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This Article is From Oct 25, 2016

इन 57 अरबपति कर्जदारों से सीखो मेरे किसानों

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 25, 2016 23:50 pm IST
    • Published On अक्टूबर 25, 2016 23:49 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 25, 2016 23:50 pm IST
जब से किसी ने बताया है कि पूरे भारत में सिर्फ 57 लोग ऐसे हुए हैं, जिन पर सरकारी बैंकों के 85,000 करोड़ उधार हैं, तब से मैं ख़ुद को कोस रहा हूं. ये तो वो लोग हैं, जिन्होंने 500 करोड़ से कम का लोन लेना अपनी शान के ख़िलाफ़ माना. मतलब कि अगर बैंक का लोन लेकर चंपत ही होना है तो 500 करोड़ से कम लेकर क्या भागें. बैंक को दिक्कत नहीं है. कोई तीसरा परेशान आत्मा है कि बैंक इनसे पैसे नहीं ले रहे हैं. वो जाकर केस कर दे रहा है. इन अरबपति क़र्ज़दारों की सामाजिक प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाने का प्रयास कर रहा है, वो भी बैंकों को बचाने के लिए. ऐसा अनर्थ हमने तो कभी नहीं देखा.

इन्हीं जागरूक मुकदमेबाजों के कारण अदालत को पूछना पड़ रहा है कि कौन लोग हैं, जो 85 हज़ार करोड़ लेकर भी नहीं दे रहे हैं, इनका नाम क्यों न पब्लिक को बता दें. क्यों बता दें? क्या पब्लिक पैसे वसूलेगी? ये भारतीय समाज है. लोग ऐसे क़र्ज़दारों के यहां रिश्ता जोड़ने पहुंच जाएंगे. इससे भी ज़्यादा ख़ुशी की बात ये है कि इन 57 लोगों में से सिर्फ एक ही विदेश भागा है. इनका नाम विजय माल्या है और सुप्रीम कोर्ट को भी नाम मालूम है. बाकी 56 यहीं भारत में ही हैं. उनको पता है कि जब भागने से भी बैंक वापस नहीं ले सकते, तो क्यों न भारत में ही रहे. यहां रहकर भी तो वे बैंकों को लौटाने नहीं जा रहे.

भारतीय रिज़र्व बैंक ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हुजूर इनके नाम पब्लिक को न बतायें. सरकार ने रिज़र्व बैंक पर छोड़ दिया कि चलो यही बताओ, क्यों न बतायें. इतना बड़ा सवाल था कि रिज़र्व बैंक को सोचने का टाइम भी दिया गया. चुनाव होता तो जरूर कोई नेता कहता कि जनता के पैसे दो वरना जनता को नाम बता देंगे. बैंक को भले न पैसे मिलते, लेकिन नेताजी को चुनाव के लिए चंदे तो मिल ही जाते. मेरा एक सवाल है. विजय माल्या का नाम तो कोर्ट और पब्लिक को मालूम है, तो क्या बैंकों ने पैसे वसूल लिये. कहीं गिरवी तो कहीं नीलामी, यही हो रहा है. माल्या अभी तक भारत नहीं आया. दाऊद की तरह लाया ही जा रहा है. टीवी चैनलों ने कितनी ख़बरें चलाई कि पाकिस्तान दाऊद देने वाला है. बेचारे बैंकों को भी कितनी मेहनत करनी पड़ रही है. वो वसूलना नहीं चाहते, कुछ लोग पीछे पड़े हैं कि वसूलो भाई. जो भी है, नाम मालूम होने से पैसा आसानी से मिल जाएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है. अब आप ही बतायें, पब्लिक को नाम बता भी देंगे तो नाम जानकर पब्लिक क्या करेगी? जब सरकार वसूल नहीं पाई तो क्या पब्लिक 85,000 करोड़ वसूल लेगी!

जब से ये ख़बर सुनी है, मारे ख़ुशी के दफ़्तर नहीं गया. 57 लोग मिलकर 85,000 करोड़ लेकर यहां भारत में हैं. अगर ये सभी किसान होते तो अकेला तहसीलदार इनसे वसूल लाता. पॉज़िटिव बात ये है कि इन 57 में से किसी ने आत्महत्या नहीं की है. मेरी राय में सरकार को इन्हें ब्रांड अम्बेसडर बनाकर किसानों के बीच ले जाना चाहिए. ये लोग किसानों से कहें कि हम 500 करोड़ का क़र्ज़ा लेकर ख़ुश हैं, नहीं देकर भी ख़ुश हैं. खुदकुशी नहीं कर रहे हैं. एक आप लोग हैं जो 10 लाख के लिए आत्महत्या कर लेते हैं. सरकार को कानून बनाकर किसानों और होम लोन वालों को 'विलफुल डिफॉल्टर' बनने का सुनहरा मौक़ा देना चाहिए. भाई फ़सल डूब गई, नौकरी चली गई तो कहां से क़र्ज़ा देंगे.

गूगल कीजिये. वित्त मंत्री के कितने बयान मिलेंगे कि बैंक आज़ाद हैं, पैसे वसूलने के लिए. उन्हें किसी से डरने की ज़रूरत नहीं है. वित्त मंत्री की दी हुई आज़ादी का लाभ बैंकों ने खूब उठाया है. इस आज़ादी के कारण एक साल में बैंकों का सकल नॉन प्रोफ़िट असेट यानी एनपीए दोगुना हो गया है. यानी जून 2015 में 5.4 प्रतिशत था, जून 2016 में 11.3 प्रतिशत हो गया. पैसे देने के बजाए ये जल्दी से जल्दी दिवालिया हो सकें, इसके लिए भी इन्हें क़ानूनी सुविधा दी गई है. हाल ही में वित्त मंत्री ने कहा कि भारत को कर चुकाने वाला समाज बनना होगा. ज़रूरत कहने की यह थी कि भारत को ऋण चुकाने वाला समाज बनना चाहिए, लेकिन टैक्स का नाम ले लिया तो अब कौन बोलेगा.

ये 57 लोग ही चाहें तो लाखों भारतीय किसानों का क़र्ज़ा माफ़ कर सकते हैं. दो तरह से. एक तो इसी पैसे से किसानों की मदद कर दें या फिर किसानों को आइडिया बता दें कि बैंकों का क़र्ज़ा कैसे पचाया जाता है. सोचिये अगर भारतीय किसान 500 न सही 100 करोड़ का क़र्ज़ लेकर पचा ले तो गांव-गांव में अमीरी आ जाएगी. ग्रामीण उपभोक्ता सूचकांक छप्पर फाड़ कर ऊपर चला जाएगा. मैं तो चाहता हूँ कि रिज़र्व बैंक इन 57 लोगों के नाम बता दे. पैसे तो ये वैसे ही न देने वाले हैं, कम से कम उनसे बाकी क़र्ज़दार सलाह तो ले सकते हैं. उनके बारे में पढ़ाया जाना चाहिए. इनकी जीवन शैली दिखाई जानी चाहिए, जैसे हम गांवों में जाकर क़र्ज़ में डूबे किसान की उदास जीवन शैली दिखाते हैं. जब हम पांच-पांच सौ करोड़ के क़र्ज़दारों की आलीशान जीवन शैली दिखायेंगे, तो किसानों में ग़ज़ब का आत्मविश्वास आएगा. किसानों को भी यक़ीन होगा कि अगर वे करोड़ों की संख्या में न होते तो आज सरकार और बैंक उनका भी कुछ नहीं कर पाते, जैसे इन 57 लोगों का नहीं कर पा रही है. त्वरित कार्रवाई की जगह लंबी प्रक्रिया के सहारे मदद का यह रास्ता लाखों किसानों को जीवन दे सकता है. हंसना मना है, लेकिन इस लेख को पढ़कर जो रोएगा वो पछताएगा. जो तुरंत लोन लेने चला जाएगा वो राज करेगा.

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