क्या हमारे राजनीतिक दलों ने कोई ऐसा पैमाना बनाया है कि किसी मुद्दे पर कब राजनीति होनी चाहिए और कब नहीं। अगर नहीं बनाया है तो फिर वे किस लिहाज़ से अपनी सुविधा के हिसाब से लेक्चर देने लगते हैं कि इस पर राजनीति हो रही है उस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। हमें यह भी सोचना चाहिए कि समस्या राजनीति में है या उन संस्थाओं के नकारेपन में है जिनका काम होता है संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना। संस्थाएं जब फेल होती हैं या राजनीति की किसी एक धारा का पोषण करने लगती हैं तभी राजनीति समस्या बन जाती है क्योंकि तब एक पक्ष को ही हमेशा सुना जाता है और दूसरे को नकारा जाने लगता है। संस्थाएं राजनीति का खिलौना बन जाती हैं।
दिल्ली में एनएसयूआई ने मानव संसाधन मंत्रालय के बाहर प्रदर्शन किया। कांग्रेस से जुड़े इस संगठन ने मानव संसाधन मंत्री और श्रम मंत्री से इस्तीफे की मांग की है। दिल्ली के ही जंतर-मंतर पर वामपंथी छात्र संगठन आइसा ने भी प्रदर्शन किया है। एफटीआईआई पुणे में भी बारह छात्रों ने एक दिन की सांकेतिक भूख हड़ताल की है। इन छात्रों का कहना है कि हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वीसी को हटाया जाए और इस मामले की पूरी जांच हो। आप जानते ही हैं कि सोमवार को ही केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री ने दो सदस्यों की जांच टीम बना दी है जो मंगलवार को हैदराबाद पहुंच गई है। जब यह टीम पहुंची तो छात्रों ने घेर लिया और नारेबाजी भी की। इस बीच मोदी सरकार के एक और मंत्री थावरचंद गहलोत जो कि केंद्रीय सामाजिक न्याय व आधिकारिता मंत्री हैं, उन्होंने अपने मंत्रालय की अनिता अग्निहोत्री से मामले की जांच करने के लिए कहा है। मंत्री गहलोत ने कहा है कि इंसाफ होना चाहिए और जो भी जिम्मेदार हैं उनके खिलाफ़ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। सचिव अनिता अग्निहोत्री से कहा गया है कि वे राज्य के अन्य अधिकारियों और पुलिस महानिदेशक से संपर्क में रहें और उन्हें इस मामले में की जा रही हर तरह की कार्रवाई की सूचना देते रहें। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पीएल पूनिया ने कहा है कि उन्होंने 13 जनवरी को ही हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी से इस मामले की रिपोर्ट मांगी थी लेकिन शायद पोंगल की छुट्टियों के कारण रिपोर्ट नहीं मिली है। पुनिया ने कहा कि उन्होंने तुरंत रिपोर्ट मांगी है और वे भी हैदराबाद का दौरा करने वाले हैं। अठारह जनवरी को रोहित वेमुला ने आत्महत्या की। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग 13 जनवरी को रिपोर्ट मांग रहा था, इसका मतलब यह है कि यह एक ऐसा मामला था जिस पर सबकी नज़र पहले से थी। इसके बाद भी यह संस्थाएं आत्महत्या की परिस्थिति को नहीं टाल सकीं।
केंद्र सरकार के दो-दो मंत्रालय इस मामले की जांच में लग गए हैं। अनुसूचित जाति आयोग इसकी जांच में लग गया है। तीन-तीन संस्थाएं अब सक्रिय हो गईं हैं। मानव संसाधन मंत्रालय तो इस मामले में शुरू से ही सक्रिय था। 6 हफ्ते के भीतर केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी को पांच पत्र लिखे थे। जो यह जाहिर करता है कि इस मामले के राजनीतिक महत्व के बारे में उन्हें अहसास था। अगस्त में उनके सहयोगी मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने भी उन्हें पत्र लिखा ही था।
स्मृति ईरानी लगातार विश्वविद्यालय से पूछ रही थीं कि बंडारू दत्तात्रेय की शिकायत के बारे में क्या तथ्य हैं और क्या एक्शन लिया जा रहा है। स्मृति ईरानी ने मीडिया को दिए अपने बयान में कहा था कि उन्होंने इस मामले में कभी हस्तक्षेप नहीं किया। हर किसी को मालूम है कि केंद्रीय कानून के तहत प्रशासनिक नियंत्रण यूनिवर्सिटी का ही होता है, सरकार का नहीं होता है। अब सामने आ रहा है कि बंडारू दत्तात्रेय की 17 अगस्त की चिट्ठी के बाद उनके मंत्रलाय ने विश्वविद्यालयों को छह हफ्ते में पांच पांच पत्र लिखे थे। 3 सितंबर को मानव संसाधन मंत्रालय के अंडर सेक्रेट्री ने विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार से पूछा है, बंडारू दत्तात्रेय के वीआईपी कंप्लेन का जवाब दिया जाए और मामले के सभी तथ्यों का पता लगाकर मंत्रालय को अवगत कराया जाए। 24 सितंबर को मानव संसाधन मंत्रालय के डिप्टी सेक्रेट्री सुबोध घिडियाल ने फिर पत्र लिखा और कहा कि 3 सितंबर की चिट्ठी का कोई जवाब नहीं आया है और तथ्यों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। पत्र का विषय है कि हैदराबाद यूनिवर्सिटी में राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के बारे में और एबीवीपी के नेता सुशील कुमार पर हुए हिंसक हमले के बारे में। विश्वविद्यालय की हालत देखिए। केंद्रीय मंत्रालय 3 सितंबर से पूछे जा रहा है लेकिन उसने अभी तक कोई रिपोर्ट नहीं भेजी। सितंबर से अक्तूबर आ गया। 6 अक्तूबर के डिप्टी सेक्रेट्री सुबोध कुमार घिडियाल ने फिर एक पत्र लिखा कि 3 सितंबर और 24 सितंबर की चिट्ठी का कोई जवाब नहीं आया है। इसके बाद भी विश्वविद्यालय जवाब नहीं देता है। तब जाकर मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी सीधे वाइस चांसलर अप्पा राव को पत्र लिखते हैं। अबकी बार पत्र 20 अक्तूबर को लिखा जाता है कि 3 सितंबर, 24 सितंबर और 6 अक्तूबर की चिट्ठी का तो जवाब ही नहीं आया है। रुकिए, 19 नवंबर को केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय का एक अफसर फिर से विश्वविद्यालय को पत्र लिखता है कि कृपया जवाब तो दीजिए ताकि उनका मंत्रालय बंडारू दत्तात्रेय को जवाब दे सके।
छात्र आरोप लगा रहे हैं कि इन पत्रों ने विश्वविद्यालय पर कार्रवाई करने का दबाव डाला। आम तौर पर सख्त मानी जाने वाली स्मृति ईरानी की इस मामले में गजब की सहनशीलता सामने आती है। उनके अधिकारी 3 सितंबर से लेकर 16 नवंबर तक चिट्ठियां ही लिखते रहे मगर जवाब नहीं आया। हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वीसी प्रो अप्पा राव लखनऊ के बाबा साहब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर आर सी सोबती से काफी अलग लगते हैं। 10 जनवरी को सोबती साहब ने स्मृति ईरानी की मौजूदगी में उनकी शान में कविता ही पढ़ डाली। स्मृति ईरानी ने मौके पर ही सुना दिया कि आप तो कुलपति के बजाय नेता की तरह बर्ताव कर रहे हैं। हमारे देश के वाइस चांसलरों की दुर्दशा पर भी संसद का एक सत्र बुलाया जाना चाहिए। एक वाइस चांसलर है जो केंद्रीय मंत्रालय की पांच पांच चिट्ठियों का जवाब नहीं देते हैं और एक साहब हैं कि मंत्री की शान में कविता ही पढ़ने लगते हैं। 'कभी हारी नहीं है जो टीवी की महारानी है, भारत की दिखाई संस्कृति जिसकी दुनिया दीवानी है, कभी अभिनेत्री बनकर, कभी संसद नेत्री बनकर, हैं सबके दिल और धड़कन में, भारत मां की लाडली बेटी बनकर...।' यह उस कविता का हिस्सा है जो केंद्रीय मंत्री की शान में वीसी ने पढ़ी। अगर आप मंत्रियों पर कविता कर सकते हैं तो वाइस चांसलर के लिए आवेदन ज़रूर कीजिएगा। वैसे विश्वविद्यालय की वेबसाइट से पता चला कि आरसी सोबती साहब अमरीका के फ्लोरिडा के मयामी विश्वविद्यालय से पढ़े-लिखे हैं। वहा पढ़ाया भी है। कितनी अच्छी बात है कि अमरीका जाकर भी उन्होंने हिन्दी में चारण-कविता लेखन का त्याग नहीं किया। 2013 में सोबती साहब बीबीएयू के वीसी बने, उससे पहले पंजाब विश्वविद्यालय के वीसी पद को भी सुशोभित कर चुके हैं।
एक घटना से कितनी परतें खुल रही हैं और कहां-कहां हमारी निगाह जाती दिख रही है। हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रो अप्पा राव से बरखा दत्ता ने बात की तो अप्पा राव ने उन्हें कहा कि उन्होंने निलंबन का फैसला मजबूर होकर लिया क्योंकि कोर्ट बार-बार पूछ रहा था कि विश्वविद्यालय का क्या जवाब है, क्योंकि एबीवीपी के नेता की मां ने कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी। दलित छात्र भी कोर्ट चले गए थे। क्या प्रो अप्पा राव कोर्ट पर दबाव के आरोप इसलिए लगा रहे हैं कि उन्हें मंत्रालय से दबाव के आरोप को खारिज करना है। क्या कोर्ट ने विश्वविद्यालय से यह कहा था कि निलंबित कर दो, या यह कहा होगा कि मामले की जांच का क्या हो रहा है। तो क्या इसे कोर्ट का दबाव माना जा सकता है। अप्पा राव ने बरखा से कहा कि उन्होंने मंत्रालय के पत्रों का जवाब नहीं दिया। ऐसे पत्र हर समय आते रहते हैं। मैं इन्हें रुटीन की तरह लेता हूं। प्रो अप्पा राव ने बरखा को बताया कि उन्होंने एक्जिक्यूटिव काउंसिल से सलाह-मशवरा किया था। पता चला कि काउंसिल में कोई दलित नहीं है तो एक दलित शिक्षक से सलाह भी ली गई। अब यह साफ नहीं है कि क्या दलित शिक्षक को काउंसिल का सदस्य बनाया गया या उन्होंने काउंसिल के फैसले के बारे में दलित शिक्षक से सलाह ली। प्रो अप्पा राव ने बरखा से कहा कि उन्होंने अंतिम रिजल्ट आने के बाद ही फैसला लिया। जिसमें कहा गया था कि सुशील को पीटा गया था। लेकिन जब बरखा ने पूछा कि जब रोहित ने उन्हें 18 दिसंबर को पत्र लिखा तो उससे संपर्क करने या संवाद कायम करने का कोई प्रयास क्यों नहीं किया तो उनके पास कोई जवाब नहीं था।
रोहित वेमुले ने 18 जनवरी से पहले 18 दिसंबर को वीसी को अंग्रेजी में पत्र लिखा था। इस पत्र में रोहित ने वीसी की तंज भरे लहज़े में तारीफ की है कि वे कैंपस में दलित स्वाभिमान आंदोलन को लेकर काफी प्रतिबद्ध रहे हैं। आपकी प्रतिबद्धता के सामने तो डोनल्ट ट्रंप भी नहीं टिकता है। आपकी इस प्रतिबद्धता को देखते हुए मैं आपको दो सुझाव देना चाहता हूं। एक कि आप सभी दलित छात्रों को एडमिशन के समय ही सोडियम अज़ाइड की गोली दे दें। अपने महान चीफ वार्डन से कहें कि सभी दलित छात्रों के कमरे में अच्छी रस्सी की सप्लाई कर दें। जाहिर है रोहित ने तंज और आक्रोश में वीसी को यह पत्र लिखा था और कहा था कि उसे इच्छामृत्यु की सुविधा उपलब्ध कराई जाए।
इस चिट्ठी के बाद ही वीसी को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए थी। उनके लिए केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय के पांच पत्र भले ही रुटीन होंगे, लेकिन मरने और आत्महत्या की गोली दे देने की चिट्ठी को भी वीसी ने अगर रुटीन के तौर पर लिया तो बहुत दुखद है। हो सकता है कि वीसी मंत्रालय की चिट्ठियों को रुटीन इसलिए भी बता रहे हों ताकि मंत्रालय पर राजनीतिक आरोप न लगे लेकिन फिर भी वे अगर मंत्रालय के पांच-पांच पत्रों को रुटीन और जवाब देने लायक नहीं मानते हैं तो उनके खिलाफ बिना जांच से पहले स्मृति ईरानी को एक्शन ले लेना चाहिए। क्या वीसी अप्पा राव यह कहना चाहते हैं कि केंद्रीय मंत्रालय के अधिकारियों के पास कोई काम नहीं है। वे सितंबर से लेकर नवंबर तक बैठे-बैठे केवल चिट्ठी लिखते रहते हैं। उनका यह जवाब बेहद लापरवाही भरा है। जब मंत्रालय पूछ रहा है कि तथ्यों का पता लगाएं, तो वीसी को उन तथ्यों की रिपोर्ट भेजनी चाहिए थी जिसके आधार पर उन्होंने रोहित वेमुले और चार अन्य छात्रों को निलंबित कर दिया। प्रो अप्पा राव का यह जवाब मंत्री की मौजूदगी में कविता सुनाने वाले प्रतिभाशाली कवि वीसी से भी गया गुजरा है।
हमारी सहयोगी उमा सुधीर ने विश्वविद्यालय के डीन प्रो पीएल बिशेश्वर से बात की। डीन साहब आम आदमी पार्टी के समर्थक बताए जाते हैं। उन्होंने उमा सुधीर से कहा कि हमें इस तरह से नहीं देखना चाहिए कि इसे लेकर राजनीति हो रही है। हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी पब्लिक यूनिवर्सिटी है। सेंट्रल यूनिवर्सिटी है। पहली बार कैंपस में आत्महत्या की घटना नहीं हुई है। पिछले पांच साल में 5 आत्महत्याएं हो चुकी हैं। मेरे पास डेटा है। जब से यह विश्वविद्यालय बना है तब से आत्महत्या की 20 घटनाएं हो चुकी हैं। 10 दलित छात्र निकाले जा चुके हैं। अगर आप रोहित की पृष्ठभूमि देखेंगे तो वह एक प्रतिभाशाली छात्र था। उसे फेलोशिप मिल रही थी। यूजीसी उसे चालीस हजार की ग्रांट दे रही थी। उन्हें अपनी बात कहने की अनुमति नहीं मिली। डीन ने कहा कि वीसी ने बंडारू दत्तात्रेय की चिट्ठी पर कार्रवाई क्यों की। स्मृति ईरानी की चिट्ठी की प्रतिक्रिया में क्यों एक्शन लिया। यहां अकादमिक परिषद है। यह छात्र संगठन हैं। आप उनसे बुलाकर बात कीजिए। क्या कोई कल्पना कर सकता है कि आधुनिक विश्वविद्यालय में छात्र का आधिकारिक रूप से बहिष्कार किया जाए। डीन ने बताया कि वे इन छात्रों के पास समर्थन में गए थे। रोहित आत्महत्या करने वाला छात्र नहीं था। कैंपस में आरएसएस का एजेंडा चल रहा है। फासीवाद बढ़ रहा है। मामला जटिल होता जा रहा है।
एबीवीपी के छात्र नेता सुशील कुमार ने मंगलवार को द न्यूज मिनट से बातचीत में कहा है कि वह इस आत्महत्या से खुद हैरान है। जब से रोहित की खुदकुशी के बारे में सुना है वह सन्न रह गया है। उसने कहा कि 'रोहित मुझे पांच साल से जानता था. वो बहादुर लड़का था। जब हम कैंपस में पोस्टर लगा देते थे वो फाड़ देता था। सभी प्रदर्शनों में आगे रहता था। मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा भी कुछ होगा। रोहित से कई बार बात हुई है। हम हमेशा असहमत रहे हैं। अगस्त 2015 के बाद हमने आपस में बात करना छोड़ दिया था।' जब न्यूज़ मिनट ने पूछा कि केंद्रीय मंत्री ने क्यों हस्तक्षेप किया था तो सुशील ने जवाब दिया कि 'मैं बंडारू दत्तात्रेय से मिला था और उनसे मदद मांगी थी। हम बहुत सारे नेताओं से मिलते हैं।' जब न्यूज मिनट ने पूछा कि मंत्री ने पत्र क्यों लिखा तो सुशील कुमार ने कहा कि 'मामला इतना सरल नहीं था। छात्र नारे लगा रहे थे कि अगर याकूब को फांसी दोगे तो हजारों याकूब पैदा हो जाएंगे। इस विश्वविद्यालय का इतिहास रहा है कि बहुत सारे छात्र रेडिकल बन गए थे। इसलिए हमने अपने सांसद से कहा था कि वे पत्र लिखें।'
एबीवीपी के नेता सुशील कुमार ने कहा कि 'यह सब माहौल के आवेश में हो गया लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा था कि रोहित आत्महत्या कर लेगा।' सुशील कुमार ने कहा कि 'मुझ पर हमला हुआ था। रात को मेरे कमरे में आकर डराया गया। पहली बार जब कमेटी ने जांच की तो मैं पेश नहीं हो सका था। जब दूसरी कमेटी बनी तो मैं पेश हुआ और उन्होंने रोहित और उसके दोस्तों को दोषी पाया।' सुशील अगर यह मानता है कि भावावेश में मंत्री तक चला गया लेकिन उसी दौरान उसने फेसबुक पर एएसए के छात्रों को गुंडा कहने की बात पर माफी क्यों मांगी। 3 अगस्त की रात सवा नौ बजे सुशील ने फेसबुक पर एएसए को गुंडा लिखा, फिर कुछ घंटों बाद ही रात के दो बजे जब चार तारीख हो जाती है तब एक लिखित माफीनामा दिया। क्या हम यह जान सकेंगे कि कार्यकारी कमेटी ने फैसला सुनाते वक्त सुशील कुमार के माफीनामे के बारे में क्या टिप्पणी की है। सुशील ने न्यूज मिनट को जो जवाब दिए हैं उससे कई सवाल पैदा हो जाते हैं।
पहली कमेटी ने क्या सुशील के पक्ष को बिना सुने कह दिया कि सुशील को चोट नहीं आई थी। उसके शरीर पर चोट के निशान नहीं थे। अगर ऐसा था तो कमेटी के सदस्यों के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए क्योंकि शिकायतकर्ता तो सुशील ही था। चोट के निशान न होने के बाद भी पहली कमेटी ने अंतिम रिपोर्ट में एक सेमेस्टर के लिए सस्पेंड किया गया था। क्या एएसए के चालीस छात्र सुशील के कमरे में घुसे थे। न्यूज़ मिनट ने 22 दिसंबर को भी इस मामले पर रिपोर्ट छापी है जिसके अंदर सुशील कुमार का माफीनामा छपा है। चार अगस्त की तारीख लिखी है और समय लिखा है रात के दो बजे। लेकिन ट्वीटर पर हमें किसी ने हैदराबाद के अर्चना अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट भेजी है जहां चार अगस्त को सुशील भर्ती हुआ था। रिपोर्ट बताती है कि सुशील रात के साढ़े चार बजे भर्ती हुआ। अर्चना अस्पताल की डिस्चार्ज समरी में कहा गया है कि सुशील को पेट में ब्लड ट्रामा और तीव्र अपेंडिसाइटिस के लिए भर्ती किया गया है। उसमें तत्काल बीमारी के कालम में चार अगस्त के रात के ढाई बजे की मारपीट की घटना का जिक्र किया है। रात के दो बजे सुशील माफीनामे पर दस्तखत करता है, मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार ढाई घंटे के बाद भर्ती होता है जिसमें लिखा है कि ढाई बजे मारपीट हुई। तो क्या माफीनामे के आधे घंटे के भीतर मारपीट की कोई घटना हुई थी। सुशील को दो घंटे क्यों लगे अस्पताल तक पहुंचने में। हम मेडिकल रिपोर्ट की अपनी तरफ से पुष्टि नहीं कर रहे हैं। ट्वीटर पर भेजी गई चीजों पर जांच परख के बाद ही यकीन किया जाए। इसलिए निष्पक्ष जांच जरूरी है।
सूत्रों के हवाले से प्रशासन के तत्व बात कर रहे हैं कि मंत्री की चिट्ठी के बाद मामला गंभीर हो गया। अब आपको याद दिलाता हूं कि बंडारू दत्तात्रेय ने 17 अगस्त की चिट्ठी में क्या पूछा था। यही कि हैदराबाद विश्वविद्यालय में जातिवादी, अतिवादी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों का गढ़ बन गया है। क्या प्रशासन ने इस बात का भी जवाब दिया कि अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन वहां पर जातिवादी, अतिवादी और राष्ट्रविरोधी गतिविधियां चल रही हैं या नहीं। क्या विश्वविद्यालय कार्यकारी परिषद के फैसले को सार्वजनिक करेगा। हमें नहीं मालूम है कि कार्यकारी परिषद ने इस पहलू का जांच की भी या नहीं कि एएसए ने वहां कौन सी जातिवादी और राष्ट्रविरोधी गतिविधियां चला रखीं हैं। या सिर्फ वीसी और कार्यकारी परिषद ने मंत्री या मंत्रालय को संतुष्ट करने के लिए पांच छात्रों को निलंबित कर दिया और वह भी सभी के सभी दलित छात्रों को।
नीतीश कुमार ने इस घटना की कड़ी निंदा की है। बीजेपी के दलित नेता संजय पासवान ने कहा है कि सत्ता की राजनीति के सभी हिस्सेदारों को गंभीरता से यह मामला लेना चाहिए या फिर वे नाराज़गी, विद्रोह का सामना करने के लिए तैयार रहें। संजय पासवान का यह ट्वीट अपनी सरकार और वीसी की तरफ ही है लेकिन उनकी बात में जो आक्रोश झलक रहा है, साफ है कि इस मामले को हम और आप सिर्फ राजनीति कहकर नहीं टाल सकते। अरविंद केजरीवाल ने इसे लोकतंत्र की हत्या कहा है।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी हैदराबाद सेंट्रल युनिवर्सिटी का दौरा किया। राहुल ने छात्रों से मुलाकात की और कहा कि नौजवान रोहित यहां पढ़ने आया था। लेकिन उसे इतनी तकलीफ दी गई आत्महत्या के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा। इस संस्थान ने अपनी ताकत का इस्तेमाल उसे कुचलने में किया। वीसी या मंत्री ने तटस्थ रूप से काम नहीं किया। राहुल गांधी ने कहा कि हर विश्वविद्यालय में इस तरह की बातें हो रही हैं। विश्वविद्यालय का आइडिया यह है कि देश भर से नौजवान आएं और अपनी बात खुलकर रखें। यह एक मंच की तरह है। आइडिया अच्छा हो या बुरा है कम से कम रखें तो, लेकिन जब उस पर यह थोपा जाएगा कि यही विचार मंजूर है, बाकी विचार नहीं तो मुझे दुख है कि उस व्यक्ति को कितनी पीड़ा होगी। उसका जोश मर जाएगा। जब राहुल बोल रहे थे तब मंच पर एक छात्र ने माइक लेकर सतर्क भी किया कि हम इस लड़ाई को कांग्रेस बनाम बीजेपी का नहीं बनाना चाहते हैं। इसे राजनीतिक रंग नहीं दिया जाए।
हमने यह पता लगाने का प्रयास किया कि अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन क्या है, कब बनी। इसके सदस्य डी प्रशांत से हमने बात की। प्रशांत ने बताया कि यह संस्था 1993 में बनी थी। यह दलित छात्रों का पहला संगठन है। इससे पहले हैदराबाद यूनिवर्सिटी में सिर्फ एक छात्र संगठन था जिसका नाम था प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स यूनियन लेकिन जब एक दलित छात्र की प्रोग्रेसिव स्टूडेंट ने पिटाई कर दी तो उसके बाद दलित छात्रों ने उस संस्था को छोड़ दिया और अपना संगठन अंबेडकर दलित एसोसिएशन बनाया जिसे संक्षेप में एएसए भी जाता है जैसे हम अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को एबीवीपी कहते हैं।
एएसए दलितों से जुड़े मुद्दों और दलित छात्रों की आवाज उठाता है। संगठन दावा करता है कि वह गैर दलित छात्रों के मुद्दों को भी उठाता है। इस संगठन ने 2001 में रैगिंग के खिलाफ मुहिम चलाई थी। इस संस्था के गैर दलित छात्र भी सदस्य हैं। राम कृष्ण भार्गव इस संस्था के सदस्य थे जब वे हैदराबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे। मौजूदा सदस्य काव्य हैं, जो गैर दलित हैं, इस संस्था की केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय में जो शाखा है उसके सदस्य हैं। एएसए पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय, गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय, मौलाना आजाद नेशनल उर्दू विश्वविद्यालय, उस्मानिया विश्वविद्यालय में भी सदस्य मौजूद हैं। इस संगठन को किसी भी राजनीतिक दल से समर्थन हासिल नहीं है, न ही यह संगठन किसी राजनीतिक दल का समर्थन करता है। लेकिन यह संगठन कांशीराम का आभारी है, उनके प्रति कृतज्ञ है। संगठन की कोई वेबसाइट तो नहीं है लेकिन छात्र नेताओं के अपने-अपने फेसबुक पेज हैं। हैदराबाद यूनिवर्सिटी में इस संगठन ने चुनाव भी लड़ा है और 2014-15 के चुनाव में अध्यक्ष पद जीत लिया था। एएसए के वींसेंट वेनी ने एबीवीपी के उम्मीदवार को करीब 400 वोट से हराकर अध्यक्ष पद जीता था। विश्वविद्यालय में करीब 4,968 छात्र हैं। एएसए के विश्वविद्यालय में 200 सदस्य हैं।
पिछले साल आपने आईआईटी मद्रास की एक दलित छात्र संस्था का नाम सुना था। अंबेजकर पेरियार स्टडी सर्किल। डेढ़ साल पहले यह संस्था बनी है। यह संस्था एएसए से बिल्कुल अलग है। इस संस्था ने जब मोदी सरकार की श्रम नीतियों की आलोचना की, बीफ बैन पर स्टैंड लिया तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोगों ने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय में शिकायत कर दी। आरएसएस की पत्रिका ने इसे हिन्दू विरोधी और भारत विरोधी बताया था। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने डीन को फोन कर दिया और इस संगठन की मान्यता रद्द कर दी गई। खूब आंदोलन चला और बाद में मान्यता बहाल कर दी गई।
(रवीश कुमार NDTV इंडिया में सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं.)
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This Article is From Jan 19, 2016
प्राइम टाइम इंट्रो : मुद्दा हैदराबाद विश्वविद्यालय का, सवाल दलों के राजनीति करने के पैमाने का
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जनवरी 19, 2016 22:10 pm IST
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Published On जनवरी 19, 2016 21:57 pm IST
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Last Updated On जनवरी 19, 2016 22:10 pm IST
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