प्राइम टाइम इंट्रो : जनलोकपाल पर केजरीवाल के अपने ही खड़े हुए विरोध में

प्राइम टाइम इंट्रो : जनलोकपाल पर केजरीवाल के अपने ही खड़े हुए विरोध में

नई दिल्ली:

लोकपाल के मुद्दे से लोकपाल भले न आया हो, मगर इससे एक राजनीतिक पार्टी का जन्म ज़रूर हुआ और वो दिल्ली की सत्ता तक पहुंची। ज़ाहिर है जब उस पार्टी की सरकार जनलोकपाल लेकर आए तो उसकी सख्त समीक्षा होनी चाहिए कि उसका जनलोकपाल कैसा है। जिसे एक बार लाने के प्रयास में आम आदमी पार्टी ने अपनी सरकार छोड़ दी थी। प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव दोनों एक साल पहले तक जनलोकपाल पर सहयोगी थे और अब विरोधी हैं। पहले इनका विरोध कांग्रेस या बीजेपी से होता था अब इनका विरोध आपसी हो गया है।

दिल्ली विधानसभा के बाहर योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और विधायक पंकज पुष्कर जनलोकपाल एक्ट 2015 का विरोध करते नजर आए। स्वराज अभियान का कहना है कि केजरीवाल सरकार का जनलोकपाल महाजोकपाल है। प्रशांत भूषण का कहना है कि जब दिसंबर 2013 में केंद्र का लोकपाल आया था, तब अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि इससे मंत्री तो क्या चूहा भी जेल नहीं जाएगा। केजरीवाल ने जनता के साथ धोखा किया है। प्रशांत भूषण ने अरविंद केजरीवाल को सीधे बहस की चुनौती दी है। उनका यह भी आरोप है कि जनलोकपाल बिल का मसौदा विधानसभा में रखे जाने से पहले वेबसाइट पर नहीं डाला गया। लोगों से सुझाव नहीं मांगे गए।

दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के समर्थक ढोल पीटते दिखे। वे विधानसभा में जनलोकपाल के पटलागमन को लेकर काफी खुश हैं कि उनकी सरकार ने जनता से किया वादा पूरा किया है। पटलागमन यानी पटल पर रखा जाना। इनकी दलील है कि केजरीवाल सरकार ने जो जनलोकपाल बनाया है वो केंद्र के लोकपाल से भी बढ़िया है। आम आदमी पार्टी के नेताओं का कहना है कि यह वही जनलोकपाल है जो फरवरी 2014 में रखा गया था। तब सदन में रखे जाने के सवाल को लेकर कांग्रेस के समर्थन से चल रही आम आदमी पार्टी की सरकार ने इस्तीफा दे दिया था।

आम आदमी पार्टी जो हर कानून को पारदर्शी तरीके से बनाने की बात करती थी, उसने ड्राफ्ट को वेबसाइट पर क्यों नहीं डाला और सीधे विधानसभा में क्यों रखा? जबकि रामलीला मैदान के दिनों में एक-एक प्रावधान की बात खुली सभा में हुआ करती थी। इन सब सवालों पर एक नजर दौड़ाएंगे। इससे पहले जान लेते हैं कि दिल्ली जनलोकपाल एक्ट 2015 है क्या? जनलोकपाल लोकसेवकों के अलावा मुख्यमंत्री पर लगे आरोपों की भी जांच करेगा। आयोग शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

  • इसके तीन सदस्य होंगे - एक चेयरमैन और दो सदस्य।
  • तीन लोगों के चयन के लिए चार लोगों की एक चयन समिति होगी।
  • चयन समिति के अध्यक्ष दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश होंगे।
  • दिल्ली के मुख्यमंत्री, स्पीकर और विधानसभा में नेता विपक्ष चयन समिति के सदस्य होंगे।
  • अगर नेता विपक्ष नहीं होगा तो विपक्ष के द्वारा चुना गया कोई एक सदस्य होगा।

यानी चार लोगों की चयन समिति होगी। स्पीकर और मुख्यमंत्री आम तौर पर एक ही पार्टी या गठबंधन के होते हैं। चार में से दो सरकार के होंगे। चार में से तीन राजनीतिक लोग हैं। अरविंद केजरीवाल ने 2011 के आंदोलन में कहा था कि अगर नेता ही लोकपाल को चुनेंगे तो लोकपाल निष्पक्ष स्वतंत्र और ईमानदार कैसे हो सकता है।

2013 के केंद्र के कानून के अनुसार लोकपाल को चुनने वाली कमेटी में प्रधानमंत्री, लोकसभा के स्पीकर, नेता विपक्ष, भारत के चीफ जस्टिस, या चीफ जस्टिस के द्वारा तय जज, एक विशिष्ट न्यायविद होंगे, जिसका सुझाव पहले चार सदस्यों की तरफ से आएगा और राष्ट्रपति नियुक्त करेंगे।

नेता विपक्ष के कारण या सबकी खामोशी के कारण दो साल से लोकपाल नहीं नियुक्त हो सका है। जो केंद्र में लोकपाल के लिए संघर्ष कर रहे थे, वो आपस में बंट गए और दिल्ली में लोकपाल बनाने में लग गए। उस वक्त अरविंद केजरीवाल ने मांग की थी कि लोकपाल को चुनने वाली कमेटी में गैर राजनीतिक लोगों का वर्चस्व होना चाहिए। लेकिन मनीष सिसौदिया का इस बिन्दु पर यह कहना है...

राष्ट्रीय न्यायायिक जवाबदेही आयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा है कि एमिनेंट पर्सन यानी विशिष्ट व्यक्ति कुछ नहीं होते ये सरकार के ही लोग होते हैं। इसीलिए हमने विशिष्ट व्यक्ति का प्रावधान नहीं रखा है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के लोकपाल कानून में मौजूद विशिष्ट न्यायविद् को खारिज नहीं किया है।

जनलोकपाल का अध्यक्ष कौन होगा। इस एक्ट के मसौदे के हिसाब से वही होगा जो सुप्रीम कोर्ट में जज या भारत के किसी भी हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस या हाई कोर्ट में जज रहा हो। सदस्य वही होगा, जिसके पास लोक प्रशासन, वित्त या जांच के क्षेत्र में विशेष अनुभव और योग्यता हो और जिसकी साख अच्छी हो, ईमानदार हो।

जनलोकपाल का अध्यक्ष या सदस्य, सांसद या विधायक नहीं हो सकता है, किसी राजनीतिक दल से जुड़ा नहीं हो सकता है। हां अगर वो राजनीतिक दल से इस्तीफा दे दे तो जनलोकपाल हो सकता है। तो क्या किसी राजनीतिक दल से इस्तीफा देकर आप जनलोकपाल बन सकते हैं? क्या यह राजनीतिक एंट्री का रास्ता नहीं है। जनलोकपाल और सदस्य पांच साल के लिए नियुक्त किए जाएंगे और उन्हें तभी हटाया जा सकेगा जब विधानसभा उसके खिलाफ दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास करेगी। यानी सरकार इसे हटा सकती है। जबकि पहले कहा गया था कि शिकायत के बाद जब तक सुप्रीम कोर्ट दोषी न मान ले तब तक नहीं हटाया जा सकता है। अब यह साफ नहीं है कि जनलोकपाल के खिलाफ कोई शिकायत हुई तो कौन जांच करेगा। सरकार या सुप्रीम कोर्ट।

जनलोकपाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से संबधित भ्रष्टाचार की शिकायत मिलने पर जांच शुरू कर सकता है। सवाल है कि क्या केंद्र सरकार के अधिकारियों, मंत्रियों के खिलाफ भी जांच शुरू कर सकेगा। अगर किसी अधिकारी ने तकनीकी या प्रक्रिया में चूक की है तो उसके खिलाफ जांच शुरू नहीं होगी। अगर उसकी नीयत और निष्ठा पर शक होगा तो जांच की जा सकेगी।

गलत शिकायत करने पर एक साल की जेल हो सकती है या एक लाख रुपये का जुर्माना या दोनों भी हो सकते हैं। तो सोच समझ कर शिकायत करें। एक लाख जुर्माना और जेल के डर से पता चला शिकायत करने वाले ही नहीं मिल रहे हैं। क्या शिकायत करने वाले से ये उम्मीद की जाती है कि उसके पास अपनी कोई जांच एजेंसी होगी या फिर इसका मकसद यह होगा कि हर कोई अनाप-शनाप आरोप लगाने लगे तो जनलोकपाल काम कैसे कर पाएगा। खैर शिकायत करने वाले की सुरक्षा का प्रबंध करने का अधिकार जनलोकपाल को दिया गया है। जनलोकपाल मामले की जांच के लिए खुद भी जांच अधिकारी नियुक्त कर सकता है या सरकार की सहमति से किसी अधिकारी या एजेंसी को जांच अधिकारी नियुक्त कर सकता है।

जांच अधिकारी को वो सभी शक्तियां प्राप्त होंगी जो जांच करने वाले पुलिस अधिकारी को होती हैं। प्रशांत भूषण का कहना है कि जनलोकपाल में स्वतंत्र जांच एजेंसी की कल्पना नहीं है। वैसे इसमें लिखा मिला कि जनलोकपाल जांच के लिए केंद्र सरकार की जांच एजेंसी या किसी भी संगठन या किसी भी अधिकारी की मदद ले सकता है। किसी भी राज्य या किसी भी केंद्र शासित प्रदेश की जांच एजेंसी की मदद ले सकता है।

जांच पूरी करने का समय छह महीने से लेकर अधिकतम बारह महीने का रखा गया है। जनलोकपाल के पास मुकदमा लड़ने का एक विभाग भी होगा। उसका निदेशक भी जनलोकपाल तय करेगा। जनलोकपाल की मंज़ूरी के बाद वकीलों की टीम विशेष अदालत में मुकदमा फाइल करेगी। दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा है कि जजों को हटाने के लिए महाभियोग की जो प्रक्रिया अपनाई जाती है यहां भी यही प्रक्रिया अपनाई जाएगी।

समय सीमा में जांच और मुकदमा लोकपाल की सबसे बड़ी ताकत है। अधिकतम सज़ा आजीवन कारावास की है। 6 महीने से 10 साल तक की जेल भी हो सकती है। भ्रष्टाचार से सरकारी खजाने को हुए नुकसान का पांच गुना तक जुर्माना लगेगा। निजी कंपनियों के करप्शन के मामले में उनके अधिकारियों को दंडित करने का अधिकार है।

क्या पूर्ण बहुमत वाली अरविंद केजरीवाल सरकार का जनलोकपाल वो पाल है जो न तो केंद्र सरकार के कानून में है या न किसी अन्य विधानसभा के कानून में। ये मज़बूत कानून है या समझौतावादी...

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