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This Article is From Jan 30, 2019

इस कंपनी में डाल उस कंपनी से निकाल, 31000 करोड़ छू-मंतर

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 30, 2019 14:09 pm IST
    • Published On जनवरी 30, 2019 14:09 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 30, 2019 14:09 pm IST

कोबरापपोस्ट वेबसाइट ने 31,000 करोड़ रुपये के कथित घोटाला का पर्दाफाश किया है. कोबरापोस्ट का कहना है कि सार्वजनिक रूप से उपलब्ध दस्तावेज़ों के विश्लेषण से ही घोटाले का पता चलता है. ये पैसा किसी कंपनी का नहीं है बल्कि जनता का पैसा है जिसे अलग अलग कंपनियां बनाकर उसके खाते में डाला जाता है, ये कंपनियां भी उन्हीं प्रमोटर की होती हैं जो लोन का पैसा इन्हें देते हैं.

कोबरा का मानना है कि यह भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा बैंकिंग घोटाला है. कोबरापोस्ट की कहानी में किरदार है DHFL नाम की एक संस्था. जिसने कई शेल कंपनियों को लोन दिया, ग्रांट दिया. फिर इन कंपनियों के ज़रिए उस पैसे को भारत से बाहर ले जाया गया. उनसे संपत्ति ख़रीदी गई.

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कोबरापोस्ट की इस रिपोर्ट में Dewan Housing Finance Corporation Limited (DHFL) के प्रमोटर की भूमिका पकड़ी गई है. इसके हिस्सेदार (stakeholders) कपिल वाधवान, अरुणा वाधवान और धीरज वाधवान की कई शेल कंपनियां हैं जिसे DHFL से लोन दिया जाता है. इस पैसे से मारिशस, श्री लंका, दुबई, ब्रिटेन में शेयर और संपत्तियां खरीदी जाती है.

इससे पता चलता है कि भारत का वित्तीय सिस्टम कितना खोखला हो चुका है. बिना गारंटी के करोड़ों के लोन जारी किए जाते हैं. लोने देने से पहले नियमों का पालन नहीं होता और न ही देने के बाद होता है.

न्यूनतम आय की गारंटी के लिए पैसा कहां से आएगा?

बिना किसी गहरी पड़ताल के DHFL इन शेल कंपनियों को लोन दे देती है. इन कंपनियों या इनके निदेशकों के नाम किसी प्रकार की कोई संपत्ति नहीं है. ज़ाहिर है लोन की वापसी मुश्किल है. इस पैसे से वाधवान समूह कथित रूप से निजी संपत्ति बनाता है. इसका नुकसान सरकारी बैंकों को उठाना पड़ेगा. स्टेट बैंक आफ इंडिया और बैंक ऑफ बड़ौदा ने 11000 और 4000 करोड़ ने DHFL में लोन देकर निवेश किया है.

हमने पहले भी IL&FS का घोटाला देख चुके हैं जिसकी गलत नीतियों के कारण ऐसे लोगों या कंपनियों को लाखों करोड़ के कर्ज़ दिए गए हैं जिनकी वापसी मुश्किल है. अब सरकार को DHFL का भी अधिग्रहण करना पड़ेगा. लेकिन IL&FS का अधिग्रहण तो बिना जांच के ही हो गया था.

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DHFL में 200 करोड़ से अधिक के लोन देने के लिए एक फाइनांस कमेटी है. इस कमेटी के सदस्य हैं कपिल बाधवान और धीरज बाधवान. इन लोगों ने सुनिश्चित किया कि हज़ारों करोड़ के लोन उन शेल कंपनियों को मिले, जिन पर बाधवान का नियंत्रण था. एक एक लाख की पूंजी से दर्जनों कंपनियां बना कर उन्हें कई कंपनियों में बांट दिया गया. कई कंपनियों का पता एक ही है. उनके शुरूआती निदेशक भी समान ही हैं. इनकी ऑडिटिंग भी एक ही ग्रुप से कराई गई है ताकि कथित घोटाले पर पर्दा डाला जा सके.

कोबरापोस्ट ने 45 कंपनियों की पहचान की है जिनका इस्तमाल बाधवान के ज़रिए किया जाता था. इन सभी 42 कंपनियों को 14,282 करोड़ से अधिक लोन दिए गए हैं. इनमें से 34 कंपनियां सीधे बाधवान के दायरे में हैं जो DHFL के मुख्य प्रमोटर हैं. जिसने बिना गारंटी के 10,493 करोड़ का लोन दिया. 11 कंपनियां सहाना ग्रुप की हैं जिन्हे 3,789 करोड़ का लोन दिया गया.

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यह सब कोबरापोस्ट ने दावा किया है. पोस्ट का कहना है कि 34 कंपनियों की आय का पता नहीं चलता और न ही उनके बिजनेस का. कोबरापोस्ट ने लिखा है कि रिज़र्व बैंक, सेबी, वित्त मंत्रालय की नाक के नीचे मनीलौंड्रिंग का खेल चलता रहा. इस घोटाले को न तो आयकर विभाग पकड़ पाया और न ही ऑडिट करने वाली एजेंसियां.

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