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This Article is From Feb 28, 2018

बैंकरों पर बैंकिंग के अलावा बाकी बोझ क्यों?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 28, 2018 23:08 pm IST
    • Published On फ़रवरी 28, 2018 23:08 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 28, 2018 23:08 pm IST
दक्षिण कोरिया की संसद ने एक कानून बनाया है जिसके बाद अब वहां के लोग एक सप्ताह में 68 घंटे की जगह 52 घंटे ही काम करेंगे. आप सोच रहे होंगे कि मैं दक्षिण कोरिया की बात क्यों बता रहा हूं. वो इसलिए बता रहा हूं कि भारत के सरकारी बैंकों में काम करने वाले 90 फीसदी लोग सुबह 10 बजे से लेकर रात के 9 बजे तक काम करते हैं. टारगेट और ट्रांसफर की तलवार से उनसे इतना काम कराया जाता है. इसमें आप शनिवार और रविवार के भी 20 घंटे जोड़ लेंगे तो यह दक्षिण कोरिया के पहले वाले 68 घंटे से भी 2 घंटा ज़्यादा है, यानी 70 घंटे काम करते हैं आपके सरकारी बैंकर.

बीमा पॉलिसी, म्युचुअल फंड बिकवाने के अलावा बैंकरों से अब आधार नंबर भी जोड़ने के लिए कहा जा रहा है. एक बैंकर ने आधार को लेकर जो हाल लिख भेजा है, वो हकीकत की धरातल पर कितना सही है मैं तो नहीं जान सकता लेकिन उसने जो अपने काम का हिसाब भेजा है वह भयावह है. मैं उसे पढ़ना चाहता हूं. जिस बैंकर ने लिखा है वह आपके खातों को आधार से लिंक करने के काम से जुड़ा है. गांव देहात में इस काम में क्या दिक्कत आ रही है आप अगर उसके पत्र को हमारे सहयोगी की आवाज़ में सुनेंगे तो भारतीय राज्य व्यवस्था के करतबों पर हंसी आएगी और फिर उसके बाद रोना आएगा. 

कई बैंकरों ने कहा है कि आधार लिंक का काम जब से आया है जीना और मुश्किल हो गया है. बैंकों में कर्मचारियों की संख्या नहीं बढ़ रही है. कई ब्रांच दो या तीन लोगों के भरोसे चल रहे हैं. इन सब टारगेट को पूरा करने के लिए हम बग़ैर छुट्टी दिन रात काम कर रहे हैं. महाराष्ट्र से एक महिला बैंकर ने लिखा कि उसे गर्भवती होने के 9वें महीने में भी फील्ड सर्वे के लिए भेजा गया. जब उसने छुट्टी की बात की तो कहा गया कि मार्च के हिसाब से फैमिली प्लानिंग करनी चाहिए थी. छुट्टी देने में आनाकानी हुई.

प्राइम टाइम के बैंक सीरीज़ 6 में हमने कहा था कि केंद्र सरकार की महिला कर्मचारियों को 180 दिन का मातृत्व अवकाश मिलता है और वे चाहें तो दो साल का चाइल्ड केयर लीव भी ले सकती हैं. एक ही साथ या अलग-अलग मगर सरकारी बैंकों में महिलाओं को यह सुविधा नहीं है. अब आप ही बताइये कि यह अंतर क्यों है. महिला बैंकरों को यह सुविधा देने का फैसला करने में कितने साल लगने चाहिए. क्या आपके साथ भी हुआ है कि आप खाता खोलने गए और साथ में बिना जानकारी के आपका बीमा हो गया. हमने फेसबुक पर एक पोस्ट डालकर लोगों से उनके इस अनुभव के बारे में पूछा तो एक जवाब आया कि जून 2015 में पहली बार एक मोबाइल संदेश आया, जिसके माध्यम से पता चला कि प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के नाम पर मेरे आंध्र बैंक अकाउंट से 12 रुपये कटने लगा है. मैंनेजर ने बताया कि सेंट्रल यूनिट से बहुत परेशान किया जा रहा है कि चाहे कोई स्वीकार करे या न करे, सबके अकाउंट से 12 रुपये काटने की व्यवस्था हो.
मैनेजर मेरी सहायता नहीं कर सकता है, क्योंकि उसे अपनी नौकरी बचानी है.

कई बैंकों के बैंकरों ने कहा कि उन पर बीमा बेचने का बहुत दबाव है. हर हफ्ते एक लॉग इन डे होता है, जिसमें आज बीमा की कितनी पॉलिसी बेचनी है, उसका टारगेट होता है. अटल पेंशन योजना कितनी बेचती है, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना कितनी बेचनी है. बैंकरों ने कहा कि शुरू में तो ग्राहकों ने हमारे कहने पर ले लिया मगर रोज़-रोज़ के टारगेट के कारण अब अच्छा ग्राहक भी भागने लगता है. कई बैंकरों ने यह भी कहा कि कोई खाता खोलने आता है तो कई फॉर्म के साथ बीमा और पेंशन योजना का फॉर्म दे देते हैं. वो साइन कर देता है और पॉलिसी बिक जाती है. जब इससे भी टारगेट पूरा नहीं होता तो अपनी जेब से अपने रिश्तेदारों के नाम पर अटल बीमा योजना ख़रीद लेते हैं. कुछ जागरूक ग्राहकों को पता चलता है तो वे शिकायत करते हैं, मैनेजर से झगड़ा करते हैं मगर हम हाथ जोड़ कर किसी तरह समझा लेते हैं. दिल्ली के निवासी योगेश आनंद अपने बेटे का खाता खुलवाने बैंक ऑफ इंडिया गए. खाता तो खुला मगर बिना जानकारी और सहमति के अटल पेंशन योजना चिपका दी गई. योगेश जी ने हमारे दफ्तर आकर अपना हाल बताया अब वो इस पॉलिसी से पीछा छुड़ाना चाहते हैं मगर मैनेजर हाथ बांध कर खड़े हो जाते हैं. 

आप खरीदना चाहें तो कोई भी बीमा खरीद सकते हैं, लेकिन बिना जानकारी और सहमति के कोई आपके नाम पर बीमा बेच दे ये नैतिक रूप से ग़लत है. मामला चूंकि 12 रुपये का होता है 300 रुपये का होता है कई बार ग्राहक चुप हो जाता है, लेकिन दस-दस रुपये करके जनता का करोड़ों लुट जाता है. बैंक के वरिष्ठ अधिकारी मैनजर और क्लर्कों को धमकाते हैं कि अगर इतना बीमा नहीं बिका तो कठोर कार्रवाई की जाएगी. बैंकरों का कहना है कि ग़रीब लोग या सामान्य ग्राहक हमारे दबाव में या हाथ पांव जोड़ने पर खरीद तो लेता है, नहीं खरीदता है तो बिना उसकी जानकारी के हम बेच देते हैं. लेकिन अगले साल बीमा नहीं दे पाता है. इससे आंकड़ा तो बन गया कि कितने करोड़ लोगों ने अटल पेंशन योजना की पॉलिसी ली मगर यह कभी सामने नहीं आ पाता कि कितने लोगो ने इस पॉलिसी को दूसरे या तीसरे साल में बंद कर दी. इससे बीमा कंपनियों को ही लाभ होता है. बिना बीमा दिए मुफ्त में 300 से 600 रुपये आ जाते हैं. 

मैंने ऐसे सैंकड़ों मेसेज देखे हैं जिनमें रीजनल हेड ब्रांच मैनेजर को धमका रहे हैं या टारगेट दे रहे हैं कि अटल पेंशन योजना की आज 100 पॉलिसी बेचनी ही है. यही तनाव का कारण बन रहा है मैनेजरों का. इसी के लिए मैनेजर ब्रांच में देर रात तक बैठे रहते हैं. बिना बताए धोखे से बीमा बेचने का यह तरीका बैंकों की बीमा इकाई को मुनाफा तो दे रहा है मगर ग्राहकों के भरोसे के साथ छल कर रहा है. भारतीय किसान यूनियन भानु गुट के नेता रामपाल सिंह ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के मुंबई स्थित मुख्यालय को पत्र लिखा है. उन्होंने बैंक से जांच की मांग की है कि किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड से जो लोन मिलता है उसमें से बिना उनकी जानकारी के बीमा का प्रीमियम काट लिया जा रहा है. कई बार यह राशि 5000 रुपये तक की होती है. बैंक ने आगरा के प्रशासनिक कार्यालय को लिखा है कि मामले की जांच करें. मगर उसके ही अधिकारी तो टारगेट फिक्स करते हैं कि इतनी बीमा पॉलिसी बेचनी है. 

बैंक की दुनिया में इसके लिए दो शब्द चलते हैं. क्रॉस सेलिंग और मिस-सेलिंग. क्रॉस सेलिंग यह हुआ का पैसे के लेन देन के अलावा बैंक कुछ और पॉलिसी बेच दे. मिस-सेलिंग यह हुआ कि आपको धोखे से बेच दे. आपको मजबूर किया जाए. अगर आपको किसी बैंक की पॉलिसी लेनी है तो बेहतर स्थिति है कि आप अलग-अलग पॉलिसी का अध्ययन करने के बाद लें. लेकिन बैंक आपके भरोसे का लाभ उठाकर मजबूर करते हैं या धोखे से बीमा बेच देते हैं. आप किसी भी बैंकर से बात कीजिए, पूछिए कि क्या यह सही है, वो कहेगा हां यह सही है. हमने इस बारे में ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कॉन्फेडरेशन के महासचिव फ्रांको थॉमस से बात की.

हमें कई बैंकरों से भी ख़त मिले हैं. हम पहचान तो नहीं बता सकते मगर भाव आप समझ सकते हैं. बीमा पालिसी बेचने के नाम पर बैंकरों को जो हाल हुआ है उसने उनका सारा अनुभव बदल दिया है. उन्हें शायद काम करने से परेशानी नहीं है, वो दस घंटा भी काम कर सकते हैं बल्कि कर ही रहे हैं. उनका कहना है कि किसी ग्राहक का भरोसा तोड़कर झूठ बोलकर झांसा देकर अटल पेंशन योजना बेचना या कोई बीमा पालिसी बेचना ईमान पर बोझ बन जाता है. जब कोई ग्राहक पूछने आता है तो नज़र नहीं मिला पाते हैं मगर ऐसा करके टारगेट पूरा नहीं करेंगे तो नौकरी नहीं बचा पाते हैं. टारगेट न होने पर ट्रांसफर की तलवार चला दी जाती है. कुछ बैंकरों का अनुभव हमारे सहयोगियों की आवाज़ में सुनिए. 

सरकार की jansurakshagovernment.in की वेबसाइट से पता चलता है कि अगर आप किसी भी सामाजिक सुरक्षा स्कीम ले रहे हैं, जिसमें सरकार की हिस्सेदारी है अटल पेंशन योजना के लिए अप्लाई नहीं कर सकते हैं. जैसे इम्प्लाइ प्रोविडेंट फंड, कोल माइन्स प्रोविडेंट फंड, आसाम टी प्लांटेंशन प्रोविडेंट फंड से जुड़े हैं जो अटल पेंशन योजना के लिए योग्य नहीं है. सरकारी कर्मचारी ले सकते हैं मगर उन्हें सरकार का हिस्सा नहीं मिलेगा. 

अगर बैंक चाहे तो ईमानदारी से बता सकते हैं कि अटल पेंशन योजना लेने के बाद कितने प्रतिशत लोगों ने इसे बंद कर दिया. आंध बैंक के एक बैंकर ने बताया कि टारगेट पूरा करने के लिए अपने नाम से, अपनी पत्नी, पत्नी की बहन, उनके पति के नाम से अटल पेंशन योजना ली है. ओरियंटल बैंक आफ कॉमर्स का एक ईमेल देखा जिसमें कर्मचारियों को कहा गया है कि हर दिन दो अटल पेंशन योजना बेचनी ही है. बैंक के चेयरमैन कभी इसे स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि फिर सरकार से कैसे नज़र मिलाएंगे कि ग़लत जानकारी दी, लेकिन सैंकड़ों ऐसे व्हाट्स अप मेसेज और ईमेल की तस्वीरें देखने के बाद कह रहा हूं कि अटल पेंशन योजना बेचने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. बिना जानकारी और सहमति के बेचा जा रहा है. बैंक और ग्राहक के बीच भरोसे के अलावा कुछ और नहीं होता. इसका लाभ उठाकर बिना बताए पॉलिसी बेचना ग़लत है. अमेरिका में इस अपराध के लिए वेल्स फारगो बैंक के सीईओ को इस्तीफा देना पड़ा था. भारत में लोग लीपापोती वाला बयान देकर गायब हो जाते हैं. यह सवाल तो है कि अटल पेंशन योजना का खाता खुल तो जाता है उसमें से बंद कितना होता है. 

बैंक के नोटिस बोर्ड पर स्वच्छता का बैनर लगा है, वैसे हर बैंक के बाहर लगा देखा होगा आपने मगर यह बैनर जहां लगा है वह मध्यप्रदेश के गुना ज़िले की तहसील सिटी के मध्यांचल ग्रामीण बैंक का ब्रांच है. इस ब्रांच के टायलेट की तस्वीरें देखिए. कमोड तक नहीं है. बैठने की कोई व्यवस्था नहीं. टायलेट में दरवाज़ा तक नहीं है. स्त्री पुरुष सबके लिए यही है. पेट खराब होने की स्थिति में यहां काम करने वालों पर क्या बीतती होगी आप अपने अनुभव से भी अंदाज़ा लगा सकते हैं. यह वीडियो भी एक बैंक के शौचालय का है. अच्छा है हमारी सीरीज़ के बाद बैंकों ने शौचालय की हालत की रिपोर्ट मंगाई है मगर यह हालत अभी तक नज़र क्यों नहीं आ रही है. क्या चेयरमैन लोग हमारी सीरीज़ देख रहे हैं, गुड. उन्हें प्रधानमंत्री की प्रिय योजना स्वच्छता अभियान को लेकर अब बहाना बनाने का कोई मौका नहीं मिलने वाला है. 

अंबाला में इलाहाबाद बैंक की एक शाखा है. माछोंदा शाखा. यहां तीन महिला कर्मचारी काम करती हैं मगर एक भी शौचालय नहीं है. महिलाओं को बैंक से दूर आधा किमी दूर जाना पड़ता है. एक ग्राहक की सूचना है. हमने अपनी तरफ से वेरिफाई नहीं की है. वैसे भी हमारी ये सीरीज़ एक किस्म का फीडबैक है. बैंकर हमें गुप्त रूप से बताते हैं और हम बैंक के चेयरमैनों सरकार और लोगों को फ्री में बता देते हैं. कैसे चेयरमैन हैं ये प्रधानमंत्री की स्वच्छता योजना को भी गंभीरता से नहीं लेते हैं. महिलाओं को चाइल्ड केयर लीव देने में इतनी देरी क्यों हो रही है. हमारी सीरीज़ के बाद स्टैट बैंक ऑफ इंडिया के जयपुर सर्किल ने एक पोर्टल बना दिया है जिसमें बैंक महिलाओं के शौचालय का हाल लोड करेंगे. बैंक उस हिसाब से कार्रवाई करेगा. 

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