विज्ञापन
This Article is From Oct 31, 2014

धर्म और राजनीति का घालमेल

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 11:34 am IST
    • Published On अक्टूबर 31, 2014 21:24 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 11:34 am IST

नमस्कार... मैं रवीश कुमार। धर्म के नाम पर धार्मिक संस्थाएं जितना भी शाश्वत होने का दावा करें वह दरअसल होती नहीं हैं। हो नहीं सकती हैं। 17वीं सदी के साल 1656 में जामा मस्जिद बनने के बाद से आज तक अगर चर्चा नहीं हुई कि जामा मस्जिद के इमाम शाही क्यों हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि आज नहीं हो सकती।

आज बड़ी संख्या में मौलवी मुस्लिम विद्वान और इस्लाम को मानने वाले लोग यह सवाल कर रहे हैं कि इमाम आप शाही कब से हुए, कब तक इस पदवी को ख़ानदानी बनाकर रखा जाए। यह बहस बाहर से नहीं आई है, बल्कि मुस्लिम समाज के भीतर से उठी है।

बाहर वालों के लिए वैसे इमाम ने बिना दावत दिए ख़ुराक़ का बंदोबस्त कर दिया है। मामला ये है कि मौजूदा इमाम सैय्यद अहमद बुख़ारी ने एलान किया कि वे अपने बेटे 19 साल के शाबान बुख़ारी को नायब इमाम बनाने जा रहे हैं। शाबान बुख़ारी अमेटी युनिवर्सिटी में बैचलर इन सोशल वर्क की पढ़ाई कर रहे हैं। खुश हैं कि अब्बा हुज़ूर ने इन्हें जानशीं यानी उत्तराधिकारी नियुक्त किया है। जैसे बादशाह, राजकुमार यानी वली अहद नियुक्त करते थे।

22 नवंबर को एक सार्वजनिक राज्याभिषेक जैसा होगा जिसे दस्तार बंदी कहते हैं। दस्तार का मतलब हुआ एक लंबा सा कपड़ा, जिससे आप पगड़ी बांधी जाती है। पगड़ी पहनाकर चौधराहट की यह परंपरा हिन्दू में भी है और मुसलमानों में भी है।

मस्जिद−ए−जाने−जहानुमा यानी जामा मस्जिद जब बनी तो बादशाह शाहजहां ने उज़्बेकिस्तान के बुख़ारा से इस्लाम के मशहूर विद्वान हज़रत अब्दुल गफूर शाह को दिल्ली बुलाया और इमाम−उल−सुल्तान बनाया गया, यानी शाही इमाम क्योंकि इनका काम मस्जिद के भीतर आम मुसलमानों को नमाज़ पढ़ाने के अलावा मुगल बादशाहों का राज्याभिषेक करवाना भी था। तब से आज तक इसी परिवार से जामा मस्जिद के इमाम बने हैं।

जामा मस्जिद के तीन दरवाज़े हैं। पूर्वी दरवाज़े से मुग़ल बादशाह प्रवेश करते थे, जिसे बाब−ए−शाहजहां यानी शाही दरवाज़ा कहा गया। इस दरवाज़े के बाईं तरफ भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण का बोर्ड लगा है, लेकिन इनकी तरफ से कोई आधिकारिक ऐतिहासिक विवरण नहीं है।

यह जानकारी मैं आपको आज के मेहमान हिलाल अहमद की किताब मुस्लिम पोलिटिकल डिस्कोर्स इन पोस्टकोलोनियल इंडिया मोन्यूमेंट मेमरी कंटेस्टेशन से दे रहा हूं। दूसरा दरवाज़ा है दक्षिणी दरवाज़ा यानी बाब−ए−अब्दुल गफ़ूर। विदेशी सैलानी यहीं से अंदर आते हैं। यहां पर सुन्नी मजलिस−ए−औकफ़ की तरफ से सफेद संगरमर पर इतिहासनुमा कुछ लिखा है, जिसमें शाही इमाम का ज़िक्र है। उत्तरी गेट को बाब−ए-अब्दुल्ला कहते हैं, जिसे हम और आप आते जाते हैं। यहां उर्दू में जो लिखा है उसे सुनकर कम से कम कांग्रेस को अच्छा नहीं लगेगा।

इसे जामा मस्जिद ट्रस्ट ने लिखवाया है, जिसमें मस्जिद अपनी कहानी यूं कहती है कि जामा मस्जिद आपसे हमकलम है। वज़ीर−ए−आज़म इंदिरा गांधी के ज़ालिम हाथों मेरी मज़लूमियत की कहानी मेरी ज़बानी। वज़ीर−ए−आज़म इंदिरा गांधी और उसकी गवर्मेंट ने वतन और वतन वालों पर खुसूसन बीस करोड़ मुसलमानों और अक्लियतों पर जो ज़ुल्म ढहाये हैं, वह दिलों को लरज़ा देने वाले हैं।

जामा मस्जिद का प्रबंधन कौन करता है। इसे समझे बिना आप इमाम शाही इमाम और उनके रुतबे को नहीं समझ सकते। शाहजहां ने मस्जिद चलाने के लिए चार गांव की जागीर दी थी, जो 19 वीं सदी तक आते आते दिल्ली शहर में कहीं बिला गए। उनका नामो निशान मिट गया। कोई और मोहल्ला या बस्ती बस गई होगी।

1962 में दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड बनने के बाद जामा मस्जिद का इंतज़ाम बोर्ड के पास चला गया। बोर्ड के सामने शाही होते हुए भी इमाम वेतनभोगी हैं, लेकिन बोर्ड ने कभी शाही पदनाम स्वीकार नहीं किया। 1974 में जब मौजूदा इमाम अहमद बुख़ारी के पिता अब्दुल्ला बुख़ारी की बारहवें इमाम के रूप में दस्तारबंदी हुई तब दिल्ली वक्फ बोर्ड ने मान्यता नहीं दी थी।

जब कोई मुसलमान अपनी संपत्ति धार्मिक काम के लिए दान कर देता है तो इसे वक़्फ करना कहते हैं। लेकिन यह साफ नहीं है जामा मस्जिद ट्रस्ट क्या है। इसकी भूमिका क्या है? भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की क्या भूमिका है। उसके क्या अधिकार हैं।

बेशक दिल्ली की जामा मस्जिद की अपनी एक खास ऐतिहासिक धार्मिक स्थिति है, लेकिन मुगल दौर में बादशाहों ने आगरा और लाहौर में शाही मस्जिद बनवाई। उनके इमामों की तब क्या स्थिति थी और अब क्या है प्राइम टाइम के दौरान समझने का प्रयास करेंगे।

70 के दशक से जामा मस्जिद के इमाम राजनीतिक हस्ती भी होते चले गए। इस गफलत में मत रहियेगा कि मौजूदा बुख़ारी साहब किसी एक दल से जुड़े रहे हैं। तमाम दलों और नेताओं की सोहबत इन्हें हासिल है। इसी चुनाव में सोनिया गांधी से मिल आए, तो बहुत हंगामा हुआ तब लोग भूल गए कि इनके समर्थन का एक पोस्टर 2004 में दिल्ली प्रदेश बीजेपी ने दिल्ली की दीवारों पर लगाया था।

हिलाल अहमद से मिले इस पोस्टर में बुख़ारी साहब कह रहे हैं कि पचीस सालों से मुसलमानों को सियासी दलों ने बेवकूफ बनाया है। हमें बीजेपी पर भरोसा करना चाहिए। गुजरात में जो कुछ हुआ उसे भूल जाना चाहिए और अटल बिहारी पर भरोसा करना चाहिए।

सवाल है कि शाही इमाम क्यों? जब कोई शहंशाह नहीं तो शाही कैसे? लेकिन जब नाम के ही शाही हैं तो शाही कहलाने में क्या दिक्कत? तो समस्या किससे है? शाही कहलाने से या इमामत के ख़ानदानी हो जाने या दोनों से ही है।

लेकिन इस समस्या में एक पक्ष खुद ही इमाम ने जोड़ दिया कि वे 22 नवंबर की दस्तार बंदी में भारत के प्रधानमंत्री को नहीं बुलाएंगे। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को बुलाएंगे। भारतीय राजनीति का दसवीं फेल छात्र भी इस खेल को समझ सकता है। न तो किसी मुसलमान को न ही किसी नागरिक को यह मुगालता है कि जामा मस्जिद आज की तारीख़ में इस्लामी दुनिया का कोई केंद्र है।

आज दुनिया में आईसीस से इस्लाम की छवि बिगड़ी है तो बांग्लादेश की अदालत ने वहां की सबसे बड़ी सियासी पार्टी जमाते इस्लामी के चीफ मोतिउर रहमान निज़ामी को हत्या नरसंहार और बलात्कार के मामले में मौत की सज़ा सुनाई है। लोग सड़कों पर खुशी का इज़हार कर रहे हैं। टुनिशिया जहां 2011 के साल में अरब क्रांति हुई थी, वहां उदारवादी निदा टुनिश पार्टी ने इस्लामी दलों को हरा दिया है। इंडोनेशिया में भी चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि धर्म के आधार पर नेता बनना मुश्किल हो गया है।

हिन्दू अखबार में सुधीर देबारे का लेख है कि कैसे सोलो शहर के मेयर से इंडोनेशिया के राष्ट्रपति बने जोको विडोडो की जीत ने लोकतंत्र को मजबूत किया है। यहां भी इस्लामी पार्टियों को तीस प्रतिशत वोट मिले हैं, लेकिन किसी ने शरिया के आधार पर इस्लामिक राष्ट्र बनाने की मांग नहीं की है। उनका फोकस भी शिक्षा जीवन स्तर और स्वास्थ्य पर है।

ये उदाहरण इसलिए दिया कि ताकि सनद रहे कि जामा मस्जिद का कोई इमाम सांसद हो सकता है, जैसे जमीयत उलेमा हिन्द के मुखिया राज्य सभा सांसद हो गए, मगर हिन्दुस्तान या दुनिया की राजनीति इन संगठनों और पद से तय होती है यह ज़रूरी नहीं है। लेकिन बाबा रामदेव से लेकर शंकराचार्य या इमाम बुखारी की कोई भूमिका होती ही नहीं है, यह भी आप दावे के साथ नहीं कह सकते।

(प्राइम टाइम इंट्रो)

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com