प्रो. जीडी अग्रवाल (स्वामी सानंद) नहीं रहे. अपने जीते जी गंगा को साफ-सुथरा होता देखने की चाह रखने वाले प्रोफेसर अग्रवाल पिछले 111 दिनों से अनशन पर थे. इस दौरान उन्होंने सरकार को कई दफे पत्र लिखा और चाहा की गंगा की सफाई के नाम पर नारेबाजी-भाषणबाजी के अलावा कुछ ठोस हो, लेकिन सरकारों का रवैया जस का तस रहा. ऐसा नहीं है कि प्रोफेसर अग्रवाल पहली बार अनशन पर बैठे थे. वह पूर्ववर्ती सरकारों में भी अनशन पर बैठे थे और तब भी उनकी यही मांग थी और इस बार जब वे अनशन पर बैठे तब केंद्र में 'गाय और गंगा' की बात करने वाली सरकार थी, ऐसे में इस मसले को और संवेदनशीलता से देखने और निपटने की जरूरत थी लेकिन हुआ क्या...! न तो गंगा में गिरने वाली गंदगी पर लगाम लग पाई है और न ही अवैध खनन रुका है.
केदारनाथ की भयानक आपदा तो याद होगी आपको ! उस आपदा में हज़ारों जानें गई थीं. उसके बाद तमाम वैज्ञानिकों ने इस आपदा का अध्ययन किया और लगभग सभी रिपोर्ट में गंगा का जिक्र था और कहा गया कि गंगा को बचाने के लिए तत्काल ठोस कदम उठाए जाने चाहिए, नहीं तो ऐसी आपदाओं को रोका नहीं जा सकता. 2014 में वन और पर्यावरण मंत्रालय ने खुद सुप्रीम कोर्ट में एक रिपोर्ट सौंपी और स्वीकार किया कि हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की वजह से केदारनाथ आपदा ने और विकराल रूप धारण किया. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को गंगा नदी के बेसिन में बन रहे बांधों पर रोक लगाने की जरूरत भी बताई. 2016 में इसी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया और कहा कि बांधों की वजह से गंगा को जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई संभव नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देने के बाद से गंगा में कितना 'पानी बह चुका' है यह शायद सरकार को भी याद न हो. तमाम बांध परियोजनाओं पर जोर शोर से काम चल रहा है. सिर्फ गंगा पर ही 24 बांध प्रस्तावित हैं, जिनपर फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा रखा है. इससे पहले भी तमाम समितियों ने नदियों के अस्तित्व से छेड़छाड़ को लेकर चेताया है लेकिन उन समितियों की रिपोर्ट पर कितना अमल हुआ और कितना नहीं इसका कोई ठीक-ठाक ब्योरा नहीं है. हाल ही में केरल में आई भयानक बाढ़ की विभीषिका आप भूले नहीं होंगे. वैज्ञानिकों ने इसे "मनुष्य द्वारा पैदा की गई आपदा" करार दिया. पर्यावरण वैज्ञानिक माधव गाडगिल ने कहा कि विकास की दौड़ में पर्यावरण को नजरअंदाज कर दिया गया. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में भी ऐसी स्थिति से निपटने के लिए तमाम बातों का जिक्र किया था लेकिन उस पर ठोस अमल नहीं हुआ और नतीजा सबने देखा.
जब यह सरकार बनी तो गंगा की सफाई और स्वच्छता को लेकर जोर शोर से बात हुई. दावे तो यहां तक किए गए कि गंगा साफ नहीं हुई तो 'जान दे दूंगी'. लेकिन वास्तव में गंगा कितनी साफ हुई यह प्रोफेसर अग्रवाल से बेहतर कौन बता सकता था ! प्रोफेसर अग्रवाल नहीं रहे. वह अपने आपमें एक संस्था थे. सरकार और सिस्टम की संवेदनहीनता ने एक संस्था और ईमानदार प्रयास को निगल लिया. आज ही एक खबर छपी है. सरकार का कहना है कि गंगा और यमुना की सफाई का 'मिशन' पूरा होने के बाद देश-दुनिया की अन्य नदियां भी 'मीटू' का आह्वान करेंगी. प्रोफ़ेसर अग्रवाल होते तो इस खबर को पढ़कर हंस रहे होते, लेकिन उस हंसी के पीछे छिपी पीड़ा की किसे परवाह !
(प्रभात उपाध्याय Khabar.NDTV.com में चीफ सब एडिटर हैं...)
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This Article is From Oct 12, 2018
प्रो. जीडी अग्रवाल की मौत का जिम्मेदार कौन...
Prabhat Upadhyay
- ब्लॉग,
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Updated:अक्टूबर 13, 2018 10:19 am IST
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Published On अक्टूबर 12, 2018 16:06 pm IST
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Last Updated On अक्टूबर 13, 2018 10:19 am IST
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