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This Article is From Jul 28, 2015

लोगों के कलाम, कलाम के लोग

Reported By Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    जुलाई 28, 2015 21:51 pm IST
    • Published On जुलाई 28, 2015 21:39 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 28, 2015 21:51 pm IST
शायद इसीलिए वे अनगिनत लोगों के किस्सों में बस गए हैं। वे थे तब भी किस्सा ही रहे और अब नहीं हैं तो भी किस्सा हैं। अनगिनत स्कूलों में गए। कई शहरों में कई बार गए। लगातार लोगों से मिलते रहे। रामेश्वरम के एक बड़े से संयुक्त परिवार से आते थे। उससे भी बड़ा परिवार छोड़ कर गए हैं।

एक बार उन्होंने अपने सचिव पी.एम. नायर को बताया कि दस दिनों के लिए उनका परिवार राष्ट्रपति भवन आ रहा है। कोशिश कीजिए कि उनकी यात्रा निजी ही रहे। कुछ भी सरकारी तौर पर नहीं होना चाहिए। सिर्फ 52 रिश्तेदार आए थे मगर सब रिश्तेदार ही बनकर आए। 340 कमरों वाला राष्ट्रपति भवन 52 रिश्तेदारों के लिए कम तो नहीं पड़ता लेकिन राष्ट्रपति ने अपने परिवार का बोझ जनता पर बिल्कुल नहीं डाला।

52 लोगों में कलाम साहब के बड़े भाई भी थे और एक डेढ़ साल का पोता भी था। आठ दिनों तक सब राष्ट्रपति भवन में रुके। वहां से अजमेर शरीफ भी गए फिर दिल्ली भी आए। एक बार भी सरकारी गाड़ी का इस्तमाल नहीं हुआ। नायर लिखते हैं कि जो चाय भी पी उसका भी पैसा कलाम साहब ने अपनी जेब से भरा। तीन लाख बावन हज़ार का चेक काटकर नायर साहब को पकड़ा दिया। पी.एम. नायर ने अपनी किताब में लिखा है कि कलाम साहब नहीं चाहते थे कि लोग यह भी जानें मगर उन्होंने इसलिए लिखा कि लोग जानें कि वे कैसे राष्ट्रपति थे।

राष्ट्रपति का परिवार चाय पीकर गया उसका भी पैसा राष्ट्रपति ने अपनी जेब से दिया। यहां तो राजनीति में लोग अपने गुनाहों को परिवार के नाम पर बचा ले जाते हैं। तब जब कलाम साहब का अपने परिवार से गहरा नाता रहा। रविवार की शाम उन्होंने रामेश्वरम फोन कर 99 साल के अपने भाई का हाल भी पूछा कि उन्होंने दवा ली है या नहीं। खाना खाया है या नहीं।

आप कलाम साहब के बड़े भाई हैं। मोहम्मद मुथु मीरा लेबाई मरईकर। 99 साल की उम्र में एक ऐसे भाई के जाने का ग़म झेलना पड़ा है जो उनके लिए बड़े भाई जैसा था। बड़े भाई कुछ बोल ही नहीं पा रहे हैं। हमारे सहयोगी निहाल किदवई ने बताया कि घर ही नहीं पूरे रामेश्वरम में उदासी पसरी हुई है। घर इतना सादा है कि एक बार के लिए यकीन करना मुश्किल हो जाए।

आम तौर पर ऐसे घरों से निकले नेताओं के आलीशान महल बन जाते हैं मगर कलाम साहब का घर वैसे ही सादा लगता है। उन दिनों सा ही लगता है कि जब उनके नाविक पिता नाव चलाया करते थे और कलाम अपने भाई के साथ अखबार बेचा करते थे। कई जगहों पर लोगों ने नुक्कड़ पर उनकी तस्वीरें रख दी हैं और फूल माला अर्पित की जा रही है। हाउस ऑफ कलाम में भी लोगों का तांता लगा हुआ है। एपीजे अब्दुल कलाम के निधन की ख़बर आते ही रामेश्वरम की दुकानें बंद हो गईं हैं। मछुआरों ने भी फैसला किया कि नाविक के इस बेटे की याद में तीन दिनों तक मछली पकड़ने समंदर में नहीं जाएंगे। रामेश्वरम के सेंट जोसफ़ कॉलेज में जहां से कलाम ने बीएससी फ़िज़िक्स की वहां के पांच हज़ार छात्रों ने कलाम के सम्मान में शांति मार्च निकाला...

इसी रामेश्वरम में डाक्टर एपीजे अब्दुल कलाम की विरासत है। कम लोग हैं जो एपीजे अब्दुल कलाम का पूरा नाम सही से ले पाते हैं। गुलज़ार ने कलाम की आत्मकथा को अपनी आवाज़ दी है। कुछ समय पहल्करडी टेल्स में उनकी मशहूर किताब Wings of Fire का हिंदी में ऑडियो बुक्स निकाला था। परवाज़ नाम से। किताब में अपने ख़ास अंदाज़ में गुलज़ार ने डॉ. कलाम के बचपन और गांव में बिताए दिनों का ज़िक्र किया है और फिर देश के सबसे बड़े पदों तक उनकी तरक्की को भी दिखाया है...

मैं एक गहरा कुआं हूं इस ज़मीन पर..
बेशुमार लड़के-लड़कियों के लिए। जो उनकी प्यास बुझाता रहूं।
उसकी बेपनाह रहमत उसी तरह ज़र्रे-ज़र्रे पर बरसती है.. जैसे कुआं सबकी प्यास बुझाता है।
इतनी सी कहानी है मेरी। जैनुलआब्दीन और आशिअम्मा के बेटे की कहानी।
उस लड़के की कहानी जो अख़बारें बेचकर भाई की मदद करता था.
उस शागिर्द की कहानी, जिसकी परवरिश शिवसुभ्रमण्यम अय्यर और अय्या दोराई सोलोमन ने की...
उस विद्यार्थी की कहानी, जिसे शिवा अय्यर और अय्या ने तालीम दी।
जो नाकामियों और मुश्किलों में पलकर साइंसदान बना और उस रहनुमा की कहानी जिसके साथ चलने वाले बेशुमार काबिल और हुनरमंदों की टीम थी...
मेरी कहानी मेरे साथ ख़त्म हो जाएगी क्योंकि दुनियावी मानों में मेरे पास कोई पूंजी नहीं है।
मैंने कुछ हासिल नहीं किया... जमा नहीं किया।
मेरे पास कुछ नहीं.. और कोई नहीं, न बेटा, न बेटी, न परिवार।
मैं दूसरों के लिए मिसाल नहीं बनना चाहता।
लेकिन शायद कुछ पढ़ने वालों को प्रेरणा मिले कि अंतिम सुख रूह और आत्मा की तस्कीत है, ख़ुदा की रहमत, उनकी विरासत है...
मेरे परदादा अबुल, मेरे दादा पकीर, मेरे वालिद जैनुलआब्दीन का खानदानी सिलसिला अब्दुल कलाम पर ख़त्म हो जाएगा।
लेकिन ख़ुदा की रहमत कभी ख़त्म नहीं होगी.. क्योंकि वो अमर है, लाफ़ानी है...


शिलांग से जब उनका पार्थिव शरीर दिल्ली लाया गया तो राजाजी मार्ग पर स्थित उनके निवास पर आम लोगों की भीड़ लग गई। जो नहीं आ सके वो फेसबुक से लेकर ट्वीटर पर लिख रहे थे। उन्हें याद करते रहे। आम लोगों के राष्ट्रपति कहे जाते हैं मगर आम लोगों को अंतिम दर्शन का मौका तब मिला जब वीआईपी दर्शन कर जा चुके थे।

शाम चार बजे के बाद लोगों के आने का सिलसिला शुरू हो गया। हर आने वाला अपने साथ उनकी यादें लेकर आया था। कोई कविता लिखकर आया था, कोई आते ही भावुक हो गया।

ट्वीटर पर एपीजे अब्दुल कलाम को 14 लाख लोग फोलो करते हैं। उनके करीबी सहयोगियों ने कहा है कि वे उनके आधाकिरिक ट्विटर अकाउंट को बंद नहीं करेंगे बल्कि एक नये नाम से चलायेंगे। सृजन पाल सिंह ने बताया है कि वही अब उनके ट्वीटर अकाउंट के प्रशासक होंगे यानी संचालित करेंगे।

अब कलाम का खाता 'In memory of Dr Kalam' के नाम से चलेगा। सृजन पाल सिंह के साथ कलाम की नई किताब 'Advantage India', इसी साल रिलीज़ होनी है। फरवरी 2011 से कलाम सामयिक मुद्दों पर अपने विचार ट्विटर पर लिखते रहे थे। ट्विटर पर Hashtag 'KalamSir' सोमवार रात से टॉप पर ट्रेंड कर रहा है....

एपीजे अब्दुल कलाम के एक अजीज़ दोस्त बिहार के लहेरियासराय के पंडासराय में रहते हैं। डॉक्टर मानस बिहारी वर्मा ने जब ख़बर में सुनी तो खुद को कमरे में बंद कर लिया। रिटायरमेंट के बाद डॉक्टर वर्मा एपीजे अब्दुल कलाम के कहने पर ही दरभंगा लौट गए और वहां के स्कूलों में विज्ञान के प्रसार के लिए काम करने लगे।

कलाम के कहने पर ही डॉक्टर वर्मा विकसित भारत फाउंडेशन के लिए काम करने लगे। तीन मोबाइल साइंस लैब और छह इंस्ट्रक्टर लेकर दरभंगा, मधुबनी के 250 स्कूलों में पहुंच चुके हैं। 12500 छात्रों का विज्ञान से रिश्ता जोड़ा है। अपने दोस्त के इस संगठन के लिए सितंबर 2013 में दरभंगा भी गए। राष्ट्रपति रहते हुए भी दिसबंर 2005 में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में हिस्सा लिया।

90 के दशक में डॉक्टर वर्मा और डॉक्टर कलाम एक दूसरे के करीब आए जब बेंगलुरु के एरोनॉटिक डेवलपमेंट एजेंसी में लाइट कॉम्बो एयरक्राफ्ट बना रहे थे। डॉक्टर कमाल के निर्देशन में ही वर्मा ने तेजस एयरक्राफ्ट बनाया।

अब आपको मिलाते हैं तिरुवनंतपुरम के 85 वर्षीय परमेश्वरन नायर से। एक दिन उन्हें फोन आता है कि राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम केरल के दौरे पर आ रहे हैं और उनसे मिलने की ख्वाहिश रखते हैं। इस मुलाकात के बाद नायर साहब के होटल की दीवार पर उनकी राष्ट्रपति के साथ तस्वीर है। तस्वीर गवाह है कि कलाम के जीवन में इस होटल का कितना अहम हिस्सा रहा होगा। परमेश्वरन उनके निधन से काफी आहत हैं। बताया कि कलाम रोज़ अप्पम खाने चले जाया करते थे। तब वे विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर में काम करते थे। भागे भागे आते थे और जल्दी जल्दी खाते थे। राष्ट्रपति बनने के बाद परमेश्वरन और उनकी कोई 20 मुलाकातें हुई होंगी।

वैसे देश के ऐसे कई शहर होंगे जहां डॉक्टर कलाम दो बार तीन बार गए। गांव से लेकर शहर तक के स्कूलों में गए। अच्छी ही बात बताई। एक फिल्म भी बन गई उनके ऊपर आई एम कलाम। एक बच्चा है जो उनसे इतना प्रभावित हो जाता है कि अपना नाम ही रख लेता है कलाम। कन्नड़ फिल्म 'बिलियन डॉलर बेबी' भी कलाम के जीवन से प्रेरित होकर बनाई गई। इस शॉर्टफ़िल्म की ख़ासियत थी इसका निर्देशन 19 साल की श्रेया दिनकर ने किया था।

दुनिया को सपने दिखाने निकले कलाम साहब का भी एक अधूरा सपना था। वे पायलट बनना चाहते थे। 1958 एयरफोर्स में पायलट के तौर पर सेलेक्शन के लिए देहरादून गए लेकिन सिर्फ़ आठ सीटें थीं और वे नवें स्थान पर आये। फिज़िकल एग्ज़ाम क्लियर नहीं कर पाये और पायलट बनने की जगह वैज्ञानिक बन गए। कलाम भी सामान्य छात्रों की तरह अपनी असफलता के असर में जीवन के बड़े सवालों से जूझने लगे। उन्होंने अपनी किताब My Journey: Transforming Dreams into Actions में लिखा है, 'मुझे याद है टेस्ट में फेल होने के बाद मेरा दिल कितना दुखा... इतनी बड़ी चाहत के टूटने का दुख मैंने बड़ी ही क़रीबी से महसूस किया... अगली सुबह मैं ऋषिकेश पहुंचा... मैंने गंगा में डुबकी लगाई... गंगा वो नदी जिसका नाम मैंने इतना सुना था लेकिन पहली बार उसे देख रहा था उसका अनुभव कर रहा था... मुझे ऋषिकेश के शिवानंद आश्रम के बारे में बताया गया था... मैं वहां गया... मैं जैसे ही आश्रम में घुसा मुझे एक विचित्र सी तरंग महसूस हुई जिसने मेरी बेचैन आत्मा को राहत दी... चारों ओर साधु बैठे हुए थे ध्यान में तल्लीन... मुझे लगा कि कोई मुझे परेशान कर रहे सवालों का जवाब देगा, मेरी चिंताओं को शांत करेगा... मुझे स्वामी शिवानंद से मिलने का मौका मिला... मेरे मुस्लिम होने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा... बल्कि इससे पहले कि मैं कुछ बोलता उन्होंने मुझसे मेरी चिंता के बारे में पूछ लिया... मैं हैरान था कि उन्हें मेरे परेशानी का अहसास कैसे हो गया... उन्होंने कहा तुम्हारा मुस्कबिल एयर फोर्स का पायलट बनना नहीं है... तुम्हें जो बनना है वो पहले से तय है।

लेकिन कुछ बनने के बाद भी उनका यह अधूरा सपना पीछा करता रहा। राष्ट्रपति बनने के बाद भी सताता रहा कि पायलट नहीं बन पाया। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में उन्होंने इस दर्द को साझा करते हुए बताया कि 2005 में जब मैं राष्ट्रपति था तो वायुसेना प्रमुख मेरे पास आए। मैंने उन्हें बताया कि मैं पायलट बनने का सपना कभी पूरा नहीं कर सका, वायुसेना प्रमुख ने मुझे कहा कि आप थोड़ा प्रशिक्षण लीजिए और फिर मैं आख़िरकार अप्रैल 2007 में पुणे के लोहेगांव एयर फोर्स बेस से सुखोई 30 एमकेआई लड़ाकू विमान में चालीस मिनट तक उड़ा। ये किसी भी राष्ट्रपति की पहली उड़ान थी। इस उड़ान ने सैनिकों और सेना की नज़र में राष्ट्रपति का पद और कद हमेशा के लिए बदल दिया। अपने कमांडर को आकाश में मोर्चा संभालते देख किस जवान का हौसला नहीं बढ़ा होगा।

1931 से उनकी ज़िंदगी का सफ़र शुरू हुआ। द्वितीय विश्वयुद्ध के असर को उन्होंने अपने रामेश्वरम में भी झेला और याद किया। आख़िरी कुछ सालों में उनके क़रीबी सहयोगी रहे सृजन पाल सिंह ने अपने फेसबुक पेज पर अंतिम बातों का ज़िक्र किया है। साढ़े ग्यारह बजे कलाम साहब का अंतिम ट्वीट आता है कि मैं आई आईएम शिलांग जा रहा हूं। Creating a Livable Planet Earth विषय पर व्याख्यान देने के लिए। इस ट्वीट के बाद बारह बजे कलाम साहब गुवाहाटी जाने के लिए विमान से रवाना होते हैं। बैठते वक्त सृजन पाल सिंह ने उनके काले रंग के सूट की तारीफ भी की। ढाई घंटे की यात्रा के दौरान कई बार विमान ने मॉनसूनी बादलों के बीच हिचकोले भी खाये। उनके लिए ये एक सामान्य सी बात हो चुकी थी। उन्होंने हिलते हुए जहाज़ में जब भी मुझे डरा हुआ देखा, खिड़की के पर्दे हटाए और बाहर देखते हुए कहा कि अब तुम्हें डर नहीं लगेगा। सृजन लिखते हैं कि इसके बाद ढाई घंटे तक हम आईआईएम शिलांग तक सड़क के रास्ते से निकले। पांच घंटे के दौरान वो मुझसे बातें करते रहे, चर्चा करते रहे। बीते छह साल में उनके साथ की गई सैकड़ों विमान और सड़क यात्राओं में ये आख़िरी थी, हर मुलाक़ात ख़ास होती थी।

आख़िरी दौरे में डॉक्टर कलाम पंजाब में आतंकवादी हमले को लेकर काफ़ी चिंतित दिखे। बेगुनाह लोगों के मारे जाने से वो दुखी थे। आईआईएम शिलांग में उन्हें Creating a Livable Planet Earth विषय पर व्याख्यान देना था। उन्होंने पंजाब की घटना को विषय से जोड़ते हुए कहा कि लगता है प्रदूषण की ही तरह आदमी की बनाई ताकतें धरती के लिए ज़्यादा बड़ा ख़तरा बन गई हैं। इसके बाद हमने हिंसा, प्रदूषण और प्रकृति में इंसानी दखल पर बातचीत की और कहा कि ऐसे में तो धरती रहने लायक नहीं रह जाएगी। उन्होंने कहा कि शायद अगले तीस साल में धरती की इतनी बुरी हालत हो जाए इसलिए आप लोगों को तुरंत इसके लिए कुछ करना होगा।

उनकी अंतिम चिंताओं में यह बात भी शामिल थी कि संसद में कैसे गतिरोध खत्म हो। क्या किया जाए कि बहस हो। बात हो। संवाद हो। उनका मानना था कि गतिरोध ठीक नहीं है।

डॉक्टर कलाम ने कहा कि मैंने अपने कार्यकाल में दो अलग-अलग सरकारों को देखा है। हमें विकास की राजनीति के लिए संसद के इस्तेमाल का कोई रास्ता निकालना ही होगा। फिर उन्होंने मुझे कहा कि मैं आईआईएम शिलांग के छात्रों के लिए सरप्राइज़ एसाइनमेंट क्वेश्यन तैयार करूं जिन्हें वो लेक्चर के आख़िर में छात्रों को दें। वो चाहते थे कि छात्र संसद को और बेहतर और कारगर बनाने के लिए नायाब रास्ते सुझाएं। लेकिन फिर कुछ देर बाद उन्होंने मुझसे कहा कि मैं उनसे समाधान देने के लिए कैसे कह सकता हूं जब मेरे ही पास इसका कोई समाधान नहीं है। अगले एक घंटे तक हम इसी मुद्दे पर समाधान ढूंढने की कोशिश में माथापच्ची करते रहे।

हम लेक्चर हॉल पहुंचे... वो लेक्चर के लिए देर नहीं करना चाहते थे... वो हमेशा कहते थे कि छात्रों को इंतज़ार नहीं कराया जाना चाहिए... मैंने तुरंत उनका माइक लगाया... लेक्चर पर बात की और कंप्यूटर के आगे बैठ गया... जब मैं उन्हें माइक लगा रहा था तो वो हंसते हुए बोले "Funny guy! Are you doing well? डॉ. कलाम के 'Funny guy' कहने के कई मतलब होते थे... उनकी आवाज़ और माहौल के हिसाब से आपको ख़ुद अंदाज़ा लगाना होता था... इसका ये भी मतलब हो सकता था कि आपने अच्छा किया और ये भी कि आपने कुछ गड़बड़ कर दी है... छह साल तक उनके साथ रहने के दौरान उनके 'Funny guy' कहने का अर्थ निकालना मैं सीख गया था... सो इसलिए जब उन्होंने "Funny guy! Are you doing well कहा तो मैंने मुस्कुराकर कहा "Yes" ये मुझसे उनके आख़िरी शब्द थे... मैं उनके पीछे बैठा था... भाषण शुरू होने के दो मिनट बाद उन्होंने एक लंबा पॉज़ लिया... एक लंबा सेंटेंस पूरा कर वो रुके और फिर गिर पड़े... हमने उन्हें उठाया... डॉक्टर आए... उन्होंने पूरी कोशिश की... उनकी अधखुली आंखों को मैं कभी नहीं भूल सकता... मैंने एक हाथ से उनका सिर थामा हुआ था और डॉक्टरों ने उन्हें वापस होश में लाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं उठे... उन्होंने एक शब्द नहीं कहा, दर्द का अहसास तक उनमें नहीं दिखा...

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