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This Article is From May 14, 2015

खुदरा कारोबार में FDI पर क्‍या सरकार पसोपेश में?

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    मई 15, 2015 13:46 pm IST
    • Published On मई 14, 2015 21:30 pm IST
    • Last Updated On मई 15, 2015 13:46 pm IST
मोदी सरकार ने अपने पहले साल में रक्षा और बीमा सेक्टर में 49 प्रतिशत विदेशी निवेश का फैसला कर लिया, मामूली विरोध के अलावा बीजेपी या संघ परिवार को इससे कोई खास दिक्कत नहीं हुई। हुई भी तो सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ा।

लेकिन जैसे ही खुदरा कारोबार में 51 प्रतिशत फैसले की बात होती है बीजेपी को समझ नहीं आता कि इसका बचाव कैसे करे। लेकिन इससे पहले यह समझ लेना होगा कि खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश की इजाज़त तो दिसंबर 2012 में ही मिल गई थी जब यूपीए सत्ता में थी।

2012 में इस कानून को पास करने के लिए लोकसभा में क्या जबरदस्त बहस हुई थी। सरकार की तरफ से सिब्बल और विपक्ष की तरफ से सुषमा ने मोर्चा संभाला था। सिब्बल कहते थे कि 40 लाख लोगों तक रोज़गार फैलेगा। सुषमा कहती रहीं कि रोज़गार खत्म हो जाएगा। सिब्बल ने कहा कि खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश आने से बिचौलिये खत्म हो जाएंगे तो सुषमा ने कहा कि आढ़ती ग्रामीण व्यवस्था का पारंपरिक एटीएम है। किसानों को शादी, बीमारी के वक्त पैसे देता है।

मोदी सरकार जिस तरह से सबको बैंक से जोड़ने का काम कर रही है, एटीएम और बीमा दे रही है तो इस संदर्भ में सुषमा स्वराज या बीजेपी की उस लाइन की समीक्षा होनी चाहिए कि जब बैंक का एटीएम सबको मिल ही रहा है तो आढ़ती यानी मिडिलमैन वाला एटीएम क्यों चाहिए। ख़ैर तब जैसे ही सुषमा स्वराज ने मिडिल मैन का पक्ष लिया, सिब्बल ने कहा कि इतिहास में पहली बार किसी ने सदन में सूदखोरों की वकालत की है। एफडीआई से बिचौलिये समाप्त हो जाएंगे।

कानून तो पास हो गया मगर 2012 से यह 2015 है। उस कानून से खुदरा व्यापार में कितना पैसा आया, कितने लाख लोगों को रोज़गार मिला, कितना सप्लाई चेन बनना शुरू हुआ किसी को कुछ पता नहीं। निर्मला सीतारमण ने कहा है कि हमने पिछले एक साल में किसी को रिटेल में एफडीआई की अनुमति नहीं दी है। अब यह नहीं बताया कि किसी ने अप्लाई किया था या नहीं। अगर यह नीति बेकार है, कोई आ नहीं रहा है तब तो इसे बेकार मान समाप्त ही कर दिया जाना चाहिए।

नया विवाद इसलिए हुआ जब उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय के एक विभाग ने विदेशी निवेश पर अपना नीतिगत दस्तावेज़ जारी किया। जिसमें मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति को बरकरार रखा गया है। इसमें लिखा है कि सभी उत्पादों के मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेश निवेश की अनुमति होगी। इस सेक्टर में कम से कम 10 करोड़ डॉलर का न्यूनतम निवेश होना चाहिए। इसका आधा पैसा तीन साल तक बैकएंड इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में लगना चाहिए। प्रसंस्करण, लॉजिस्टिक, स्टोरेज, गोदाम वगैरह बैकएंड इंफ्रास्ट्रक्चर हैं। दस लाख या उससे अधिक की आबादी वाले शहर में मल्टी ब्रांड रिटेल चेन खोले जा सकते हैं।

मामला थोड़ा पुराना हो गया है इसलिए नीतियों के कुछ बिन्दु को पढ़ दिया। रेलवे में 100 फीसदी विदेशी निवेश, रक्षा में 49 फीसदी से लेकर कुछ मामलों में 100 फीसदी विदेशी निवेश, बीमा में 49 फीसदी विदेशी निवेश का फैसला हो गया। लेकिन बीमा की तरह मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश का विरोध बीजेपी पर भारी पड़ रहा है।

सितंबर 2012 में रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि बीजेपी मल्टी ब्रांड में विदेशी निवेश के विरोध में है। यह किसानों और छोटे व्यापारियों के हित में नहीं है। जब हम सत्ता में आएंगे तो देखियेगा। यह बयान इकोनॉमिक टाइम्स सहित कई अखबारों में छपा है। तब आनंद शर्मा ने कहा था कि बीजेपी इस फैसले को कानूनी तौर से समाप्त नहीं कर सकती है। बीजेपी ऐसा कर निवेशकों को कंफ्यूज़ कर रही है ताकि वे भाग जाएं।

आनंद शर्मा की दलील अब भी दी जा रही है कि अगर इस कानून को पलटा गया तो निवेशक कंफ्यूज़ हो जाएंगे। सवाल है कि जिस कानून से बीजेपी का इतना विरोध है उसे पलटने की बात क्यों नहीं होती। यह इतना आसान नहीं है। अभी भी बीजेपी की आधाकारिक वेबसाइट पर रिटेल सेक्टर पर विरोध का दस्तावेज़ और नेताओं के बयान मौजूद हैं। सुष्मा स्वराज, नितिन गडकरी, अरुण जेटली, वेंकैया नायडू, राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान, रमण सिंह सहित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी बयान हैं जिसमें उन्होंने तब कहा था अगर एसपी और बीएसपी के नेता एफडीआई का विरोध करते हैं तो उन्हें भी ममता बनर्जी की तरह यूपीए से अपना समर्थन ले लेना चाहिए। यूपीए विदेशियों की सरकार है, विदेशियों के द्वारा संचालित सरकार है और विदेशियों के लिए सरकार है। इससे छोटे व्यापारी अपना शटर डाउन करने पर मजबूर हो जाएंगे।

मोदी सरकार की अब क्या पोज़िशन है और क्या बीजेपी कोई अलग पोज़िशन लेकर बच सकती है। एनडीए ने भूमि अधिग्रहण में बदलाव का राजनीतिक जोखिम लिया और अड़ी रही। मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश का मसला पूछने पर ही बाहर आता है। लोकसभा चुनाव से पहले फरवरी 2014 में जब वसुंधरा राजे सिंघिया सत्ता में आईं तो गहलोत सरकार के फैसले को पलटने के लिए तुरंत उस वक्त केंद्रीय वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा को लिख दिया कि वे राजस्थान में मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश नहीं चाहती हैं। इस फैसले को वापस लिया जाए। तब आनंद शर्मा ने कहा था कि ऐसा नहीं हो सकता है। एक बार हां कहने के बाद बदला नहीं जा सकता।

अब यह भी देखना चाहिए कि क्या वसुंधरा राजे सिंधिया ने मोदी सरकार की वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण को खत लिखकर अपनी मांग दोहराई है। दिल्ली सरकार के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी कहा है कि जनवरी 2014 में ही केंद्र को बता दिया गया था कि हम रिटेल में विदेशी निवेश नहीं चाहते हैं। हमारा अब भी वही फैसला है। इकोनॉमिक टाइम्स में डीआईपीपी के सचिव अमिताभ कांत ने कहा है कि हमने मल्टी ब्रांड रिटेल सेक्टर को नहीं खोला है। मगर उनके विभाग के दस्तावेज़ में निवेश की जानकारी दी गई है।

निर्मला सीतारमण ने भी बयान दिया है कि मल्टी ब्रांड में एफडीआई ऑटोमेटिक रूट से नहीं है। इसे सरकार के रूट से आना होगा। बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में कहा था कि एफडीआई की नीति जैसी है वैसी रहेगी। इसलिए नीति में कोई बदलाव नहीं है। हमने बीजेपी का घोषणा पत्र देखा जिसमें कहा गया है कि मल्टी ब्रांड रिटेल सेक्टर को छोड़ कर जहां भी रोजगार और संसाधन निर्माण की संभावना होगी हम विदेशी निवेश स्वीकार करेंगे।

लेकिन ई कार्मस उद्योग से जुड़े लोगों के सम्मेलन में निर्मला सीतारमण ने यह कह दिया कि ई कामर्स में एफडीआई के मामले में कोई फैसला नहीं लिया है। जबकि उनके विभाग के नए दस्तावेज में मल्टी ब्रांड वाले पन्ने पर साफ-साफ लिखा है कि जो कंपनियां मल्टी ब्रांड रिटेल में शामिल हैं वो ई कामर्स के ज़रिये इस सेक्टर में नहीं आ सकती है। तो क्या माना जाए कि सरकार ई कामर्स में मल्टी ब्रांड रिटेल को अनुमति देने पर विचार कर सकती है और ऑफ लाइन यानी सुपर मार्केट वाले मल्टी ब्रांड रिटेल में विदेशी निवेश की अनुमति नहीं देगी। तो मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई को लेकर साफ-साफ कह रही है या गोल मोल। ऑन लाइन हां और ऑफ लाइन न।

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