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This Article is From Jun 23, 2015

प्रियदर्शन की बात पते की : किसका इम्तिहान?

Priyadarshan
  • Blogs,
  • Updated:
    जून 23, 2015 00:24 am IST
    • Published On जून 23, 2015 00:14 am IST
    • Last Updated On जून 23, 2015 00:24 am IST
84 देशों के नुमाइंदों और 35,000 से ज़्यादा प्रतिभागियों के साथ योग के दो-दो वर्ल्ड रिकॉर्ड बना रही बीजेपी के नेताओं की निगाह आख़िर उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को क्यों खोजती रही? क्या इसलिए कि वे मुसलमान हैं और उनका फ़र्ज़ बनता है कि वो योग करके अपनी देशभक्ति साबित करें?

सवा अरब देश में करोड़ों लोगों ने योग नहीं किया। वे सब देशद्रोही नहीं हैं। और जिन हज़ारों लोगों ने योग किया, उनमें से कई अपनी हरक़तों से देशभक्त कहलाने लायक नहीं हैं। यानी योग वह पैमाना नहीं है जिससे किसी की देशभक्ति मापी जाए। कायदे से किसी की देशभक्ति मापने का कोई पैमाना होना भी नहीं चाहिए। हम देश से प्यार करते हैं, क्योंकि देश में वह राज्य, वह शहर और वह घर होता है, जहां हम रहते हैं। उससे हमारा एक जुड़ाव होता है।

लेकिन अगर रोज़ कोई हमें यह साबित करने को कहे कि हम अपने घर से, अपने मुल्क से प्यार करते हैं, कोई रोज़ हमारे सहज जुड़ाव के लिए कसौटियां बनाए तो अचानक घर हो या मुल्क- दोनों पराए लगने लगते हैं। लेकिन कोई हमसे यह साबित करने को क्यों कहेगा? क्योंकि वह हमें पराया मानता है।

राम माधव और हामिद अंसारी के मामले की गुत्थी यही है। राम माधव जिस वैचारिक प्रशिक्षण में पले बढ़े हैं, जिसे वे अपनी राजनीति और संस्कृति बताते हैं, वह हिंदुओं के अलावा किसी और को हिंदुस्तान का बाशिंदा नहीं मानती। ये इकहरी दृष्टि यह भी भूल जाती है कि हिंदुस्तान को हिंदुओं ने ही नहीं बनाया है, बल्कि हिंदू जैसी संज्ञा भी किसी प्राचीन संस्कृति में नहीं रही है, हिंदुस्तान बहुत सारी नदियों, बहुत सारी ज़ुबानों, बहुत सारी परंपराओं, बहुत सारे झंझावातों की चाक पर गढ़ा गया है और अब भी गढ़ा जा रहा है।

देशों की कोई जड़ मूर्ति नहीं होती, वे एक धड़कते हुए समाज से बनते हैं, वे बार-बार बदलते हैं और फिर भी हमारे भीतर बने रहते हैं। लेकिन संघ परिवार देश के इतिहास से आंख नहीं मिलाता, वर्तमान से चिढ़ता है और एक ऐसे भविष्य की कल्पना करता है, जिसमें सिर्फ एक धर्म का राज हो। ऐसे एक धर्म पर आधारित राज्य कितने दकियानूस और क्रूर होते हैं, इसके उदाहरण हमारे आसपास बिखरे पड़े हैं।

अच्छी बात यह है कि हमारा लोकतंत्र संघ परिवार के इस वैचारिक इकहरेपन को ख़ारिज करता है। वह बीजेपी को मजबूर करता है कि सत्ता में आना है तो अपनी विचारधारा को हाशिए पर डाले और सबको साथ लेकर चले। इस मजबूरी में बीजेपी सबको साथ लेने की बात करती है, लेकिन फिर सब पर योग थोपती है और खोज-खोज कर देखती है कि किसने योग नहीं किया। अगर वह मुसलमान है तो उसकी देशभक्ति पर सवालिया निशान है।

लेकिन अगर लोकतंत्र पर हमारा यक़ीन है तो देर-सबेर जितने इम्तिहान इस देश का मुसलमान दे रहा है, उतने ही बीजेपी को देने होंगे। या तो वो बदलेगी, नहीं तो लोग उसे बदल डालेंगे। क्योंकि इतिहास बताता है कि इस देश में वही टिका और वही बड़ा माना गया, जिसने सबको साथ लिया, जिसने सबको साध लिया। बाकी इकहरे और अत्याचारी शासकों की तरह याद किए जाते हैं। ये बीजेपी को तय करना है कि वो हामिद अंसारी का इम्तिहान लेगी या ख़ुद इंसानियत का इम्तिहान देगी।

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