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This Article is From Mar 21, 2015

राजीव रंजन की कलम से : क्या अब आत्मघाती आतंकियों से होगी शांति की बात?

Rajeev Ranjan, Saad Bin Omer
  • Blogs,
  • Updated:
    मार्च 21, 2015 23:27 pm IST
    • Published On मार्च 21, 2015 23:18 pm IST
    • Last Updated On मार्च 21, 2015 23:27 pm IST

जम्मू-कश्मीर के सांबा में हुए आतंकी हमले में नुकसान और भी ज्यादा हो सकता था, लेकिन गनीमत है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ। आतंकियों ने जहां हमला किया, वहां पास ही एक आर्मी स्कूल भी है और नौ बजे से बच्चे स्कूल आना शुरू हो जाते हैं। ऐसे में अंदाजा लगाइए अगर आतंकियों ने यह हमला कुछ घंटे बाद किया होता तो क्या होता?

तो क्या आतंकी पेशावर जैसी घटना दोहराने कि साजिश रच रहे थे? इस बात से पूरी तरह से इंकार भी नहीं किया जा सकता।  हालांकि इसकी कल्पना कर ही मन कांप उठता है और पूरे शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती है। बीते साल पाकिस्तान के पेशावर के आर्मी स्कूल में हुए आतंकी हमले में 150 से ज्यादा लोग मारे गए थे, जिनमें ज्यादातर बच्चे थे। हालांकि पेशावर में हुई घटना से सबक लेकर सेना ने पहले ही देशभर में जितने भी आर्मी स्कूल हैं वहां पर सुरक्षा के इंतजाम बढ़ा दिए हैं। अगर आतंकी हमला करें तो उससे कैसे बचेंगे और क्या करने चाहिए इसकी ट्रेनिंग तो बच्चों से लेकर टीचर तक को दी हई है, लेकिन मरने-मारने पर उतारू वहशी दरिंदों का क्या?

इससे भी बड़ी बात यह भी कि जम्मू-कश्मीर में सरकार बने महीना भी नहीं गुजरा है कि यह दूसरा आतंकी हमला है वह भी महज 24 घंटे के भीतर। शुक्रवार को कठुआ पुलिस स्टेशऩ पर आतंकियों ने हमला कर तीन पुलिसकर्मी सहित एक नागरिक को मार डाला, जिससे अमन चैन पर दोबारा सवाल उठने लगे हैं।

इसी जगह पर करीब डेढ़ साल पहले दो आतंकियों ने सेना के कैंप पर हमला किया था। उस हमले में सेना के एक मेजर और एक जवान शहीद हो गए थे। सांबा में हमला करने से पहले आतंकियों ने हीरानगर थाने पर हमला किया था, जिस दौरान करीब 11 लोग मारे गए थे। उस वक्त भी आतंकी अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर दाखिल हुए थे और अपने मकसद में काफी हद तक कामयाब हुए थे। इस दफा भी आतंकियों ने सांबा पर हमला करने से पहले कठुआ के पुलिस स्टेशन पर हमला किया।

कहा यह भी जा रहा है कि ये आतंकी उसी ग्रुप का हिस्सा हैं जो शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर दाखिल हुए थे। एक ग्रुप ने कठुआ पर हमला किया और दूसरा सांबा आर्मी कैंप पर। ये आतंकी उसी रास्ते से घुसे जहां तारबंदी है, बीएसएफ 24 घंटे एलर्ट है और दावा करती है कि परिंदा भी पर नही मार सकता है। इस दफा भी इन आतंकी हमलों ने एक नहीं कई निशाने साधे।

इन हमलों ने यह दिखा दिया है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की पकड़ कमजोर नहीं हुई है। साथ ही उन्होंने पठानकोट- जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग पर हमला कर राज्य के आर्थिक ढांचे पर भी चोट पहुचाई है, क्योंकि देश के किसी भी हिस्से से सड़क मार्ग द्वारा राज्य में आऩे जाने का बस यही रास्ता है।

यहां सवाल ये भी उठता है आतंकियों ने आखिर जम्मू के इलाके में ही निशाना क्यों साधा? क्या उऩ्होनें अपना टारगेट कश्मीर से जम्मू शिफ्ट कर लिया है? क्या इसके पीछे की वजह यह तो नहीं कि वह दिल्ली को कोई संदेश देना चाहते हैं? बीजेपी ने जो 25 सीटें जीती है वह सारे जम्मू इलाके की हैं।

ये बात दीगर है कि रियासत के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद आतंकियों को लेकर नरम रवैया अख्तियार किए हुए हैं और क्या उसी का नतीजा है कि आतंकियों के हौसले बढ़े हुए हैं? कल ही कुठआ में हुए आतंकी हमले के बाद मुख्यमंत्री ने कहा कि इस समस्या का हल बंदूक से नहीं हो सकता है और इसके लिए बातचीत जरूरी है। लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि बातचीत किससे? क्या फिदाइन हमला करने वाले आतंकियों से? यह तो नहीं हो सकता तो फिर बातचीत किससे?

वैसे मुफ्ती साहब का दवाब कहें या फिर कुछ और सरकार एक बार फिर से पाकिस्तान से बात कर रिश्ते सुधारने पर जोर दे रही है। पर क्या पाकिस्तान ने आतंक से अपना नाता तोड़ लिया है? और उससे बात करके वाकई में क्या एक नई शुरुआत हो सकती है? या हमेशा की तरह यह पहल भी पहले की तरह ढाक के तीन पात साबित होगी।

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