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This Article is From Jan 05, 2015

प्रियदर्शन की बात पते की : पढ़ी-लिखी दुनिया का अहंकार

Priyadarshan, Saad Bin Omer
  • Blogs,
  • Updated:
    जनवरी 05, 2015 20:58 pm IST
    • Published On जनवरी 05, 2015 20:32 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 05, 2015 20:58 pm IST

राजस्थान सरकार का फ़ैसला है कि वहां पंचायत चुनावों में आठवीं और दसवीं पास लोग ही खड़े हो पाएंगे। हो सकता है, पढ़े-लिखे सयानों की दुनिया इसे लोकतंत्र के लिहाज़ से बहुत ज़रूरी क़दम मान कर चल रही हो। लेकिन ज़रूरी नहीं कि पढ़े-लिखे लोग हमेशा बहुत अच्छे लोग होते हों। इसी तरह औपचारिक डिग्री से वंचित लोग हमेशा बेकार या नाक़ाबिल होते हों, यह ज़रूरी नहीं।

इस देश को उसके सबसे पढ़े-लिखे लोगों ने बहुत नुकसान पहुंचाया है। बहुत से पढ़े-लिखे लोग बहुत सांप्रदायिक और जातिवादी साबित हुए हैं। इस देश को डिग्रीधारियों ने बहुत लूटा है। उन अफ़सरों, इंजीनियरों और प्राध्यापकों ने जिन्होंने देश निर्माण को मिशन की तरह नहीं, बल्कि अपने स्वार्थ की तरह लिया।

राजस्थान या किसी भी दूसरे राज्य की बहुत बड़ी आबादी अगर निरक्षर है तो इसमें उसका दोष नहीं, बल्कि उन पढ़े-लिखे लोगों का है जिनके ऊपर घर-घर शिक्षा पहुंचाने की ज़िम्मेदारी थी। इन लोगों ने एक बड़ी आबादी को निरक्षर रखा और पढ़ाई-लिखाई को अपने औज़ार की तरह इस्तेमाल किया। अब यही लोग इन निरक्षर लोगों को चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित कर रहे हैं।

इसमें शक नहीं कि पढ़ाई ज़रूरी है और आठवीं या दसवीं पास सरपंच कई मामलों में अपने निरक्षर साथियों से बेहतर साबित होंगे। लेकिन निरक्षरता प्राकृतिक अभिशाप नहीं, एक सामाजिक  अन्याय है। वे निरक्षर हैं, क्योंकि वे एक वंचित समाज में पैदा हुए। वे निरक्षर हैं, क्योंकि उनका बचपन या पूरा अपनी गरीबी से निबटने में बीत गया। वे निरक्षर हैं, क्योंकि स्कूल उनके इलाक़े में नहीं, दूर शहरों में खुले। वे निरक्षर हैं, क्योंकि एक सामाजिक साज़िश के तहत उन्हें निरक्षर रखा गया।

यह अक्षर-संपन्न दुनिया अब अपनी श्रेष्ठता के अभिमान में इन निरक्षर लोगों को उनके मूल लोकतांत्रिक अधिकार से भी वंचित कर रही है, बिना यह समझे, या शायद समझ-बूझ कर ही कि इससे लोकतंत्र की वह धारा कितनी पतली हो जाएगी जिसने सारी अजीबोगरीब स्थितियों के बीच भी इस मुल्क में जनता की हुकूमत बचाए रखी है।

पढ़ा-लिखा होना ज़रूरी है, लेकिन पढ़े-लिखे होने के अहंकार में एक बालिग, लेकिन निरक्षर, समाज के अधिकार छीनना शोषण की उस प्रक्रिया को कुछ और बढ़ावा देना है जो सामाजिक रूप से अब तक जारी है। राजस्थान में पंचायत चुनाव लड़ने के लिए आठवीं और दसवीं पास होने की शर्त रखने वाला अध्यादेश दरअसल शोषण का आदेश है, जिस पर सवाल खड़े किए जाने ज़रूरी हैं।

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