वह 16 दिसंबर 2012 की तारीख़ नहीं, नवंबर 2014 का कोई दिन था। वह अपने दोस्त के साथ किसी सूनी बस में बैठी दामिनी नहीं थीं, एक भरी हुई बस में बैठी पूजा और आरती थीं।
इन दो अलग−अलग तारीख़ों पर अलग−अलग ठिकानों पर चली अलग−अलग लड़कियों की कहानी बस एक मोड़ पर मिलती है।
दोनों ने अपने ऊपर हुई छींटाकशी का अपने ऊपर हुए हमलों का जम कर प्रतिरोध किया।
16 दिसंबर 2012 की शाम लेकिन क्रूरता की एक सिहरा देने वाली कहानी बनी, जब शराब के नशे में धुत्त और न जाने किन−किन कुंठाओं के मारे पांच युवकों ने एक लड़की से उसकी हिम्मत का बहुत वीभत्स बदला लिया, इतना वीभत्स कि हमारी मोटी चमड़ी वाले समाज के भी रोएं खड़े हो गए। इस समाज ने आनन−फ़ानन में महिला सशक्तीकरण के नाम पर एक क़ानून बनवा दिया जिसका अब यही तंत्र अपनी मर्ज़ी से इस्तेमाल कर रहा है।
लेकिन नवंबर 2014 की कहानी कुछ अलग थी। दो बहनों ने तीन शोहदों की जमकर धुनाई की। मुक्के से मारा, पांव से मारा, बेल्ट निकाल कर मारा और यह सब मारते हुए उनका वीडियो बनता रहा।
सबने इन बहादुर बहनों की तारीफ़ की। अपने राज्य की लड़कियों को सुरक्षा और समानता मुहैया कराने में नाकाम सरकार ने हड़बड़ाते हुए ढंग से इनाम भी घोषित कर दिया।
मगर इसके बाद पूजा और आरती की कहानी को बिल्कुल बस में घिरी दामिनी की कहानी में बदलने की कोशिश हो रही है। इन लड़कियों की बदनीयती के सबूत जुटाए जा रहे हैं, गवाहियां इकट्ठा की जा रही हैं। जिस बस में चल रही मारपीट में दखल देने कोई नहीं आया, उस बस के कई मुसाफ़िर अब गवाही देने चले आए हैं− कि लड़कियां झगड़ालू हैं, बेमतलब लड़ गईं, मामला छेड़खानी का नहीं सीट का था, जो एक अपाहिज महिला के लिए आरक्षित थी।
हम सब जानते हैं कि ऐसी गवाहियां कैसे जुटाई जाती हैं। हम सब जानते हैं कि हमारे समाज के शरीफ़ लड़के अचानक लड़कियों को देखकर कैसे शोहदों में बदल जाते हैं। हम सब जानते हैं कि हमारा समाज अक्सर ऐसे गुस्ताख़ लड़कों की अनदेखी करता है और लड़की को सुरक्षित रास्ते पर निकलने या घर के भीतर ही रहने की नसीहत देता है।
रोहतक की बहनों का कसूर यही है कि वे अच्छी लड़की की बनी−बनाई परिभाषा में खरी नहीं उतरतीं।
वे फब्ती सुनकर सिर झुकाए पार नहीं हो जातीं।
वे किसी छेड़खानी से घबरा कर भाग नहीं जातीं।
वे कोई गाली सुन कर अपने मुंह सिल कर बैठ नहीं जातीं। जबकि हमारे समाज के मुताबिक लड़कियों को यही शोभा देता है।
वे पलट कर हमला करती हैं।
वे लड़कों की तरह लात और बेल्ट चलाती हैं।
वे गंदी गाली सुनकर उससे भी गंदी गाली देने को तैयार रहती हैं।
वे मारामारी करने वाली लड़कियां हैं, जो मर्यादा के भीतर नहीं रहतीं।
ऐसी लड़कियां ख़तरनाक हो सकती हैं।
उनकी वजह से लड़कों की नौकरी भी चली जाती है हेकड़ी भी।
उनकी वजह से दूसरी अच्छी लड़कियों के बिगड़ने का ख़तरा उठ खड़ा होता है।
ऐसी लड़कियों को सज़ा मिलनी चाहिए उनके ख़िलाफ़ गवाही दी जानी चाहिए। डर है कि यह आम राय धीरे−धीरे रोहतक में ही नहीं पूरे देश में न बन जाए।
16 दिसंबर की रात पांच लड़कों ने एक लड़की से सामूहिक बलात्कार कर अंतत: उसकी हत्या कर डाली। दिसंबर के इन दिनों में हम दो लड़कियों से पूरे समाज का छलात्कार देख रहे हैं और उनकी चरित्र हत्या की कोशिश जारी है।