अशोक गहलोत को अपनी पार्टी की अवहेलना करने के लिए लगभग दंडित किया जाना था, लेकिन राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे उनके एकमात्र शाश्वत प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट संभावनाएं बनाए हुए हैं.
छह दिन पहले, 45 वर्षीय सचिन पायलट निष्क्रिय-आक्रामक से आक्रामक में परिवर्तित हो गए. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि जो लोग राजस्थान में अनुशासनहीनता के दोषी हैं, उन्हें परिणाम भुगतने की जरूरत है. उन्होंने यह भी कहा कि उनके गृह राज्य में "अनिर्णय का माहौल" खत्म होना चाहिए. इस बीच, अशोक गहलोत "युवा नेताओं की अंतहीन महत्वाकांक्षाओं" के बारे में लगातार बयान देते रहे हैं और उन्हें अपनी बारी का इंतजार करने के लिए कहते आए हैं.
सचिन पायलट चार साल से ज्यादा समय से 71 वर्षीय अशोक गहलोत को बतौर मुख्यमंत्री रिप्लेस करने के लिए अपने मौके का इंतजार कर रहे हैं. अशोक गहलोत पहली बार 47 वर्ष की उम्र में राजस्थान के मुख्यमंत्री बने थे. राज्य में विधानसभा चुनाव होने में एक साल से ज्यादा का समय बचा है. ऐसे में समय तेजी से निकल रहा है. गहलोत ने खुद बहुत सारे संकत दिए हैं कि वह अपना पद नहीं छोड़ेंगे. खासकर सचिन पायलट के लिए तो बिल्कुल भी नहीं... यह बात और है कि लगभग छह सप्ताह पहले उन्होंने राजस्थान में पार्टी के 107 विधायकों में 80 से अधिक की एक बैठक बुलाई थी. ये मीटिंग कांग्रेस आलाकमान को यह बताने के लिए की गई थी कि अशोक गहलोत को पार्टी का अध्यक्ष बनाया जा सकता है. अगर ऐसा होता है तो राजस्थान में बेशक नया मुख्यमंत्री होगा, लेकिन वो जाहिर तौर पर सचिन पायलट नहीं होंगे.
कांग्रेस का टॉप बॉस बनना अशोक गहलोत की 'विश लिस्ट' में नहीं था. यह एक ऐसी स्थिति थी, जिसे लेकर गांधी परिवार गहलोत पर दबाव डाल रहा था. इसका तोड़ निकालते हुए अशोक गहलोत ने डबल फायदे का शिगुफा छोड़ दिया था. उन्होंने संकेत दिया था कि अगर उन्हें पार्टी की कमान संभालने के लिए चुना जाता है, तो भी वह मुख्यमंत्री पद पर बने रहेंगे. यानी आलाकमान उन्हें मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की अनुमति दे. जब राहुल गांधी ने इसे सार्वजनिक रूप से खारिज कर दिया, तो उन्होंने एक और प्रस्ताव दिया कि कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में वो तय करेंगे कि उनकी जगह राजस्थान का नया सीएम कौन होगा (और सचिन पायलट उनकी लिस्ट या शॉर्टलिस्ट में नहीं थे).
उस समय सचिन पायलट ने डेप्लोमेटिक बने रहने की कोशिश की. कम से कम सार्वजनिक रूप से तो वो यह कहते हुए देखे गए कि राजस्थान में क्या होगा, इसका फैसला पार्टी आलाकमान ही करेगी. अशोक गहलोत को गांधी परिवार से दो-तीन दिन बेरुखी का भी सामना करना पड़ा. फिर मल्लिकार्जुन खरगे का नाम अध्यक्ष के रूप में उभरकर आया. गहलोत ने अपने समर्थकों की जिद के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांग ली, और सचिन पायलट ने इंतजार करना ही बेहतर समझा. लेकिन लंबे इंतजार के बाद पिछले हफ्ते उनकी नाराजगी सामने आ गई, जो अमूमन उनके चरित्र से बाहर की चीज है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के मुताबिक, सचिन पायलट के लिए परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं. वर्तमान में अशोक गहलोत कांग्रेस के लिए गुजरात चुनाव की कमान संभाल रहे हैं. ये एक ऐसी चुनौती जो शायद आसान नहीं है. इसके दो कारण हैं. पहला- अरविंद केजरीवाल ने राज्य में मुख्य विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस की जगह ले ली है. ऐसे में गहलोत की भूमिका के बारे में समझा जा सकता है. दूसरा- कांग्रेस के पास कथित तौर पर फंड की कमी है. यहां तक कि राज्य के चुनाव प्रचार करने के लिए भी पर्याप्त बजट नहीं है. पार्टी के गुजरात असाइनमेंट का मतलब यह नहीं है कि राजस्थान फंड के लिए खुला है. लेकिन, उसके दैनिक और फ्रंट पेज अखबारों में विज्ञापन, तस्वीरें, उनकी सरकार की विभिन्न योजनाओं का प्रचार करते हैं. दरअसल, यह एक बॉस की चाल है. उधर, सचिन पायलट इस समय हिमाचल प्रदेश में जमकर प्रचार कर रहे हैं. वो हर दिन तीन-चार सभाओं में बोल रहे हैं. ऐसा करके पायलट यह संकेत दे रहे हैं कि वह कांग्रेस पार्टी के प्रति आज्ञाकारी और प्रतिबद्ध हैं.
लेकिन जब राहुल गांधी की "भारत जोड़ो यात्रा" लगभग चार सप्ताह में राजस्थान में प्रवेश करेंगी, तो अलग-अलग समस्याएं आपस में टकराएंगी. इस मार्च में राहुल गांधी उन दो राज्यों में से एक में काफी समय बिताएंगे, जिन पर पार्टी की अभी सरकार है. ऐसे में सचिन पायलट और अशोक गहलोत को एक साथ अच्छा दिखना होगा. कम से कम सार्वजनिक रूप से...और उनसे कई मौकों पर राहुल गांधी के साथ दिखाई देने की उम्मीद की जानी चाहिए.
सचिन पायलट कैंप को अशोक गहलोत डर्टी ट्रिक्स विभाग की ओर से झूठे फ्लैग ऑपरेशन की आशंका है. वे नहीं चाहते कि राहुल गांधी को काले झंडे दिखाए जाने से यात्रा की छवि खराब हो और ये संदेश जाए कि पायलट गहलोत की जगह लेंगे.
सचिन पायलट का गहलोत खेमे को "अनुशासनहीन" कहना कई मायनों में विडंबना है. 2020 में यही युवा नेता था, जिसने समर्थकों के साथ पार्टी से बाहर निकलने के खतरे को भांपते हुए मुख्यमंत्री को प्रमोशन के लिए मजबूर करने की कोशिश की. ऑफर को उन्होंने दिल्ली के पास एक रिसॉर्ट में हफ्तों तक होल्ड पर रख दिया. हालांकि, हालात बदलने पर सचिन पायलट के पास अपनी धमकी का फायदा उठाने का मौका नहीं रहा. इसलिए उन्होंने राजस्थान में उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में अपनी भूमिका खो दी और वापस लौट आए.
कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे सचिन पायलट और अशोक गहलोत दोनों के लिए कड़े अध्यक्ष साबित हो रहे हैं. दोनों ने खरगे के साथ अलग-अलग बैठकें की हैं और बिना किसी आश्वासन के चले गए हैं. सचिन पायलट खेमे के सूत्रों का कहना है कि उन्होंने खरगे को यह याद दिलाने की कोशिश की कि गांधी परिवार ने उनसे वादा किया था कि मुख्यमंत्री का कार्यकाल अशोक गहलोत और उनके बीच विभाजित किया जाएगा; लेकिन ऐसा नहीं किया गया है.
सचिन पायलट की हताशा तब प्रदर्शित हुई, जब हाल ही में उन्होंने कहा कि राजस्थान में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में पीएम द्वारा अशोक गहलोत की प्रशंसा करना कुछ गड़बड़ है. हालांकि, इस बयान को पार्टी के विभिन्न नेताओं ने खारिज कर दिया और गहलोत का बचाव किया.
सचिन पायलट के एक करीबी नेता ने मुझसे कहा, "हम एक मगरमच्छ का शिकार करने की कोशिश कर रहे हैं, मुर्गे का नहीं". "इसके अलावा सचिन पायलट के पास अब कोई आधिकारिक पद नहीं है, तो अब वे उनसे क्या छीन सकते हैं? कांग्रेस को चिंता करनी चाहिए - उनके पास अब कुछ भी दांव पर नहीं है. तृणमूल और आप सहित कई पार्टियां उन्हें पाकर रोमांचित होंगी. हालांकि, पायलट कांग्रेस में रहना चाहते हैं, लेकिन ऐसा नहीं कर सकेंगे. क्योंकि उसकी राजनीतिक पूंजी हर रोज खत्म हो रही है. वह अपना गुट खो रहे हैं. एक नेता कमजोर और असहाय नहीं दिख सकता."
जब अशोक गहलोत के खेमे ने राजस्थान में अपना प्रदर्शन दिया, तो पार्टी ने कहा था कि वह "एक या दो दिन में राज्य के परिणामों पर फैसला करेगी. एक महीने बाद, बदलाव का कोई संकेत नहीं है. कोई आश्चर्य नहीं कि सचिन पायलट प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं. भले ही कोई इसकी तलाश में न हो.
(स्वाति चतुर्वेदी एक लेखिका और पत्रकार हैं, उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस, द स्टेट्समैन और द हिंदुस्तान टाइम्स के साथ काम किया है. ये लेखक के निजी विचार हैं.)