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This Article is From Aug 19, 2015

क्या पटेल समाज को आरक्षण मिले?

Reported By Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 19, 2015 21:44 pm IST
    • Published On अगस्त 19, 2015 21:34 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 19, 2015 21:44 pm IST
राजनीति वो दरिया है जिसकी सतह पर जब धारा शांत लगती है तभी सतह के भीतर की धारा अंगड़ाई ले रही होती है। सबका ध्यान बिहार की चुनावी राजनीति की तरफ है लेकिन गुजरात में एक 22 साल का नौजवान राजनीति की क्षितिज पर उभरता दिखाई दे रहा है।

फिलहाल यह नौजवान न तो किसी दल का समर्थक है न विरोधी। यह अपने समाज के हक और हुकूक की बात करता है। नारा है आरक्षण नहीं तो वोट नहीं। चंद महीनों के भीतर यह गुजरात में लाखों पटेल युवाओं की आवाज़ बन चुका है।

हार्दिक पटेल नाम है। कुंवारे हैं मगर अहमदाबाद से बी. कॉम की पढ़ाई की है। माता-पिता अहमदाबाद के विरंगम तालुका के चंद्रनगर गांव के रहने वाले हैं। पांच सात बीघा ज़मीन है, ट्‌यूबवेल का छोटा सा बिजनेस है। हार्दिक के पिता पाटिदार संगठन का सेवादल चलाते थे जिसके कारण कई नेताओं की रैलियों में मंच पर बुलाये जाते रहे हैं। बीजेपी के कार्यकर्ता भी बताये जाते हैं। लेकिन 22 साल के उनके बेटे ने बीजेपी सरकार के लिए ही मुश्किल खड़ी कर दी है।

नौजवानी में यार दोस्तों के बीच आक्रोश और तेवर जताने के लिए लोग बंदूक और रिवॉल्वर के साथ तस्वीरें खींचा लेते हैं, लेकिन हार्दिक को मेरी सलाह है कि ऐसी तस्वीरों से दूर ही रहें। हार्दिक अपने विरंगाम में पाटिदार युवाओं का संगठन चलाते रहे हैं। लेकिन जैसे-जैसे इन नौजवानों को खेती का संकट और बेरोज़गारी की तस्वीर दिखने लगी उनका आक्रोश एक व्यापक आवाज़ में बदलने लगा। 6 जुलाई को हार्दिक पटेल ने मेहसाणा ज़िले में पाटिदार शिक्षण समिति के बैनर तले रैली की तो पंद्रह से बीस हज़ार लोग आ गए।

उसके बाद सूरत की रैली से पूरे गुजरात के कान खड़े हो गए। सूरत की रैली में लाखों की संख्या में 22 साल के इस नौजवान को सुनने पहुंच गए। इससे पहले अहमदाबाद में रैली निकाली तो 15 से 20 हज़ार बाइक लेकर नौजवान आ गए। अब यह आंदोलन पाटिदार अनामत आंदोलन कमेटी के निर्देशन में ज़ोर पकड़ चुका है। 25 अगस्त की अहमदाबाद में रैली होने वाली है जिसमें लाखों पटेल युवाओं के पहुंचने का दावा किया जा रहा है।

हम और आप पटेल समुदाय को समृद्ध और कारोबारी समुदाय के रूप में जानते हैं। यह जानते हुए भी कि इनका खेती से रिश्ता रहा है लेकिन कई दशकों से तमाम पत्रिकाओं और चैनलों में पटेलों के आलीशान गांवों की तस्वीरें देखते देखते यकीन हो चला था कि इनकी अमीरी का कोई मुकाबला नहीं। पटेल देश और विदेशों में गुजरात की समृद्धि के ब्रांड अंबेसडर रहे हैं। आबादी और पैसे के कारण इनकी राजनीतिक ताकत का बोलबाला रहा है। ऐसा समुदाय आरक्षण की मांग करने लगे तो बहुत मेहनत करनी पड़ रही है आंखों के आगे बने मोटे पर्दे को हटाने में।

हार्दिक पटेल का दावा है कि पिछले पंद्रह साल में खेती ने गांवों के भीतर पटेलों को कमज़ोर किया है। आबादी तीस प्रतीशत होने के बाद भी उनकी स्थिति कमज़ोर नज़र आती है। युवाओं को नौकरियां नहीं मिल रही हैं। इसलिए एडमिशन और नौकरी में आरक्षण चाहिए। गुजराती में आरक्षण को अनामत कहते हैं। एक समय पटेल नेताओं ने ओबीसी आरक्षण का विरोध किया था अब ओबीसी दर्जा मांग रहे हैं। सामाजिक मंच से ही सही, 22 साल के इस नौजवान का उभार बता रहा है कि राजनीति में अभी कुछ भी अंतिम रूप से नहीं हुआ है। हार्दिक ने गुजरात से बाहर यूपी और मध्य प्रदेश में कुर्मी पटेल सम्मेलनों में भी हिस्सा लिया है।

बिहार में कुर्मी, गुजरात में पटेल या पाटिदार, महाराष्ट्र में पाटिल कहते हैं। हार्दिक का उभार सिर्फ पटेल जाति का अपने लिए आरक्षण मांगना ही नहीं बल्कि खेती के संकट को भी सामने ला रहा है जिसे हम समृद्ध गुजरात के प्रचारों से बनी लाल कालीन के नीचे छिपा देते हैं।

आरक्षण को लेकर पटेल युवा बड़ी संख्या में हार्दिक पटेल के पीछे आ रहे हैं। गुजरात मे पिछले पंद्रह सालों से लगता रहा है कि बीजेपी और बीजेपी के बाहर नरेंद्र मोदी के सामने कोई दूसरा नेता ही नहीं है। मोदी के आलोचकों ने लिखा कि गुजरात को हिन्दुत्व की प्रयोगशाला बनाया जा चुका है। वहां के वोट की एक ही पहचान है हिन्दुत्व लेकिन अब उन्हें भी अपनी किताब फिर से पढ़नी चाहिए कि आख़िर वो क्या बात है कि एक 22 साल के लड़के के पीछे इतना बड़ा आंदोलन खड़ा हो जाता है।

आरक्षण के लिए पटेलों ने पहले भी मांग की है। गुजरात ही नहीं देश के कई हिस्सों में कई जातियों को ओबीसी में शामिल किया गया है और शामिल किये जाने की मांग होती रही है। हाल के गुर्जर और जाट आरक्षण की मांग के बारे में आपको कुछ कुछ याद होगा ही। यूपीए सरकार ने जाट आरक्षण दिया और एनडीए ने भी स्वीकार किया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जाट आरक्षण के फैसले को रद्द कर दिया।

पटेल युवाओं के बनाये इस वीडियो में आग का विशेष महत्व है। हर दो चार शॉट के बाद ज्वाला निकलती है। 23 जुलाई को विसनागर में पटेल युवाओं की रैली हुई। इस रैली में बीजेपी के विधायक जो खुद इसी जाति से आते हैं उन्होंने वादा किया कि वे भी रैली में शामिल होंगे। लेकिन राजनीतिक दबाव में वे शामिल नहीं हो सके। गुजरात के अखबारों के अनुसार वे एन मौके पर गांधीनगर चले गए। गुस्साए नौजवानों ने बीजेपी दफ्तर के बाहर खड़ी कार में आग लगा दी। उस घटना के बाद यह आंदोलन आग की तरह फैल गया।गुजरात से मेरे एक पटेल मित्र ने बताया कि हर किसी के फोन में रोज़ तीन चार मैसेज पटेल आरक्षण को लेकर होते ही हैं। हार्दिक का कहना है कि जब राज्य से कांग्रेस की सरकार को उखाड़ फेंका गया तो पटेल समुदाय ने ही उसकी अगुवाई की थी और अगर उन्हें न्याय नहीं मिला तो 2017 में बीजेपी के साथ भी ऐसा ही करेंगे। गुजरात की राजनीति के बारे में मोदी विरोधी अक्सर किसी हिन्दू वोट या प्रयोगशाला की बात करते थे लेकिन उन्हें भी सोचना चाहिए कि आखिर पटेल अस्मिता वो भी एक 22 साल के नौजवान के नेतृत्व में कैसे उभर गई। इसीलिए यह कोई सामान्य राजनीतिक घटना नहीं है।

बीजेपी चुप है मगर इस आंदोलन को ग़ौर से देख रही है। उन्हें पता है कि पटेल उनका सबसे बड़ा और स्थायी वोटबैंक हैं। हार्दिक पटेल का इम्तहान यही है कि वे आरक्षण से कम पर समझौता करेंगे या आरक्षण लेकर रहेंगे। दिक्कत है कि यह समस्या गुजरात के लिए नहीं है अगर वहां ये दरवाज़ा खुला तो दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी के सामने आरक्षण के नए सवाल खड़े हो जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट में रद्द होने के बाद भी जाट आरक्षण का सवाल समाप्त नहीं हुआ है।

गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल भी इसी समुदाय से आती हैं जिसका युवा अपनी बेरोज़गारी और पिछड़ेपन को लेकर सड़कों पर उतरा हुआ है। राज्य सरकार ने इन युवाओं से बात करने के लिए सात सदस्यों की एक कमेटी बनाई है। इसका नेतृत्व स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल कर रहे हैं। गुजरात सरकार में सात सात मंत्री पटेल हैं। पांच एमपी इस समुदाय से हैं। इसलिए बाकी ओबीसी समुदाय का कहना है कि उनके हिस्से से उस समुदाय के लिए क्यों जाए जो पहले से समृद्ध है। ठाकुर समाज के नेता अल्पेश ठाकुर ने कहा है कि ओबीसी मांग के खिलाफ अनशन करने वाले हैं। गुजरात के 54 प्रतिशत ओबीसी में 30 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा ठाकुर समाज का है। पटेल समाज की भी संख्या कम नहीं है। 17 से 20 प्रतिशत हैं। इन्हें लग रहा है कि पटेल आएंगे तो उनका हक मारा जाएगा।

पटेल युवाओं को विदेशों में भी समर्थन मिल रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार इंग्लैंड के पटेल लोगों ने युनाइटेड पाटिदार किंग नाम से एक समूह बना लिया है और वे आरक्षण की मांग का समर्थन कर रहे हैं। अमेरिका के पटेल समुदाय में भी हलचल हो रही है। इससे पहले कि यह मामला ग्लोबल हो जाए लोकल लेवल पर चर्चा हो जानी चाहिए प्राइम टाइम में।

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