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This Article is From Sep 11, 2016

पहले से बदल गया है कश्मीर...

Neeta Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 11, 2016 12:29 pm IST
    • Published On सितंबर 11, 2016 12:29 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 11, 2016 12:29 pm IST
इस साल कश्मीर कुछ बदल गया है. 2016 में कश्मीर घाटी का मैंने एक नया चेहरा देखा. कुछ डरा हुआ कुछ डराने वाला, कुछ बेख़ौफ सा कुछ जुदा जुदा सा. दरअसल मैं अपना अनुभव इस वाकिये पर आधारित कर रही हूं जो मैंने इस बीते हफ़्ते देखा. रिपोर्टिंग करते हुए मैं सोपोर पहुंच गई थी. जब वापस श्रीनगर आ रही थी बारामुला पाटन हाइवे पर एक सेब के बाग़ पर कुछ शॉट्स लेने के लिए रुकी.

जब वापस गाड़ी में बैठने वाली थी तभी एक मारुति कार में से रोने की आवाज़ आई. वह कार सड़क के दूसरी और रुकी थी. घाटी में आजकल माहौल इस तरह का है की आप एकदम आगे नहीं बढ़ सकते हैं. मैं भी संभल कर आगे गई. पहली नज़र में मुझे गाड़ी में दूल्हे के लिबास में बैठा हुआ युवक दिखा, उसका हाथ मुंह पर था और मुंह से ख़ून निकल रहा था. उसके कपड़ों पर भी ख़ून के धब्बे थे.
 


लेकिन जो तस्वीर मेरे ज़हन पर असर कर गई वह थी साथ में बैठी दुल्हे की बेग़म. वह लड़की ज़ोर ज़ोर से रो रही थी और कश्मीरी में कुछ बोल रही थी. मैं उसके आगे उसे देख ना सकी क्यूंकि मेरे ड्राइवर ने मुझे वापिस आने का जल्दी इशारा किया. वापस जाने से पहले मैंने उस गाड़ी के आस पास खड़े लोगों से पूछा यह क्या हुआ तो पता चला की कुछ समय पहले इन लोगों की गाड़ी पर पथराव हुआ. गाड़ी जब अहिस्ता हुई तो लोगों ने दूल्हे को बाहर निकाल उसे पीटा भी. दुल्हन तब से रो रही थी.

हमें लोगों से वहां से जल्दी निकलने को कहा गया क्यूंकि आजकल कश्मीर में मीडिया को भी दुश्मन की नज़र से देखा जा रहा है, ख़ासकर 'दिल्लीवालों' को. मुझे और मेरे कैमरा मैन आरिफ़ को ड्राइवर ने जल्दी से गाड़ी में बैठने को बोला. फटाफट गाड़ी ने स्पीड पकड़ ली. मैं सोच में पड़ गई कि आख़िर कुछ लोगों ने उस दूल्हे को क्यों पीटा होगा, क्यों उनकी गाड़ी में पथराव किया होगा. अभी इस सोच में डूबी ही हुई थी की हमारी गाड़ी पर भी पथराव शुरू हो गया.

गाड़ी स्पीड पर थी इसीलिए पत्थरों का असर ज़्यादा नहीं हुआ. मेरा कैमरा मैन आगे ड्राइवर के साथ बैठा था. उन दोनो ने मुझे सावधान रहने को कहा. साथ में यह भी हिदायत दी की कहीं कुछ लोग दिखें तो नीचे झुक जाऊं. वहां से अगले एक घंटे का रास्ता मैंने झुक झुक कर तय किया.
 

मेरे ड्राइवर ने मुझे बताया की इन दिनों घाटी में जो भी शादियां हो रही हैं, नाच गाने के बाद उन्हें आज़ादी के स्लोगन भी लगाने को कहा जा रहा है. लोगों में प्रदर्शनकारियों का खौफ इतना है की कोई इसके ख़िलाफ़ नहीं जा रहा. यह अकेला वाक़या नहीं है, भीड़ इतनी उग्र हो गई है की हाइवे पर भी वे कोई सिविल गाड़ी चलने नहीं दे रहे हैं. साउथ कश्मीर में तो एक गर्भवती महिला को जो ऐम्बुलेंस लेकर अस्पताल जा रही थी, उसे भी प्रदर्शनकारियों ने रोक लिया और कहा की उनकी महिला साथी चेक करेंगी की महिला असल में गर्भवती है या नहीं. अगर होगी तभी गाड़ी को जाने देंगे.

क्या इन सब के पीछे घाटी का माहौल हैं ? जहां हर इंसान परेशान दिखाई दे रहा है या फिर वे लोग जो चाहते हैं की सब विरोध का बस हिस्सा बने. इससे उन्हें कोई वास्ता नहीं की किसी और की ज़िंदगी में क्या हो रहा है. या फिर उन अलगाववादी नेताओं की अपील जिसके तहत वे सब कश्मीरियों को अपनी आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए कह रहे हैं. जो उनका साथ नहीं दे रहा वह अलग है इसीलिए उनके ख़िलाफ़ नारे लगाए जा रहे हैं और उन पर पथराव हो रहा है. एक बड़े अलगावादी नेता ने एलान किया है कि 'हम सब आज़ादी के बेहद करीब हैं.'

इस नए कश्मीर में राष्ट्रीय मीडिया को भी दुश्मन की निगाह से देखा जा रहा है. आप रिपोर्ट करो लेकिन सिर्फ़ 'हमारे कश्मीर' के बारे मे. दूसरी तरफ़ का नहीं, अगर दूसरी तरफ़ की करोगे तो आप को भी बख्सा नहीं जाएगा. मैं भी जितने दिन घाटी में रही, दक्षिण और उत्तर कश्मीर दोनों जगह गई लेकिन अपनी गाड़ी में प्रेस का पर्चा नहीं लगाया. कश्मीर का गुस्सा मैंने 2010 में भी देखा था लेकिन इस बार कुछ अलग है जिसने मुझे भी आहत किया है. उस दुल्हन के चेहरे की लाचारी उसकी नजरों का खोफ मुझे हमेशा याद रहेगा.

नीता शर्मा एनडीटीवी इंडिया में कार्यरत हैं...

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