नीतीश की अब उत्तर प्रदेश और झारखंड पर निगाहें

नीतीश की अब उत्तर प्रदेश और झारखंड पर निगाहें

नीतीश कुमार की फाइल तस्वीर

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जनता दल ( यूनाइटेड ) का राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष बने दो महीने से अधिक हो गए लेकिन उन्होंने अपनी टीम का ऐलान अभी तक नहीं किया है। लेकिन पार्टी के दिल्ली से पटना तक सभी नेताओं को फ़िलहाल केवल उत्तर प्रदेश और झारखंड में सारा ध्यान केंद्रित करने का संदेश दिया गया है।

पार्टी के सूत्रों के अनुसार नीतीश कुमार ने उत्‍तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर में पिछले दिनों पार्टी की सभा में उमड़ी भीड़ से उत्साहित होने के बाद इस महीने की 29 तारीख को नोएडा के जेवर में शराब बंदी के मुद्दे पर एक और कार्यक्रम में भाग लेने की सहमति दी है। उसके बाद वह अगले महीने 16 जुलाई को प्रयाग के पास फूलपुर में पार्टी की एक सभा को संबोधित करेंगे।

झारखंड में सियासी दांव
इसके साथ ही झारखंड में भी नी‍तीश महिलाओं की संस्था के आमंत्रण पर शराब की खरीद-बिक्री पर प्रतिबंध और रघुवर प्रसाद सरकार की इस मुद्दे पर नकारात्मक भूमिका पर अपने अभियान को जारी रखेंगे। झारखंड में नीतीश कुमार के साथ झारखंड विकास मोर्चा के बाबूलाल मरांडी भी हर मंच पर दिखेंगे। इस पर बीजेपी के लोगों का आरोप है कि बाबूलाल के साथ अपने नए गठबंधन के कारण ही नीतीश कुमार ने झारखंड के सभी गांवों के नक़्शे सरकार को देने के बजाय मरांडी को सौंपे हैं ताकि झारखंड की राजनीति में उनकी साख बढ़े।  

यूपी का जटिल गणित
जनता दल  ( यूनाइटेड ) के नेताओं के अनुसार अब तक चार सभा को संबोधित करने के बाद उनका आकलन है कि नीतीश कुमार की अपील न केवल पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुर्मी बहुल क्षेत्रों और मतदाताओं तक सीमित है बल्कि गैर यादव और गैर चमार दलित समुदाय के लोगो में बिहार में उनके काम के कारण सहानुभूति है। हालांकि ये वोट और लोगों की भीड़ विधानसभा चुनावों में कितनी सीट में तब्दील हो पायेगी, पूर्व के अनुभव के आधार पर इस पर काफी सवालिया निशान खड़े होते हैं।

भारतीय जनता पार्टी ने अपने अध्‍यक्ष अमित शाह की सभा के माध्यम से इस अपील को कम करने की ठानी है। नीतीश का आने वाले कुछ महीनों में यही प्रयास होगा कि गैर यादव और गैर चमार जाति के वोटर को गोलबंद कर एक नई राजनीतिक शक्ति बनाया जाये। नीतीश के नजदीकी नेताओं का मानना है कि शराब पर पाबंदी की मांग एक बड़ा मुद्दा है जो इन जातियों की महिलाओं में पार्टी और नीतीश के प्रति सहानुभूति दर्शाता है। हालांकि उनका भी मानना है कि इसको वोट में तब्दील करना उतना आसान नहीं जितना दावा किया जाता है।        

कांग्रेस का आसरा
वहीं कुछ नेता अभी से मान कर चल रहे हैं कि नीतीश जितना भी हाथ पैर मार लें आखिरकार उत्‍तर प्रदेश में पैर पसारने के लिए उन्हें कांग्रेस पार्टी के साथ तालमेल कर चुनाव में उतरना होगा। नीतीश को मालूम है कि भले बिहार के परंपरागत उनके स्वजातीय वोटर का उत्‍तर प्रदेश में उनके प्रति आकर्षण हो लेकिन चुनाव जीतने के लिए वो वोट समूह कुछ चुनिंदा क्षेत्रों को छोड़कर काफी नहीं हैं। इधर बहुजन समाज पार्टी किसी के साथ तालमेल नहीं करती और समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव के साथ नीतीश का छत्तीस का आंकड़ा है। ऐसे में कांग्रेस के साथ जाने के अलावा पार्टी का उत्‍तर प्रदेश में कोई दूसरा रास्ता नहीं है।

मनीष कुमार एनडीटीवी इंडिया में एक्जिक्यूटिव एडिटर के पद पर कार्यरत हैं।

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