‘बधाई हो कामरेड, आपकी पार्टी कांग्रेस कामयाब रही।’ मैंने शिष्टाचारवश विशाखापटट्नम एयरपोर्ट पर खड़े उस मार्क्सवादी नेता से कहा।
‘जी शुक्रिया’ वह कहते हैं लेकिन खुश दिखाई नहीं देते। फिर थोड़े सा रुककर नाराज़ सुर कहते हैं, ‘आपको पता है मुझे सेंट्रल कमेटी से हटा दिया गया है।’
विशाखापट्टनम से दिल्ली आ रही एयर इंडिया की फ्लाइट में सोमवार को ज्यादातर यात्री या तो पत्रकार थे या फिर कम्युनिस्ट नेता। सीपीएम के नए महासचिव सीताराम येचुरी को उनके कामरेड और तमाम पत्रकारों के अलावा एयरपोर्ट पर कर्मचारी भी बधाई देते दिखे। येचुरी सीपीएम के पांचवें महासचिव बने हैं जिनके सामने वजूद खत्म होने के गंभीर संकट से जूझ रही इस वामपंथी पार्टी को दोबारा ज़िंदा करने की चुनौती है।
लेकिन जब सीपीएम के नए महासचिव येचुरी हर किसी से बधाई स्वीकार कर रहे थे तो उस वक्त कोई 45 साल से पार्टी का झंडा उठाने वाला ये कामरेड मेरे सामने अपना दुखड़ा रो रहा था। सुनीत चोपड़ा का चेहरा हमेशा मुझे कार्ल मार्क्स जैसा लगता है। वो एक कला समीक्षक हैं। अपने बेबाक विचारों और खुली निडर राय के लिए पार्टी में जाने जाते हैं। मुझे हैरत हुई कि ऐसे निर्णायक वक्त जब पार्टी अपनी कमियों पर मंथन कर रही है तो चोपड़ा जैसे कामरेड को केंद्रीय कमेटी से हटा दिया गया है।
‘आपको हटाने की कोई खास वजह? शायद आप अपने कला क्षेत्र से जुड़े काम में व्यस्त रहना चाहते हैं।’ मैं कहता हूं।
‘नो नो, सिम्प्ली वैंडेटा।’ (नहीं नहीं, बस केवल बदले की भावना) वह कहते हैं और मैं हक्का बक्का रह जाता हूं। आमतौर पर कामरेड मीडिया वालों से खुलकर कभी इस तरह पार्टी के खिलाफ नहीं बोलते।
‘पर आखिर क्यों?’
‘शायद उन्हें चापलूसी करने वाले पसंद हैं।’ चोपड़ा किसी तरह का संयम बरतने के मूड में नहीं दिखते।
‘कब पार्टी में शामिल हुये थे आप सर’
‘1972 में’
‘ओह। तब तो मैं पैदा भी नहीं हुआ था।’ मेरे मुंह से अनायास ही निकल जाता है।
‘सोच लीजिये।’ वह कहते हैं।
क्या आप हमसे ऑफ द रिकॉर्ड बात कर रहे हैं या फिर हम इसे लिख सकते हैं। एक बड़े अंग्रेज़ी अख़बार के साथी कहते हैं।
‘नहीं नहीं आप लिखिये। मैं खुलकर बोल रहा हूं।’ हमारी जेब से कलम और नोटबुक हाथ में आ जाती है।
‘क्या वजह हो सकती है आपको हटाने की।’
‘ये लोग उनको पसंद नहीं करते जो इनके खिलाफ बोलते हैं। मैं पिछले 10 साल से लगातार पार्टी को उसकी कमियां गिना रहा हूं। याद है न आपको?’
मुझे याद आया कि नंदीग्राम, सिंगूर और बंगाल में पार्टी के गिरते जनाधार और केरल में अंतर्कलह पर जब सीपीएम के नेता चुप रहते या मीडिया वालों से पार्टी की कमियों को छुपाते हुए बयानबाज़ी करते तो सुनीत चोपड़ा बेबाक राय रखते थे और मीडिया के आगे भी सच स्वीकारने में नहीं डरते।
आज सुनीत चोपड़ा विशाखापट्टनम एयरपोर्ट पर लोगों से मिल रहे और औपचारिकतावश हंसबोल कर बात कर रहे थे लेकिन क्या उनका हश्र सीपीएम के उन नेताओं जैसा ही होने जा रहा है जो पार्टी की हवा के खिलाफ बोलने की सजा पाते हैं। कई साल पहले सैफुद्दीन चौधरी और बाद में सोमनाथ चटर्जी को पार्टी की सोच से अलग बोलने या फरमान न मानने की सज़ा भुगतनी पड़ी थी।
सुनीत चोपड़ा एक फलते फूलते परिवार के नौजवान थे जो इंग्लैंड में पढ़ाई कर भारत आए। मैंने हमेशा उनको बहुत साधारण कुर्ते पायजामे और हवाई चप्पल में ही देखा। मुझे याद आया बहुत पहले उन्होंने मुझे बताया था कि उन्होंने कभी पार्टी से कुछ नहीं लिया। बस उसे सब कुछ देने की ही सोची। वह 20 साल से सीपीएम की सेंट्रल कमेटी में हैं और आज वह सीपीएम के सबसे बड़े नेताओं में से एक प्रकाश करात पर खुद को हटाए जाने का आरोप लगा रहे थे। वह कहते हैं कि उन्हें करात की हां में हां मिलाने की सजा भुगतनी पड़ी। मैंने 24 घंटे पहले ही सीपीएम के नये महासचिव येचुरी से सुना था कि पार्टी आत्म आलोचना कर रही है और उसका नया चेहरा दिखेगा। लेकिन क्या सुनीत चोपड़ा जैसे लोगों के लिये उसमें जगह नहीं होगी।
‘कामरेड पार्टी की सेंट्रल कमेटी में आपको वापस भी तो लिया जा सकता है।’ मैं उन्हें दिलासा देने की कोशिश करता हूं। ‘हरगिज नहीं। मैं किसी के रहमो करम पर जीना नहीं चाहता। चापलूसी करने से अच्छा तो मर जाना है।’ चोपड़ा कहते हैं और विमान के दरवाजे की ओर चले जाते हैं।
This Article is From Apr 20, 2015
सीपीएम की सेंट्रल कमेटी से निकाले गए सुनीत चोपड़ा ने कहा, 'चापलूसी करने से अच्छा है मर जाना'
Hridayesh Joshi
- Blogs,
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Updated:अप्रैल 21, 2015 09:13 am IST
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Published On अप्रैल 20, 2015 22:04 pm IST
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Last Updated On अप्रैल 21, 2015 09:13 am IST
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