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This Article is From Jan 17, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : मोहसिन शेख हत्याकांड के तीन आरोपियों को जमानत पर सवाल

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 17, 2017 21:33 pm IST
    • Published On जनवरी 17, 2017 21:33 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 17, 2017 21:33 pm IST
सांप्रदायिकता और कट्टरता इन दो तत्वों को लेकर हमेशा क्लियर रहना चाहिए. ये दोनों ही तत्व बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों पाले में मिलेंगे. एक-दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त होते हैं. बहुसंख्यक सांप्रदायिक गिरोह अपनी सांप्रदायिकता नहीं देखेगा, लेकिन अल्पसंख्यक सांप्रदायिकता की तरफ इशारा करेगा. अल्पसंख्यक सांप्रदायिक गिरोह अपनी सांप्रदायिकता नहीं देखेगा, बहुसंख्यक सांप्रदायिकता की ओर इशारा करेगा. यही खेल खेलकर वे एक दूसरे को आपस में भिड़ाते रहते हैं.

'दंगल' फिल्म में अभिनय करने वाली ज़ायरा वसीम ने जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री से मुलाकात की और सोशल मीडिया पर तस्वीर पोस्ट कर दी कि महबूबा मुफ्ती कश्मीर की रोल मॉडल हैं. फिर ज़ायरा के ख़िलाफ़ कश्मीर का एक तबका भड़क गया. इंटरनेट पर ट्रोल करने लगा मतलब उन्हें धर्म के नाम पर लानतें भेजने लगा, यहां तक कि भारत का एजेंट भी कह दिया गया. ज़ाहिर है ज़ायरा परेशान हुईं और महबूबा मुफ्ती के साथ अपनी तस्वीर हटा ली. माफी भी मांगी कि 16 साल की उम्र में दुनिया को समझने का प्रयास कर रही हैं, लिहाज़ा उनकी ग़लतियों को माफ कर दिया जाए. पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, जावेद अख़्तर, अनुपम खेर और आमिर ख़ान जैसे कई नामी और अनजान लोग ज़ायरा के समर्थन में आगे आए. आमिर ने लिखा है कि मैंने ज़ायरा का बयान पढ़ा है. मैं ज़ायरा को बताना चाहता हूं कि हम सब आपके साथ हैं. ज़ायरा भारत ही नहीं, पूरे विश्व के लिए रोल मॉडल है. ज़ायरा ने फिर लिखा कि उन्हें समझ नहीं आता कि ये नेशनल न्यूज़ कैसे हैं. मैंने न किसी को आहत किया है और न ही मुझे किसी ने मजबूर किया. महबूबा मुफ्ती से मिलने के पहले तक उसी कश्मीर के युवा ज़ायरा की तारीफ़ कर रहे थे.

यह एक तथ्य है कि ज़ायरा के ख़िलाफ़ राजनीतिक कारणों से साइबर हमले किये गए. यह भी एक तथ्य है कि इन हमलों में इस्लाम का नाम लेकर उसे निशाना बनाया गया, जिसे लेकर वो डर गई या पीछे हट गई. मगर एक तथ्य और है. उसी कश्मीर के नौजवान महबूबा मुफ्ती से मिलने के पहले तक ज़ायरा की कामयाबी का जश्न भी मना रहे थे. यह भी एक तथ्य है कि उसी कश्मीर के नौजवान साइबर हमले के बाद भी ज़ायरा के समर्थन में आगे आए और उसका बचाव कर रहे थे. तब भी किया और अब भी कर रहे हैं.

विथकश्मीर डॉट कॉम पर मोहम्मद फैसल और ख़िज़िर हमसफ़रानी ने लिखा है कि उसी कश्मीर का एक हिस्सा ज़ायरा से नफ़रत करने वालों के ख़िलाफ आवाज़ उठा रहा है मगर वो ब्रेकिंग न्यूज़ नहीं है. कश्मीरियों में 'दंगल' को लेकर इतना उत्साह था कि कश्मीरी पीर पंजाल से जम्मू आए फिल्म देखने. हमेशा की तरह नेता लोग भी एक की कामयाबी को हथियाने के लिए फोटो खिंचाने लगे. पिछले साल की घटनाओं के कारण मुख्यधारा के नेताओं की साख घटी है. इसलिए नेता प्रयास कर रहे थे कि युवाओं में संदेश जाए कि वे उनका ख्याल करते हैं. ज़ायरा के साथ जो साइबर बुलिंग हुई है, वो ठीक नहीं है और साइबर बुली को बहुत समर्थन भी नहीं मिला है. विथकश्मीर डॉट कॉम पर कई लोगों के ट्वीट हैं जिसमें ज़ायरा का समर्थन किया गया है. मोहम्मद फैसल ने ट्वीट किया है कि ज़ायरा को ज़ायरा रहने दो, कश्मीरी उससे प्यार करते हैं. जावेद पारसा ने ज़ायरा के साथ अपनी तस्वीर पोस्ट की है और नेशनल मीडिया और नेताओं की आलोचना करते हुए लिखा है कि सिर्फ एक पहलू को बढ़ा चढ़ा कर दिखाया गया. कई कश्मीरी युवकों ने इंटरनेट के ट्रोल और मीडिया दोनों की खूब आलोचना की है. उन कट्टरपंथियों की भी आलोचना की है जो ज़ायरा को निशाना बना रहे हैं, उसके ख़िलाफ़ नफ़रत फैला रहे हैं. सरदार नसीर अली ख़ान ने भी ज़ायरा के साथ अपनी तस्वीर पोस्ट की है और कहा है कि दंगल नाम से केक बनाया, जायरा की कामयाबी का जश्न मनाया और केक खा भी लिया.

हेडलाइन यह भी हो सकती थी कि कट्टरपंथियों के ख़िलाफ़ ज़ायरा के समर्थन में कश्मीरी नौजवान आगे आए. सांप्रदायिका या कट्टरवाद किसी भी धर्म के नाम पर हो, वो होता औरतों के ख़िलाफ़ है, बहुत सी लड़कियों ने इन्हीं लोगों के डर से सोशल मीडिया पर खुलकर लिखना कम कर दिया. सोनम कपूर, नेहा धूपिया, सोनाक्षी सिन्हा, कविता कृष्णन और बरखा दत्त जैसी कई महिलाओं का ट्रोल ने चरित्र हनन किया है. ये लोग तो लड़ लेती हैं मगर कई लड़कियां इस लड़ाई के बदले पीछे हट जाती हैं. ज़ायरा के मामले को लेकर एक तबका उन लोगों का ट्रोल करने लगा जो बहुसंख्यक सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते रहे हैं.

आमिर ख़ान की चुप्पी को लेकर लिखा जाने लगा, हालांकि आमिर ने अब बोल दिया है. अनुराग कश्यप के पीछे ट्रोल यानी गाली-दस्ते ने हमला कर दिया. अनुराग भी जवाबी प्रतिक्रिया में कहा कि वे नहीं डरते हैं, ट्रोल का सामना करेंगे. अनुराग से सवाल करने वाले ये लोग अक्सर तभी सवाल करते हैं जब इन्हें अल्पसंख्यक सांप्रदायिकता से अपने लिए कुछ ख़ुराक मिलती है कि देखो हमीं को कहते हैं, उनको कुछ नहीं कहते. हर तरह की सांप्रदायिकता अपने पाले को लेकर चुप रहती है, दूसरे पाले का फायदा उठाती है. सिर्फ सांप्रदायिकता के खेल में ही ये नियम है कि दूसरा बुरा है तो हमें भी बुरा होने का हक है.

अब आते हैं दूसरे मामले पर. बांबे हाईकोर्ट ने हत्या के 3 आरोपियों को ज़मानत दी है. इस ज़मानत के कारणों में जो बात लिखी है उसका संज्ञान लिया जाना चाहिए. यह वही कारण है जो एक नागरिक से उसके तमाम संवैधानिक कवच छीन लेते हैं.

2014 में पुणे में मोहसिन शेख की हत्या के सिलसिले में तीन लोगों को ज़मानत दी गई है. हाई कोर्ट की जज की भाषा से लगता है कि वे धर्म के नाम पर उकसाने को जायज़ बताते हुए हत्या के मामले में आरोपी को छूट दे रही हैं. 2 जून 2014 को पुणे में हिन्दू राष्ट्र सेना ने प्रतिरोध सभा की थी. फेसबुक पर किसी ने शिवाजी महाराज की और शिव सेना के संस्थापक नेता दिवंगत बाल ठाकरे की छवि के साथ किसी ने छेड़छाड़ की थी, उसी के ख़िलाफ़ हिन्दू राष्ट्र सेना ने विरोध किया था. फेसबुक पर किसने ये पोस्ट किया था, किसी को पता नहीं लेकिन उस बैठक से लौटते हुए आरोपियों ने कथित रूप से हॉकी स्टिक और छड़ से मोहसिन और रियाज़ शेख पर हमला कर दिया. दोनों ही आईटी इंजीनियर थे और रात का खाना खाने जा रहे थे. रियाज़ तो बच निकला लेकिन मोहसिन की हत्या हो गई.

इसी मामले में ये तीन आरोपी पकड़े गए और इन्हें ज़मानत देते वक्त जो लिखा गया है वो इस तरह है- धनंजय देसाई के भड़काऊ भाषण के ट्रांसक्रिप्ट से पता चलता है कि उसने धार्मिक भेदभाव की भावना को भड़काया. आवेदक या आरोपियों की निर्दोष मोहिसन के ख़िलाफ़ निजी शत्रुता जैसी कोई और मंशा नहीं थी. मृतक की यही ग़लती कि वो अन्य धर्म का है. मैं इस बात को आरोपी के हक में मानती हूं. यही नहीं आरोपी या आवेदक का कोई आपराधिक अतीत नहीं है. ऐसा प्रतीत होता है कि धर्म के नाम उन्हें उकसाया गया और उन्होंने हत्या कर दी.

विजय गंभीरे, रंजीत यादव और अजय लालगे आरोपियों के नाम हैं. इन्हें पहले सेशन कोर्ट से ज़मानत नहीं मिली थी तब ये हाई कोर्ट गए और ज़मानत मिल गई. इस आदेश को लेकर सवाल उठ रहे हैं. आदेश का संदर्भ और आदेश की भाषा दोनों को ही देखना होगा. ध्यान रखना होगा कि ये कोर्ट का फैसला नहीं है बल्कि ज़मानत का आदेश है. आदेश में जज साहिबा ने ज़मानत की शर्तें भी लिखी हैं कि ये लोग किसी भी तरीके से हिन्दू राष्ट्र सेना जैसे धार्मिक संगठन से खुद को नहीं जोड़ेंगे. आरोपी उस इलाके में नहीं जाएंगे जहां घटना घटी थी. क्या इस आदेश में यह कहा जा रहा है कि मोहसिन शेख की हत्या भड़काने के कारण हुई, इसलिए ज़मानत के लिए इतना कारण काफी है कि वे भड़काए गए थे. आदेश में लिखा है कि मृतक की ग़लती यह थी कि वो दूसरे धर्म का था. हम इस आदेश के संदर्भ में बात करना चाहते हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के मुताबिक आप अदालत की मंशा पर सवाल नहीं उठा सकते. फैसले की समीक्षा कर सकते हैं.

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