प्राइम टाइम इंट्रो : आमिर के बयान से सुलगा देश में असहनशीलता का सवाल

प्राइम टाइम इंट्रो : आमिर के बयान से सुलगा देश में असहनशीलता का सवाल

बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान (फाइल फोटो)

नई दिल्‍ली:

असहनशीलता को लेकर अगर आप पुरातात्विक खुदाई करना चाहें तो चैनलों के प्राइम टाइम की बहसों से बेहतर कोई जगह नहीं है। ये बहसें प्रमाण हैं कि आप दर्शक असहनशील हो चुकी बहसों के प्रति कितने सहनशील हैं। भारत में ऐसे बहुत से लोग हैं जिनका ट्वीटर और फेसबुक का खाता तो नहीं मगर जनधन खाता खुल गया है। उनके फैसलों से नहीं लगता कि भारत एक ही राजनीतिक सोच के प्रति सहनशील है।

मध्यप्रदेश के रतलाम झाबुआ सीट पर बीजेपी 80 हज़ार से अधिक वोट से हार गई। 2014 में बीजेपी ने इसी सीट पर एक लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल की थी। तेलंगाना के वारंगल में टीआरएस के उम्मीदवार ने कांग्रेस को साढ़े चार लाख वोट से हराया है। मणिपुर में कांग्रेस की सरकार है लेकिन वहां बीजेपी ने पहली बार दो विधानसभा सीटें जीत ली हैं।

पॉलिटिक्स के साथ-साथ हम प्रदूषण के प्रति काफी सहनशील हैं। वैसे कई लोग दिल्ली छोड़ कर जाने की बात करने लगे हैं मगर फिर भी व्यापक रूप से हम सब यह जानते हुए भी कि दिल्ली के आनंद विहार, पंजाबी बाग, आरके पुरम और मंदिर मार्ग की हवा सामान्य स्तर से आठ गुना ज़्यादा प्रदूषित हो चुकी है। दिल्ली ही नहीं पटना, लखनऊ, आगरा और फरीदाबाद की हवा भी बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी है, ज़हरीली हो चुकी है। क्या हम इस जहरीली हवा के प्रति सहनशील नहीं हैं। बिल्कुल हैं। देश की बदनामी न हो इसलिए मैं ज़हरीली हवा नहीं, प्रदूषित हवा नहीं बल्कि पवित्र पवन पुकारना चाहता हूं।

सहनशीलता और असहनशीलता की बहस हास्यास्पद होती चली जा रही है। हम सहनशील न होते तो पाकिस्तान और भारत का क्रिकेट बोर्ड दोनों देशों के बीच मैच कराने के लिए श्रीलंका में स्टेडियम न खोज रहा होता। हाल ही राजनीतिक विरोध के चलते भारत-दक्षिण अफ्रीका मैच के पाकिस्तानी अंपायर को हटाना पड़ा था। हम अपने स्टेडियम में पाकिस्तानी अंपायर नहीं देख सकते लेकिन दुबई और श्रीलंका में दोनों टीमों को खेलते हुए मजे लेकर देख सकते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि हम पार्टली असहनशील हैं और पार्टली सहनशील भी हैं। पूर्णत: असहनशील तब होंगे जब कोई कहे कि भारत का दर्शक पाकिस्तान के साथ कोई मैच नहीं देखेगा। या फिर भारत में जो प्रसारण होगा कैमरे में सिर्फ भारतीय खिलाड़ी ही दिखाये जाएंगे।

आमिर ख़ान ने सहनशीलता की बहस छेड़ दी है। वैसे कई लोगों को मैंने इस सरकार से पहले उस सरकार में भी कहते चुना था कि यार यहां ट्रैफिक जाम हैं, अस्पताल ठीक नहीं है, सिस्टम ही नहीं है, इंडिया में रहना ही मुश्किल है। बहुत से लोग जो एनआरआई कोटे से राष्ट्रवादी बने हुए हैं वो सावधान रहें कि कहीं उन्हें भारत छोड़ने वाला भगोड़ा न करार दे दिया जाए। आमिर ख़ान ने कहा, 'जब मैं घर में किरण से बात करता हूं तो कहता हूं कि क्या हमें इंडिया से बाहर जाना चाहिए। किरण का ऐसा कहना बड़ी बात है। भयावह बात है। उसे अपने बच्चे के लिए डर लगता है। हमारे आस पास जो माहौल है उससे डर लगता है। इससे संकेत मिलता है कि अशांति बढ़ रही है। आप जब यह महसूस करते हैं तो अच्छा नहीं लगता है। मुझे भी ऐसा लगता है। जो सत्ता में हैं उन्हें जो गलत हो रहा है उसकी कड़ी निंदा करनी चाहिए।

आमिर के इस बयान पर असहनशीलता विरोधी और सहनशीलता समर्थक आपस में भिड़ गए हैं। हास्यास्पद और भयावह हो गई है यह लड़ाई। ट्वीटर पर ऐप वापसी हैश टैग चल रहा है।

आमिर खान स्नैपडील के ब्रांड अंबेसडर हैं। अब लोगों ने ट्वीट करना शुरू कर दिया है कि स्नैप डील के ऐप को अपने फोन से हटाने का अभियान शुरू कर दिया है। स्नैपडील के ऐप की रेटिंग खराब करने लगे हैं। कुछ तो है जो सामान्य नहीं है। क्या ये असहनशीलता नहीं है। ऐप वापसी वालों का कहना है कि आमिर खान के बयान का हम सहनशीलता से विरोध कर रहे हैं। दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी आ गए हैं जो स्नैपडिल का ऐप डाउनलोड करने की बात करने लगे हैं।

आपने ऐसे कई नेताओं के बयान सुने होंगे जो सरकार में मंत्री हैं, सासंद हैं और नेता भी हैं जो कई संदर्भों में पाकिस्तान भेजने की बात कर चुके हैं। अब कौन तय करेगा कि भारत की बदनामी किससे होती है। पाकिस्तान भेजने वाले बयानों से या माहौल ठीक नहीं है इंडिया से चलें क्या वाली बातों से। आमिर ख़ान की बात पर बीजेपी सांसद और फिल्म अभिनेता परेश रावल ने कहा, 'आमिर फाइटर हैं, उन्हें देश छोड़कर नहीं जाना चाहिए बल्कि देश में हालात बदलने चाहिए। जीना यहां मरना यहां। सच्चा देशभक्त अपनी मातृभूमि छोड़कर भागता नहीं है।' असहिष्णुता, पीके फिल्म ने हिन्दू भावना को आहत किया लेकिन आमिर को हिन्दुओं की नाराज़गी नहीं झेलनी पड़ी बल्कि वो फिल्म तो सुपर हिट रही और करोड़ों कमाई हुई। कश्मीर के सीएम कहते हैं कि प्रधानमंत्री सांप्रदायिक नहीं हैं। मौलाना मदनी कहते हैं कि मुसलमानों के लिए भारत से अच्छा देश नहीं है।

क्या हिन्दू बहुसंख्यक की भावना के बहाने परेश रावल, आमिर ख़ान की पहचान को मज़हब से नहीं जोड़ रहे। बीजेपी के सांसद आदित्यनाथ ने कहा है कि कोई खुद से भारत छोड़ना चाहे तो जाए, इससे आबादी कम होगी। मुख्तार अब्बास नकवी साहब ने कहा है कि हम आमिर को भारत से नहीं जाने देंगे। 13 नवंबर को लंदन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विविधता का पारंपरिक विवरण देते हुए साफ-साफ कहा कि लोगों को आश्चर्य है कि ऐसा देश जहां सौ भाषाएं हों, 1500 बोलियां हों, हज़ारों प्रकार के खानपान की पद्धतियां हो। दक्षिण से निकले, उत्तर पहुंचते पहुंचते सैंकड़ों प्रकाश की वेशभूषा नज़र आती हो, कितनी विविधताओं से भरा हुआ हमारा देश है और विविधता ये हमारी विशेषता भी है विविधता, विविधता ये हमारी आन बान शान भी है विविधता ये हमारी शक्ति भी है।

15 अक्टूबर को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल का बयान आता है कि मुस्लिम रह सकते हैं मगर इस देश में बीफ खाना छोड़ना पड़ेगा। ऐसे बयानों से एक और स्पष्टीकरण की उम्मीद हो जाती है कि क्या प्रधानमंत्री हज़ारों प्रकार के खानपान की विविधता में बीफ को भी शामिल करते हैं। बीजेपी को लगता है कि सहनशीलता के नाम पर मोदी सरकार को टारगेट किया जा रहा है क्योंकि मुद्दा उठाने वाले बीजेपी विरोधी हैं।

दिवंगत साहित्यकार यू आर अनंतमूर्ति ने सितंबर 2013 में कहा था कि मोदी प्रधानमंत्री बनें तो भारत छोड़ देंगे। बाद में जब प्रधानमंत्री बने तो 2014 में अनंतमूर्ति ने कहा कि भारत छोड़ने की बात भावुकता में कह दी थी लेकिन मैं बीजेपी का विरोध जारी रखूंगा। अनंतमूर्ति का खूब विरोध हुआ तब उन्होंने कहा कि मैं नेहरू और इंदिरा के ख़िलाफ भी लिखता रहा हूं लेकिन ऐसा विरोध कभी नहीं झेलना पड़ा। तब मोदी प्रधानमंत्री नहीं बने थे, लेकिन तब भी मोदी प्रधानमंत्री नहीं बने थे जब अप्रैल 2014 में गिरिराज सिंह ने कहा था कि मोदी विरोधी पाकिस्तान चले जाएं। दिसंबर 2014 में तमिलनाडु में एक मामला होता है और वहां जयललिता की सरकार है। पेरूमल मुरुगन के उपन्यास को लेकर विरोध इतना बढ़ गया कि ज़िला प्रशासन ने जबरन माफीनामे पर दस्तखत करवा लिया। मंगलवार के इंडियन एक्सप्रेस में उस प्रसंग पर एक लेख आया है जिसके अनुसार बीजेपी और संघ के लोग इंकार करते हैं कि वे शामिल नहीं थे मगर लेखक ने दावा किया है कि संघ और बीजेपी के लोगों ने भी मुरुगन का विरोध किया था। मुरुगन इतना आहत हो गए कि फेसबुक पर लिख दिया कि लेखक पेरुमल मुरुगन मर गया है। वो भगवान नहीं है। अब दोबारा नहीं आएगा।

हमारे मुल्क में कई धार्मिक संगठनों की तरफ से फिल्मों, किताबों का विरोध होता रहा है। धमकियां भी मिलती रही हैं और जान से भी मार दिया गया है। ऐसी घटनाओं से तब जब देश की बदनामी नहीं हुई, विदेशी निवेशकों पर फर्क नहीं पड़ा तो अब कैसे बदनामी हो रही है। जनवरी 2013 में 'विश्वरूपम' फिल्म के रीलीज होने पर हंगामा हुआ तो अभिनेता कमल हसन ने कहा था, 'मैं एक कलाकार हूं। मेरा किसी धर्म के प्रति कोई झुकाव नहीं है। न तो मैं लेफ्ट हूं न राइट हूं। मैं फेड अप हो चुका हूं। मुझे नहीं पता क्या चल रहा है। मैं किसी दूसरे राज्य में सेकुलर प्लेस की तलाश में हूं। अगर कुछ दिनों में वो जगह नहीं मिली तो मैं बाहर के सेकुलर मुल्क में चला जाऊंगा।'

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तब किसी ने नहीं कहा कि कमल हसन के इस बयान से भारत की बदनामी हो गई। असहनशीलता नहीं होती तो प्रधानमंत्री की आलोचना करने पर अरुण शौरी के बेटे को क्यों निशाना बनाया गया। क्या हमें इस प्रवृत्ति पर खुलकर बात नहीं करनी चाहिए। क्या यही असहनशीलता नहीं है कि देश की बदनामी हो रही है। क्या कल यह भी कहा जाएगा कि जंतर मंतर पर सैनिक धरने पर बैठे हैं इससे देश की बदनामी हो रही है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं उससे तो देश की बदनामी नहीं होती। देश में असहनशीलता बढ़ रही है इस बात से बदनामी कैसे हो जाती है।