बिहार के चुनाव को ध्यान में रखकर नरेंद मोदी सरकार कमर कस रही है। कोशिश यही है कि कोई कसर न रह जाए। लोकनायक जयप्रकाश नारायण को भुनाने की कोशिश भी शुरू हो गई है।
मौज़ूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव जेपी आंदोलन की उपज हैं और जेपी की विरासत पर अधिकार जताते रहे हैं। अब बीजेपी को भी जेपी की लोकप्रियता में सत्ता की सीढ़ी नज़र आ रही है।
शुरुआत जेपी के जन्मस्थली सिताबदियारा से की जा रही है। सिताबदियारा के लाला टोला में राष्ट्रीय स्मारक और पुस्तकालय बनाने का ऐलान किया गया है। मज़ेदार बात ये है कि सिताबदियारा के ही जेपी नगर में पहले से जेपी के नाम पर एक ट्रस्ट है और पुस्तकालय भी। सिताबदियारा उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों में पड़ता है। आरा, बलिया और छपरा जिलों में बसा हुए इस गांव में 27 टोले हैं।
ज़ाहिर है सरकार के इस फैसले में लोगों को जेपी के विरासत को संभालने की बात कम, राजनीति ज्यादा लग रही है। जेपी की विरासत आगे बढ़ाने के लिए 1986 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की अगुवाई में उत्तर प्रदेश के सिताबदियारा वाले हिस्से में जयप्रकाश स्मारक प्रतिष्ठान बना।
जब तक चंद्रशेखर जिंदा रहे, तब तक तो ट्रस्ट ठीक-ठाक चलता रहा। जेपीनगर में लड़कियों को लिए स्कूल खुला, पुस्तकालय खुला और खादी ग्रामोधोग भवन भी। लेकिन चंद्रशेखर के निधन के बाद ट्रस्ट पर कब्जे को लेकर कोर्ट कचहरी तक मामला चला।
पुराने ट्रस्ट से टूटकर कुछ लोगों ने 2010 में जयप्रभा फांउडेशन बना लिया। ये ट्रस्ट बना बिहार के लाला टोला में। दोनों ट्रस्ट के बीच की दूरी है मात्र दो किलोमीटर। तर्क दिया गया कि ये ट्रस्ट जेपी के जन्मस्थली पर बना है। साथ मिला बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का।
उस वक्त जेडीयू और बीजेपी साथ-साथ थे, तो लालकृष्ण आडवाणी ने जेपी की जन्मस्थली से भ्रष्टाचार के खिलाफ रथ यात्रा शुरू की। इसके बाद इस इलाके में विकास की यात्रा शुरू हुई। आजादी के बाद पहली बार इस हिस्से में बिजली आई। नीतीश भी जेपी आंदोलन की उपज हैं, तो उन्होंने भी कई सारी योजनाएं बनाईं। कुछ पर अमल हुआ, तो कुछ पर अड़चन आ गई। इस बीच जेडीयू और बीजेपी में राजनीतिक तलाक हो गया।
अब बिहार में चुनाव होने में चंद महीने बचे हैं। लिहाजा जेपी के नाम को भुनाने के लिए केंद्र सरकार ने भी जेपी के जन्मस्थली पर राष्ट्रीय स्मारक बनाने का ऐलान कर दिया। पहले से जेपी के नाम पर बने ट्रस्ट में तकरार तो था ही, अब रही सही कसर केंद्र सरकार के ऐलान ने कर दिया।
यूपी वाले जेपी ट्रस्ट के सचिव अब चंद्रशेखर के पोते रविशंकर सिंह है। वे कहते हैं, हम तो जेपी से जुड़ी एक भी चीज को स्मारक को नहीं सौपेंगे। वही जयप्रभा फांउडेशन के सचिव आलोका कुमार सिंह कहते हैं, हम वहां से कुछ भी नही लेंगे और ना ही मांगने जाएंगे। बिहार और देशभर में जेपी से जुड़े धरोहरों को जुटाया जाएगा।
गौरतलब है कि यूपी वाले जेपी ट्रस्ट के पास जेपी से जुड़ी कई चीजें है और कुछ बिहार वाले ट्रस्ट के पास भी हैं। ऐसा लगता है कि अब जेपी के विरासत को लेकर ये लड़ाई केवल जयप्रकाश नरायण ट्रस्ट और जयप्रभा फाउंडेशन के बीच नहीं, बल्कि ये बिहार और उत्तर प्रदेश के बीच भी चल रहा है।
बीजेपी की जेपी योजना ज़ाहिर है जेडीयू को रास नहीं आ रही है। तभी तो दोनों ट्रस्ट से जुड़े रहे जेडीयू नेता हरिवंश कहते हैं कि अगर केंद्र सरकार इसको लेकर गंभीर होती, तो चुनाव के वक्त इसका ऐलान नहीं करती। अभी तो सरकार की प्राथमिकता जेपी के गांव सिताबदियारा को बचाने की होनी चाहिए, क्योंकि गंगा और सरयू के कटाव की वजह से गांव खतरे में है। सरयू और गंगा में कटाव हो रहा है, जिससे कई टोले का अस्तित्व खत्म हो जाने का खतरा पैदा हो गया है।
वैसे गांव वाले कहते हैं कि ये अच्छी बात है कि सरकार जेपी के विरासत को आगे बढ़ाने के लिए स्मारक बना रही है, लेकिन पहले गांव में नदी से जो कटाव हो रहा है, उससे बचाव करें और गांव का विकास करें।
This Article is From Jul 11, 2015
राजीव रंजन : बिहार में जेपी के नाम के जरिए चुनावी जंग
Written by Rajeev Ranjan
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Updated:जुलाई 11, 2015 13:07 pm IST
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Published On जुलाई 11, 2015 08:59 am IST
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Last Updated On जुलाई 11, 2015 13:07 pm IST
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