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गोस्वामी Vs सरकार: मथुरा के बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर पर क्या है विवाद, डिटेल में समझिए

वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर (Banke Bihari Temple Corridor) को लेकर सालों से विवाद चल रहा है. गोस्वामी समाज 5 एकड़ जमीन पर गलियारा बनाए जाने से सहमत नहीं है. आखिर ये लोग क्यों इसका विरोध कर रहे हैं.

गोस्वामी Vs सरकार: मथुरा के बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर पर क्या है विवाद, डिटेल में समझिए
बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर पर विवाद क्यों.
नई दिल्ली:

तंग गलियां, बेतहाशा भीड़, ऐसे में बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर (Banke Bihari Temple Corridor) बनने से वहां आने वाले श्रद्धालुओं को राहत मिलेगी, तो फिर इस विरोध क्यों किया जा रहा है. सरकार का कहना है कि उनका इरादा मंदिर की व्यवस्था को सही से बनाए रखने का है. कॉरिडोर बनाने के लिए जितनी भी दुकानें या जगह सरकार के हिस्से में आएगी, उसके लिए उचित मुआवजा मिलेगा और दुकान के बदले दुकान भी दी जाएगी. फिर भी गोस्वामी समाज क्यों गुस्से में है. वह क्यों इस कॉरिडोर का विरोध कर रहा है, समझिए.

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गोस्वामी समाज क्यों कर रहा कॉरिडोर का विरोध?

बांके बिहारी कॉरिडोर को लेकर पिछले कई सालों से जमकर विरोध हो रहा है. विरोध करने वाले लोग मंदिर में पूजा-पाठ करने वाला गोस्वामी समाज है. उन्होंने सख्त चेतावनी दी है कि अगर कॉरिडोर बना तो वे लोग अपने ठाकुरजी को लेकर यहां से पलायन कर जाएंगे. गोस्वामियों का कहना है कि मंदिर उनकी निजी संपत्ति है फिर इसमें सरकार दखल क्यों दे रही है. उन्होंने कॉरिडोर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाए जाने को लेकर सरकार की तरफ से जारी अध्यादेश को मानने से ही इनकार कर दिया. 

  • वृंदावन के मूल स्वरूप के साथ खिलवाड़
  • कुंज गलियां नष्ट हो जाएंगी और वृंदावन की संस्कृति भी खत्म होगी
  • दुकानें जगह से हटने से इनकम पर फर्क पड़ेगा
  • मनमाने तरीके से दुकानों के टेंडर पास किए जाएंगे

क्यों है कॉरिडोर की जरूरत?

दरअसल वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में हर दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं. अगर वीकेंड हो या फिर नए नया साल या होली या रंग भरनी एकादशी तो भक्तों की संख्या लाख के करीब पहुंच जाती है. मंदिर में जाने के लिए रास्ता छोटा होने की वजह से व्यवस्था बिगड़ जाती है. दरअसल मंदिर तक कई सौ साल पुरानी कुंज गलियों से होकर गुजरना पड़ता है. कई बार भीड़ में लोगों के दबने की खबरें सामने आती है. इसीलिए सरकार चाहती है कि व्यवस्था इस तरह की हो जिससे श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो और ज्यादा से ज्यादा लोग दर्शन के लिए आ सकें. 

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क्या बांके बिहार मंदिर निजी संपत्ति नहीं?

गोस्वामियों का कहना है कि मंदिर उनकी निजी संपत्ति है. लेकिन रेवेन्यू डॉक्युमेंट्स के मुताबिक, ऐसा नहीं है. इन दस्तावेजों में यह जमीन मंदिर के नाम से है ही नहीं बल्कि गोविंददेव के नाम से दर्ज है. कॉरिडोर बनाने के लिए मंदिर के पास 100 दुकानों और 300 घरों का अधिग्रहण किया जाना है. हालांकि सरकार इसके लिए उचित मुआवजा देगी. लेकिन लोग इसके लिए भी तैयार नहीं हैं. 

5 एकड़ जमीन पर बनेगा कॉरिडोर

बता दें कि बांके बिहारी मंदिर के पास करीब 5 एकड़ जमीन पर कॉरिडोर बनना है. मंदिर तक जाने के लिए तीन रास्ते बनाए जाएंगे. श्रद्धालुओं को वाहन खड़ा करने में परेशानी न हो इसके लिए 37 हजार वर्गमीटर में पार्किंग बनाई जानी है. हालांकि कॉरिडोर इस तरह से बनाया जाना है, जिससे मंदिर का मूल स्वरूप पहले जैसा ही रहे.

कॉरिडोर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका

देवेंद्र नाथ गोस्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में 19 मई को एक याचिका दायर कर कहा था कि प्रस्तावित पुनर्विकास परियोजना का कार्यान्वयन अव्यावहारिक है और मंदिर के कामकाज से ऐतिहासिक और परिचालन रूप से जुड़े लोगों की भागीदारी के बिना मंदिर परिसर के पुनर्विकास का कोई भी प्रयास प्रशासनिक अराजकता का कारण बन सकता है. उन्होंने अदालत के आदेश में संशोधन किए जाने की अपील की थी. दरअसल कोर्ट ने 15 मई को बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर को विकसित करने की यूपी सरकार की योजना का मार्ग प्रशस्त कर दिया था. 

 बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार की तरफ से दायर जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के 8 नवंबर, 2023 के उस आदेश को 15 मई को संशोधित किया था, जिसमें राज्य की महत्वाकांक्षी योजना को स्वीकार किया गया था, लेकिन राज्य को मंदिर की निधि का इस्तेमाल करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था.

याचिका में क्या है गोस्वामी का दावा?

वहीं देवेंद्र नाथ गोस्वामी की याचिका में दावा किया गया था कि कॉरिडोर बनाए जाने से मंदिर और उसके आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र के धार्मिक और सांस्कृतिक चरित्र के बदलने की आशंका है, जिसका गहरा ऐतिहासिक और भक्ति संबंधी महत्व है. बता दें कि देवेंद्र नाथ मंदिर के संस्थापक स्वामी हरिदास गोस्वामी के वंशज हैं और उनका परिवार पिछले 500 सालें से मंदिर का प्रबंधन कर रहा है.
 

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