अखिल विश्व में संभवतः सबसे ज्यादा राजनैतिक रैलियां (जो अब भी जारी हैं) करने का रिकॉर्ड बनाने वाले प्रधानमंत्री मोदी अब शायद सबसे ज्यादा जुमलेबाजी का भी रिकॉर्ड बना चुके हैं। लेकिन नीयत के फ़र्क को समझने वाली जनता का आशीर्वाद ही था कि लोकसभा में चमत्कारी आंकड़ा छूने वाली बीजेपी दिल्ली में अपनी पूरी अजेय सेना को लेकर उतरने के बाद भी 4 कोने नही घेर पायी।
अब इसका बदला वो कुछ इस तरह ले रहे हैं, कि जो अनाप-शनाप बन पड़ रहा है दिल्ली सरकार को रोकने के लिए वो करने में गुरेज़ नहीं कर रहे, और ऐसा करने में उन्होंने महिला सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय को भी ताक पर रख दिया। नागरिक सुरक्षा और भ्रष्टाचार विरोधी लड़ाई तो कब की मोदी सरकार के अहंकार का ग्रास बन चुकी है।
LG, पुलिस कमिश्नर और विधानसभा में अपने 3 विधायकों के ज़रिए, बीजेपी दिल्ली के सिंहासन को भूकंप की तरह हिलाने में लगी है, कि किसी तरह ये जनता का चुनावी तमाचा मुंह के बल जा गिरे।
कल जब महिला सुरक्षा पर जांच कमीशन बिठाने को लेकर विशेष सत्र बुलाया गया था तो तीनों भाजपाई विधायक सदन से वॉक आउट कर गए। ये हास्यास्प्रद और दुखद दोनों है, क्योंकि चुनावी जुमलों में महिला सुरक्षा की धुन की तर्ज़ पर नाचने वाली मोदी सरकार, अब इसे किसी भी हाल में व्यवहार में लाना नहीं चाहती।
अखिर महिलाओं के खिलाफ हो रहे इतने अपराधों के बाद भी कैसे बीजेपी के 3 विधायक इस पर बन रहे जांच कमीशन का विरोध कर सकते हैं? किस आधार पर? कोई तो सफाई होगी बीजेपी के पास ऐसा करने के लिए? चलो मान लेते हैं कि दिल्ली की चुनी हुई लोकप्रिय सरकार के पास, केंद्र सरकार की स्वरचित संवैधानिक परिभाषाओं के अनुसार, पर्याप्त अधिकार नहीं है। तो प्रधानमंत्री मोदी जी के पास तो सारे अधिकार हैं, अगर काम सही है, जनता के हित में है, तो मोदी जी ही करवा दें, नहीं?
पहले एंटी करप्शन ब्रांच (ACB), फिर महिला आयोग और अब महिला सुरक्षा पर असहयोग? संघीय ढांचे का मज़ाक क्यों? आम आदमी पार्टी को अपने वादों की तरफ जाने से रोकने के लिए अस्पताल और स्कूल के निर्माण में, मोदी सरकार पहले से सरकारी ज़मीन पर कुंडली मारकर बैठी है।
दिल्ली की ज़मीन, पुलिस और ACB को मोदी सरकार ने अपनी मुठ्ठी में जकड़ा हुआ है और अब वो इसकी बोली लगा रही है, कि इतना झुको और इतना ले जाओ। मोदी सरकार का एक ही फंडा हो गया है- 'जो भी अच्छा काम करे उसे मत करने दो।' ACB प्रमुख मीणा जी को दिल्ली के भ्रष्टाचार से मतलब नहीं, पर राजनैतिक आकाओं के सामने अपने किरदार को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करना बेहद ज़रूरी है। तभी तो अब बात यहां तक आ गई है कि केंद्र का सरकारी चाबुक दिल्ली सरकार के खिलाफ ही चलाया जा रहा है।
मोदी सरकार ने पहले संजीव चतुर्वेदी, फिर राजेंद्र कुमार व वैट कमिश्नर विजय कुमार, अब चेतन सांघी को ACB के ज़रिए निशाना बनाया। ऐसा लगता है कि मोदी जी भ्रष्टाचार विरोधी किसी भी सिपाही को अपने पैरों पर खड़ा नही देखना ही चाहते। फिर किस के हितों की रक्षा के लिए मोदी जी को प्रचंड जनादेश मिला है, भ्रष्टाचारियों के?
सत्ता प्रमुख का तो फ़र्ज़ होता है कि अपने राज्य में ईमानदारों को आगे बढ़ाए, उन्हें काम करने का स्वस्थ माहौल दे, उन्हें प्रोत्साहित करे, पर मोदी जी का अहम् उनके राजधर्म पर भारी पड़ रहा है। काश आज भी कोई होता जो उन्हें राजधर्म निभाने की नसीहत दे पाता, पर क्या फायदा वो नसीहत तो उन्होंने तब भी नहीं मानी थी। और जो हैं उन्हें मार्ग दर्शक मंडल का मूक दर्शक बना दिया गया है, शाहों के राज में।
सवाल यही है कि क्या ये सब खींचतान दिल्ली को एक पूर्ण राज्य बनाने के आगामी संघर्ष के लिए एक मज़बूत ज़मीन तैयार नहीं कर रही? अब दिल्ली इस तानाशाही से लोकतान्त्रिक ढंग से निपटने को तैयार हो रही है। और मोदी सरकार को समझना चाहिए कि किसी को इतना भी मत डराओ कि डर ही ख़त्म हो जाए।
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This Article is From Aug 04, 2015
अपने राजनैतिक हितों के आगे, जनता के हितों का बलिदान मत दीजिए, प्रधानमंत्री सर!
Dilip Pandey
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Updated:अगस्त 04, 2015 17:03 pm IST
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Published On अगस्त 04, 2015 16:53 pm IST
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Last Updated On अगस्त 04, 2015 17:03 pm IST
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