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This Article is From Jan 11, 2019

CBI प्रमुख को हटाया जाना SC की भावना के ख़िलाफ़ नहीं?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 11, 2019 00:02 am IST
    • Published On जनवरी 11, 2019 00:02 am IST
    • Last Updated On जनवरी 11, 2019 00:02 am IST

मज़ाक का मज़ाक कैसे उड़ता है ये तो मज़ाक ही जानता है. 48 घंटे से कम समय के भीतर सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को पद से हटाने का फैसला हुआ है. 77 दिनों तक वे छुट्टी पर रहते हैं, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होती है, सुप्रीम कोर्ट फैसला करता है कि वर्मा पद पर बहाल किए जा सकते हैं मगर रुटीन निर्णय ही ले सकते हैं. जिन कारणों से उन्हें पद भार से मुक्त किया था, उस पर हाई पावर कमेटी विचार करेगी. इस हाई पावर कमेटी में प्रधानमंत्री मोदी, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए के सिकरी और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल होते हैं. दो दिन बैठक होती है और फैसला होता है कि आलोक वर्मा को पद से हटाया जाता है. उन पर लगाए गए आरोप सही पाए जाते हैं.

आलोक वर्मा ने ही पिछले साल अपने नंबर टू स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के खिलाफ एफआईआर के आदेश दिए थे. उन पर 3 करोड़ की रिश्वत लेने का आरोप था. अस्थाना ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका लगाई है कि एफआईआर रद्द की जाए. इस याचिका पर अभी निर्णय नहीं आया है. अस्थाना ने भी आलोक वर्मा पर आरोप लगाया कि वे मोइन कुरैशी मामले में जांच आगे नहीं बढ़ने दे रहे हैं. आलोक वर्मा ने 9 जनवरी को पद संभालते हुए उन अधिकारियों को वापस बुलाने का आदेश कर दिया जिनका कार्यवाहक निदेशक एम नागेश्वर राव ने 24 अक्तूबर 2018 को तबादला कर दिया था.

गुजरात काडर के आईपीएस ए के शर्मा को वापस ज्वाइंट डायरेक्टर के पद पर ले आते हैं. एम नागेश्वर राव ने शर्मा को multi Disciplinary Monitoring Agency (MDMA) में भेज दिया था. पर्सनल विभाग में भेजे गए डीआईजी अनिश प्रसाद को फिर से सर्वेलांस यूनिट में लाया जाता है. डीआईजी एम के सिन्हा को भी वापस लाने के आदेश करते हैं. सिन्हा ने ही सुप्रीम कोर्ट में आरोप लगाया था कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अदित डोवाल अस्थाना के मामले में दखल दे रहे हैं. अंडमान भेज दिए गए डीएसपी ए के बस्सी की भी दिल्ली मुख्यालय में वापसी होती है.

अब आलोक वर्मा के इन आदेशों का क्या होगा. दो दिन में 18 तबादले कर दिए. कई अफसरों ने तबादले के बाद भी ज्वाइन नहीं कर सके थे. खासकर अजित डोवाल पर दखल देने के आरोप लगाने वाले एम के सिन्हा ने भी ज्वाइन करने से इंकार कर दिया. फिर उन्हें एक नए पद पर तबादला का आदेश होता है. तीन महीने बाद ये लोग फिर से दिल्ली मुख्यालय बुलाए गए हैं, क्या अब ये फिर से वापस कर दिए जाएंगे. वर्मा ने 18 तबादले किए हैं. उनके फैसले के खिलाफ डीएसपी देवेंद्र कुमार ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका डाली है कि इन फैसलों पर रोक लगाई जाए. इस पर सुनवाई शुक्रवार को होनी है. माना जा रहा था कि इन फैसलों से वर्मा संकेत दे रहे थे कि वे सरकार से टकरा रहे हैं.

लेकिन क्या वे ऐसा करते हुए वर्मा सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना को लागू नहीं कर रहे थे जिसमें कोर्ट ने कहा है कि सीबीआई का प्रमुख खासकर डायरेक्टर को ईमानदारी और आज़ादी का एक रोल मॉडल होना चाहिए. ऐसा व्यक्ति ही सभी प्रकार के बाहरी नियंत्रणों और दखलंदाज़ियों से संस्था की स्वायत्तता सुनिश्चित कर सकता है. इसके लिए ज़रूरी है कि सभी प्रकार की संस्थाओं को सीबीआई डायरेक्टर के काम में दखल देने से रोका जाए. जब कल्पना यह है कि सीबीआई का निदेशक ईमानदार होगा और सभी प्रकार के बाहरी दबावों से मुक्त होकर स्वतंत्र फैसले लेगा तब यह कैसे कहा जा सकता है कि आलोक वर्मा सरकार से टकरा रहे थे. बहरहाल हाई पावर कमेटी ने आलोक वर्मा का तबादला कर दिया है. 31 जनवरी को वर्मा रिटायर होने वाले हैं. राकेश अस्थाना अभी छुट्टी पर हैं. उनका क्या होगा, साफ नहीं है. राहुल गांधी ने ट्वीट किया था कि सरकार वर्मा को हटाने की जल्दबाज़ी कर रही है क्योंकि भय है कि कहीं वर्मा रफाल मामले में जांच के आदेश न कर दें. अपने हटाये जाने के निर्णय तक वर्मा ने ऐसा कुछ नहीं किया. मई 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने ही सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता कहा था. जनवरी 2019 में आप तय करेंगे कि इस पिंजरे में क्या हो रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जिस सीवीसी की रिपोर्ट के आधार पर तबादला कर दिया उसे तो रोक दिया मगर उस आधार पर फैसला लेने का अधिकार चुनाव समिति पर छोड़ दिया. उसी रिपोर्ट के आधार पर फैसला हुआ होगा जिसकी मांग मल्लिकार्जुन खड़गे ने की थी. नीता शर्मा ने कहा कि इस तरह से कभी सीबीआई निदेशक को नहीं हटाया गया है. नीता ने बताया कि नए प्रमुख के चुनाव के सरकार ने 20 अफसरों का पैनल बना लिया है जिनमें से किसी एक को प्रमुख चुना जाएगा. सीवीसी के पास अस्थाना की भी शिकायत है जो आलोक वर्मा ने की थी. उस शिकायत का क्या होगा. आलोक वर्मा 36 घंटे के भीतर हटा दिए गए हैं.

आपको याद होगा जब आलोक वर्मा ने राकेश अस्थाना के खिलाफ एफआईआर करने के आदेश दिए थे तब आधी रात के बाद मुख्यालय को घेरवा कर नए कार्यवाहक निदेशक नागेश्वर राव को चार्ज लेने के लिए भेजा जाता है. वर्मा को छुट्टी पर भेज दिया जाता है. आज फिर से आलोक वर्मा हटा दिए गए. बस पिछली बार आधी रात के बाद हटाए गए और इस बार आधी रात के पहले हटा दिए गए.

एक निदेशक को हटाने की इतनी जल्दी क्या थी, ऐसा क्या हो गया कि जिस आलोक वर्मा को सलेक्ट कमेटी ने चीफ बनाया उसी ने रिटायरमेंट से 21 दिन पहले हटा दिया. इस 21 दिन में एक निदेशक क्या कर सकता था. ये सब सवाल गूंजते रहेंगे मगर दिल्ली रात को जब फैसले लेती है तो तारों को देखकर रोशनी का अंदाज़ा नहीं करना चाहिए. रात से ज़्यादा कहानियां अब लंबी हो जाएंगी. बातें घूमती रहेंगी. सवाल का जवाब क्या मिलेगा जिसके बारे में सीबीआई ने खुद कोर्ट में कहा है कि यह वसूली का अड्डा बन गया था.

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