तमिलनाडु की जनता ने पिछले 26 वर्षों से किसी एक दल को पांच वर्ष से ज्यादा शासन करने का अधिकार नहीं दिया, लेकिन इस वर्ष के नतीजे ने इस समीकरण को पलट कर रख दिया है। वर्ष 1991 से पिछले चुनाव तक अखिल भारतीय अन्ना डीएमके (एडीएमके) और डीएमके बारी-बारी से सत्ता में आती थीं, और इस चुनाव में भी ऐसी अपेक्षा की जा रही थी, लेकिन मुख्यमंत्री जयललिता की लोकप्रियता का जादू कुछ ऐसा चला कि पुराने प्रतिद्वंद्वी करूणानिधि (डीएमके) को इस बार हार का मुंह देखना पड़ा।
आखिर ऐसा क्या है जयललिता के व्यक्तित्व में कि भ्रष्टाचार के मामले में दोषी पाए जाने और जेल में रहने के बावजूद भी उन्हें प्रदेश की जनता का इतना समर्थन मिला? इसके 10 प्रमुख कारण कुछ ऐसे हैं -
1. महिलाओं, निर्बल आय और ग्रामीण वर्ग के लोगों के बीच जयललिता की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। नतीजों के विश्लेषण से कुछ ऐसा ही संकेत मिलता है कि गैर-शहरी क्षेत्रों में उनका समर्थन बरक़रार है।
2. पिछले वर्ष प्रदेश में आई भयंकर बाढ़ के बाद उनकी सरकार द्वारा राहत और बचाव के काम से शहरी, ख़ास तौर पर प्रदेश की राजधानी चेन्नई के लोगों में असंतोष था, लेकिन यह असंतोष शहर से बाहर नहीं फैल पाया।
3. जयललिता द्वारा चलाए गए तमाम लोक-लुभावन कार्यक्रमों की अक्सर प्रदेश के बाहर आलोचना होती थी, लेकिन प्रदेश में निर्बल और मध्यम आय वर्ग के लोगों ने इसका खूब लाभ उठाया। इनमें गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को एक-एक गाय और चार बकरियों का मुफ्त वितरण शामिल हैं। जमीनी स्तर पर भी इन योजनाओं के क्रियान्वन में ज्यादा शिकायतें नहीं मिली हैं।
4. जयललिता को महिलाओं का व्यापक समर्थन मिला, क्योंकि उनकी कई घोषणाओं और योजनाओं से महिलाएं बहुत खुश हैं। इनमें चुनाव प्रचार के दौरान किया गया शराबबंदी का वादा प्रमुख है। ऐसा माना जा रहा है कि ऐसी घोषणा पहले कर के जयललिता ने डीएमके को मजबूर कर दिया कि वह भी ऐसा चुनावी वादा करें। महिलाओं को आकर्षित करने वाली घोषणाओं में स्कूटर खरीदने पर 50 प्रतिशत की सब्सिडी, और योजनाओं में गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों में शादी होने पर एक निश्चित मात्रा में सोना, मिक्सी और अन्य घरेलू सामान का वितरण शामिल है। पिछले वर्षों में जन औषधि वितरण, सस्ती दर पर भोजन, चिकित्सा सुविधाएं, सस्ते घर, सरकारी स्कूलों के बच्चों को मुफ्त यूनिफार्म, स्कूल बैग, नोटबुक, ज्योमेट्री बॉक्स और पेंसिल, तथा क्लास 11 और 12 के बच्चों को मुफ्त लैपटॉप और साइकिल की योजनाओं को भी सफलतापूर्वक समय सीमा में पूरा किया गया था। आम जनता के बीच यहां भी डर था कि करूणानिधि के सत्ता में आने के बाद जयललिता द्वारा शुरू की गई मुफ्त योजनाओं को बंद किया जा सकता है।
5. करूणानिधि की बढती उम्र से डीएमके को खासा नुकसान हुआ, जिसकी वजह से जयललिता की ओर लोगों का झुकाव बढ़ा। करूणानिधि भले ही अपने स्वस्थ और सक्रिय होने के दावे करते रहे हों, लेकिन उनकी सार्वजनिक छवि एक बुजुर्ग और कुर्सी पर बैठे रहने वाले उम्रदराज़ व्यक्ति की बन गई थी।
6. करूणानिधि के परिवार में हो रही घमासान और उनके दोनों बेटों स्टालिन और अज़गिरी के बीच जिस तरह की संवादहीनता है उससे यह संकेत गया कि डीएमके में सता को लेकर सब कुछ ठीक नहीं है।
7. नतीजों के विश्लेषण से यह भी लग रहा है कि डीएमके ने कांग्रेस साथ गठबंधन न किया होता तो शायद डीएमके का प्रदर्शन बेहतर होता। संकेत यही हैं कि कांग्रेस की स्वीकार्यता में कमी आई है जिसका सीधा फायदा जयललिता को हुआ।
8. पिछले वर्षों के विपरीत इस बार राज्य में पूर्व सिने कलाकार विजयकांत के नेतृत्त्व में डीएमडीके का मोर्च भी तीसरे मोर्चे के तौर पर लड़ाई में था। लेकिन बजाये अपना कुछ भला करने के इस मोर्चे के वजह से डीएमके का ही नुकसान हुआ और जयललिता को फायदा।
9. भ्रष्टाचार के मामले में जयललिता के आरोप-सिद्ध और जेल होने के बावजूद उन्हें जनता की सहानुभूति मिली, और इससे साफ़ है कि भ्रष्टाचार के मुकाबले उनके काम करने के प्रदर्शन को ज्यादा महत्त्व मिला। इसके उलट जयललिता ने डीएमके और कांग्रेस के भ्रष्टाचार के मामलों को खूब बढ़ा-चढ़ा कर लोगों के बीच पहुंचाया।
10. तमिल पहचान और अस्मिता के मामले में भी जयललिता के रुख से स्थानीय लोगों के बीच उनका समर्थन बढ़ा, और उन्होंने भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अच्छे संबंधों की ख़बरों को कभी भी ज्यादा बढ़ने नहीं दिया।
रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं...
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This Article is From May 19, 2016
तमिलनाडु में इतिहास पलटने वाला एक फैसला
Ratan Mani Lal
- ब्लॉग,
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Updated:मई 19, 2016 19:15 pm IST
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Published On मई 19, 2016 19:14 pm IST
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Last Updated On मई 19, 2016 19:15 pm IST
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