टैगोर से संबंधित जानकारी जमा करते हुए यह भी पता चला कि स्वामी विवेकानंद (1893) से पहले ब्रह्म समाज के पीसी मजूमदार (1883) अमेरिका आए थे. तब पीसी मजूमदार ने यहां घूम-घूमकर भाषण दिया था. 1893 में पीसी मजूमदार और विवेकानंद एक साथ आए थे. एक बुलेटिन से पता चलता है कि शिकागो की धर्मसंसद में स्वामी विवेकानंद के साथ पीसी मजूमदार ने भी भाषण दिया था, जिसके बारे में पब्लिक में कम जानकारी है. दोनों के भाषणों का अध्ययन हो सकता है, ज़रूर हुआ होगा, लेकिन कुछ सामग्री का पता चले, तो पढ़ूंगा ज़रूर.
यह बात कोई प्रधानमंत्री को भी बता दे. वह इन दिनों नायकों के याद करने और सम्मान करने का काम कर रहे हैं. इससे होगा यह कि इसी बहाने उन्हें एक और कार्यक्रम और भाषण देने का बहाना भी मिल जाएगा. कहने का मौक़ा मिलेगा कि कैसे एक परिवार ने या उस एक परिवार के लिए इतिहास के नायकों का सम्मान नहीं किया गया. जिस नेताजी बोस पर दर्जनों किताबें लिखी गईं, गाने बने ('उपकार' का तो गाना सुन लेते), करोड़ों कैलेंडर छपे, जिनमें नेताजी की तस्वीर अनिवार्य रूप से होती ही थी और है, अनेक चौराहों पर उनकी प्रतिमाएं हैं, सड़कों के नाम हैं, नेताजी नगर है, देश के करोड़ों बच्चे फैन्सी ड्रेस पार्टी में नेताजी बन कर जाते हैं उस नेताजी के बारे में प्रधानमंत्री ही कह सकते हैं कि इन्हें भुला दिया गया. उन्हें भुला दिया गया.
प्रधानमंत्री के याद करने का एक ही पैटर्न है. उसे देखते हुए लगेगा कि एक अकेले नेहरू ने भारत की आज़ादी के सारे नायकों को किनारे कर दिया था. इतने सारे नायक नेहरू से किनारे हो गए. नेहरू आज़ादी की लड़ाई में कई साल जेल गए. यात्राएं कीं. मगर प्रधानमंत्री के भाषणों से लगता है कि नेहरू अंग्रेज़ी हुकूमत से नहीं, बल्कि उन महापुरुषों को ठिकाने लगाने की लड़ाई लड़ रहे थे. नेताजी और नेहरू की दोस्ती पर दो लाइन भी नहीं बोलेंगे, पटेल और नेहरू के आत्मीय संबंधों पर दो लाइन नहीं बोलेंगे, मगर हर भाषण का तेवर ऐसा होगा, जैसे नेहरू ने सबके साथ काम नहीं किया, बल्कि उनके साथ अन्याय किया.प्रधानमंत्री इसीलिए आज के ज्वलंत सवालों के जवाब देना भूल जा रहे हैं, क्योंकि वह इन दिनों नायकों के नाम, जन्मदिन और उनके दो-चार काम याद करने में लगे हैं. मेरी राय में उन्हें एक 'मनोहर पोथी' लिखनी चाहिए, जो बस अड्डे से लेकर हवाई अड्डे पर बिके. इस किताब का नाम 'मोदी-मनोहर पोथी' हो.
प्रधानमंत्री के लिए आज भी इतिहास सिर्फ याद करने का विषय है. रट्टा मारने का विषय. इतिहास में किसी प्रधानमंत्री ने इतिहास का ऐसा सतहीकरण नहीं किया, जितना हमारे प्रधानमंत्री ने किया. मैं इसे सतहीकरण के अलावा इतिहास का 'व्हॉट्सऐपीकरण' कहता हूं. इन मौक़ों पर मोदी के भाषण का कंटेंट और व्हॉट्सऐप मीम में किसी नायक के जन्मदिन पर जो कंटेंट होता है, दोनों में ख़ास अंतर नहीं होता है. मोदी को 'प्रधानसेवक' के साथ-साथ भारत का प्रधान इतिहासकार (Prime Historian of India) घोषित कर देना चाहिए. यह पद प्राप्त करने वाले वह दुनिया के पहले प्रधानमंत्री होंगे.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.