प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक का मामला इतना भी मामूली नहीं है कि ज़्यादातर बातें कानाफूसी और व्हाट्एसएप के ज़रिए पत्रकारों के बीच ठेली जाएं और लोग मीम बनाकर हंसी हंसी का खेल खेलें. तरह-तरह की बातें बनाने की जगह जनता के बीच सीधे सीधे और साफ-साफ तथ्य रखे जाने चाहिए. कानाफूसी यानी आफ रिकार्ड ब्रीफिंग के ज़रिए ही बहस बढ़ाई जा रही है. जिस तरह से जीवन के पंच तत्व होते हैं उसी तरह से पत्रकारिता के भी पंचतत्व होते हैं. कब, कौन, कहां, कैसे और क्यों. पत्रकारिता के ये पंचतत्व गोदी मीडिया में विलीन हो गए हैं. इस घटना के कई घंटे बीत जाने के बाद भी प्रधानमंत्री कार्यालय से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं हुआ है. एसपीजी की तरफ से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं हुआ है. पंजाब पुलिस के प्रमुख की तरफ से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं हुआ है. गृह मंत्रालय की तरफ से बठिंडा लौटने के बाद एक बयान जारी हुआ है.
लेकिन गृह मंत्रालय के बयान से भी उन सवालों के जवाब नहीं मिल रहे हैं जो मीडिया और नेताओं के ज़रिए उठाए जा रहे हैं. नतीजा यह हुआ है कि आधिकारिक सूचनाओं की जगह तरह तरह की अटकलों से बहस में रोमांच पैदा किया जा रहा है. बहस कभी रैली पर जाती है तो कभी हंसी मज़ाक में भटक रही है. यह दोनों तरफ से हो रहा है. पक्ष से भी और विपक्ष से भी. प्रधानमंत्री बिना किसी पूर्व जानकारी के अचानक लाहौर एयरपोर्ट पर उतर गए, तो जान को खतरा नहीं हुआ, किसानों के बीच चले गए तो खतरा हो गया. इस तरह की बातों से टेबिल टेनिस खेलने से यह जवाब नहीं मिलता कि सुरक्षा में चूक क्यों हुई, कौन ज़िम्मेदार था. जनता को ध्यान रखना चाहिए कि सवाल के जवाब दिए जा रहे हैं या चूक के नाम पर बहस का उत्पादन यानी बहसोत्पादन किया जा रहा है.
टेलीग्राफ, हिन्दू और इंडियन एक्सप्रेस ने पहली खबर तो बनाई है मगर सामान्य खबर के रूप में. हिन्दू अखबार ने इतना ही लिखा है कि प्रधानमंत्री का काफिला पंजाब के हंगामे में फंस गया. टेलीग्राफ की हेडलाइन का अपना ही अंदाज़ है. पूरे प्रसंग पर सवाल खड़े करता है.
दूसरी तरफ हिन्दी अखबारों की हेडलाइन चीख रही है. सीएम को कहना मैं ज़िंदा लौट आया वाली बात को हिन्दी और गुजराती अखबारों ने प्रमुखता और मोटे मोटे फोन्ट में छापा है. यह वाली खबर समाचार एजेंसी ANI की तरफ से आई थी. टीवी चैनलों में मैं ज़िंदा आ गया के नाम से कई डिबेट शो होने लगे. प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर माहौल बनाया जाने लगा. थ्रिल पैदा किया जाने लगा ताकि पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से लोग शेयर करने लगें. भिड़ जाएं. यह बात मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं कि ANI से किस स्तर के अधिकारी ने बात की, उसके ट्वीट में इतना लिखा है कि बठिंडा एयरपोर्ट पर अधिकारियों से प्रधानमंत्री ने कहा. क्या ये अधिकारी एयरपोर्ट के थे या राज्य सरकार के थे? एक अधिकारी से कहा या कई अधिकारियों से कहा? क्या इन अधिकारियों ने प्रधानमंत्री की यह बात लिखित रूप से पंजाब के मुख्यमंत्री को बताई? क्या प्रधानमंत्री की बात को उस अधिकारी ने मज़ाक समझा तब तो उसे सस्पेंड कर देना चाहिए. पंजाब सरकार ने भी अपनी तरफ से उस अधिकारी को पेश नहीं किया है जिससे प्रधानमंत्री ने ज़िंदा होने की बात कही है. लेकिन अब यही एक लाइन इस पूरी घटना का मुखौटा बन गया है और बहसोत्पादन का आधार बन गया है.
यह मामला गंभीर तो है लेकिन इसके आस-पास इस तरह से ईवेंट और डिबेट रचे जा रहे हैं कि पाठक और दर्शक का ध्यान सुराक्षा की चूक से जुड़े ठोस सवालों से भटक जा रहा है. जिससे संदेह पैदा हो सकता है कि सुरक्षा में चूक का यह मामला कहीं जोशीले ईवेंट पैदा करने के लिए तो नहीं किया गया है. आज प्रात: सवा ग्यारह बजे भोपाल में पत्रकारों को यह संदेश भेजा गया कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आज दोपहर 1 बजे गुफा मंदिर में प्रधानमंत्री जी के दीर्घायु जीवन और रक्षा हेतु महामृत्युंजय जाप करेंगे. प्रदेश के दोनो ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर और ओम्कारेश्वर सहित सभी बड़े शिवालयों में भी महामृत्युंजय जाप किया जाएगा.
यह सूचना सही निकली. दो घंटे पहले बता दी गई थी ताकि प्रेस के लोग सही समय पर पहुंच जाएं और सुरक्षा चूक के मामले का कवरेज़ ठीक से हो सके. प्रधानमंत्री सुरक्षित हैं फिर भी महामृत्युंजय का जाप करने स्वयं मुख्यमंत्री पहुंच गए. आप फर्क को गौर करें तो फर्क साफ दिखेगा. कहां तो पत्रकारों का जमावड़ा गृह मंत्रालय, पीएमओ या एसपीजी के पास होना चाहिए तो मंदिर और हवन वगैरह के कवरेज में होने लगा है.
अगर यही कारगर है तो फिर प्रधानमंत्री की सुरक्षा में लगी एसपीजी को भी महामृत्युंजय के जाप की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए. अगर उठाने की हालत में है तो सवाल यह उठता है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार एसपीजी के प्रमुख ने महामृत्युंजय का जाप क्यों नहीं किया? उनका काम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान क्यों कर रहे हैं. बेशक प्रधानमंत्री के दीर्घायु होने की कामना पूरे देश के साथ मुख्यमंत्री भी कर सकते हैं, हम सभी करते हैं, लेकिन इस तरह का जाप मामले की गंभीरता को हल्का भी कर रहा है. प्रश्न उठता है कि क्या यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि भाषणों से उदासीन हो चुकी जनता और खासकर समर्थकों में नया उत्साह भरा जा सके. थ्रिल पैदा हो सके. और तमाम मुद्दों को किनारे कर प्रधानमंत्री को ही मुद्दा बना दिया जाए? बहरहाल इस प्रश्न को स्थगित कर देते हैं. अनुराग द्वारी इसके कवरेज के लिए पहुंचे. बहुत सारे पत्रकार पहुंचे. मुख्यमंत्री हवन करते नज़र आए. लेकिन अनुराग यह देखकर हतप्रभ रह गए कि एक हज़ार मंत्रों का जाप इतनी जल्दी कैसे हो गया. आधे घंटे से भी कम समय में हवन की पूर्णाहुति हो गई. मुख्यमंत्री ने ट्वीट तो किया था कि महामृत्युंजय का जाप करेंगे लेकिन पुजारी ने बताया कि गणपति की पूजा करके चले गए.
अब अगर पूजा पाठ से ही इन सवालों को ढंक देना है तो फिर उन सवालों का क्या किया जाए जो जानने की ज़रूरी हैं कि सुरक्षा में चूक कैसे हुई और कौन कौन ज़िम्मेदार है. जनरल बात क्यों हो रही है. आधिकारिक रूप से जवाब देने के बजाए निंदा के ज़रिए राजनीतिक बहस पैदा की जा रही है. पत्रकारों के व्हाट्सएप ग्रुप में कुछ का कुछ ठेला जा रहा है ताकि इसे लेकर पैदा की गई डिबेट कुछ दिन और चलती रहे. संसद ने एक कानून पास कर प्रधानमंत्री की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप एसपीजी को दी है. 5 जनवरी की इस घटना में एसपीजी का क्या पक्ष है आप सूचना के अधिकार से भी नहीं जान सकते क्योंकि एसपीजी को RTI से मुक्त रखा गया है. तो रास्ता यही है कि एसपीजी देश को आधिकारिक जानकारी दे कि क्या हुआ. बुधवार को पत्रकार मीतू जैन ने एसपीजी और पंजाब पुलिस की भूमिका को लेकर एक ट्वीट किया था.
प्रधानमंत्री की यात्रा योजना SPG की ब्लू बुक के हिसाब से ही बनाई जाती है. अनिष्ट की आशंका को देखते हुए Safe house यानी सुरक्षित ठिकाने से लेकर सुरक्षित मार्ग तक की योजना प्रधानमंत्री की Advanced Security लियेज़ॉं में होती है. Advanced Security लियेज़ॉं में SPG, IB और राज्य की पुलिस होती है.
प्रधानमंत्री कार्यालय को जवाब देना चाहिए कि क्या उसे पता नहीं था कि पंजाब में मौसम खराब है. क्या ब्लू बुक के हिसाब से मौसम विभाग से इस बारे में कोई जानकारी ली गई थी. अगर मौसम खराब हो जाता है, हेलिकाप्टर का उड़ना संभव नहीं है तब क्या वैकल्पिक मार्ग की योजना एडवांस सिक्योरिटी लियेज़ॉं के हिसाब से तय की गई थी जिसमें तीन लोग हिस्सेदार होते हैं. एसपीजी, खुफिया एजेंसी और राज्य की पुलिस. 111 किमी की सड़क से यात्रा में दो घंटे लगते हैं. क्या वाकई SPG ने उस मार्ग को पूरी तरह सुरक्षित करने से पहले इसकी अनुमति दी? ब्लू बुक के अनुसार SPG तब तक आगे नहीं बढ़ती है जब तक राज्य पुलिस मार्ग को पूरी तरह से सुरक्षित नहीं करती है और हरी झंडी नहीं देती है. क्या SPG ने पूर्व योजना के तहत सड़क मार्ग से ले जाने का फैसला किया? अगर नहीं तो SPG के प्रमुख को बर्खास्त कर देना चाहिए. अगर पंजाब के पुलिस प्रमुख ने यह कहा कि पूरे मार्ग को सुरक्षित कर लिया गया और नहीं किया गया था तो उन्हें इस्तीफा देना चाहिए. क्योंकि उन्होंने SPG को गलत सूचना दी. बीजेपी कहती है कि बीजेपी का झंडा लेकर बीजेपी के ही कार्यकर्ता काफिले के नज़दीक आ गए थे. जहां से प्रधानमंत्री का काफिला वापस मुड़ गया. तब यह सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री के सुरक्षा मार्ग में बीजेपी के कार्यकर्ताओं को काफिले के करीब कैसे आने दिया गया? प्रधानमंत्री काफिले के सामने बस और टैम्पो में बैठे नागरिकों को कैसे आने दिया गया. काफिले के आगे चेतावनी देने वाली एक कार चलती है और एक पायलट कार चलती है. क्या इन कारों ने भीड़ देखकर काफिले को अलर्ट नहीं किया? काफिला प्रदर्शनकारियों के इतना नज़दीक कैसे आ गया? बीस मीटर की ही दूरी थी. क्या SPG को तुरंत यू टर्न नहीं लेना था, उसने बीस मिनट इंतज़ार क्यों किया? प्रधानमंत्री ने एयरपोर्ट आफिशियल से कहा कि ज़िंदा लौट आए है. अगर उनकी जान को खतरा था तब एसपीजी को जवाब देना चाहिए. उनकी सुरक्षा का काम एसपीजी का है. एसपीजी प्रधानमंत्री के बिल्कुल करीब होती है. जो वीडियो और फोटो है उसमें एसपीजी कार के दोनों तरफ हैं. कार के सामने नहीं है. इस कार के सामने किसने फोटोग्राफर को आने की इजाज़त दी जो प्रदर्शनकारियों के वीडियो ले रहा था? कुछ भी हो अगर प्रधानमंत्री की जान को खतरा था तब मीडिया के फोटोग्राफर को इतना करीब जाने की अनुमति किसने दी. क्या प्रधानमंत्री अपने साथ इतना नज़दीक फोटोग्राफर को रखते हैं?
ये सारे सवाल अहम हैं. इनके ही जवाब से हम सुरक्षा में चूक को लेकर कुछ जान सकते हैं. मीतू जैन के इस ट्वीट से साफ है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा का काम एसपीजी करती है, उनकी यात्रा से पहले उस जगह की सुरक्षा का इंचार्ज वह बन जाती है. स्थानीय पुलिस भी उसके अधीन और साथ साथ काम करने लग जाती है. इसके बाद भी मुख्यमंत्री स्तर की हस्तियां कह रही हैं कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार की थी. जबकि उन्हें अच्छी तरह से पता है कि कौन ज़िम्मेदार है.
अगर गांधी परिवार और कांग्रेस ने साज़िश की है तो फिर इसकी जांच केंद्र सरकार की सुरक्षा एजेंसी ही करेगी. करनी चाहिए. पंजाब सरकार ने जांच का एलान किया है और गृह मंत्रालय ने पंजाब से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है. 1998 में संसद में एसपीजी एक्ट बना था. 25 नवंबर 2019 को इसमें संशोधन के लिए एक बिल लोकसभा में पेश किया गया. यह संशोधन इसलिए किया जा रहा है ताकि SPG अपने मुख्य कर्तव्य कोर मैंडेट प्रधानमंत्री की सुरक्षा पर केंद्रित कर सके. इसके मकसद में साफ साफ लिखा है कि “अधिनियम का संशोधन करना इसलिए आवश्यक समझा गया है जिससे मुख्य आदेश पर ध्यान केंद्रित किया जा सके क्योंकि सरकार के प्रधान के रूप में प्रधानमंत्री की सुरक्षा सरकार, शासन और राष्ट्रीय सुरक्षा के संबंध में सर्वोच्च महत्व की है. इसका एकमात्र उद्देश्य प्रधानमंत्री और उनके कुटुम्ब के सदस्यों को निकट सुरक्षा प्रदान करना है.”
तो प्रधानमंत्री की सुरक्षा की मुख्य ज़िम्मेदारी एसपीजी की है, राज्य सरकार की नहीं है. एसपीजी का मुख्य काम ही है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा को देखे. ऐसा क्यों है कि मूल सवालों के जवाब का इंतज़ार किए बगैर धार्मिक कार्यक्रमों के ज़रिए सियासी माहौल बनाया जा रहा है.
आज दिल्ली में भी कई मंदिरों में प्रधानमंत्री की सुरक्षा और दीर्घायु होने के लिए महामृत्युंजय का जाप किया जाने लगा. प्रेस को जानकारी दी गई कि बीजेपी के उपाध्यक्ष बैजयंत पंडा झंडेवाला मंदिर में, पंजाब और उत्तराखंड के प्रभारी बीजेपी नेता दुष्यंत गौतम कनाट प्लेस के हनुमान मंदिर में और राज्यसभा सांसद अरुण सिंह प्रितिविहार में, जाप करेंगे. यज्ञ की भी सूचना आई. इसी दिल्ली में और देश में कोरोना के समय लाखों लोग मर गए, ऑक्सीजन और अस्पताल की कमी से तड़प कर मर गए तब क्यों नहीं महामृत्युंजय का जाप किया गया. अगर किया जाता तो वे सारे लोग भी दीर्घायु रहते. मेरा यही कहना है कि क्या सुरक्षा की चूक को इन धार्मिक कार्यक्रमों के बहाने राजनीतिक कार्यक्रम में बदला जा रहा है. इससे तो पूरे मामले की गंभीरता समाप्त हो जाती है. असल में यह सब न हो तो सुरक्षा में हुई चूक के अगले दिन न्यूज़ चैनलों पर कवरेज क्या होगा, तो इस तरह से ईवेंट के ज़रिए उन्हें लाइव दिखाने के लिए कटेंट भी दिया गया जिसका लाभ हमें भी मिला.
हाल ही में खबर आई थी कि करोड़ों रुपये की मर्सिडिज़ कार खरीदी गई ताकि सुरक्षा और मज़बूत हो. इस कार को विस्फोटक से भी नहीं उड़ाया जा सकता है. ऐसी मर्सिडिज़ खरीदने के बाद भी महामृत्युंजय का जाप किया जा रहा है. देश भर में बीजेपी ने पूजा पाठ और यज्ञ शुरू कर दिया. इससे संदेह और गहरा होता है कि सुरक्षा में चूक एक नया ईवेंट है.
यही पूरे मामले की एकमात्र गंभीर तस्वीर है. खबर आई कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सुरक्षा में हुई चूक को लेकर गंभीर रूप से चिन्तित हैं. भारत के संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति से प्रधानमंत्री ने मुलाकात कर स्थिति की जानकारी दी. क्या जानकारी दी, किस तरह के तथ्य रखे गए इसकी जानकारी नहीं. उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भी प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक की निंदा की है.
इस बीच कुछ वकील प्रधानमंत्री की सुरक्षा के सवाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट चले गए कि इसकी न्यायिक जांच हो. सुप्रीम कोर्ट ने भी मामले का संज्ञान लिया है और सात जनवरी को सुनवाई तय की है. इस जगह पर हम बताना चाहते हैं कि आज पंजाब के अखबारों ने इस पूरी घटना को हिन्दी और अंग्रेज़ी अखबारों से कैसे अलग कवर किया है. आप कह सकते हैं कि पंजाबी अखबारों की हेडलाइन अंग्रेज़ी अखबारों की तरह प्रमुखता से लैस तो है मगर हिन्दी अखबारों की तरह चीख नहीं रही है. जैसे जिंदा लौट आया वाले बयान को उन पंजाबी अखबारों में चीखते हुए नहीं लगाया है जिन्हें हमने देखा है. क्योंकि ज़िंदा लौट आने वाला बयान केवल ANI की तरफ से रिपोर्ट हुआ है. लगता है कि अंग्रेजी और पंजाबी अखबारों ने इसे कवर तो किया है मगर थोड़ी दूरी भी बनाई है. पंजाबी के मशहूर अखबार अजीत की पहली हेडलाइन है कि ‘हालात के मद्देनज़र प्रधानमंत्री मोदी ने फिरोज़पुर दौरा बीच में छोड़ा', इसके नीचे एक नोट है कि सुरक्षा में हुई बड़ी कोताही - 20 मिनट तक फ्लाईओवर पर फंसा रहा मोदी का काफ़िला - केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पंजाब सरकार से मांगी रिपोर्ट. इसके नीचे यानी तीसरे नंबर पर है' सीएम को धन्यवाद कहना कि मैं बठिंडा एयरपोर्ट तक ज़िंदा पहुंच पाया - मोदी' पंजाबी ट्रिब्यून की हेडलाइन है 'सुरक्षा खामियों' के कारण रैली में ना पहुंच सके मोदी. सुरक्षा खामियों को इनवर्टेड कॉमा में रखा गया है. यानी सुरक्षा खामियों पर संदेह भी करता है. यह अखबार भी छोटी हेडलाइन में लिखता है कि ‘अपने सीएम का धन्यवाद करना कि मैं बठिंडा हवाई अड्डे से ज़िंदा आ सका - मोदी' इसी तरह एक और पंजाबी अखबार जग बाणी की हेडलाइन है कि सुरक्षा में कोताही होने के कारण पीएम मोदी को पंजाब आ कर लौटना पड़ा. सभी अखबारों में पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी का भी पक्ष प्रमुखता से छापा गया है.
आपको याद दिला दें कि तीन जनवरी को PIB ने एक प्रेस रिलीज़ जारी की थी जिसमें पंजाब के दौरे का पूरा कार्यक्रम था. इसमें हुसैनीवाला जाने का ज़िक्र नहीं था. 5 जनवरी की सुबह प्रधानमंत्री PIB की इसी रिलीज़ को ट्वीट करते हैं कि पंजाब में आज उनके क्या क्या कार्यक्रम हैं. पांच जनवरी के उनके ट्वीट में हुसैनीवाला का ज़िक्र नहीं है. रास्ता रोके जाने के बाद गृह मंत्रालय का बयान PIB की तरफ से जारी होता है. इसमें लिखा गया है कि ''प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी आज सुबह बठिंडा पहुंचे, जहां से वे हेलीकॉप्टर से हुसैनीवाला स्थित राष्ट्रीय शहीद स्मारक जाने वाले थे. बारिश और खराब दृश्यता के कारण प्रधानमंत्री ने करीब 20 मिनट तक मौसम साफ होने का इंतजार किया जब मौसम में सुधार नहीं हुआ तो निर्णय लिया गया कि प्रधानमंत्री सड़क मार्ग से राष्ट्रीय शहीद स्मारक जाएंगे, जिसमें दो घंटे से अधिक समय लगेगा. डीजीपी पंजाब पुलिस द्वारा आवश्यक सुरक्षा प्रबंधों की आवश्यक पुष्टि के बाद प्रधानमंत्री सड़क मार्ग से यात्रा के लिए रवाना हुए.''
इसमें यह तो लिखा है कि प्रधानमंत्री हेलिकाप्टर से हुसैनीवाला जाने वाले थे लेकिन यह नहीं लिखा है कि जाने का कार्यक्रम कब तय हुआ. यह भी लिखा है कि बारिश नहीं रुकी तब दो घंटे के सफर का निर्णय लिया गया है और डीजीपी पंजाब ने हरी झंडी दे दी कि आवश्यक सुरक्षा प्रबंध कर लिए गए हैं तब काफिला रवाना हुआ.
यह वीडियो उस जगह है जहां काफिला रुका हुआ है। इस वीडियो में बीजेपी का झंडा दिखाई देता है। बीजेपी का झंडा लेकर कर समर्थक काफिले के इतने नज़दीक कैसे पहुंचे. हमारे सहयोगी मोहम्मद ग़ज़ाली ने एक वीडियो भेजा है. इस वीडियो में बीजेपी की प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य अमित तनेजा कमेंट्री कर रहे हैं. उनकी कार के ठीक सामने से प्रधानमंत्री का काफिला गुज़र रहा है. काफिले में परिंदा नहीं आ सकता लेकिन बीजेपी का यह नेता कमेंट्री कैसे कर रहा है.
कितनी अफरातफरी थी कि बीजेपी के नेता कार के रास्ते में हैं. ये वो जगह है जिसके बारे में गृहमंत्रालय ने PIB की रिलीज़ में लिखा है कि हुसैनीवाला स्थित राष्ट्रीय शहीद स्मारक से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर, जब प्रधानमंत्री का काफिला एक फ्लाईओवर पर पहुंचा तो पाया गया कि कुछ प्रदर्शनकारियों ने सड़क को अवरुद्ध कर दिया है. रैली में भीड़ नही थी इस वजह से लौट आए इस पर फोकस करने के बजाए सुरक्षा में चूक पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. 140 किमी की दूरी सड़क से तय करने का फैसला अचानक हुआ या पहले से आपात स्थिति के तौर पर तय था? क्या पंजाब पुलिस के डीजीपी ने एसपीजी को सुरक्षा की हरी झंडी देने से पहले इस बात की पुष्टि कर ली थी कि रास्ता खाली है. दस हज़ार पुलिस तैनात थी वो कहां तैनात थी, बठिंडा से हुसैनीवाला के रास्ते में तैनात थी? ट्रिब्यून अखबार में डीजीपी इंदरबीर सिंह का बयान छपा है कि 100 किसानों का फ्लैशमॉब अचानक आ गया. तो सौ किसान नहीं हटाए जा सके? मगर किसान नेता कह रहे हैं कि उनका धरना तो पहले से चल रहा था. ग़ज़ाली ने हमें एक वीडियो भेजा है. इस वीडियो में धरना दे रहे किसान यूनियन के नेता बलदेव सिंह ज़िरा लाउडस्पीकर पर पंजाबी में कहते सुने जा सकते हैं. कह रहे हैं कि प्रशासन वाले आए थे, कह रहे थे कि उनकी नौकरी दांव पर है, प्रधानमंत्री आ रहे हैं, चले जाइए. किसान नेता कह रहे हैं कि उन्हें भरोसा नहीं हो रहा है. उन्हें लगता है कि प्रशासन उन्हें हटाने के लिए पीएम के आने का बहाना बना रहा है.
इसी बात को कई चैनल इस तरह से चला रहे हैं कि पंजाब पुलिस ने पीएम के आने की सूचना लीक कर दी लेकिन किसान नेता कह रहे हैं कि उन्हें प्रशासन की बात पर भरोसा नहीं है, लगता है वे उन्हें हटाने के लिए बहाने बना रहे हैं. इसी बात को लेकर इंडियन एक्स्प्रेस के कमलदीप सिंह बरार ने अंग्रेज़ी में रिपोर्ट लिखी है, ''इस खबर में बलदेव सिंह ज़िरा का बयान छपा है कि फिरोज़पुर एसएसपी ने जब कहा कि प्रधानमंत्री ये रूट ले रहे हैं तो हमें यकीन नहीं हुआ. हमें लगा कि प्रशासन बहाने बना रहा है. हम यहां पर बीजेपी की गाड़ियों को रोकने के लिए पहले से धरना दे रहे थे. अगर हमें पता होता कि वास्तव में प्रधानमंत्री इस रूट से जाने वाले हैं तो हमारी प्रतिक्रिया अलग होती. वे हमारे प्रधानमंत्री हैं. बलदेव सिंह का और भी बयान छपा है कि हमने बीजेपी से कहा था कि हम यहां धरना दे रहे हैं तो किसी और रूट से रैली में जाएं. धरना स्थल पर बीजेपी के कार्यकर्ता और किसानों के बीच टकराव भी हुआ. हमारे लोग घायल भी हुए.''
भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी पंजाब का पुराना और प्रभावशाली किसान संगठन है. पंजाब में कुछ दिनों से किसानों का आंदोलन चल रहा है. यह आंदोलन केंद्र सरकार के खिलाफ भी है और स्थानीय मांगों को लेकर पंजाब सरकार के खिलाफ भी है.
बेशक किसान बीजेपी के कार्यकर्ताओं और नेताओं का रास्ता रोक रहे थे लेकिन उनका प्रदर्शन राज्य सरकार के खिलाफ भी चल रहा था. प्रधानमंत्री की रैली का विरोध पंजाब के ग्यारह किसान संगठन कर रहे थे. उनका यह प्रदर्शन पिछले चार दिनों से चल रहा था और राज्य सरकार के खिलाफ भी चल रहा था. 48 घंटे से पंजाब पुलिस अलग अलग जगहों पर किसानों के इन प्रदर्शनों से जूझ रही थी. कुछ सामूहिक मांगें भी थी जैसे न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के कानून को लेकर और गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा की गिरफ्तारी को लेकर लेकिन कुछ मांगे पंजाब सरकार से भी थी. जैसे बिजली और कर्ज की माफी को लेकर. जब पता था कि चार दिनों से पंजाब में 11 किसान संगठनों के जगह जगह आंदोलन चल रहे हैं तब क्यों प्रधानमंत्री को सड़क मार्ग से ले जाने का फैसला किया गया. क्या एसपीजी ने इसके जोखिमों का हिसाब लगा लिया था, 140 किलोमीटर की सड़क यात्रा का जोखिम इतना आसान नहीं कि केवल पंजाब सरकार पर आरोप लगाकर छुटकारा पा लिया जाए.
पंजाब पुलिस के प्रमुख सिद्धार्थ चटोपाध्याय को सामने आकर सभी प्रश्नों का जवाब देना चाहिए और इसके बाद एसपीजी प्रमुख को भी, मुमकिन हो तो एक साथ प्रेस कांफ्रेंस करनी चाहिए. जब इतनी राजनीति हो रही है तब फिर इसका बहाना नहीं चलेगा कि सुरक्षा एक गंभीर मसला है और सारी जानकारी साझा नहीं की जा सकती है. पंजाब पुलिस के प्रमुख ही बता सकते हैं कि हुसैनीवाला जाने का कार्यक्रम कब बना? 140 किमी सड़क मार्ग से ले जाने का प्रस्ताव पंजाब पुलिस को कब मिला? पंजाब पुलिस ने इतने लंबे रास्ते को कितने देर में खाली कराया? प्रधानमंत्री के रूट में सुरक्षा की कैसी तैनाती थी? मुख्यमंत्री चन्नी का बयान है कि सड़क मार्ग से जाने की पहले योजना नहीं थी. इस एक सवाल को स्थापित करना बहुत ज़रूरी है. समस्या यह है कि मुख्यमंत्री भी तुरंत रैली और खाली कुर्सियों पर शिफ्ट हो जा रहे हैं. पंजाब का पक्ष बिन्दुवार नहीं रख रहे हैं. पंजाब के मुख्यमंत्री ने विस्तार से प्रेस कांफ्रेंस की है. उनके कुछ मुख्य जवाब हैं...
- डीजीपी ने केंद्र से कहा था कि खराब मौसम और किसानों के प्रदर्शन के कारण प्रधानमंत्री यात्रा टाल दें
- तय कार्यक्रम के अनुसार प्रधानमंत्री का हेलिकाप्टर फिरोज़पुर के हेलिपैड पर उतरना था
- सड़क मार्ग से जाने की कोई योजना नहीं थी। आखिरी वक्त में तय किया गया
- रास्ते में हमें पता चला कि प्रदर्शनकारी जमा हो गए हैं तब हमने PMO को तुरंत सूचित कर दिया
- सुरक्षा में कोई चूक नही हुई है
हम फिर से लौट कर आते हैं. हुसैनीवाला जाने का कार्यक्रम कब तय हुआ, 140 किमी सड़क से जाने का कार्यक्रम कब बना? पंजाब पुलिस के डीजीपी ने क्या कहा और केंद्रीय खुफिया एजेंसी ने क्या कहा? प्रधानमंत्री की जहां भी यात्रा होती है उसके कई दिन पहले से सुरक्षा की टीम ज़िले में मौजूद रहती है. उस टीम का क्या इनपुट था. इन सभी सवालों के जवाब आधिकारिक तौर पर दिए जाने चाहिए. न कि कुछ चिट्ठी यहां से लीक कर और कुछ चिट्ठी वहां से लीक कर. ध्यान रखें कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा का जिम्मा एसपीजी के पास होता है. वो खुफिया एजेंसी और राज्य पुलिस के साथ मिल कर अंतिम फैसला करती है. एसपीजी को जवाब देना चाहिए। आज पंजाब पुलिस का अंदरुनी पत्राचार लीक हुआ. इसे हमारे पेशे की ज़ुबान में सरफेस होना कहते है. मतलब कोई नहीं जानता कि चिट्ठी कब और कैसे बाहर आ गई. यह पत्र पंजाब पुलिस के कानून व्यवस्था के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक की तरफ से भेजा गया है. इसमें लिखा है कि पांच जनवरी को प्रधानमंत्री फिरोज़पुर की रैली में आ रहे हैं. पांच को मौसम खराब रहेगा. फिरोज़पुर की रैली के लिए पंजाब के सभी ज़िलों से एक लाख लोगों के जुटाने की योजना है. फिरोज़पुर में बहुत सारा वीआईपी मूवमेंट होगा. बारिश के कारण मुख्यमंत्री और अन्य वीआईपी सड़क मार्ग का ही इस्तमाल करेंगे. इसलिए ट्रैफिक की गंभीर समस्या हो सकती है तो अपने अपने इलाके में वैकल्पिक मार्ग की तैयारी रखें. किसानों पर नज़र रखें. रैली स्थल तक न पहुंचने दें. एस एस पी इसे खुद निजी तौर पर देखें और ट्रैफिक प्लान सुनिश्चित करें.
3 जनवरी और 5 जनवरी को जब PIB और प्रधानमंत्री अपनी पंजाब यात्रा के बारे में ट्वीट करते हैं तो हुसैनीवाला का कोई ज़िक्र नहीं है. पंजाब पुलिस के पत्राचार में आपने गौर किया होगा कि मौसम खराब होने का ज़िक्र है इसी जगह पर हम फिर से पत्रकार मीतू जैन के इस सवाल को लाना चाहते हैं. उन्होंने अपने ट्वीट में पूछा है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा को देखने वाली जो कोर टीम होती है वो एसपीजी, खुफिया एजेंसी और राज्य की पुलिस होती है. उस टीम का काम मौसम का भी ध्यान रखना होता है. और इसकी जानकारी मौसम विभाग से लेनी होती है. इस बारे में क्या इनपुट लिया गया. चार जनवरी के पंजाब पुलिस के पत्राचार से साफ है कि मौसम खराब होने की बात है और इसे ध्यान में रखते हुए इमरजेंसी प्लान के तौर पर वैकल्पिक रूट तैयार रखने की भी बात है.
अगर मौसम खराब होने का अनुमान था, मौसम खराब भी चल रहा था, दिल्ली से चलने से पहले से ही पता होगा कि पंजाब में मौसम कैसा है तब सड़क मार्ग वो भी 140 किमी लंबे सड़क मार्ग को लेकर क्या तैयारी थी. क्यों अचानक योजना बनाई गई? एसपीजी का मोटो है ज़ीरो एरर. मतलब एक भी गलती नहीं. तो ज़ीरो एरर वाली एस पी जी बताए कि इतनी बड़ी चूक कैसे हो गई. क्या इस मामले में केवल पंजाब सरकार की साख दांव पर है? एसपीजी का कुछ भी दांव पर नहीं है?
यहां पर हम इस बिन्दु को भी लाना चाहते हैं. हुसैनीवाला पाकिस्तान की सीमा से बिल्कुल सटा है. फिरोज़पुर ज़िला भी सीमावर्ती ज़िला है. चार महीने पहले केंद्र सरकार ने सुरक्षा कारणों को देखते हुए सीमा से सटे पचास किलोमीटर के इलाके को सीमा सुरक्षा बल BSF के हाथ में दे दिया. इसका मतलब है वहां केंद्र सरकार के हिसाब से गंभीर खतरा होग. ड्रोन से हमले की खबरें आती ही रहती हैं. तो ऐसी जगह पर सड़क मार्ग से जाने के लिए अचानक फैसला क्यों लिया गया? इस पूरे मामले में BSF की क्या भूमिका है, उसके पास किस तैयारी की सूचना थी? हम नहीं जानते. इसलिए हमारा ज़ोर इस बात पर है कि सारे जवाब एक जगह से और आधिकारिक तौर पर मिलने चाहिए. यह सवाल पंजाब के मुख्यमंत्री ने भी उठाए हैं. समराला की सभा में मुख्यमंत्री चन्नी कह रहे हैं कि पीएम की जान पर आएगी तो वे अपनी जान दे देंगे लेकिन पंजाब को बदनाम करने की बात बर्दाश्त नहीं करेंगे.
कांग्रेस के मुख्यमंत्री इसे पंजाब के सम्मान का मुद्दा बना रहे हैं, बीजेपी के मुख्यमंत्री महामृत्युंजय जाप करा रहे हैं. सूरक्षा चुक से सबको फायदा होता लग रहा है लेकिन आधिकारिक जवाब तो आने चाहिए. प्रधानमंत्री को सौ किलोमीटर सड़क से ले जाने का फैसला वो भी सीमावर्ती इलाके में, इतना हल्का नहीं कि पंजाब बनाम केंद्र और गांधी परिवार बनाम मोदी सरकार में समेट दिया जाए. प्रधानमंत्री अपने रुट में अचानक बदलाव करते रहे हैं. जैसे मौजूदा प्रधानमंत्री तो लाहौर एयरपोर्ट पर ही उतर गए. 2005 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जेएनयू में छात्रों ने घेर लिया था. जब वे जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय गए थे, तब AISA से जुड़े छात्रों ने उन्हें काले झंडे दिखाए गए थे. नवंबर का महीना था. छात्र इरान पर यूपीए सरकार की नीति का विरोध कर रहे थे. प्रधानमंत्री ने अपना भाषण शुरू ही किया कि काले झंडे दिखाए जाने लगे. मनमोहन सिंह अपना भाषण दस मिनट में समेट कर चले गए. उस समय वे जेएनयू के अवैतनिक प्रोफेसर भी थे. लेकिन उसके बाद उन्होंने छात्रों पर कार्रवाई से मना कर दिया था. काले झंडे दिखाने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई थी.
हर घटना अपने आप में अलग होती है. इस घटना की तुलना जेएनयू से नहीं कर सकते. वैसे आज जेएनयू के छात्र प्रधानमंत्री का काफिला रोक दें तो सभी UAPA की धारा में बंद हो चुके होते. पांच जनवरी का दिन सुरक्षा में चूक और ज़िंदा लौट आया के नाम रहा. वैसे 5 जनवरी 2020 को जेएनयू के साबरमती होस्टल में गुंडों ने हमला किया था. आज तक वे गुंडे नहीं पकड़े गए. इस तरह से गुंडे लड़कियों को पीट कर चले गए, तोड़फोड़ कर चले गए और पकड़े तक नहीं गए. उसी जेएनयू से एक छात्र नजीब गायब हो गया, हमारी सुरक्षा एजेंसियां खोज नहीं सकीं.
किसान आंदोलन एक साल तक चला. प्रधानमंत्री ने कभी उनसे बात नहीं की. कृषि कानूनों को वापस ले लिया तब भी किसानों से बात नहीं की. मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने बयान दिया कि किसानों के मरने की बात पर प्रधानमंत्री ने कहा कि क्या मेरे लिए मरे हैं. राज्यपाल इस बात पर सफाई देकर राज्यपाल बने हुए हैं. प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक गंभीर है लेकिन इसे मीम और महामृत्युजंय जाप के ज़रिए हल्का बना दिया गया है. आप गंभीर बने रहिए.