, उसी में अपने तनाव आहूत कर देता. मैसेज देने वाला जानता होगा कि कुछ भी कर ले बंदा, उसका तनाव दूर नहीं होगा, इसीलिए उसने तनाव को पुतले के साथ जोड़ दिया है, ताकि कम से कम पुतला जलने के दौरान तो उम्मीद रखे. उसके बाद तो तनाव देखकर उसके होश ठिकाने आ ही जाएंगे. समस्त परिवार को भेजी गई शुभकामनाएं देखकर हिसाब करने लगा कि मेरे परिवार तक तो ठीक है, लेकिन क्या समस्‍त परिवार में वे भी आते हैं जो मेरी सोच और मेरे ख़िलाफ़ दिन रात लगे रहते हैं. चलो भाई दशहरा है. दुआएं बंट रही है तो बांट दो. ब्याज़ दर में कटौती की तरह सबकी कुछ न कुछ ईएमआई कम हो जाएंगी.

सोच ही रहा था कि एक मैसेज इसी टॉपिक पर आ गया. मैसेज के अनुसार, रावण मृत्युशैय्या पर पड़ा राम से कह रहा था कि मैं किन-किन मामलों में तुमसे श्रेष्ठ हूं, फिर भी तुमसे हार गया, क्योंकि तुम्हारे भाई तुम्हारे साथ थे.. मेरे भाई मेरे ख़िलाफ़. जहां तक मुझे याद है रावण का एक ही भाई उनके ख़िलाफ़ था. बाकी ने तो साथ ही दिया था. राम के चारों भाई तो युद्ध में नहीं थे. पर ख़ैर कोई इसी बहाने अपने परिवार के झगड़े को निपटाना चाहता है तो मुझे क्या. अच्छी बात है. कोई मैसेज ऐसा भी था कि राम अयोध्या लौटकर कह रहे हैं कि रावण को मैंने नहीं उसके मैं ने मारा है. किसी को आज के नेताओं में रावण दिख रहा था तो नेताओं को सरकारी योजनाओं की नाकामी में रावण दिख रहा था.

व्हाट्स एप और इनबॉक्‍स में ठेल दिए गए इन नैतिक संदेशों से यही लगता है कि लोक उत्सव को लेकर हमारी कल्पनाएं कितनी सीमित हो गई हैं. शुभकामनाएं एक दिन किसी भी उत्सव को बोर कर देंगी. जैसे होली और ईद आते ही हमारे नेता सामाजिक सदभावना का लोड बढ़ा देते हैं. साल भर सांप्रदायिकता फैलाओ, लेकिन इसे मिटाने की ज़िम्मेदारी होली-दिवाली पर डाल दो. वैसे ही विजयादशमी के दिन लोगों ने इतनी नैतिक शिक्षा दी है कि अब अगर किसी ने कहा कि भारत की समस्याओं की जड़ में नैतिकता का पतन है तो उसके स्मार्टफोन में कम से कम ऐसे 10 हज़ार मैसेज ठेल दूंगा. अगर आप दिनभर मैसेज पढ़ते और डिलीट ही करते रहे और आपका दशहरा इसी में निकल गया तो एक नैतिक शिक्षा मैं भी दे देता हूं. दिवाली के दिन ये ग़लती मत कीजिएगा.

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