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This Article is From Aug 13, 2018

एनआरसी, बात निकली तो बहुत आगे जाती दिखने लगी...

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 13, 2018 20:12 pm IST
    • Published On अगस्त 13, 2018 20:12 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 13, 2018 20:12 pm IST
असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर से शुरू हुई बात अब बहुत आगे निकलती दिख रही है. बीजेपी के नेताओं के बयानों से साफ़ है कि पार्टी इसे सिर्फ असम तक ही सीमित रखना नहीं चाहती. पहले कहा गया कि एनआरसी बंगाल में भी लागू होगा. फिर अन्य राज्यों के बीजेपी नेताओं के बयान सामने आने लगे. अब कहा जा रहा है कि अगर 2019 में बीजेपी दोबारा आई तो पूरे देश में एनआरसी लागू होगा.

असम का एनआरसी घुसपैठियों की पहचान के लिए बनाया गया है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अभी कहा है कि जब तक रजिस्टर को अंतिम रूप नहीं दिया जाता, तब तक कोई कार्रवाई नहीं होगी. विवाद तब भड़का जब पता चला कि जिन चालीस लाख लोगों के नाम नहीं हैं, उनमें से कई पीढ़ियों से भारत में रहते आए हैं. यानी रजिस्टर बनाने का काम ठीक से नहीं किया गया. इनमें बड़ी संख्या में हिंदू भी हैं. विवाद इसलिए भी खड़ा हुआ क्योंकि बीजेपी नेताओं ने प्रारंभिक सूची के अनुसार ही इन चालीस लाख लोगों को घुसपैठिए कहना शुरू कर दिया. हालांकि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दखल दिया है. उन्होंने एएनआई को दिए इंटरव्यू में कहा कि "मैं यह भरोसा दिलाना चाहता हूं कि किसी भी भारतीय नागरिक को देश नहीं छोड़ना होगा. प्रक्रिया का पालन करते हुए चिंताओं को दूर करने के पर्याप्त अवसर दिए जाएंगे. एनआरसी हमारा वादा था जिसे हम सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के तहत पूरा कर रहे हैं. यह राजनीति नहीं बल्कि लोगों के बारे में है. अगर कोई इस पर सियासत कर रहा है तो यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है."

पीएम मोदी ने एनआरसी मुद्दे पर गृह युद्ध और रक्तपात की चेतावनी देने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी आड़े हाथों लिया. पीएम मोदी ने उन्हें याद दिलाया कि 2005 में उन्होंने क्या कहा था? पीएम ने पूछा तब की ममताजी सही थीं या अब की ममताजी? गौरतलब है कि 2005 में ममता बनर्जी ने घुसपैठियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग की थी.

इस बीच, बीजेपी ने शरणार्थियों को नागरिकता देने का मुद्दा भी एक बार फिर छेड़ दिया है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने मोदी सरकार का वह वादा दोहराया जिसमें पिछले छह साल से भारत में रह रहे और पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने की बात कही गई है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने मेरठ में उत्तर प्रदेश बीजेपी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में कहा कि सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है.

नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 पिछले दो साल से संसद में लटका हुआ है. फिलहाल संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी के पास है जिसे शीतकालीन सत्र के पहले दिन रिपोर्ट देने को कहा गया है. ज़ाहिर है सरकार की मंशा इसे हर हाल में शरद सत्र में पारित कराने की है ताकि 2019 के चुनावों में इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया जा सके. हालांकि इस पर कई सवाल भी उठ रहे हैं. आखिर धर्म के आधार पर शरणार्थियों में भेदभाव कैसे किया जा सकता है? छह धर्मों के अनुयाइयों को भारत की नागरिकता मिल सकेगी लेकिन मुस्लिम अनुयाइयों को नहीं. ऐसा क्यों? यह सवाल इसलिए भी क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 14 धर्म के आधार पर भेदभाव की इजाज़त नहीं देता. इस पर बीजेपी की दलील है कि हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन आदि धर्म भारत की भूमि से ही शुरू हुए ऐसे में अगर उनके अनुयाइयों पर दुनिया भर में कहीं भी अत्याचार होता है तो वे सिवाए भारत के कहीं और शरण लेने नहीं जा सकते.

तो शरणार्थियों की बात हो या फिर घुसपैठियों की, बीजेपी ने इन दोनों ही मुद्दों को गरमाना शुरू कर दिया है. बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर बीजेपी दशकों से आरोप लगाती आ रही है. अब देश भर में उनके खिलाफ कार्रवाई की बात क्या बड़ा चुनावी मुद्दा बनेगा? शरणार्थियों को लेकर बीजेपी के वादे से क्या सियासत और गरमाएगी? ये सवाल इसलिए क्योंकि असम में बीजेपी की सहयोगी पार्टियां इसके विरोध में हैं. दूसरी बात यह भी है कि गैरकानूनी अप्रवासियों की कोई गिनती नहीं है. हालांकि बीजेपी का कहना है कि पड़ोसी देशों में जो लोग धार्मिक भेदभाव का शिकार हुए उन्हें नागरिकता दी जाएगी. लेकिन बिल के आलोचक कहते हैं कि जब भारत एक सेक्यूलर देश है तो फिर धर्म के आधार पर भेदभाव क्यों किया जाए. वे पूछते हैं कि क्या म्यांमार के रोहिंग्या शरणार्थियों को सिर्फ इस बिना पर जगह नहीं मिलेगी क्योंकि वे मुस्लिम हैं?


(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

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