वह गेंद ऑफ स्टंप के काफी बाहर पड़ी थी. पिच में ऐसा कुछ नहीं था, जिसे 'शैतानी' करार दिया जाए. पिच में टर्न जरूर था. लेकिन श्रीलंकाई पिचों पर गेंद टर्न होती ही है. जो बर्न्स बल्लेबाज थे. ऑस्ट्रेलिया के सलामी बल्लेबाज. ऐसा लगा नहीं कि उन्होंने कुछ गलत किया हो, लेकिन सांप की तरह फुफकारती गेंद घूमी. ..और ऐसे घूमी कि बाहर जाती दिख रही गेंद बर्न्स का मिडिल और ऑफ स्टंप हिला गई. यह गेंद एक गेंदबाज के आगमन का ऐलान था. पत्थमपेरुमा अरच्चिगे डॉन लक्षण रंगिका संदकन... कुल मिलाकर छह शब्द. माइक्रोसॉफ्ट वर्ड ने काफी कुछ बदल दिया है. कुछ पहले, कंप्यूटर में शब्दों को गिनने का एक तरीका होता था. खासतौर पर हिंदी शब्द. आप जितनी बार एक की दबाएंगे, वह एक कैरेक्टर होगा. पांच कैरेक्टर का एक शब्द होगा. उस लिहाज से देखा जाए, तो ये नाम 41 कैरेक्टर का है. यही नाम है श्रीलंका के नए मिस्ट्री बॉलर का. आसानी के लिए इन्हें लक्षण संदकन कहा जा सकता है.
दरअसल, किसी भी खेल में कैरेक्टर की तलाश हमेशा रहती है. उस तरह के कैरेक्टर, जिनसे कुछ अलग करने की उम्मीद होती है. गेंदबाजी हो, बल्लेबाजी हो, फील्डिंग हो, हर जगह कुछ अलग करने वाला खेल में उत्सुकता बढ़ाता है. संदकन इस कैटेगरी में सटीक बैठते हैं. यानी कुछ अलग. श्रीलंका की चर्चा में जैसे मुरलीधरन थे. जैसे शेन वॉर्न की जादुई स्पिन थी. ये अपनी किस्म के मिस्ट्री बॉलर ही थे. अलग बात है कि मुरली के एक्शन को लेकर तमाम विवाद रहे. शेन वॉर्न ट्रेडिशनल तरीके के ऐसे गेंदबाज थे, जो उसी तरीके में इतनी खास गेंदें कर सकते थे, जो मिस्ट्री बन जाएं. ठीक वैसे ही, जैसे उन्होंने माइक गैटिंग को आउट किया था. दरअसल, संदकन की वह गेंद वॉर्न की याद दिलाने वाली थी. वॉर्न की गेंद लेग स्टंप के बाहर पड़कर जिस तरह फुफकारते हुए स्टंप में घुसी थी, ठीक वैसे ही संदकन की गेंद ऑफ स्टंप के बाहर पड़कर आई थी.
मिस्ट्री बॉलर की बात निकली है, तो वह अनिल कुंबले तक भी जाएगी. भले ही उनकी गेंदबाजी में ऐसा कुछ नहीं था, जो चकित करे. फिर भी उनकी इतनी बड़ी कामयाबी यही दिखाती है कि इस गेंदबाज में कुछ तो ऐसा था, जो चौंकाता है. कुंबले का कमबैक इसी मिस्ट्री के इर्द-गिर्द है. दरअसल, 1992-93 में ईरानी कप मुकाबला दिल्ली में हुआ था. इस सीजन में मनिंदर सिंह ने कमाल का प्रदर्शन किया था. माना जा रहा था कि मनिंदर की वापसी हो जाएगी. दिल्ली और शेष भारत के बीच मुकाबला शुरू हुआ, तो कुंबले ने कहर बरपा दिया. मैच में उन्होंने 13 विकेट लिए थे. वह मैच कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार राजीव कटारा का कहना है कि दिल्ली ड्रेसिंग रूम में किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था. यह वो दौर था, जब पत्रकार आराम से ड्रेसिंग रूम के आसपास बैठा करते थे. किसी भी खिलाड़ी से बात करने में कोई दिक्कत नहीं होती थी. राजीव कटारा बताते हैं कि एक बल्लेबाज आउट होकर पैवेलियन लौट रहा था, तो रमन लांबा ने उससे पूछा कि अरे भाई क्या हुआ..
सीधी-सीधी बॉल कर रहा है. उसे क्यों विकेट दे रहे हो? जवाब मिला- बॉल तो सीधी लग रही है, लेकिन कुछ बात जरूर है. मोहिंदर अमरनाथ वह मैच देख रहे थे. उन्होंने कहा कि अभी तो मुझे भी समझ नहीं आ रहा. वक्त लगेगा इसे समझने में.
खैर, वह मिस्ट्री कुंबले ने कभी सुलझने नहीं दी. पाकिस्तान के खिलाफ जिस मैच में उन्होंने पारी में दस विकेट लिए थे, वह प्रेस बॉक्स से मेरे करियर का पहला क्रिकेट मैच था. प्रेस बॉक्स में हर कोई हैरान था. एक बड़े पाकिस्तानी क्रिकेटर बता रहे थे कि आखिर कुंबले को स्पिनर की तरह खेला क्यों जाता है. उन्हें तो इनस्विंग मीडियम पेसर जैसे खेलना चाहिए.
अब ऐसे ही तमाम कयास संदकन के लिए लगाए जाएंगे. वैसे भी चाइनामैन बॉलर ज्यादा होते नहीं. वैसे तो क्रिकेट इस देश में सभी को आता है. फिर भी ये जान लेना जरूरी है कि चाइनामैन बाएं हाथ के स्पिनर की ऑफ ब्रेक होती है. यानी दाएं हाथ के बल्लेबाज के लिए ऑफ स्टंप से लेग स्टंप की तरफ आती है. चाइनामैन बॉलर की गुगली वो होती है, जो दाएं हाथ के बल्लेबाज के लिए लेग स्टंप पर पड़कर ऑफ की तरफ आए. संदकन की गुगली भी ठीक-ठाक ही दिखी. खासतौर पर, जिस गेंद ने एडम वोजेस का विकेट लिया था.
मिस्ट्री बॉलर्स में सकलैन मुश्ताक भी आए, जिनकी ‘दूसरा’ समझना मुश्किल था. हरभजन सिंह सहित तमाम गेंदबाज ‘दूसरा’ आजमाने लगे. हालांकि ‘दूसरा’ के ईजाद का श्रेय इरापल्ली प्रसन्ना को देना चाहिए. उनकी ड्रिफ्टर दरअसल, ‘दूसरा’ का ही रूप थी. ... और यह भी समझना चाहिए कि बाकी ऑफ स्पिनर की तरह इरापल्ली प्रसन्ना के एक्शन को लेकर दुनिया में कोई सवाल नहीं उठा सकता. तभी इयान चैपल जैसे दिग्गज उन्हें ऑल टाइम बेस्ट ऑफ स्पिनर्स में गिनते हैं. देखना होगा कि इतने कैमरों और इतने रिव्यू के बीच संदकन अपनी मिस्ट्री को बरकरार रख पाते हैं या नहीं. यहीं पर उनके बड़े गेंदबाज होने या चमककर बुझ जाने के बीच का फर्क पता चलेगा.
ऐसे तमाम गेंदबाज आए हैं, जिन्होंने शुरू में जोरदार खेल दिखाया है. ऐसे ही अजंता मेंडिस थे, जिनकी कैरम बॉल किसी की समझ में नहीं आती थी, लेकिन उसके बाद आपको अपनी वेरायटी पर काम करना पड़ता है. उतनी मेहनत करनी पड़ती है, जैसी कुंबले ने की. मेंडिस चकाचौंध और खेल के बीच सामंजस्य नहीं बिठा पाए और अंधेरों में चले गए.
संदकन अगर उस चकाचौंध से खुद को बचाए रखते हैं, तो यकीनन वह पूरी दुनिया की नाक में दम कर सकते हैं. वैसे भी यह दौर ऐसा है, जहां अच्छा स्पिनर किसी भी टीम के लिए ट्रंप कार्ड हो सकता है. दुनियाभर में अच्छे स्पिनर को खेलने वाले बल्लेबाज कम हो रहे हैं. यही एक वजह है कि आपको पाकिस्तान के यासिर शाह इंग्लैंड के खिलाफ मैच जिताते नजर आते हैं. श्रीलंका के रंगना
हेराथ और संदकन की गेंदबाजी ऑस्ट्रेलियंस को समझ नहीं आती. ...और वेस्टइंडीज में आर. अश्विन खौफ की तरह छाए हुए हैं. इनमें से हेराथ और अश्विन के स्तर पर किसी को संदेह नहीं. यासिर शाह जरूर उस स्तर के गेंदबाज नहीं लगे, जो अब्दुल कादिर से लेकर मुश्ताक अहमद और सकलैन मुश्ताक तक दिखाई देता रहा है. वो अच्छे गेंदबाज दिखे हैं, लेकिन उन्हें इंग्लैंड ने घातक बना दिया. ठीक वैसे ही, जैसे कुछ समय पहले इंग्लैंड के मोइन अली को भारतीय बल्लेबाजों ने खतरनाक बना दिया था. यानी भारतीय बल्लेबाज भी स्पिनर्स के सामने वैसे मजबूत नहीं रहे, जैसे हुआ करते थे. रही बात संदकन की, तो उनकी मिस्ट्री कब और कैसे सॉल्व होती है, इसके लिए इंतजार करना पड़ेगा. शायद ऑस्ट्रेलियन टीम उनके वीडियो देख रही होगी. चार अगस्त से शुरू हो रहे
टेस्ट में अंदाजा चलेगा कि संदकन की मिस्ट्री लंबे समय तक कायम रहने वाली है, या इसका तोड़ ढूंढ लिया जाएगा...
(शैलेश चतुर्वेदी वरिष्ठ खेल पत्रकार और स्तंभकार हैं)
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This Article is From Aug 01, 2016
ये क्रिकेट में रोमांच की ‘मिस्ट्री’ है...
Shailesh chaturvedi
- ब्लॉग,
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Updated:अगस्त 01, 2016 15:14 pm IST
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Published On अगस्त 01, 2016 14:11 pm IST
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Last Updated On अगस्त 01, 2016 15:14 pm IST
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