जैसे ही आंदोलन से हटते हैं किसान सबकी नज़रों से हट जाते हैं. नेताओं की ओढ़ी हुई संवेदनशीलता ग़ायब हो जाती है. उन्हें पता है कि किसानों के पास किसान के अलावा उनकी जाति के पहचान हैं, धर्म के पहचान हैं. इन सब पहचानों के पीछे किसान हांक दिये जाएंगे और फिर सारे सवाल अगले किसी बड़े संकट तक के लिए स्थगित कर दिये जाएंगे. किसानों की कर्ज़ माफ़ी की ख़बरें आ तो रही हैं, मगर माफी की शर्तों की बारीकियों में असली खेल छिपा होता है. मध्यप्रदेश में ही जब से किसान आंदोलन शुरू हुआ है 16 किसानों की खुदकुशी की खबर है. हालांकि वहां के सहकारिता राज्यमंत्री दावा कर रहे हैं कि एक भी किसान ने कर्ज़ के कारण ख़ुदकुशी नहीं की है. शुक्र है उन्होंने यह नहीं कहा कि किसान ने खुदकुशी नहीं की. सिर्फ इतना कहा कि कर्ज़ के कारण नहीं की. अगर कर्ज़ के कारण ख़ुदकुशी नहीं की तो भी एक सरकार का फर्ज़ बनता है कि वह देखे कि दस दिन के भीतर 16 किसानों के आत्महत्या करने की वजहें क्या हैं.
सरकारों की मौसमी संवेदनशीलता का प्रशासन पर भी असर पड़ता है वर्ना जिस किसान के लिए मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक उपवास पर बैठ जाते हैं उसके शव को पोस्टमार्टम के बाद घर ले जाने के लिए ऑटो में खाट डालकर नहीं ले जाना पड़ता. आप सोच रहे होंगे कि एंबुलेंस क्यों नहीं दिया गया. सीएमओ ने बताया कि मृतक किसान के साथ कई लोग आ गए थे वे सभी एंबुलेंस में नहीं आ सकते थे इसलिए उन्होंने ये ऑटो कर लिया. सीएमओ ने कहा कि पास की बात होती तो व्यवस्था कर देते मगर काफी दूर के हैं. विदिशा में ज़िला अस्पताल है और जहां से यह शव लाया गया था वो काफी नहीं बल्कि मात्र साठ किमी दूर था. ख़ैर जो लोग एंबुलेंस में नहीं आ सकते थे वो इस ऑटो में आ गए. वैसे पुलिस की गोली से मरे छह किसानों के घर मुख्यमंत्री को जाना था तब सात हेलिपैड बनाए गए थे, बारिश हो गई इसलिए एक का ही इस्तमाल हुआ, मुख्यमंत्री बाकी जगहों पर कार से गए.
35 साल के जीवन सिंह मीणा विदिशा ज़िले के करारिया थाने के एक गांव बामौरा के निवासी थे. मां-बाप की इकलौती संतान थे. सोमवार सुबह उन्होंने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. जीवन ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक से सवा लाख और सहकारी बैंक से तीन लाख लोन लिया था. लोन नहीं चुका सके तो अगली बुवाई के लिए लोन नहीं मिला, जिससे वे खाद और बीज नहीं ख़रीद सके. परिजनों ने बताया कि तनाव में थे. कुछ दिन पहले अपनी ज़मीन बटाईदार को दी और सोमवार को पत्नी और तीन बेटियों को छोड़ फांसी लगा ली.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट तो यही कहती है कि जीवन सिंह की मौत दम घुटने से ही हुई यानी फांसी लगाने से. राष्ट्रीय अपराध शाखा ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार 2015 में मध्यप्रदेश में 581 किसानों ने आत्महत्या की थी.
जीवन सिंह के बाद अब जुगराज सिंह की कहानी. जुगराज सिंह पंजाब के बठिंडा ज़िले के झंडूके गांव के रहने वाले थे. उनके ऊपर बैंक और आढ़त वालों का दस लाख बकाया हो गया था. जुगराज ने आढ़ती से 24% सालाना ब्याज पर एक लाख रुपया कर्ज़ लिया था जो बढ़कर तीन लाख रुपये हो गया था. जुगराज को ग्रामीण बैंक का सात लाख रुपया चुकाना था. उसने एक पुराना ट्रैक्टर भी लिया था कर्ज़ पर, लेकिन कर्ज़ ना चुका पाने के कारण ट्रैक्टर बेचना पड़ा. सरकार से कर्ज़ माफ़ी की उसकी उम्मीद टूट चुकी थी. शुक्रवार रात वो जब खेत से काम कर वापस आया तो उसने कुंडी लगाकर कमरा बंद किया और फांसी लगा ली. बीते साल उसने खेतों में कपास लगाई थी लेकिन फसल ख़राब हो गई थी. 62 साल की उम्र में कोई खुदकुशी क्यों करेगा?
पंजाब के मुख्यमंत्री ने 20,000 करोड़ से अधिक की कर्ज़ माफी का एलान किया लेकिन जब बजट पेश हुआ तो उसमें कहीं 20,000 करोड़ की राशि ही नज़र नहीं आई. मुख्यमंत्री ने कहा था कि सभी छोटे और हाशिये के किसानों के दो लाख तक के लोन माफ कर दिये जायेंगे. यह बात ध्यान में रखियेगा कि किसानों पर दो लाख से अधिक का कर्ज़ है. लोन माफी के बाद भी किसान लोन से मुक्त नहीं हो रहे हैं. उनका पूरा कर्ज़ माफ नहीं हो रहा है, जबकि चुनावी भाषणों में संपूर्ण कर्ज़ माफी की बात करते थे.
मुख्यमंत्री ने बजट से पहले कहा था कि दस लाख किसानों को फायदा होगा. दावा था कि करीब 56 फीसदी किसानों को इससे फायदा होगा. इस हिसाब से 21,000 करोड़ की कर्ज़ माफी का हिसाब बनता है, मगर बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री मनप्रीत बादल ने मात्र 1500 करोड़ का प्रावधान किया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि सभी सीमांत किसानों को पूरे दो लाख रुपये तक की कर्ज़ माफ कर दी जाएगी चाहे उन पर कितना भी कर्ज़ क्यों न हो. अगर इसे जोड़ लें तो 30,000 करोड़ के करीब हिसाब बैठता है. बजट में उस तरह से नहीं कहा गया है जैसे बजट से पहले मुख्यमंत्री ने एलान किया था. यही नहीं पांच एकड़ से अधिक ज़मीन वाले किसानों का कोई लोन माफ नहीं होगा. मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि खुदकुशी करने वाले किसानों के जितने भी लोन बाकी होंगे, वो सरकार चुकायेगी. खुदकुशी करने वाले किसानों को पांच लाख रुपये तक की आर्थिक मदद दी जाएगी.
जुगराज सिंह अगर 20 जून तक ज़िंदा होते तो उनका दस लाख का कर्ज़ इस योजना के तहत माफ नहीं होता, अब फांसी लगा ली है तो शायद राज्य सरकार उनका लोन चुका देगी. पंजाब सरकार ने पंजाब कोऑपरेटिव सोसाइटीज़ एक्ट 1961 के सेक्शन 67 ए को भी रद्द करने का फ़ैसला किया है. अब किसानों की ज़मीन न तो नीलाम होगी और न ज़ब्त. इस फैसले से किसानों को राहत मिल सकती है क्योंकि लोन न चुकाने पर ज़मीन छिन जाने का डर नहीं रहेगा. पंजाब खेती के लिहाज़ से एक विकसित राज्य है. यहां हर तरह के बुनियादी ढांचे मौजूद हैं. इसके बाद भी यहां के करीब 86 फीसदी किसान कर्ज़ से दबे हैं. जितनी आत्महत्याएं हो रही हैं, उनमें से 90 फीसदी में ये लोन कारण रहा है.
हमारे सहयोगी निखिल की रिपोर्ट है कि पंजाब के 33.26 फीसदी किसान ग़रीबी रेखा से नीचे रहते हैं. यानी पंजाब का हर तीसरा किसान ग़रीबी रेखा से नीचे हैं. महीने में 2500 रुपये से भी कम कमाता है. पंजाब के किसान परिवार पर औसतन साढ़े पांच लाख से ज़्यादा कर्ज़ है. पंजाब यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट में यह जानकारी सामने आई है. इस प्रोजेक्ट के डायरेक्टर डॉक्टर ज्ञान सिंह का कहना है कि सीमांत किसान, लघु किसान, अर्ध लघु किसान और भूमिहीन किसानों की कर्ज़ चुकाने की क्षमता शून्य हो चुकी है. वे चुका ही नहीं सकते हैं. पटियाला के सोहना गांव के किसान पाल सिंह की उम्र 55 साल है. वह 2000 महीना भी नहीं कमा पाते हैं और कर्ज़ा है आठ लाख. ज़ाहिर है पाल सिंह की कर्ज़ चुकाने की क्षमता समाप्त हो चुकी है.
यही कारण है कि खेती से सब पलायन कर रहे हैं. आप सोचिये हरियाणा के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक में चपरासी के 92 पद के लिए 22000 आवेदन आए. वो भी स्थायी नहीं है. कांट्रेक्ट की नौकरी है और सैलरी है 8800 रुपये. आठवीं की योग्यता चाहिए मगर एमए किये हुए छात्रों ने भी आवेदन किया है. ऐसा क्यों हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि शहरों में भी रोज़गार नहीं है. शहरी अर्थशास्त्री रोज़ बोल रहे हैं कि लोगों को खेती से हटाकर शहरों में भेजना होगा क्योंकि खेती 70 फीसदी लोगों का भार नहीं उठा सकती. जैसे शहरों में रोज़गार चप्पे-चप्पे पर मौजूद है. शहरों में रोज़गार नहीं है, इसी कारण 70 फीसदी लोग खेती पर निर्भर है. इसे ऐसे भी देखा जा सकता है, मगर बात बनाने में हम उस्ताद हो चुके हैं. हरियाणा में न्यूनतम मज़दूरी की दो दरें हैं. 318 रुपये और 406 रुपये. इन दोनों के हिसाब से भी चपरासी को न्यूनतम मज़दूरी से कम वेतन का विज्ञापन निकल रहा है वो भी विश्वविद्यालय में. आप सोच सकते हैं कि न्यूनतम मज़दूरी का भी क्या हाल है और रोज़गार का भी. गनीमत है कि इस देश में रोज़गार मुद्दा नहीं बनता इसके लिए हमें धार्मिक और जातीय मुद्दों का शुक्र मनाना चाहिए.
अब आते हैं महाराष्ट्र की ओर. सोमवार रात महाराष्ट्र सरकार के मंत्रियों के समूह और किसान नेताओं के बीच बातचीत हुई कि कर्ज़ माफी की शर्तें क्या होंगी. किसान नेताओं का कहना है कि इस बातचीत का नतीजा नहीं निकला. उनका आरोप है कि सरकार वादे से मुकर रही है. राज्य सरकार ने अपने प्रस्ताव में कहा कि राज्य में 2013 से 2016 के बीच सूखा रहा इसलिए 30 जून 2016 तक जो कर्ज़ लिया गया है उसमें से सिर्फ एक लाख माफ किया जाएगा. जिन किसानों के पास कार है, जो इनकम टैक्स भरते हैं, जिनके परिवार में कोई सरकारी कर्मचारी है, उनका कर्ज़ माफ नहीं होगा. किसान नेता जिस गेस्ट हाउस में बातचीत कर रहे थे, वहीं पर नारेबाज़ी करने लगे और सरकार के प्रस्ताव की प्रतियां जलाने लगे.
महाराष्ट्र और पंजाब ने कर्ज़ माफी का एलान तो कर दिया, मगर इतनी शर्तें लगा दी गईं हैं कि इस माफी का कोई खास मतलब नहीं रह जाता है. ज़ाहिर है नेता चुनाव में कुछ कहते हैं, चुनाव के बाद कुछ और करते हैं. इस साल 18 मई के टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रियंका काकोदकर की एक रिपोर्ट छपी है, जिसके अनुसार महाराष्ट्र में जनवरी से लेकर अप्रैल तक 852 किसानों ने आत्महत्या की है. हर दिन सात किसानों ने आत्महत्या की है. 409 आत्महत्याएं विदर्भ में हुई हैं. 2016 में इसी दौरान 1023 किसानों ने आत्महत्या की थी. चार महीने में 852 किसान आत्महत्या कर लें, क्या आपको ऐसी ख़बरें विचलित करती हैं. 3 मई, 2017 को सुप्रीम में सरकार ने हलफनामा दिया है कि काफी कोशिशों के बाद भी कृषि के क्षेत्र में 2013 से हर साल औसतन 12,000 से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है.
मध्यप्रदेश में भी हर साल औसतन 1290 किसान आत्महत्या कर रहे हैं. मंगलवार के इंडियन एक्सप्रेस में अजय वीर जाखड़ ने लिखा है कि 2015 में किसानों की आत्महत्या में 42 फीसदी का इज़ाफ़ा हुआ था. यही नहीं ज़मीन पुरुष किसान के नाम होती है मगर महिला किसानों की आत्महत्या को इन आंकड़ों में शामिल नहीं किया जाता. महिला किसानों के हालात पर तो चर्चा भी नहीं होती है.
4 अप्रैल 2017 को हिन्दुस्तान टाइम्स में देवेंद्र शर्मा ने एक लेख लिखा है. इसमें उन्होंने संसद की लोकलेखा समिति का हवाला देते हुए कहा है कि पब्लिक सेक्टर बैंक का एनपीए छह लाख 80 हज़ार करोड़ का है. इसमें 70 प्रतिशत डिफाल्टर उद्योगपति हैं. मात्र एक फीसदी किसान हैं.
आप सोचिये चार लाख के कर्ज़े वाला किसान आत्महत्या कर लेता है, यहां पचास पचास हज़ार करोड़ का डिफाल्टर उद्योगपति बैंक अधिकारियों के साथ मीटिंग कर रहे हैं. किसान को बैंक से कितना वक्त मिलता है और एक उद्योगपति को इसी का हिसाब निकाला जाना चाहिए. मगर किसानों की एकमात्र समस्या लोन नहीं है.
This Article is From Jun 20, 2017
प्राइम टाइम इंट्रो : क्या कर्ज़ माफ़ी पर गंभीरता से अमल होगा?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जून 20, 2017 21:25 pm IST
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Published On जून 20, 2017 21:25 pm IST
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Last Updated On जून 20, 2017 21:25 pm IST
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