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This Article is From Nov 21, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : कैशलेस अर्थव्यवस्था के लिए हम कितने तैयार?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 21, 2016 21:41 pm IST
    • Published On नवंबर 21, 2016 21:41 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 21, 2016 21:41 pm IST
धरती के नंबर एक दुश्मनों में से एक है प्लास्टिक. इस प्लास्टिक ने पूरी धरती को कबाड़ में बदल दिया है. प्लास्टिक पर्यावरण को खा गया, लेकिन प्लास्टिक मनी का स्वागत अर्थव्यवस्था की नई बहूरानी के रूप में खूब किया जा रहा है. क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड और कई बार नोट भी प्लास्टिक के रूप होते हैं. इसी के साथ कैशलेश इकोनॉमी की बात होने लगी है. मतलब सारा लेनदेन इंटरनेट के ज़रिये हो. नगदी नोट कम से कम हो जाए. नोटबंदी ने हम सबको अर्थव्यवस्था के तमाम पहलुओं के बारे में जानने का अवसर भी दिया है. जानना चाहिए कि नोट का विकल्प आ जाने से अर्थव्यवस्था कैसे बदल जाती है. इस सवाल के साथ सोचना शुरू कीजिए तो आप नई जानकारियों के भंडार तक पहुंच सकते हैं. क्या कैशलेश हो जाने से अर्थव्यवस्था की सारी बीमारियां दूर हो जाती हैं. काला धन समाप्त हो जाता है. दुनिया के तमाम देशों में करेंसी नोट समाप्त तो नहीं हुआ है मगर इसके चलन पर ज़ोर दिया जा रहा है.

इसी साल के मार्च महीने में गार्डियन अखबार में Dominic Frisby ने कैशलेश मनी को लेकर सवाल उठाते हुए लेख लिखा था. डामनिक का कहना है कि कैशलेश की बात करना यानी ग़रीबों के खिलाफ़ बात करना है. दुनिया के हर देश में ग़रीबों को नोट की ज़रूरत होती है. जिस तरह से कैशलेश की वकालत की जा रही है, उसे सुनेंगे तो लगेगा कि नगद का इस्तेमाल करने वाले क्रिमिनल हैं, कर चोर हैं या आतंकवादी हैं. इसी के साथ आलोचना के इन लेखों में इस बात पर ज़ोर है कि हमें अपने जीवन में बैंकों की भूमिका को समझना होगा. बैंक किस तरह से बदल रहे हैं, उसे भी देखना होगा.

आप जानते हैं कि 2008 की मंदी में कई बैंक दिवालिया हो गए. लेहमन ब्रदर्स, मेरील लिंच, ए आई जी, रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड... तमाम बैंक संकट के शिकार हुए और कुछ दिवालिया भी. कुछ साल बाद साइप्रस में भी ऐसा ही संकट आया. ग्रीस में भी यही हुआ. इसी साल 29 जनवरी को जापान के सेंट्रल बैंक ने ऐसा फैसला लिया, जिसके बारे में अभी तक हमने व्यापक रूप से सुना नहीं है. जापान के लोगों को बैंकों में अपना पैसा रखने के लिए फीस देनी पड़ती है. हमारे यहां के बैंकों की तरह ब्याज़ नहीं मिलती है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि कर्मशियल बैंक ज्यादा से ज्यादा पैसा बिजनेस मैन को उधार पर दे सकें. अगर पैसा इलेक्ट्रॉनिक रूप में रहेगा तो सेंट्रल बैंक वह सब कुछ पल भर में कर सकेगा जो अभी नहीं कर पाता है. मंदी की भनक मिलते ही ब्याज़ दर निगेटिव हो जाएगी. यानी आपको ही बैंक को पैसे देने होंगे कि वो आपका पैसा रख सके. नगदी व्यवस्था में यह छूट होती है जब भी आपका भरोसा कम होगा, आप अपनी पूंजी को नगद में बदल सकते हैं. कैशलेश सोसायटी में ये छूट नहीं होगी. बैंक ऑफ इंग्लैंड के पूर्व गवर्नर मर्वेन किंग ने कहा कि बैंकिंग सिस्टम में कई खामियां हैं. इसे ठीक नहीं किया गया है. हो सकता है कि फिर से संकट आ जाए. यानी बैंक डूबने लगे.

बैंक का मतलब सिर्फ खाता खोलना या पैसा जमा करना नहीं है. हम सबको बैंकों के बारे में अधिक से अधिक जानना चाहिए. कैसे बैंक गरीब आदमी से दो लाख वसूलने के लिए पीछे पड़ जाते हैं. बड़े उद्योगपतियों का लाखों करोड़ का कर्ज़ा नॉन प्रॉफिट एसेट बनकर पड़ा रह जाता है. उन्हें अलग-अलग खातों में डाला जाता रहता है. इस पूरे मसले को भावना से नहीं तथ्यों से समझना चाहिए. ऐसा नहीं है कि हम और आप इलेक्ट्रॉनिक तरीके से लेन-देन नहीं करते हैं. सारी आबादी न करती हो, मगर लाखों की आबादी तो करती ही है.

आबादी के छोटे से ही हिस्से का इस लेनदेन में बहुत विश्वास है. उसका विश्वास तब भी नहीं हिला जब हाल में ही खबर आई कि 32 लाख डेबिट कार्ड का डेटा किसी और के पास चला गया. तब हमारे डेबिट कार्ड की सुरक्षा को लेकर काफी सवाल उठे थे. बहुत से किस्से सामने आए थे कि लोग अपना ही पैसा लेने के लिए मारे मारे फिर रहे हैं. दुनिया की आधी आबादी बैंकिंग सिस्टम में ही नहीं है, क्योंकि बैंक में खाता खोलने के लिए कई शर्तों को पूरा करना होता है. एक आशंका यह जताई जाती है कि कैशलेश सोसायटी में आपके हर लेन देन का डेटा बैंकों के पास रहेगा. आप क्या खरीदते हैं, क्या पसंद करते हैं, किस कंपनी का खरीदते हैं. बैंक वाला इस डेटा का कुछ भी इस्तेमाल कर सकता है. तमाम कानून बने हैं और बनते हैं, इसके बाद भी पूरी दुनिया में इस खतरे का कोई मुकम्मल इलाज नहीं है.

कैशलेश यानी जब नोट का चलन समाप्त हो जाए या न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाए. बहुत से लोग इसके फायदे गिना रहे हैं. इससे सरकार को ज्यादा टैक्स आएगा क्योंकि काला धन होगा नहीं. उस पैसे से जनता का कल्याण ज्यादा होगा. फिलहाल लाइव मिंट वेबसाइट ने एक चार्ट पेश किया है, जिसके अनुसार जापान में जीडीपी का 20.66 प्रतिशत कैश है. अमरीका में जीडीपी का 7.9 प्रतिशत कैश है. भारत में जीडीपी का 10.86 प्रतिशत कैश है. चीन में जीडीपी का 9.47 प्रतिशत कैश है और यूरो ज़ोन में जीडीपी का 10.63 प्रतिशत कैश है. सब 2015 के आंकड़े हैं. दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, इंग्लैंड जैसे देश में जीडीपी का दो से चार प्रतिशत ही कैश है. ज़ाहिर है भारत में कैशलेश की स्थिति अभी नहीं है. लेकिन पूरे भारत को इंटरनेट से जोड़ने का अभियान डिजिटल इंडिया चल रहा है. जिसका लक्ष्य है कि 2016 तक ढाई करोड़ लोगों को डिजिटल साक्षर कर दिया जाएगा. India Live Stats, 2016 के अनुसार इस समय भारत में 46.2 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं यानी आबादी का 34.9 प्रतिशत. इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार गांवों में मोबाइल इंटरनेट की पहुंच 9 प्रतिशत ही है. शहरों में अधिक है 53 प्रतिशत. भारत भले इसके लिए तैयार न हो, आने वाले दस साल में तैयार भी हो जाए, जो बदलना है वो तो बदलकर रहेगा लेकिन कैशलेश हो जाने से क्या हमारी आर्थिक मुश्किलें कुछ कम हो जाएंगी. हम इन सब पर बात करेंगे प्राइम टाइम में.

फिलहाल किसानों के लिए ख़बर है कि रबी फसल की बुवाई के लिए वे 500 के पुराने नोट से ही बीज खरीद सकते हैं। केंद्र सरकार ने इसकी अनुमति दे दी है. ये बीज आप राज्य के कृषि विश्वविद्यालयों, राष्ट्रीय और राजकीय बीज निगम से, सरकारी दुकानों से खरीद सकेंगे. किसानों को प्रमाण पत्र देना होगा. किसान एक हफ्ते में बैंक से 25,000 रुपये निकाल सकेंगे. लेकिन कोऑपरेटिव बैंकों से पुराने नोट बदलने या कैश की कमी के कारण अपना ही पैसा निकालने के बारे में कोई फैसला नहीं हुआ है.

यूपी के फतेहपुर से संदीप केशरवानी ने रिपोर्ट भेजी है कि नोटबंदी के 13वें दिन लोगों की कतार में कमी नहीं आई. फतेहपुर के किशनपुर कस्बे के एस बी आई ब्रांच में लोग पैसे निकालने के लिए लाइन में लगे थे, ड्यूटी पर तैनात सिपाही ने लाठियां बरसा दी. तीन लोगों को चोट भी आई है. हरियाणा के गोहाना में गांव वालों ने पंजाब नेशनल बैंक के गेट पर ताला लगा दिया. कैश न मिलने पर वे नाराज़ थे. बाद में स्थिति सामान्य हो गई. बुलंदशहर में यूपी के गल्ला व्यापारी जमा हुआ और फैसला किया कि अनाज मंडी अनिश्चितकाल के लिए बंद रहेगी, क्योंकि उनके पास नगद लेन देन के लिए पैसे नहीं हैं. वे दिहाड़ी मज़दूरों को भुगतान नहीं कर पा रहे हैं.

एमएस स्वामिनाथन ने हमारे सहयोगी पल्लव बागला से कहा कि सरकार को युद्ध स्तर पर किसानों के संकट के बारे में कुछ करना चाहिए. छोटे और मझोले किसान नोटबंदी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. अगर दो हफ्ते के भीतर नगदी के संकट को दूर नहीं किया गया तो रबी की बुवाई पर बहुत बुरा असर पड़ेगा.

हमारे सहयोगी हिमांशु शेखर की रिपोर्ट है कि दिल्ली में गेहूं की कीमत फिर बढ़ गई है। खाद्य मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 8 नवंबर को दिल्ली के थोक बाज़ार में गेहूं 2130 रुपये क्विंटल बिक रहा था. 20 नवंबर को यह 2400 रुपये क्विंटल हो गया यानी 12 दिनों में 270 रुपये क्विंटल महंगा हो गया. इसके कारण आटे की कीमत बढ़ गई है. पिछले पंद्रह दिनों में आटा 22 रुपये प्रति किलो से बढ़कर 28 रुपये प्रति किलो हो गया है. पंद्रह दिन में 6 रुपये बढ़ गया है.

नोटबंदी का असर पड़ोसी मुल्क नेपाल में भी पड़ा है। नेपाल में काम करने वाले कई सारे भारतीय मूल के लोग अपने पैसे को भारतीय मुद्रा में बदल कर रखते हैं. मनीष कुमार की खबर है कि नेपाल के लोग काफी परेशान हैं. नेपाल में हज़ारों लोग ऐसे हैं जिनके पास भारतीय करेंसी में पैसा है, लेकिन उनका भारत के किसी बैंक में खाता नहीं है. नेपाल के उ्‌द्योगपतियों को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी इसका कुछ हल निकालेंगे. नेपाल में 500 और 1000 रुपये के नोट का चलन 2014 में प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के बाद ही शुरू हुआ था.

कई जगहों पर आयकर विभाग के छापे पड़ने की भी ख़बरें भी आ रही हैं. बहुत लोगों को नोटिस भी गया है. एक अखबार में यह भी खबर छपी है कि आयकर विभाग के पास पर्याप्त संख्या में कर्मचारी नहीं है इसलिए वे कुछ बड़े मामलों की ही छानबीन कर सकते हैं, सभी मामलों की छानबीन करने में खासा वक्त लग सकता है.

नेहाल किदवई की खबर है कि आयकर विभाग ने बीजेपी नेता जनार्दन रेड्डी से खर्चीली शादी का हिसाब मांगा है. 25 नवंबर तक उन्हें सारा डिटेल देना होगा. 16 तारीख को हुई रेड्डी की बेटी की शादी के शाही खर्च को लेकर काफी आलोचना हुई थी. रेड्डी अवैध खनन मामले में ज़मानत पर बाहर हैं.

नोट विहीन समाज क्या गुल खिलायेगा इस पर बात करते हैं. करीब 70 करोड़ डेबिट कार्ड हैं. इनसे जो लेन देन होता है, उसका 92 फीसदी एटीएम से पैसा निकालने में होता है. 8 नवंबर के बाद से बड़ी संख्या में लोग पीएसओ मशीन का आर्डर दे रहे हैं. प्वाइंट ऑफ सेल मशीन. अखिल भारतीय स्तर तक फैलने में भले वक्त लगे लेकिन इस प्रक्रिया में तेज़ी तो आ ही रही है.

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