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This Article is From Nov 13, 2021

कांग्रेस के ‘बीजेपीकरण’ की शर्त पर अध्यक्ष नहीं बनेंगे राहुल गांधी…

Aadesh Rawal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 13, 2021 19:09 pm IST
    • Published On नवंबर 13, 2021 19:09 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 13, 2021 19:09 pm IST

10 अक्टूबर को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक दिल्ली में हुई, जिसमें पार्टी ने संगठन चुनाव की तारीख़ों का एलान कर दिया. कांग्रेस के भीतर एक बहुत बड़ा तबका,  जिसका नामकरण 23 सदस्यीय होने की वजह से इसे जी-23 कहा जाता है; संगठन चुनावों की लम्बे समय से मांग कर रहा था. जैसे ही संगठन चुनाव की घोषणा हुई, तो कांग्रेस के भीतर और बाहर इस बात की चर्चा शुरू हो गई कि अब तो राहुल गांधी दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बन ही जाएंगे. कांग्रेस कार्यसमिति की इसी बैठक में पूर्व रक्षा मंत्री ए के एंटनी, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार, दिल्ली के प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल, राजस्थान के महासचिव प्रभारी अजय माकन और कर्नाटक के महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला आदि नेताओं ने राहुल गांधी से निवेदन किया कि आपको कांग्रेस अध्यक्ष बनना ही होगा. यह पार्टी के लिए बेहद ज़रूरी है.

कांग्रेस के भीतर संगठन चुनाव होंगे तो राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने को कोई चुनौती नहीं दे सकता. यह बात कांग्रेस के सभी नेता जानते हैं. समर्थन भी है, चुनाव हो तो बहुमत राहुल के पक्ष में भी है. तो फिर वह कौनसी बात है जिस कारण से राहुल गांधी अध्यक्ष बनने के लिए सहमत नहीं है ?

कांग्रेस में ज़्यादातर नेताओं और कार्यकर्ताओं का कहना है कि 2022 अक्टूबर तक राहुल गांधी फिर से कांग्रेस की कमान संभाल लेंगे. दरअसल इस प्रकरण में कई सारे सवाल छिपे हुए हैं.

क्या कहते हैं राहुल गांधी 

हमारे सूत्रों के मुताबिक़ राहुल गांधी अभी अध्यक्ष बनने के लिए सहमत नहीं हुए है. राहुल गांधी ने अपने नज़दीकी नेताओं को कई बार कहा है कि उन्हें स्वयं को ब्राह्मण, हिन्दू, जनेऊ धारी आदि कहलवाने से कोई दिक़्क़त नहीं है. मैं खुद कैलाश मानसरोवर, केदारनाथ, वैष्णोदेवी, तिरूपति, सोमनाथ जैसी तीर्थों में आशीर्वाद लेने गया हूं क्योंकि यह मेरी आस्था है. लेकिन जब मैं पेहलू खान, अल्ताफ़ या त्रिपुरा में हो रहे अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता हूं तो कांग्रेस के कई नेताओं को लगता है कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे कांग्रेस को वोट नहीं मिलेंगे. राहुल गांधी का कहना है कि वह तब ही अध्यक्ष बनेंगे, जब कांग्रेस पार्टी हर उस वर्ग की आवाज़ उठाएगी जिन्हें न्याय नहीं मिल रहा है. फिर चाहे वह व्यक्ति किसी भी जाति, धर्म या समुदाय का है. अगर राहुल गांधी की इस शर्त को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता स्वीकार कर लें तो 2022 में राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने की उम्मीद की जा सकती है. अन्य कोई भी विचार या निर्णय कांग्रेस की राजनीति व उसके अस्तित्व को संकट में डाल सकता है.

राहुल गांधी के नज़दीकी सहयोगी बताते हैं कि हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, गरीब, किसान, मज़दूर हर वह व्यक्ति जिसकी आवाज़ दबाई जा रही है, जो भी अन्यान्य का शिकार हैं, राहुल गांधी उनकी आवाज़ बनना चाहते है . वह अन्याय के विरूद्ध इस लड़ाई को वोट और चुनाव में विजय पराजय से जोड़ कर नहीं देखते.  चुनाव हारे या जीते, अन्याय के ख़िलाफ़ जंग के  विमर्श को, इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. राहुल गांधी को यह बात भलीभांति पता है कि इस रास्ते पर चलने से पार्टी को राजनीतिक व चुनावी नुकसान हो सकता है. लेकिन वे इस पर अडिग हैं.

दरअसल इसके पीछे उनका तर्क यह है कि अगर कांग्रेस अन्याय के ख़िलाफ़ खड़ी नहीं होगी तो फिर भाजपा और कांग्रेस में क्या फ़र्क़ है? भाजपा आज देश में वोट के लिए हर जगह बंटवारा करती है. हिन्दू - मुस्लिम, हिन्दु-ईसाई, जाट-ग़ैर जाट, मराठा-ग़ैर मराठा, आदिवासी-ग़ैर आदिवासी इत्यादि.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की राजनीति भी इससे कुछ अलग नहीं है. 2020 में जब दिल्ली विधानसभा का चुनाव चल रहा था उस वक्त शहीन बाग में महिलाएं सीएए क़ानून  के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रही थीं. केजरीवाल एक बार भी उस आंदोलन को अपना समर्थन देने नहीं गए. बल्कि विपरीत राजनैतिक दिशा पकड़ी और हर टीवी चैनल पर उन्होंने हनुमान चालीसा का पाठ गाया. श्री हनुमान चालीसा का पाठ करने, अयोध्या में भगवान राम की पूजा करने या दीपावली पूजा आदि में कुछ भी गलत नहीं है; दरअसल अरविंद केजरीवाल शहीन बाग इसलिए नहीं गए क्योंकि उन्हें हिन्दू वोट की नाराज़गी और उसके कटने का डर था. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जनता के टैक्स के पैसों से हिन्दूत्व की राजनीति कर रहे हैं. उनकी धार्मिक गतिविधियों का, पूजा का टीवी चैनलों पर सीधा प्रसारण होता है. इस बार तो अरविंद केजरीवाल पहली बार दीपावली की पूजा में डिज़ाइनर कुर्ते में भी नज़र आए !

देश के राजनीति में आज सभी राजनैतिक दल अपने वोट बैंक के हिसाब से मुद्दों को उठाते हैं. राहुल गांधी ने आज के इस दौर में भी यह स्पष्ट कर दिया है कि वो सिर्फ़ वोट बैंक की राजनीति नहीं करेगें. उन्होंने कांग्रेस कार्यसमिति और अपने बाक़ी नज़दीकी नेताओं को यह बता दिया है कि उनकी कांग्रेस अध्यक्ष बनने की सिर्फ़ एक ही शर्त है. हर वह आवाज़ जिसको न्याय नहीं मिल रहा है, उसे न्याय दिलाना ही कांग्रेस अध्यक्ष का काम होना चाहिए. इसको चुनाव जीतने या हारने, वोट बैंक आदि के प्रिज्म से नहीं देखना.

अब इस परिप्रेक्ष्य में सवाल सिर्फ़ एक ही बचा है क्या राहुल गांधी की यह नैतिकता की राजनीति देश की जनता समझ पाएगी या फिर देश आगे भी ध्रुवीकरण के रास्ते पर ही चलता रहेगा.

आदेश रावल वरिष्ठ पत्रकार हैं... आप ट्विटर पर @AadeshRawal पर अपनी प्रतिक्रिया भेज सकते हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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