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This Article is From Jan 09, 2015

फ्रांस में तीसरे दिन भी हिंसा

Ravish Kumar, Saad Bin Omer
  • Blogs,
  • Updated:
    जनवरी 09, 2015 21:46 pm IST
    • Published On जनवरी 09, 2015 21:23 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 09, 2015 21:46 pm IST

नमस्कार... मैं रवीश कुमार। बुधवार को शार्ली एब्दो पत्रिका पर हमला करने वाले दोनों मुख्य अभियुक्तों को फ्रांस की पुलिस और सुरक्षा एजेसिया पकड़ नहीं पाईं हैं। पूरे फ्रांस में अलर्ट जारी है और समय-समय में यहां वहां से घेराबंदी और बंधक बनाने की खबरें आती रही हैं। राष्ट्रपति फ्रास्वां ओलांद भी वार रूम से ऑपरेशन की निगरानी में लगे रहे, लेकिन पूरे दिन इन संदिग्धों ने फ्रांस को दहशत में डाले रखा।

ज़मीन से लेकर आसमान तक इसकी निगरानी हो रही है। कई हेलिकाप्टरों की मदद से एंटी टेरर फोर्स ने इमारत को घेर लिया गया। जैसे ही यह जानकारी मिली कि दोनों संदिग्ध इस इमारत में छिपे हैं, सुरक्षा एजेंसियों ने चारों तरफ से घेर लिया।

पुलिस ने इमारत में छिपे दो लोगों से संपर्क भी साधा और समझाने का प्रयास भी किया, लेकिन उधर से जवाब आया कि वे मरने के लिए ही यहां आए हैं। इनका नाम शरीफ और सईद क्वाशी है। ये दोनों भाई पहले ही दिन से हमले के संदिग्ध और मुख्य आरोपी बताए जा रहे हैं।

सुरक्षा एजेंसियों को इस बात की सावधानी बरतनी पड़ रही है कि इमारत में मौजूद किसी व्यक्ति को इन लोगों ने बंधक बना रखा है। हालांकि वहां के आतंरिक सुरक्षा मंत्री ने बंधक बनाए जाने की पुष्टि नहीं की है।

लेकिन इस इमारत में घुसने से पहले दोनों ही संदिग्धों ने उस वक्त पेरिस की सड़कों पर सनसनी फैला दी, जब एक कार हाईजैक कर ली। गनीमत थी कि जिस महिला से इन्होंने कार छिनी उसने पहचान लिया और पुलिस को सूचना दे दी। संदिग्धों ने महिला की फ्यूजो कार छिन ली थी। कार लेकर भागते वक्त इन संदिग्धों ने फायरिंग भी की है।

इस बीच सुरक्षा एजेंसिया द्वारा कार का पीछा किए जाने का एक वीडियो भी सामने आया है। हाइवे चेज़ के इस वीडियो ने पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया, लेकिन ये पकड़ में नहीं आ सके। इससे भी पहले गुरुवार को ये संदिग्ध उत्तरी फ्रांस में एक पेट्रोल पंप पर देखे गए जहां इन्होंने पेट्रोल लिया और सर्विस स्टेशन के मैनेजर को धमकी भी दी। मैनेजर ने भी संदिग्धों को पहचान लिया था। इसके बाद भी ये दोनों वहां से लापता हो गए।

इस बीच पीछा करती हुई पुलिस को लगा कि ये संदिग्ध एयरपोर्ट जा सकते हैं, जो एहतियातन आंशिक तौर पर बंद कर दिया गया था। एयरपोर्ट के बगल में ही वह इमारत है, जिसके अंदर उनके छिपे होने की खबर है।

पुलिस ने आज संदिग्धों की एक और तस्वीर जारी की जिसमें एक महिला भी है। शाम तक पूर्वी पेरिस से एक और खबर आने लगी। पोर्ट दी वानसेन में हाइपर कैचर नाम के सुपर बाज़ार को सुरक्षा एजेंसियों ने चारों तरफ से घेर लिया।

खबर है कि यहां पर वही संदिग्ध हैं, जिन्होंने गुरुवार को मोर्तोंग में एक महिला पुलिसकर्मी की जान ले ली थी। इन लोगों ने सुपर बाज़ार में पांच लोगों को बंधक बना लिया है। फिर खबर आई कि सुपर बाज़ार में हुई फायरिंग में दो लोगों की मौत हो गई है, मगर बाद में आतंरिक सुरक्षा मंत्री ने इससे इनकार कर दिया।

यह सुपर मार्केट एक यहूदी का है। मुंबई हमले की तरह पेरिस में माहौल बन गया है। जगह जगह पर पुलिस ने लोगों से घरों में रहने की अपील की है और स्कूलों को बंद कर दिया गया है। सेंट्रल पेरिस के यहूदी इलाके की दुकानों को भी बंद कर दिया गया है।

इस बीच के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा कि उन्हें पूरा भरोसा है कि फ्रांस अपनी एकता दिखाएगा। हम मिलकर ऐसे खतरों का सामना करेंगे। ओलांद ने अपने भाषण में किसी मज़हब का नाम लिया है। बल्कि यह कहा कि हम आतंकवाद के खिलाफ जंग में है न कि किसी धर्म के ख़िलाफ़।
ओलांद ने अखबार और पत्रकारों पर हमले को बर्बर कार्रवाई बताया और कहा कि हम हमेशा चाहते थे कि वे फ्रांस में अपने आइडिया को लेकर काम करें और उस आज़ादी से जिसकी रक्षा हमारा गणतंत्र करता है।

पेरिस में रविवार को एक सर्वदलीय मार्च होने वाला है। राष्ट्रपति ने इस मार्च में शामिल होने के लिए सभी नागरिकों को आमंत्रित किया है। ओलांद ने कहा कि हमें यूरोपीय संघ के स्तर पर भी कार्रवाई करनी होगी।

आज ही इंडियन एक्सप्रेस में आइगोर म्लादेनोविच ने लिखा है कि इस घटना के बाद पेरिस अब पेरिस नहीं रह जाएगा, जो अपनी आज़ादी और मोहब्बत के लिए दुनिया भर में एक अजूबा शहर था।

पेरिस की सड़कों पर अब सायरन बजाती पुलिस की गाड़ियां दहाड़ मार रही हैं। आसमान में हेलिकॉप्टर घड़घड़ा रहे हैं। फ्रांस पिछले एक दशक से बदलता जा रहा है। फ्रांस की आबादी का एक चौथाई हिस्सा प्रावासी है, जो अपने आप को मुख्यधारा से अलग थलग पा रहा है। इन तबको को मुख्यधारा में लाने के प्रयास नहीं हुए। पेरिस में बेघरों की संख्या पहले से ज्यादा है। गरीबी और बेरोज़गारी जो सामाजिक असंतोष पैदा कर रही है वह किसी भी धार्मिक कट्टरता के लिए तैयार खुराक है। फ्रांस के समाज में यह ज़लज़ले जैसा है।

इंडियन एक्सप्रेस में ही आज प्रताप भानु मेहता ने लिखा है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी का हल्ला बोलने वाला फ्रांस तब कहां था जब बुर्के पर प्रतिबंध लगाया गया। टाइम्स डॉट कॉम पर एक लेख में यह सवाल उठाया गया है कि 2010 में हिजाब पर प्रतिबंध के बाद सरकार ने फ्रांस के समाज में इस्लाम की जगह को लेकर बहसों को बढ़ावा दिया, जिसके नतीजे में इस्लामोफोबिया यानी इस्लाम के प्रति डर या नफरत की भावनाओं को जगह मिली इस्लाम विरोधी बहसों को खूब बढ़ावा दिया।

फ्रांस का समाज पहले से बिखरता जा रहा है। क्यों फ्रांस बिखर रहा है ये सोचना होगा। सवाल सिर्फ फ्रांस के बिखरने का है या पूरे यूरोप के तानेबाने पर असर पड़ने का भी है। जर्मनी में पेजीदा मार्च निकल रहा है। यूरोप में इस्लाम के बढ़ते प्रभाव के ख़िलाफ ये लोग मार्च निकाल रहे हैं।

'Patriotic Europeans Against the Islamization of the West,' इसी का संक्षिप्त नाम है पेजीदा। यहां भी राष्ट्रवाद और देशभक्ती का मसाला घोला जा रहा है। धर्म के खिलाफ राष्ट्रवाद ने ज़हर ही घोला है अभी तक दुनिया के इतिहास में। पेजीदा का मानना है कि यूरोप का इस्लामीकरण हो रहा है।

इतना ही नहीं ये लोग अप्रवासी लोगों के खिलाफ सख्त कानून चाहते हैं और मानते हैं कि अब शरण देने के कानून पहले से सख्त किए जाएं। कई लोगों इस तरह के मार्च के खतरे से आगाह कर रहे हैं। यह वही नस्लभेदी मानसिकता है जिसकी ज़मीन पर फासीवाद और हिटलर जैसा तानाशाह उभर आता है।

आखिर इस्लाम को लेकर इस तरह के फोबिया उस समाज में क्यों इतना गहरा होता जा रहा है जो माना जाता है कि भावुकता से कम तर्कों से ज्यादा सोचता है। पेजीदा मार्च के खिलाफ भी लोग मार्च निकाल रहे हैं। पर इस्लाम के विरोध के नाम पर ये मार्च क्या जर्मनी, क्या पेरिस, क्या यूरोप के समाज के भीतर गहरी होती दरार का नतीजा नहीं है।

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