आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश को हमेशा से संवेदनशील राज्य माना जाता रहा है. पिछले कुछ दशकों से यहां पर बनी सरकारों पर पक्षपात रवैया अपनाने और कानून व्यवस्था को ठीक से नहीं संभाल पाने के आरोप लगते रहे हैं. पिछली सरकार के हालिया चुनाव में हार के प्रमुख कारणों में एक कारण राज्य में कानून व्यवस्था को ठीक से लागू नहीं कर पाना भी अहम था. कई बार तो ऐसा लगा कि सार्वजनिक तौर पर संगीन अपराधों के मामलों में भी पुलिस अपने का सांवैधानिक और कानूनी दायित्वों को निभाने में तत्पर नहीं है. यहां तक की राजनीतिक बिरादरी के लोग भी जिनका की सीधा सरोकार जनता से होना चाहिए वह भी कुछ मामलों में चुप रहे और जनता लगातार प्रताड़ित होती रही. राज्य में सत्ता में बदलाव का कारण बनी ऐसी स्थिति में अब राज्य की कमान प्रचंड बहुमत से जीत कर आने वाली पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) या कहें बीजेपी ने एक योगी के हाथ में दे दी है.
सनातन धर्म में एक योगी स्वयं को सार्वजनिक जीवन के झंझावतों से दूर कर ईश्वर भक्ति में लीन बताया जाता है. एक योगी का किसी से लगाव नहीं रह जाता और न किसी प्रकार से लालच की उम्मीद रह जाती है. यह अलग बात है कि कथित तौर पर कुछ योगी अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए राजनीति को एक माध्यम के रूप में अपनाते हैं और ऐसे में बीजेपी में उन्हें राजनीति का सबसे ज्यादा अवसर मिलता रहा है. बीजेपी में ऐसे योगी विधानसभा और संसद का रास्ता तय कर चुके हैं. अब पहली बार है कि गेरुआ वस्त्रधारी एक योगी देश में किसी सूबे का मुखिया है और यह सूबा देश में राजनीतिक दृष्टि से सबसे अहम भी है और कानून व्यवस्था की नजर में सबसे चुनौतीपूर्ण भी है. देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार और राज्य में योगी आदित्यनाथ की सरकार है. दोनों ही सरकारें बीजेपी की हैं और दोनों को ही लोगों को खासी बहुमत से जिताया है.
देखा जाए तो देश को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में एक योगी ही चला रहा है और देश के सबसे बड़ी जनसंख्या वाले राज्य में एक योगी सत्ता के शीर्ष पर है. यहां से यह तो तय है कि एक पीएम और एक मुख्यमंत्री पहली बार पल-पल की तुलना होना लोगों के लिए चर्चा का विषय बना रहेगा. पीएम मोदी जहां कड़क मिजाज के लिए जाने जाते हैं वहीं योगी आदित्यनाथ अभी तक तो केवल फायरब्रैंड नेता की छवि में कैद होकर रह गए हैं. पीएम मोदी एक कुशल प्रशासक के तौर पर गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर स्थापित होने के बाद पीएम बने वहीं योगी आदित्यनाथ को सामने अपने को कुशल प्रशासक साबित करने की सबसे कठिन परीक्षा का सामना करना है.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि योगी आदित्यनाथ की अपने संसदीय क्षेत्र में लोकप्रियता किसी भी मायने में कम नहीं है. केवल के पीठ के महंत के नाते ही नहीं उन्होंने वहां पर विकास के कामों को धरातल पर उतारा है और इस बात का प्रमाण हर चुनाव में उनकी जीत का अंतर बढ़ने से देखने को मिल जाता है. प्रशासन में आप योजनाओं को केवल लागू ही करते हैं जरूरत के हिसाब से अनुमति के बाद योजनाओं में बदलाव लाते हैं और जब आप शासन में होते हैं तो योजनाएं बनाना सबसे अहम काम हो जाता है. फिर उसके लागू करवाने की जिम्मेदारी वहन करना, यानि आपकी विचारधारा जमीन तक पहुंचे और उसके हर समाज, हर वर्ग के अंतिम व्यक्ति तक वह पहुंचे यह सुनिश्चत करना सबसे अहम हो जाता है.
योगी आदित्यनाथ की सरकार अब दो दिन की हो चुकी है. राज्य में दो दिनों में दो हत्याएं हो चुकी हैं. एक हत्या राजनीतिक हत्या बताई जा रही है. यह एक प्रकार से योगी आदित्यनाथ के चुनौती है कि उनके सत्ता में आते ही राज्य के बेखौफ अपराधियों ने उन्हें ललकारा है. इस घटना को गंभीरता से लेने के बजाय राज्य का मंत्रिपरिषद अभी लाल बत्ती के मजे लेने में व्यस्त नजर आ रहा है. सोमवार को लगभग भी मंत्रियों ने राज्यपाल से शिष्टाचार भेंट की. परिचय करवाया गया और ऐसा लग रहा था कि राजभवन के बाहर खड़े मीडिया के सामने योगी के में मंत्री अपने को वीआईपी दर्शाने में व्यस्त हों. मीडिया का हुजूम खड़ा था एक एक कर लालबत्ती लगी कारें आती गईं. कारें आईं और चली जाती तो ठीक, लेकिन मीडिया प्रेमी बीजेपी के नेताओं को अब याद रखना चाहिए कि वह मंत्री जिनपर केवल मीडिया में एयरटाइम खाने का काम ही नहीं बचा है. देखने में आया कि राजभवन से मंत्री अपनी लाल बत्ती कार से बाहर आ रहा है और मीडियावालों की भीड़ देखकर रुक जाता है. जब तक मीडिया वाले जैसे जाने को न कहें तब तक पूरे इतमिनान से मंत्री जी लाल बत्ती कार में बैठकर बाइट दे रहे थे. हालात तो यह थे कि मंत्री जी यह दिखाने में भी पीछे नहीं थे कि उन्हें राज्यपाल राम नाइक के निवास से क्या भेंट मिली है. जब भीतर कोई खास बातचीत ही नहीं हुई थी तब एक के बाद एक मंत्री मीडिया से बातचीत क्यों कर रहा था यह समझ से परे था. लगभग सभी ने यह बताया कि भीतर केवल चाय नाश्ता हुआ और राज्यपाल से परिचय हुआ. राज्य में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा दो उपमुख्यमंत्री हैं. दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्य. इनके अलावा 44 मंत्रियों की फौज भी है. समाजवादी पार्टी सरकार के दौरान राज्य के पुलिस प्रमुख नियुक्त किए गए जावीद अहमद का हत्या पर दिया गया बयान अपने आप में यह दिखा रहा था कि केवल उन्हें ही राज्य में कानून व्यवस्था की चिंता है. जबरन बड़बोलापन और वीवीआईपी कल्चर के दायरे से कब देश के नेता बाहर आते हैं और कब अपने को सामान्य नागरिक समझेंगे यह देश और देश का हर नागरिक देखने को तरस रहा है.
इन नेताओं और मंत्रियों को इस बात से सबक लेना चाहिए कि जहां पंजाब में कांग्रेस पार्टी की सरकार कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में बनी है और कैप्टन ने अपने अधिनस्थों को साफ कर दिया है कि कोई भी मंत्री लालबत्ती लगी कार में नहीं चलेगा वहीं यूपी के मंत्री अभी अपने वीवीआईपी बताने में ही लगे हैं. इन मंत्रियों के सामने केवल पंजाब की कांग्रेस सरकार का उदाहरण नहीं है, केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्रियों को भी देख सकते हैं. गैर जरूरी बात पर मंत्री बोलते ही नहीं है, कई बार तो ऐसा लगता है कि मीडिया पीछे पड़ा है और मंत्री जी बिना बोले ही अपना रास्ता नाप लेते हैं.
सबसे बड़ी आश्चर्य की बात तो यह रही है कि दोनों हत्याओं पर किसी भी मीडिया वाले ने कोई सवाल जवाब नहीं किया. तो आखिर मीडिया का मेला लगा क्यों था. हो सकता है कि मीडिया अपने को समझदार दिखाने में व्यस्त हो कि अभी मंत्रालयों का बंटवारा नहीं हुआ है इसलिए सभी को कुछ स्कोप मिलता है जवाबदेही से बचने का. लेकिन मीडिया के सामने तो ऐसा कोई प्रश्न नहीं था. देखा जाए तो किसी भी कैबिनेट मंत्री के सामने भी यह छूट उपलब्ध नहीं है कि उसे अभी किसी मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी नहीं गई है.
एक बात जो स्पष्ट नजर आ रही थी कि राज्य में ही मंत्रिमंडल में भी योगी आदित्यनाथ को कुछ अराजकता का सामना करना पड़ सकता है. मंत्रिमंडल में कुछ मंत्री ऐसे हैं जो अपने को केंद्रीय नेतृत्व के करीब पाते हैं और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए ये लोग टेढ़ी खीर साबित होने जा रहे हैं. यदि जल्द ही योगी आदित्यनाथ ने ऐसे मंत्रियों को काबू नहीं किया तो उन्हें भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है और यहां पर वह योगी नहीं बन पाएंगे कि जिम्मेदारी छोड़ कर चले जाएं.
राज्य के आला अधिकारियों के साथ बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सभी को बीजेपी का संकल्प पत्र थमा दिया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुरुआत तो ठीक की है, अपने अधिकारियों और मंत्रियों से अपनी संपत्ति का ब्योरा देने को कहा है, लेकिन इस प्रकार के कदम भ्रष्टाचार को रोकने में कॉस्मेटिक कदम ही साबित होते रहे हैं. सभी को यह आदेश दे दिए गए हैं कि राज्य में किस दिशा में सरकार काम करेगी और उनका मार्ग किस प्रकार तय होगा. लेकिन अपने मंत्रियों को अभी योगी यह निर्देश नहीं दे पाए हैं. राज्य बड़ा है और चुनौतियां भी कई हैं जिनका समाधान एक दिन में संभव नहीं है. लेकिन दृढ़ निश्चय के साथ सरकारें आगें बढ़ें तो जनता को लाभ मिलना और राज्य और देश का विकास पथ पर अग्रसर होना तय है.
जरूरी यह है कि लोगों की उम्मीदों पर सरकारें खरी उतरें. पीएम नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं में बार बार वादा किया था कि राज्य के किसानों का कर्ज माफ किया जाएगा. पहले वह 14 दिन की बात कहते रहे फिर कहने लगे कि पहली कैबिनेट बैठक में ही यह निर्णय ले लिया जाएगा. अब समय आ गया है कि जनता योगी आदित्यनाथ की सरकार से पूछे कि कैबिनेट की वह पहली बैठक कब होगी और राज्य के लिए कर्ज माफी का सबसे बड़ ऐलान कब होगा. क्या योगी पीएम मोदी द्वारा जनता से किया वादा भूल जाएंगे...
This Article is From Mar 21, 2017
यूपी के लोगों को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कई उम्मीदें... 'ऐसे कैसे पूरी होंगी जनता की अपेक्षाएं'
Rajeev Mishra
- ब्लॉग,
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Updated:मार्च 21, 2017 08:12 am IST
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Published On मार्च 21, 2017 07:41 am IST
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Last Updated On मार्च 21, 2017 08:12 am IST
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