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This Article is From Jul 02, 2019

पेशेवर नौकरशाहों का भी समुचित उपयोग ज़रूरी

Dr Vijay Agrawal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 02, 2019 17:47 pm IST
    • Published On जुलाई 02, 2019 17:47 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 02, 2019 17:47 pm IST

सन् 1991 में देश की आर्थिक नीति में हुए 360 डिग्री बदलाव का एक अत्यंत अव्यावहारिक पहलू यह रहा कि उसके अनुकूल प्रशासनिक व्यवस्था में परिवर्तन करने की कोई बड़ी कोशिश नहीं की गई. ऐसा इसके बावजूद रहा कि प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (1969) तथा द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2010) ने ऐसा करने के लिए कहा था. इन आयोगों का संकेत सरकारी सेवा को प्रोफेशनल बनाए जाने की ओर था.

हालांकि श्रीमती इंदिरा गांधी से लेकर डॉ मनमोहन सिंह तक के कार्यकाल में इक्के-दुक्के विशेषज्ञ उच्च पदों पर लाए गए, लेकिन इस दिशा में पहला बड़ा कदम हाल के लोकसभा चुनाव के दौरान संयुक्त सचिव के स्तर पर नौ विशेषज्ञों की नियुक्ति कर उठाया गया. यह चौंकाने वाली बात थी कि इन पदों के लिए अमेरिका के कोलंबिया, कार्नल तथा येल विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों से लेकर एपल, गूगल तथा फेसबुक जैसी वैश्विक कंपनियों में काम करने वाले पेशेवर तक शामिल थे.

इसी क्रम में अब केंद्र सरकार ने उपसचिव एवं निदेशक स्तर के 40 पदों के लिए आवेदन मांगे हैं. लेकिन पहले और अब की नियुक्तियों में एक बड़ा अंतर यह है कि पहले की नियुक्तियां संघ लोक सेवा आयोग द्वारा की गई थीं, जो देश की सर्वोपरि संवैधानिक भर्ती एजेंसी है. अब वाली नियुक्तियां नीति आयोग द्वारा की जाएंगी. यह एक जबर्दस्त नीतिगत परिवर्तन है.

उपसचिव एवं निदेशक ही आगे चलकर संयुक्त सचिव बनते हैं, जो भारत सरकार का व्यावहारिक स्तर का कार्यपालक का पद है. इन स्तरों में की जाने वाली ये नियुक्तियां इस बात का संकेत देती मालूम पड़ रही हैं कि इनमें से दक्ष लोगों को संयुक्त सचिव पद की जिम्मेदारी दी जा सकती है. चूंकि ये पहले से ही सरकारी कार्यप्रणाली से परिचित हो चुके होंगे, इसलिए ये उच्च पदों के दायित्वों को अधिक अच्छे से निभा सकेंगे. अमेरिका, ब्रिटेन और न्यूजीलैंड जैसे कई देशों में यह प्रणाली अच्छी तरह काम कर रही है.

कुछ इसी तरह के परिवर्तन की झलक प्रधानमंत्री के मंत्रीपरिषद में भी दिखाई दे रही है. भारतीय विदेश सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी को सीधे कैबिनेट रैंक देकर विदेशमंत्री बना देना पेशेवरों के प्रति प्रधानमंत्री के मन के विश्वास को ही व्यक्त करता है. आज उनके चार मंत्रालयों को नौकरशाह-मंत्री संभाल रहे हैं, और कुछ मंत्रालय तो ऐसे हैं, जिन पर मंत्रियों की बजाय उनके सचिवों की पकड़ अधिक है.

बदलते हुए वक्त के साथ पेशेवरों को तरजीह दिए जाने का स्वागत किया जा रहा है. इसके बारे में यह भी ज़रूरी है कि सरकार अपने उन प्रोफेशनल नौकरशाहों का भी समुचित उपयोग किए जाने पर ध्यान दे, जो उसके खजाने में उसके पास हमेशा मौजूद रहते हैं.

यदि हम IAS को छोड़ दें, तो केंद्र सरकार की शेष सभी सेवाएं कमोबेश प्रोफेशनल सर्विस के रूप में ही होती हैं. उदाहरण के तौर पर IPS, ऑडिट एंड एकाउंट सर्विस, भारतीय सूचना सेवा, भारतीय अर्थशास्त्र सेवा, भारतीय सांख्यिकीय सेवा, भारतीय इंजीनियरिंग सेवा आदि. हमारी प्रशासनिक प्रणाली की बहुत बड़ी विडम्बना यह है कि देश की अन्य सभी सेवाएं IAS द्वारा नियंत्रित होती हैं. हास्यास्पद बात यह है कि इन लोगों को उस विभाग के बारे में इससे पहले कोई ज्ञान नही होता. लेकिन आते ही उन्हें सर्वज्ञानी मान लिया जाता है, और उस विभाग के बारे में उनके विचार एवं निर्णय ही मान्य होते हैं. पिछले इतने वर्षों से देश इस संकट को भुगत रहा है.

यहां मेरा प्रश्न यह है कि जब सरकार को देश के कॉम्पट्रॉलर एंड ऑडिटर जनरल (CAG) की नियुक्ति करनी होती है, तो इसके लिए वह ऑडिट एंड एकाउंट सर्विस के अधिकारियों की ओर क्यों नही देखती. विभिन्न मंत्रालायों के सचिव IAS ही क्यों बनें, जबकि उसके प्रोफेशनल उस मंत्रालय में पहले से ही हैं...? जाहिर है, IAS द्वारा शासित होने के कारण ये विशेषज्ञ अत्यंत उपेक्षित और अपमानित महसूस करते हैं. इन्हें IAS के समान अवसर देकर सरकार इनकी क्षमता एवं विषय की विशेषज्ञता का समुचित उपयोग कर सकती है. चूंकि ये सरकार की कार्यप्रणाली से बहुत अच्छी तरह परिचित होते हैं, इसलिए ये अधिक सुविधाजनक भी होंगे. इस दिशा में आवश्यक कदम उठाए जाने की निहायत ही ज़रूरत है.

डॉ. विजय अग्रवाल वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं...

 
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