प्राइम टाइम इंट्रो : मसर्रत को पीडीपी की शह?

मसर्रत आलम की फाइल फोटो

नमस्कार मैं रवीश कुमार, कई बार ऐसा लगता है कि हर कोई किसी ऐसे मसले की तलाश में है जिससे मामला भड़के या भड़ास निकालने का मौका मिले। हर घटना में ऐसी संभावनाएं देखने वालों की कमी नहीं है जो चाहते हैं कि उनकी भड़ास के लिए टीवी पर पंचायत हो या सोशल मीडिया पर रैली निकलने लगे। इसमें ऐसी घटनाओं की तलाश हो रही है जिससे दो समुदायों में से एक को मौका मिलने पर निशाना बनाया जा सके। कुछ लोग इसे मैच की तरह खेलने लगे हैं। ज़रूरत है कि आप ऐसी बहसों और फोटोशाप सच्चाइयों को सतर्कता से देखें।

हम रामपुर की इस घटना से काफी कुछ सीख सकते हैं। अभी तक तो नेता सांप्रदायिक मुद्दों के सहारे जनता का ध्रुवीकरण कर रहे थे यह पहली घटना है जब जनता सांप्रदायिक मुद्दों के सहारे दलों का ध्रुवीकरण करने लगी। बेशक अपने घर बचाने के लिए लोगों ने टोपी पहनी और धर्मांतरण की धमकी देने लगे लेकिन व्हाट्स अप से लेकर फेसबुक तक पर ज़िम्मेदार व्यक्तियों ने अफवाह की शक्ल दे दी कि घर के बदले धर्म बदलने की बात कही जा रही है। वैसे ही सरकार कहती है कि चर्चों पर होने वाले हर हमले को सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है। कई घटनाएं आपराधिक किस्म की भी हैं। यह सब इसलिए भी होता है क्योंकि पुलिस समय पर जांच तो करती नहीं। इस बार अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कुछ बीजेपी सांसदों के बयानों पर साफ साफ कह दिया है कि ऐसा लग रहा है कि एक कंपटीशन चल रहा है कि कौन कम्युनल कंपटीशन का चैंपियन है। ज़रूरी है कि सांप्रदायिक को सांप्रदायिक कहा जाए मगर इरादा ये नहीं होना चाहिए कि सांप्रदायिकता भड़के बल्कि यह होना चाहिए कि जो भड़का रहे हैं उन्हें हाशिये पर धकेला जाए।

जम्मू कश्मीर में अलगाववादी मसर्रत आलम की रिहाई पर पहले ही काफी विवाद हो चुका है। मसर्रत आलम ने तो रिहाई के वक्त ही कहा था कि वो आज़ादी के आंदोलन को फिर मज़बूत करेगा। मसर्रत की इस हरकत पर कश्मीर से बाहर घनघोर प्रतिक्रिया हुई है। कई लोग कह रहे हैं ये सब हाशिये की आवाज़ हैं इन्हीं कश्मीर की आवाज़ न समझा जाए।

हालांकि कश्मीर की राजनीति इतनी भी सरल नहीं है फिर भी राजधानी श्रीनगर में अलगाववादियों की रैली में पाकिस्तान का झंडा लहराने पर तीव्र प्रतिक्रिया हुई है। पीडीपी बीजेपी सरकार के रहते कोई रैली हो और वहां पाकिस्तान का झंडा लहाराया जाए तो बीजेपी को भी नागवार गुज़रेगा ही। मसर्रत आलम ने कहा है कि उसने नहीं लोगों ने पाकिस्तान का झंडा लहराये हैं। वो कोई नई बात नहीं है। 1947 से लेकर आज तक झंडा लहराए जाते रहे हैं। 2008, 2010 में भी हुआ। इससे पहले भी सैकड़ों FIR लग चुके हैं, तो एक और सही। ये मसर्रत के शब्द थे। लेकिन वीडियो में मसर्रत आलम भी मेरी जान पाकिस्तान के नारे लगा रहा है। यही मसर्रत आलम जब रिहा हुआ तो सबने कहा कि कानून के तहत रिहा हुआ है। लेकिन बाहर आकर मसर्रत चुनौती दे रहा है कि FIR से कोई फर्क नहीं पड़ता है।

घटना भले ही हाशिये की हो मगर बीजेपी के लिए इम्तिहान बड़ा हो जाता है। कारण खुद बीजेपी भी हो सकती है कि क्योंकि अतीत में वो ऐसी घटनाओं को गांव गांव तक ले जाती थी। फिर भी बीजेपी को कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर के इस बयान को सुनना चाहिए कि हम इस हकीकत को समझ लें और देखें कि किस तरह से कश्मीर की समस्या का हल निकल सकता है। ये नहीं कि हर बार जब पाकिस्तान का झंडा दिखाया जाए और आप कहें कि इनको भेज दीजिए पाकिस्तान। अरे वो चाहते हैं कि कश्मीर को ले जाएंगे पाकिस्तान। और हमें दिखाना है कि ये अक़लियत है। ये वो लोग नहीं हैं जो कश्मीर की असली आवाज़ सुना रहे हैं। एक ऐसी घटना के संदर्भ में जब सब आग बबूला होने की होड़ कर रहे हैं बीजेपी को विरोधी नेता के संयम भरे बयान से ताकत हासिल करना चाहिए और उसे भी नई समझ के लिए धारा के विपरीत जाकर समझ बनाने का प्रयास करना चाहिए जिस तरह से उसने धारा के ख़िलाफ़ जाकर पीडीपी से मिलकर सरकार बनाई है।

ये तो इस बात पर निर्भर करता है कि कांग्रेस के बाकी नेताओं के बयान क्या आते हैं और बीजेपी मणिशंकर अय्यर के इस बयान को कितना महत्व देती है।

जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने साफ साफ कह दिया है कि यह सब बर्दाश्त नहीं होगा। बुधवार को गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने मुफ्ती साहब को फोन कर सख्त और तुरंत कार्रवाई की मांग कर दी। एफआईआर तो हो गई मगर गिरफ्तारी की मांग हो रही है।

पिछली बार जब मसर्रत की रिहाई पर संसद तक में हंगामा हो गया तो बीजेपी सख्ती के तेवर अपनाने लगी। प्रधानमंत्री ने सफाई दी थी कि वहां सरकार बनने के बाद जो कुछ हो रहा है न भारत सरकार के मशविरे से हो रहा है न भारत सरकार की जानकारी से हो रहा है। पर क्या मसर्रत जो कर रहा है वो पीडीपी की सहमति से कर रहा है या पीडीपी की बिना जानकारी के हो रहा है। सरकार में तो बीजेपी भी सहयोगी है। इस घटना के बाद एफआईआर के लिए दिल्ली से फोन क्यों करना पड़ता है। मुख्यमंत्री बनने के बाद मुफ़्ती साहब के अलगाववादी, आतंकवादी और पाकिस्तान का शुक्रिया अदा करने के बयान को भी बीजेपी ने सहन कर लिया। अफ़ज़ल गुरु के अवशेषों को लौटाए जाने के पीडीपी विधायकों की मांग को भी बीजेपी ने बर्दाश्त कर लिया। मसर्रत की रिहाई को भी सहन कर लिया मगर मेरी जान पाकिस्तान तो बीजेपी नहीं करेगी। विवाद कश्मीरी पंडितों के लिए अलग कांप्लेक्स बनाने को लेकर भी हो गया।

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वैसे अलगाववादियों की रैली इस्लामाबाद में भी लाइव दिखाई जा रही थी। एक बिरयानी जो कभी मांगी ही नहीं गई उस पर इतनी राजनीति हो गई तो एक झंडे को लेकर किसको क्या समझायें। प्राइम टाइम