विज्ञापन
This Article is From Jun 04, 2016

बाढ़ का आगा-पीछा 2 : झमाझम बारिश का फायदा उठाने का कोई इंतजाम नहीं

Sudhir Jain
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 04, 2016 19:14 pm IST
    • Published On जून 04, 2016 19:12 pm IST
    • Last Updated On जून 04, 2016 19:14 pm IST
अपने देश का क्षेत्रफल 32 करोड़ हैक्टेयर है। औसत बारिश 117 सेंटीमीटर होती है। यानी हर साल औसतन चार हजार अरब घन मीटर पानी बरसता है। संख्या हजारों अरब होने के कारण इसी मात्रा को चार हजार घन किलोमीटर कहा जाता है। अगर सरकारी मौसम विभाग ने इस साल ईमानदारी से और विश्वसनीय प्रणाली से हिसाब लगाया है तो अनुमान है कि इस बार सामान्य से नौ फीसद अतिरिक्त पानी बादलों के झमाझम बरसने से मिलेगा। इस तरह इस साल हमें तीन सौ साठ घन किलोमीटर पानी अतिरिक्त मिलने जा रहा है। लेकिन अफसोस यह कि सारा का सारा बहुमूल्य पानी हम अगले साल पड़ने वाले सूखे के दिनों के लिए रोककर नहीं रख पाएंगे। इस पानी को भरकर रखने के लिए बड़े बर्तन भांड़े यानी बड़े बांध कम पड़ जाएंगे। जो 15 लाख पुराने तालाब पहले से हमारे पास थे वे गाद-मिट्टी और शहरों से निकले कचरे से भर गए हैं। उनमें थोड़ा सा ही पानी भर पाएगा।  

पानी बेकार जाने के अफसोस से ज्यादा बाढ़ का डर बढ़ा
अफसोस इतना ही नहीं है कि इस साल यह पानी बेकार जाने वाला है बल्कि बड़ा भारी खतरा यह है कि इतना सारा पानी नदियों में बाढ़ की तबाही मचाता हुआ समुद्र में जाएगा। यह बात भी देखने की है कि मौसम विभाग का अंदाजा नौ फीसद ज्यादा बारिश का है। अनुमान में चार फीसद की तकनीकी गलती का जोखिम भी है। यानी इस साल बारिश सामान्य से तेरह फीसद ज्यादा हो सकती है। इसका मतलब है कि इस साल पांच सौ बीस घन किलोमीटर ज्यादा पानी बरस  पड़ने का भी अंदेशा है। अब यह मौसम विभाग के सांख्यिकी विशेषज्ञ ही बता पाएंगे कि इस हालत में मानसून के चार महीनों में कितनी बार बादल फटने के हादसे होंगे।  देश के मौजूदा जलविज्ञानियों, संबधित भूगोल विशेषज्ञों, अर्थशास्त्रियों को हिसाब लगाना शुरू कर देना चाहिए कि सूखे से अर्थव्यवस्था पर पड़े बोझ के बाद अब बाढ़ से कितना बोझ बढ़ने का अंदेशा है और उसके प्रबंधन के लिए हमने क्या सोचा है।

बाढ़ से 20 हजार करोड़ का नुकसान होने का अनुमान
बारिश का सरकारी अनुमान अगर सही निकला तो बाढ़ से जो प्रत्यक्ष नुकसान होगा उसका मोटा-मोटा आंकड़ा कम से कम 20 हजार करोड़ रुपये बैठेगा। अर्थव्यवस्था पर कुल कितना बोझ पड़ेगा, इसका अंदाजा उद्योग व्यापार मंडल बाढ़ के बाद लगाएंगे।  जानमाल में यह सिर्फ माल के नुकसान का अनुमान है। जनहानि और पशुधन के नुकसान के अनुमान की बात करना इस समय अच्छा नहीं लगेगा। अनुमानित माली नुकसान यानी 20 हजार करोड़ रुपये में टिहरी जैसे दो बांध बनते हैं। चलिए, बांधों का हम कई कारणों से अपनी पुरानी सरकारों का खूब विरोध कर चुके हैं सो उस कहे पर फिलहाल लीपापोती करने में हिचक है। लेकिन इन बीस हजार करोड़ रुपये से हम कम से कम 20 हजार प्राचीन, मुगलकालीन, ब्रिटिश कालीन तालाबों, झीलों को फिर से जिंदा कर सकते थे। आजादी के बाद जितने भी बांध बने हैं उनकी गाद-मिट्टी निकालकर भी जल संचयन क्षमता बढ़ा सकते थे।

बाढ़ प्रबंधन से सूखे की समस्या भी सुलटेगी
बारिश का पानी सलीके से रोकने का इंतजाम हो तो हर साल मानसून के बाद के आठ महीने सिंचाई के पानी का इंतजाम होते देर नहीं लगेगी। यानी आजकल सूखे के कारण हर साल औसतन पचास हजार करोड़ का जो प्रत्यक्ष नुकसान होने लगा है वह भी बचेगा। कुल मिलाकर सूखे और बाढ़ से हर साल सत्तर हजार करोड़ रुपये के नुकसान को हम अपने कुशल जल प्रबंधन से बचा सकते हैं। वैसे यह बात सन 1989 में इसी लेखक ने सीएससी की नेशनल फैलोशिप पर शोध करने के बाद अपनी रिपोर्ट में कही थी। इस रिपोर्ट को 'जनसत्ता' ने छह शोध परक आलेखों के तौर पर छापा था। एक रिपार्ट का शीर्षक ही यही था कि एक ही साल में बाढ़ और सूखा।

बाढ़ और सूखा राहत पर मजबूरन दस हजार करोड़ खर्च
अभी सूखा और बाढ़ राहत के नाम पर किनमिनाते हुए और राजनीतिक मजबूरी में केंद्र सरकार को दस हजार करोड़ रुपये सूखा प्रभावितों और बाढ़ प्रभावितों को बांटना ही पड़ते हैं। मरी हालत में चार-पांच हजार करोड़ रुपये राज्यों के भी खर्च हो जाते हैं। इतनी रकम अगर ब्याज देने में खर्च  कर दें तो दो लाख करोड़ रुपये उधार हमें कोई भी धनी देश दे देगा। इस रकम से जल प्रबंधन की परियोजनाएं चालू हो सकती हैं। जहां तक दो लाख करोड़ के जुगाड़ का सवाल है तो दूसरे देश ही क्या हमारे आजकल बदल रहे देश में ही बड़े साहूकार नुमा सेठों की कोई कमी थोड़े ही है। जल परियोजनाएं ठेकेदारों के लिए कम आकर्षक नहीं होतीं। जो देशी-विदेशी ठेकेदार कंपनियां अभी हाईवे और स्मार्ट सिटी परियोजनाओं में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रही हैं उनके लिए जल परियोजनाएं, मौजूदा हाईवे और स्मार्ट सिटी की ठेकेदारी से ज्यादा आकर्षक होंगी।

(सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्‍त्री हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com