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This Article is From Jan 15, 2021

बीजेपी के बागियों द्वारा पेश की गई सीडी से बीएस येदियुरप्पा के लिए नए संकट की स्थिति

Swati Chaturvedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 15, 2021 20:59 pm IST
    • Published On जनवरी 15, 2021 20:47 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 15, 2021 20:59 pm IST

कैबिनेट विस्तार के तहत सात मंत्रियों को मंत्रिमंडल में शामिल करने के कुछ घंटों बाद ही कर्नाटक के 77 साल के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को "बेटों को लेकर विरोध" और "सीडी के जरिये ब्लैकमेल किए जाने" के आरोपों का सामना करना पड़ा. बीजेपी के ही कुछ वरिष्ठ नेताओं ने ये आरोप लगाए हैं. मंत्री न बनाए जाने से नाराजगी के बाद ये तेवर सामने आए हैं.

येदियुरप्पा के खिलाफ विद्रोही सुर कोई नई बात नहीं है. वास्तव में अपरिहार्य माने जा रहे कैबिनेट विस्तार को करीब 17 माह तक टाला गया. इस पर आखिरी मुहर लगी, जब मुख्यमंत्री ने असल में पार्टी के मुखिया समझे जाने वाले अमित शाह से एक पखवाड़ा पहले दिल्ली में मुलाकात की. ऐसे में जब असंतुष्टों ने गुरुवार को आलोचना शुरू की तो येदियुप्पा ने उन्हें दिल्ली जाने और अमित शाह से बात करने की नसीहत दी.

कैबिनेट विस्तार के लिए हरी झंडी ऐसे वक्त मिली थी जब बीएसवाई के नाम से गृह राज्य में मशहूर येदियुरप्पा के नेतृत्व में बीजेपी को हालिया उप चुनाव में दो ऐसी सीटों पर जीत मिली, जो कभी पहले पार्टी की झोली में नहीं रहीं. हालिया पंचायत चुनाव में भी बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया. 

बीजेपी के भीतर अंसतुष्टों में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के अलावा कांग्रेस और जेडीएस छोड़कर आए नेता भी शामिल हैं. उनके नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री बीआर पाटिल यतनाल हैं. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि बीएसवाई ने ऐसे नेताओं को आगे बढ़ाया है, जो उन्हें एक  "अश्लील" सीडी को लेकर ब्लैकमेल कर रहे हैं. अन्य नेताओं ने यह कह कर कामयाबी पा ली कि उनके पास बीएसवाई के पुत्र और उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी बीवाई विजयेंद्र के कथित तौर पर भ्रष्टाचार में शामिल होने के सबूत हैं. विजयेंद्र कर्नाटक में बीजेपी इकाई के उपाध्यक्ष हैं. 

दो दिन पहले, यतनाल अपने  इरादों को लेकर एकदम स्पष्ट दिखे. वे सार्वजनिक तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मामले में दखल देने और कर्नाटक में वंशवादी शासन को खत्म करने की अपील कर रहे थे. उनका स्पष्ट तौर पर इशारा बीएसवाई के दो बेटों विजयेंद्र (पार्टी में भूमिका) और राघवेंद्र (बीजेपी सांसद) की ओर था.

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इसमें कोई संयोग नहीं है कि यतनाल और कुछ अन्य असंतुष्ट नेता बीएल संतोष के करीबी हैं. जो पार्टी के बेहद ताकतवर संगठन महासचिव हैं. संतोष आरएसएस और पार्टी के आधिकारिक रिश्तों के बीच सेतु का काम करते हैं. संतोष और बीएसवाई के बीच  जंग काफी लंबे समय से है. इसके बारे में मैं एक कॉलम कुछ माह पहले ही मैं लिख चुकी हूं. संतोष कर्नाटक से ताल्लुक रखते हैं और बीएसवाई से बैर की कीमत पर पार्टी की स्थानीय इकाई के एक वर्ग का समर्थन जुटाते रहे हैं.

बीएसवाई मुख्यमंत्री के तौर पर अपना आधा कार्यकाल इस बार पूरा कर चुके हैं. वह बीजेपी में मोदी और शाह द्वारा तय की गई 75 वर्ष की रिटायरमेंट की आयु सीमा को पहले ही पार कर चुके हैं. बीएल संतोष की कथित दखलअंदाजी के बावजूद, केंद्रीय नेतृत्व फिलहाल बीएसवाई को अस्थिर करने का इच्छुक नहीं है. उसके पास किसान आंदोलन, अकाली दल के एनडीए छोड़ने और पश्चिम बंगाल के आगामी चुनाव का मुद्दा पहले ही एजेंडे में है.

हालांकि बीएसवाई को मिली छूट सीमित है, बीएसवाई के तमाम प्रयासों के बावजूद उनका प्रभाव बेटों को उनकी जगह स्थापित करने में नाकाम रहा है. बीएसवाई के आरएसएस से खराब होते रिश्तों के बावजूद संगठन ने अहमदाबाद में हाल ही में हुई बैठक में संतोष को यह स्पष्ट बता दिया गया कि यह वक्त "विभाजनकारी राजनीति" का नहीं है. आरएसएस ने भी तीन विवादित कृषि कानूनों को लेकर अपनी चिंता जताई है. शीर्ष सूत्रों ने मुझे बताया कि संघ चाहता है कि बीजेपी इन कानूनों पर आम राय को दुरुस्त करे. 

कर्नाटक को दक्षिण में बीजेपी का प्रवेश द्वार माना जाता है. जब तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और सुपरस्टार रजनीकांत राजनीतिक योजनाओं को लेकर इरादा बदल चुके हैं, तब बीजेपी कर्नाटक में किसी को जगह देने की बजाय अपनी स्थिति और मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करने की ओर है. रजनीकांत के पलटी मारने के बावजूद ( उन्हें बीजेपी का छद्म समर्थक माना जाता था और वोट काटने का काम करते) बीजेपी तमिलनाडु में अपनी छाप छोड़ने को लेकर प्रतिबद्ध है. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा कल ही चेन्नई में थे और जल्द ही पीएम नरेंद्र मोदी तमिलनाडु यात्रा पर जाने वाले हैं.

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बीएसवाई कैंप के सूत्रों ने सवाल उठाया है कि शाह के सख्त रुख और हर मंत्री के नाम पर निजी तौर पर मुहर के बावजूद असंतुष्ट इतने मुखर क्यों हैं. वे बीएल संतोष की ओर इशारा करते हैं औऱ कहते हैं कि बीजेपी के इतिहास में उनके अलावा कभी कोई ऐसा संगठन मंत्री नहीं रहा जो गुटबाजी को बढ़ावा देता रहा हो.

तथ्य तो यह है कि बीएसवाई के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की खामोशी ने उन्हें अन्य राजनीतिक विवादों से निपटने का अवसर दिया है. इससे पहले इसी पार्टी ने 2008 में बीएसवाई को मुख्यमंत्री पद छोड़ने को मजबूर कर दिया था, जब उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप सामने आए थे.

जब असंतुष्ट नेता सीडी को कन्नड़ से अंग्रेजी में अनुवाद के साथ बांटने में लगे हुए हैं, बीएसवाई का नया साल संकट के साथ शुरू हो रहा है.

(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

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