सोमवार को उपवास से पहले अगर कांग्रेसी नेताओं ने छोले भटूरे की जगह चने खाए होते या दाल-रोटी खाई होती तो क्या वैसा ही मज़ाक बना होता जैसा छोटे-भटूरे खाते नेताओं की तस्वीर देखकर दिन भर बनता रहा? क्या कांग्रेसी नेताओं की खिल्ली इसलिए उड़ाई गई कि वे कुछ खा रहे थे, या फिर इसलिए कि वे छोटे-भटूरे खा रहे थे. जाहिर है, खानपान की मेज़ पर छोले-भटूरे की एक अलग सी हैसियत है. वह उस तरह का सात्विक खाना नहीं माना जाता जो घरों में रोज़ाना पकता और खाया जाता है. छोला-भटूरा जैसे तफ़रीह पर निकले लोगों का मनबहलाव के लिए खाया जाने वाला व्यंजन है. छोले-भटूरे को लेकर कांग्रेसियों का मज़ाक इसलिए भी बना कि इस खाने ने ही उनके उपवास की गंभीरता कुछ कम कर दी. लगा कि वे उपवास नहीं, तफ़रीह करने निकले हैं.
वैसे इस छोला-भटूरा राजनीति से पहले देश पकौड़ा राजनीति भी देख चुका है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोज़गार के अवसरों का ज़िक्र करते हुए एक पकौड़े वाले की बिक्री का उल्लेख इस गंभीरता से किया कि अचानक पकौड़े और रोज़गार को लेकर चुटकुले चल पड़े. व्यंग्यकार राकेश कायस्थ ने इस पर पूरा उपन्यास लिख डाला. पकौड़े को लेकर शुरू किए जाने वाले स्टार्टअप से भारत के ग्लोबल पावर बनने की कल्पना की गई. अगर प्रधानमंत्री ने पकौड़े वाले की जगह किसी रेस्टोरेंट चेन का उल्लेख किया होता तो क्या उनके इस वक्तव्य की उस तरह खिल्ली उड़ाई जाती जैसे पकौड़े पर उड़ाई जाती रही? शायद नहीं.
लेकिन कांग्रेसियों ने छोले-भटूरे क्यों खाए और प्रधानमंत्री ने पकौड़े को रोज़गार से क्यों जोड़ा? क्या इसलिए कि दोनों अपनी मुहिम को उस गंभीरता से नहीं ले रहे थे जिस गंभीरता से लिए जाने की ज़रूरत थी? पिछले एक-डेढ़ दशक में देश ने जो आर्थिक और तकनीकी विकास देखा है, उसकी लगातार एक आलोचना यह होती रही है कि उससे गरीबों को उतना फायदा नहीं पहुंचा है जितना अमीरों और मध्यवर्गीय लोगों को पहुंचा है. सड़क का आदमी सड़क पर ही रह गया है. खेत वाले खुदकुशी कर रहे हैं और झुग्गी वाले बिल्कुल अमानवीय स्थितियों में जी रहे हैं. पकौड़े वाला दुर्भाग्य से हमारे समाज में इसी तबके से आता है. उसे भारत की आर्थिक खुशहाली के प्रतीक के तौर पर पेश करना उसका भी मज़ाक बनाना था और इस तरक्की से जुड़े एक त्रासद पहलू को नज़रअंदाज़ करना था. इसलिए प्रधानमंत्री के वक्तव्य को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया- शायद उनकी पार्टी ने भी नहीं, जो अन्यथा बिल्कुल इस पर मज़ाक बनाए जाने के खिलाफ़ दांत पीसकर, मुट्ठियां बांधकर खड़ी हो गई होती.
दरअसल ये दो उदाहरण बताते हैं कि अपने कार्यक्रमों, अपने वक्तव्यों और अपनी वैचारिकता में लगातार स्थूल होती जा रही हमारी राजनीति बहुत सूक्ष्म प्रश्नों पर विचार करने की आदत या तो बना नहीं सकी, या पूरी तरह छोड़ चुकी है. वह प्रतीकों की राजनीति करती है, मगर प्रतीकों का महत्व नहीं समझती. इसका फायदा वे सयाने लोग उठाते हैं जो बड़ी तेज़ी से चीज़ों की साम्प्रदायिक पहचान तय करते हैं.
छोले-भटूरे और पकौड़े से पहले बिरयानी पर हुई राजनीति इसी खतरनाक प्रवृत्ति के उदाहरण के तौर पर सामने आई. मुंबई के हमलों के गुनहगार अजमल कसाब को बिरयानी खिलाई जा रही है- यह बात सरकारी वकील उज्ज्वल निकम ने कही. बाद में उन्होंने माना कि यह बात उन्होंने बस यों ही लोगों को उकसाने के लिए कही थी. बाद में पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने एक संदिग्ध बोट को समुद्र में नष्ट कर दिए जाने के मामले में कहा कि वे ऐसे लोगों को ज़िंदा पकड़कर उन्हें बिरयानी खिलाना नहीं चाहते थे. जाने-अनजाने बिरयानी को एक साम्प्रदायिक प्रतीक में बदल दिया गया- कुछ इस तरह कि जो बिरयानी खाने वाले हैं, वे आतंकवाद के साथ हैं. इत्तिफाक से बिल्कुल हाल ही में आई एक फिल्म 'बागी-2' का एक किरदार फिल्म में कहता है, 'मुसलमान बिरयानी के लिए ही नहीं, कुरबानी के लिए भी जाना जाता है.' तो बिरयानी धीरे-धीरे एक साम्प्रदायिक व्यंजन बनती जा रही है. इन पंक्तियों के लेखक को बरसों पहले भोपाल से साथ लौटते हुए हिंदी की वरिष्ठ लेखिका मृदुला गर्ग ने ट्रेन में भोपाल की बिरयानी खाने की सलाह दी थी- बताते हुए कि इसका ज़ायक़ा बहुत ख़ास है. यह बिरयानी न हिंदू थी, न मुस्लिम थी, पूरी तरह हिंदुस्तानी थी.
छोले-भटूरे, पकौड़े या बिरयानी जैसे प्रतीकों को ध्यान से देखे जाने की ज़रूरत है. इनमें हमारी राजनीति की स्थूलता भी झांकती है, मुद्दों से उसका पलायन भी और उसके डरावने साम्प्रदायिक इरादे भी. हमें तय करना है कि हम हिंदुस्तान की मेज़ को किस तरह सजाना या बनाना चाहते हैं.
प्रियदर्शन NDTV इंडिया में सीनियर एडिटर हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.
This Article is From Apr 10, 2018
छोले-भटूरे, पकौड़े और बिरयानी
Priyadarshan
- ब्लॉग,
-
Updated:अप्रैल 10, 2018 16:47 pm IST
-
Published On अप्रैल 10, 2018 16:47 pm IST
-
Last Updated On अप्रैल 10, 2018 16:47 pm IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं