यह ख़बर 18 नवंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

अपनी नाकामी छुपाने के लिए मीडिया पर हमला?

नई दिल्ली:

नमस्कार... मैं रवीश कुमार। डेरा और डंडा का इस्तेमाल संन्यास परंपरा में इस तरह से होता है जैसे सब कुछ अस्थायी हो, लेकिन पंजाब हरियाणा में डेरा का मतलब स्थायी हो गया है और डंडा डेरे के बाहर खड़ा हो गया है। जिसके सामने चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस होते ही हमारी राजनीति सर झुकाने चली जाती है।

नेताओं को पता है कि बाबाओं के भक्त उनके इशारे पर वोट दे सकते हैं। इसलिए अब नेता भी अपने भक्त बनाने लगें हैं। वोटर की एक पहचान भक्त भी है। हरियाणा पंजाब में जो भी हो रहा है, उसकी बुनियाद में समाज सरकार संस्थाएं सब हैं।

आप वोटर यानी जनता अर्थात दर्शक भलीभांति जानते हैं कि नेता लोग बारी बारी से इन डेराओं के चक्कर लगाते हैं। क्या कांग्रेस, क्या बीजेपी, ये पी, वो पी, सब जाते हैं। इसी चुनाव में बीजेपी अपने कई उम्मीदवारों को लेकर रामरहीम के यहां चली गई। जीतने के बाद धन्यवाद ज्ञापन के लिए भी गई। कहा जा रहा है कि रामपाल ने भी बीजेपी का समर्थन किया था।

इमाम से लेकर योग गुरु तक सब वोट के समय राजनीतिक दलों के कैम्पेंन मैनेजर बन जाते हैं। भक्त को वोटर बनाने और वोटर को भक्त बनाने की होड़ शुरू हो जाती है। आपके पास गुड संत और बैड संत में फर्क करने का विकल्प तक नहीं बचा है। भारत को विश्व गुरु बनाने की कोई ग्रंथि है जो अटकी पड़ी है, जिसे बनाने के लिए कभी हम किसी धार्मिक चेहरे में भारत का राजनीतिक भविष्य देखने लगते हैं तो कभी किसी राजनीतिक चेहरे में धार्मिक भविष्य।

संविधान में लिखा है कि वैज्ञानिक सोच का प्रचार-प्रसार किया जाएगा, लेकिन प्लास्टिक सर्जरी का उद्गम कुछ और बता दिया जाता है। फिर भी इस पर सोचियेगा कि इतने आश्रमों और अनुयायियों के रहते आध्यात्मिक सहिष्णुता बढ़ी है या कट्टरता ज्यादा हुई है।

हिसार के रामपाल कोई पहले नहीं हैं और हमारे समय में अकेले नहीं हैं। अठारह साल तक जूनियर इंजीनियर रहे रामपाल सोनीपत के धनाना गांव के हैं। खुद को कबीरपंथी बताते हैं और धरती पर अवतार नाम की किताब में कबीर इन्हें रौशन आशीर्वाद भेज रहे हैं।

रामपाल के बारे में आप उनकी वेबसाइट से भी जान सकते हैं। किताब के अच्छे खासे हिस्से में आर्यसमाज और दयानंद सरस्वती के विचारों की आलोचना है। तमाम धार्मिक ग्रंथों की अलग व्याख्या पेश की गई है।

रामपाल का कहना है कि परमात्मा निराकार नहीं है। वह साकार है। वेदों को सत्य मानने वाले महर्षि दयानंद तथा उनके भक्त भी परमात्मा तथा वेद ज्ञान से अपिरिचित रहे हैं। जबकि वेदों में परमात्मा निराकार है। वह सशरीर आता है। तो हो सकता है इस पृष्ठभूमि मे आर्यसमाजियों और कबीरपंथी कहने वाले रामपाल के अनुयायियों के बीच टकराव की स्थितियां बनी होंगी। जिसमें कई लोग घायल हुए और कुछ की हत्या हुई। इन्हीं संदर्भों में मुकदमा चल रहा है। जन्म मृत्यु से संबिधत तमाम कर्मकांडों के विरोधी हैं। मंदिर और तीर्थ जाने से मना करते हैं। नाच गाने के भी अगेंस्ट हैं।

रेलवे स्टेशन पर बिकने वाली सच्ची भविष्यवाणियों की किताबें अगले प्लेटफार्म तक बेकार नहीं हो जाती हैं। आज एक बार फिर समझ आया। धरती के अवतार किताब में लेखक ने नास्त्रेदमस, हंगरी की महिला ज्योतिषि बोरिस्का, इंगलैंड का कीरो, अमरीका का श्री एन्डरसन, श्री चार्ल्स क्लार्क, फ्रांस के डॉक्टर जूलवर्न, नार्वे के श्री आनंदाचार्य, इज़रायल के प्रो. हरार का ज़िक्र किया है। फ्रेंच में निश्चित ही जूलवर्न नहीं होता होगा, लेकिन जैसे लिखा है वैसे ही पढ़ दिया। पढ़ते हुए हैरानी हुई कि हमारे अपने ज्योतिषियों ने कोई भविष्यवाणी नहीं की क्या। कीरो और हरार की तरह।

इन सब भविष्यवाणियों में रामपाल को अवतार बताया गया है। 1990, 1998, 2000, 2006, अलग-अलग प्रकार के साल का जिक्र हैं और सदियों में बीसवीं और इक्सवीं सदी का। इन भविष्यवाणियों की भाषा आपके एंकर को बहुत आकर्षित करती हैं। जितने भी अवतार होते हैं वह किसी न किसी सदी के पूर्वार्ध यानी पहले हिस्से या उत्तरार्ध, यानी आखिरी हिस्से में आते हैं।

एक खास किस्म की परिस्थिति का वर्णन किया जाता है कि ऐसा होगा तब वह मसीहा आएगा। जैसे प्रो. हरार के हवाले से लिखा गया है कि भारत देश का एक दिव्य महापुरुष मानवतावादी विचारों से सन 2000 ई. से पहले−पहल आध्यात्मिक क्रांति की जड़ें मज़बूत कर लेगा व सारे विश्व को उनके विचार सुनने के लिए बाध्य होना होगा। ये लाइन तो लगता है कि सही हो गई। हम बाध्य ही हो गए हैं। खासकर पत्रकारों पर लाठीचार्ज के बाद तो और भी।

धरती पर अवतार में प्रो. हरार के हवाले से लिखा है कि भारत के अधिकतर राज्यों में राष्ट्रपति शासन होगा पर बाद में नेतृत्व धर्मनिष्ठ वीर लोगों पर होगा। मोदी जी और शाह जी दोनों बीजेपी को हर राज्य में जीतवाने में लगे हैं और प्रोफेसर हरार हैं कि राष्ट्रपति शासन की बात कर रहे हैं। हरार को हरारे भेज देना चाहिए। खैर।

पत्रकारों पर पुलिस की बरसती लाठियों को देखकर क्या आप हरियाणा के पुलिस महानिदेशक की बात पर यकीन करेंगे कि पुलिस की ऐसी कोई मंशा नहीं थी। क्या लाठियां बिना मंशा आदेश के आटोमेटिक चल जाती हैं? आश्रम और पुलिस के बीच हुई गोलीबारी में दो सिपाहियों को भी गोली लगी है और 105 पुलिसकर्मी भी घायल हुए हैं, 80 के करीब लोग भी घायल हुए हैं।

डीजीपी एसएन वशिष्ठ इस घनघोर लाठीचार्ज के बाद भी बोल रहे हैं कि हरियाणा सरकार मीडिया का सहयोग कर रही हैं। क्या लाठी का नया नाम सहयोग है? इतनी तैनाती के बाद भी क्या पुलिस बिना कमांड के हो सकती है?

एक के बाद एक होती जा रही ऐसी घटनाओं के प्रति हम सहिष्णु होते रहे तो दबाव के आरोपों से दबी प्रेस और दब जाएगी। आज तक एवीबीपी चैनलों समेत तमाम घायल पत्रकारों में हमारे सहयोगी भी शामिल हैं। मुकेश, सिद्धार्थ, कैमरामैन फहद तल्हा, सचिन गुप्ता, अश्विनी कुमार और अशोक मंडल इन सबको लाठी लगी है।

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डीजीपी ने कहा है कि जिन लोगों ने मीडिया पर हमला किया है उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा। एक रामपाल को गिरफ्तार तो कर नहीं सके और अब मीडिया पर लाठी चलाकर पुलिस को ही गिरफ्तार करने की बात कर रहे हैं। आस्था के नाम पर सरकार क्यों डर जाती है? क्या इसलिए कि सरकार भी आस्था का इस्तमाल करती है।

(प्राइम टाइम इंट्रो)