यह ख़बर 10 नवंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

क्या योग्यता के आधार पर ही बने सब मंत्री?

नई दिल्ली:

नमस्कार मैं रवीश कुमार। तो मंत्रिमंडल का विस्तार जात−पात के आधार पर हुआ या काम−काज के आधार पर। प्रधानमंत्री के मिनिमम गवर्मेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस नारे में क्या-क्या है, कोई नहीं जानता, लेकिन जब रविवार को प्रधानमंत्री ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया तो उनके मंत्रिपरिषद में सदस्यों की संख्या 44 से बढ़कर 66 हो गई। यूपीए के वक्त यह संख्या 72 तक पहुंच गई थी। जिसकी आलोचना तब बीजेपी करती थी अब कांग्रेस कर रही है।

26 मई को जब प्रधानमंत्री के साथ उनके मंत्रियों ने शपथ ली थी, तब अगले दिन सारे अखबारों की सुर्खियां सोमवार की तरह नहीं थीं। उनमें इस बात की तारीफ थी कि सरकार पतली दुबली और फुर्तीली है। 72 की जगह 44 मंत्री ही बने हैं।
 
कई अखबारों में इस बात का ख़ासतौर पर ज़िक्र था कि प्रधानमंत्री की पसंद ही चली है और सिर्फ योग्यता के आधार पर मंत्री बनाए गए हैं। इकॉनोमिक्स टाइम्स ने 27 मई को खबर में लिखा कि मोदी ने अपनी सरकार की शुरुआत में ही कैबिनेट मंत्रियों की संख्या को 29 से 24 कर दिया और कुल मंत्रियों को 72 से 45।

इसी अखबार ने 10 नवंबर ने लिखा कि मोदी का चुनाव में कम भारीभरकम और काम की सरकार देने का वादा चरमरा गया है। उनका मंत्रिमंडल में जंबो साइज़ का यानी 66 मंत्रियों का हो गया है। जो यूपीए के 71 मंत्रियों से 5 ही कम है।

विस्तार से पहले कहा जा रहा था कि सिर्फ मेरिट के आधार पर मंत्री बनेंगे, जाति या किसी और आधार पर नहीं। 26 मई के आसपास इस बात की भी चर्चा होती थी कि मोदी मंत्री तो कम रखेंगे ही कई मंत्रालयों को मिलाकर एक नया मंत्रालय बनाएंगे ताकि उनमें तालमेल बेहतर हो।

योजना आयोग के ख़ात्मे को इसी दिशा में बताया गया था। क्या राज्यों की चुनावी मजबूरियों के कारण केंद्र में वही पुराना हाल रहेगा, जब पत्रकार मज़ाक में लिखा करते थे कि खेलमंत्री कोई और है और कूद मंत्री कोई और।

एक और बहस हो रही है कि जाति अभी तक मेरिट बनी हुई है। रामकृपाल यादव मेरिट के कोटे से बने हैं या यादव जाति के। बीए- एलएलबी हैं और 93 से कई बार सांसद बनते रहे हैं। आप पेयजल राज्यमंत्री बने हैं, जो पहले उपेंद्र कुशवाहा के पास था

कई पत्रकारों ने लिखा है कि बिहार की चुनावी राजनीति ने रामकृपाल यादव को मंत्री बनवा दिया। गिरिराज सिंह जब पहली बार मंत्री नहीं बने तो कई पत्रकारों ने लिखा कि मोदी को वोट न देने वालों को पाकिस्तान भेजने का बयान देने के कारण मंत्री नहीं बने, क्योंकि शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भी आमंत्रित थे। इस बार कहा जा रहा है कि इन्हें भी बिहार चुनाव के कारण मंत्री बनाया गया है।

स्नातक गिरिराज सिंह भूमिहार जाति से हैं और आक्रामक नेता हैं। दलितों की हत्या करने वाले रणबीर सेना के मुखिया की तारीफ करने का इन पर आरोप है। इनके घर से डेढ़ करोड़ चोरी होने पर काफी हंगामा हुआ। बिहार सरकार में पांच साल मंत्री रह चुके हैं।

सोशल मीडिया पर उठते सवालों और विपक्ष के आक्रामक हमले का जवाब देने के लिए शाम को सूचना प्रसारण मंत्री अरुण जेटली खुद सामने आएं। उन्होंने हर सवाल का अपना जवाब दिया है और कहा कि गिरिराज सिंह पर कोई केस नहीं है। बिहार सरकार चाहती तो केस दर्ज कर सकती थी।

वहीं साध्वी निरंजन ज्योति इंटर पास हैं। राम जन्मभूमि विवाद से जुड़ी रही हैं। इनके बारे में भी कहा जा रहा है कि निषाद जाति और यूपी चुनाव को देखते हुए राज्यमंत्री बनाया गया है।

अगर मेरिट पैमाना था तो सदानंद गौड़ा को रेल से हटाकर कानून मंत्रालय क्यों भेजा गया? अखबारों में लिखा गया कि प्रधानमंत्री उनके कामकाज से खुश नहीं थे। लेकिन क्या प्रधानमंत्री रविशंकर प्रसाद के कामकाज से भी खुश नहीं थे। कानून के जानकार प्रसाद से मंत्रालय को लेकर गौड़ा को देकर क्या संदेश दिया गया है।

दिल्ली चुनाव के वक्त बीजेपी डॉक्टर हर्षवर्धन के बारे में क्या क्या नहीं कहती थी कि पल्स पोलियो के नायक रहे हैं। ईमानदार हैं। जब वे स्वास्थ्य मंत्री बने तो जानकारों ने कहा कि सही व्यक्ति को मंत्रालय मिला है।

पांच महीने में ही वे पूर्व स्वास्थ्य मंत्री हो गए। कांग्रेस प्रवक्ता अजय माकन ने कहा है कि हर्षवर्धन की जगह वकील जे पी नड्डा को मंत्री बनाया है, तो क्या सरकार मानती है कि हर्षवर्धन नाकाम रहे।

आम आदमी पार्टी हर्षवर्धन को लेकर दुखी नहीं है, लेकिन नड्डा के स्वास्थ्य मंत्री बनने को लेकर सुखी है। उनका आरोप है कि एम्स के ईमानदार अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के तबादले की सिफारिश करने वाले नड्डा को स्वास्थ्य मंत्री बनाकर ईमानदार अफसर के साथ नाइंसाफी हुई है।

जेपी नड्डा ने इसी जून माह में डाक्टर हर्षवर्धन को चिट्ठी लिखी थी। यह मामला संक्षेप में इस प्रकार है। एक जांच 1982 बैच के आईएएस विनीत चौधरी के ख़िलाफ़ थी, जो हिमाचल प्रदेश में नड्डा के साथ काम कर चुके थे। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, नड्डा जब 2001 से 2003 के बीच हिमाचल में स्वास्थ्य मंत्री थे तो चौधरी स्वास्थ्य विभाग में ही थे। विनीत चौधरी के ख़िलाफ़ अप्रैल 2013 में जांच शुरू हुई, जिसके तुरंत बाद नड्डा ने तब के कार्मिक मंत्री वी नारायणसामी को चिट्ठी लिखी, जिसमें चतुर्वेदी को एम्स के सीवीओ पद से हटाने की मांग की गई।

13 अगस्त को चतुर्वेदी को एम्स के सीवीओ पद से हटाने के लिए फाइल नोटिंग तैयार की गई। चौबीस घंटे के अंदर स्वास्थ्य मंत्रालय के सभी बड़े अफ़सरों ने दो बार फाइल पर दस्तख़त कर दिए। एम्स के 250 डाक्टरों और पद्म भूषण पुरस्कार प्राप्त सदस्यों ने पीएम को खत लिखा था कि संजीव चतुर्वेदी को वापस लाया जाए।

नड्डा को लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने जमकर सवाल किए हैं। लेकिन वित्तमंत्री और सूचना एवं प्रसारण मंत्री अरुण जेटली ने भी जवाबी हमला बोला और कहा कि कौन कहता है कि उन्होंने गलत मकसद से चिट्ठी लिखी। कुछ लोग कुछ संगठन में फिट बैठते हैं कुछ नहीं बैठते हैं। यह हितों का टकराव कैसे हैं। यह तो पब्लिक के हित में है। क्या उन्होंने निजी हित में किया।

यह ध्यान में रखिएगा कि विशेषाधिकार प्रधानमंत्री का होता है आपका नहीं। फिर यह ध्यान में बिल्कुल मत रखिएगा कि इसी विशेषाधिकार के कारण जब यूपीए टाइम में दागी मंत्रियों का जब मामला आया था तो बीजेपी ने संसद में उनका बहिष्कार किया था। जब वह बोलने के लिए उठते बीजेपी के सांसद बाहर चले जाते। तब कांग्रेसी कहते थे कि पॉलिटिक्स में केस होता रहता है, अब जेटली ने कहा कि पॉलिटिक्स में कई लोगों पर केस होते हैं।

जेटली ने कहा कि यूपीए टाइम में कई केस में सजा भी हुई थी। यूपी में बीजेपी के हर कार्यकर्ता के खिलाफ केस है। अरुण जेटली ने साफ साफ कह दिया है कि यूपीए में मंत्री कौन बनता था। प्रधानमंत्री के पास अधिकार नहीं था। एनडीए में अलग है। प्रधानमंत्री हर किसी की साख की चेकिंग करते हैं ये कैसे कह सकते हैं कि ये दागी हैं। कांग्रेस को खराब गवर्नेंस तक ही खुद को सीमित रखना चाहिए जो उसने दिया है।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

डिमेरिट में मेरिट निकालना सरकार का काम है और मेरिट में डिमेरिट विपक्ष का। बीच में कुछ हमारा भी काम है जो शुरू होता है अब प्राइम टाइम में।

(प्राइम टाइम इंट्रो)