इजरायल और लेबनान के हिजबुल्लाह के बीच ताजा झड़पों के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या दुनिया एक और विश्व युद्ध की ओर बढ़ रही है? गजा में हमास से युद्ध के बीच इजरायल ने जिस तरह नया मोर्चा खोलने की कोशिश की है, उसके बाद चर्चा है कि मध्य-पूर्व एक व्यापक संघर्ष की ओर बढ़ रहा है. हालात ऐसे बन गए हैं कि देर-सवेर ईरान और उसके सहयोगी इस संघर्ष में शामिल होंगे.लेकिन कब? आइए जानते हैं कि हमास नेता इस्माइल हानिया की तेहरान में हुई हत्या के बाद ईरान ने जो कसमें खाईं थीं, उस पर क्या कर रहा है.
हमास नेता इस्माइल हानिया की तेहरान में हत्या के बाद से ही मध्य-पूर्व एशिया पर जंग के बादल मंडरा रहे हैं.ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह सैयद अली खामेनेई समेत कई फौजी कमांडर हानिया की हत्या का बदला लेने की सार्वजनिक कसम खा चुके हैं.युद्ध की आशंकाओं के बीच अमेरिका ने अपने सैन्य बेड़े और युद्धक विमानों का रुख मध्य-पूर्व की ओर कर दिया है.खबरें हैं कि रूस, लेबनान, इराक और सीरिया भी संभावित युद्ध की तैयारियों में जुटे हैं.
इस्माइल हानिया की हत्या और ईरान
इस्माइल हानिया की हत्या को करीब एक महीना बीत चुका है.इस बीच लेबनान में लड़ाई का नया मोर्चा खुलने से नई आशंकाएं जन्म ले रही हैं.हिजबुल्लाह का कहना है कि उसने अपने कमांडर फुआद शुक्र की मौत का बदला लेने के लिए इजरायल की राजधानी तेल अवीव पर हमला किया है.इधर इजरायल का दावा है कि उसने हिजबुल्लाह का बड़ा हमला टाल दिया है. इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि सौ से ज्यादा विमानों ने लेबनान में हिजबुल्लाह नेटवर्क को निशाना बनाया है. इस तनातनी के बीच अमेरिका, मिस्र समेत इजरायल के सहयोगी देश युद्ध न फैलने देने की कवायद में जुट गए हैं. लेकिन क्या वो ईरान और उसके सहयोगियों को रोक पाएंगे?
हमास की राजनीतिक शाखा के प्रमुख इस्माइल हानिया की हत्या ईरान के लिए बहुत बड़ी घटना है.ईरान की राजधानी तेहरान के अति सुरक्षित इलाके में उसके एक वीवीआईपी मेहमान को जिस तरह मार डाला गया, वह उसकी सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल है.ईरान ने इसे अपनी चूक को माना है.इस बीच कई लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है. इनमें से कई गिरफ्तारियां घटना की जिम्मेदारी तय करने और पूछताछ के लिए हुई हैं. फिर भी तेहरान में सरकारी सूत्र बता रहे हैं कि पकड़े गए लोगों में सुरक्षा एजेंसियों के लोग शामिल हैं. ईरान मानकर चल रहा है कि इजरायली खुफिया एजेंसी ने ईरान में ही मौजूद अपने एजेंटों का इस्तेमाल इस्माइल हानिया को मारने के लिए किया है.इनमें आतंकी संगठन मुजाहिदीन-ए-खल्क और जैश-अल-अद्ल के अलावा कुर्दिश विद्रोहियों की भूमिका की भी जांच की जा रही है.
मध्य-पूर्व में शांति की कोशिशें
इस्माइल हानिया की हत्या न सिर्फ ईरान बल्कि हमास और हर उस देश के लिए झटका है जो फलस्तीन समस्या का शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं.हाल के दिनों में अमेरिका के अलावा चीन, कतर और पर्दे के पीछे से ईरान भी फलस्तीन समस्या का एक राजनीतिक समाधान खोजने की कोशिशों में जुटे थे. इसके लिए फलस्तीन की दो बड़ी सियासी ताकतों हमास और फतह को एक प्लेटफॉर्म पर लाने की कोशिशें हो रही थीं. लोग यह मानने लगे थे कि हमास और इजरायल के बीच जारी लड़ाई खत्म होने के बाद फलस्तीन को अलग देश की मान्यता मिल सकती है.तमाम देश युद्धकाल के बाद कार्यवाहक सरकार बनने की दिशा में काम कर रहे थे. इस बीच 31 जुलाई को इस्माइल हानिया की हत्या हो गई. हानिया की हत्या मध्य-पूर्व में शांति प्रयासों के लिए बड़ा झटका है. ऐसा इसलिए कि जब-जब फलस्तीन में इस्लामी जिहाद या हमास के लड़ाकों के साथ कोई सशस्त्र संघर्ष हुआ, तब-तब कतर में रह रहे इस्माइल हानिया ने शांति कायम कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
बहरहाल, हमास की राजनीतिक शाखा के प्रमुख की हत्या हुए अब लगभग महीने का समय बीत चुका है. इससे थोड़ा ही कम समय उस बात को हुआ है जब ईरान के सर्वोच्च नेता ने उनकी मौत का बदला लेने का आदेश अपने कमांडरों को दिया था. उसके बाद से ईरान इस मुद्दे पर बहुत कुछ बोल नहीं रहा है. उसकी सेनाएं अलग-अलग इलाकों में सैन्य अभ्यास कर रही हैं. मिसाइलों और इलेक्ट्रानिक उपकरणों की तैनाती को लेकर भी तमाम तरह ही चर्चाएं हैं. ईरान ने अपने सहयोगी देशों और हमास, हिजबुल्लाह, अंसारुल्लाह और इराकी कतायब हिजबुल्लाह के साथ बैठकें की हैं. लेकिन वह यह नहीं बता रहा है कि वह बदले में कैसी कार्रवाई करेगा. इससे पहले सीरिया में अपने दूतावास पर हमले के बाद ईरान ने इजरायल की तरफ मिसाइल और ड्रोन दागे थे.इससे अंदाजा लगाया जा रहा था कि ईरान इस बार भी वैसा ही कुछ करेगा लेकिन अबतक ऐसा हुआ नहीं है.
कैसे हैं इजरायल में हालात
आखिर ईरान में चल क्या रहा है? ईरान की रणनीति क्या है? क्या ईरान इस बार इजरायल पर सीधा हमला करेगा? लोगों के मन में ऐसे सवाल लगातार आ रहे हैं. अमेरिका कई बार ईरान की तरफ से इस तरह की कार्रवाई की आशंका जता चुका है. अमेरिकी रणनीतिकारों का मानना है कि इजरायल ने इस बार जो किया है, उसके बाद ईरान का हमला होना तय है. इस आशंका से इजरायल में भी लोग परेशान हैं.लोग बंकरों में शरण ले रहे हैं.इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सार्वजनिक मौजूदगी में कमी आई है.उत्तरी इजरायल में मौत का खौफ ज्यादा है. यह इलाका हिजबुल्लाह के हमलों की जद में है. खबर है कि इजरायल के उत्तरी इलाकों में सीमा के अंदर का करीब 40 किलोमीटर इलाके को लोगों ने खाली कर दिया है. स्थानीय निकाय आरोप लगा रहे हैं कि प्रधानमंत्री को केवल तेल अवीव की चिंता है.
हिजबुल्लाह के ताजा रॉकेट हमलों से पहले भी तेल अवीव में ड्रोन हमला हुआ था.इसकी जिम्मेदारी के यमन के हूतियों के संगठन अंसारुल्लाह ने ली थी. इससे पहले ईरानी मिसाइल ने एक सैन्य अड्डे को नुकसान पहुंचाया था.
ईरान पर आर्थिक पाबंदियां
अमेरिकी और इजरायली रणनीतिकार मान रहे हैं कि पूरा इजरायल ईरानी मिसाइलों की जद में है.हमास के हमलों के बाद इजरायल के अभेद्य होने का भ्रम टूट चुका है. लेकिन ईरान शायद इस विकल्प पर विचार नहीं कर रहा है.ईरान पिछले करीब 45 साल से अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के आर्थिक पाबंदियां झेल रहा है.हाल के सालों में ये पाबंदियां और सख्त हुई हैं.ऐसे में युद्ध लड़ना इतना आसान नहीं है जितना नजर आ रहा है.ईरान सीमित हमले कर सकता है, लेकिन उसके बाद पूर्ण युद्ध रोक पाना शायद उसके बस में न रहे.ऐसे में ईरान के पास विकल्प क्या हैं?
सीधे युद्ध में जाए बिना ईरान इजरायल और अमेरिका को ज्यादा नुकसान पहुंचाने की हालत में है. पिछले 15-20 दिनों में जिस तरह ईरानी हमले के डर से इजरायल की आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ी हैं, उससे अच्छा-खासा आर्थिक नुकसान हुआ है. यह एक तरह से बिना लड़ाई के इजरायल को आर्थिक झटका देने जैसा है. ताजा झड़पों से इजरायल की मुश्किलें बढ़ेंगी क्योंकि लोग अब नेतन्याहु की क्षमताओं पर भी सवाल करने लगे हैं.हमास की ओर से बंधक बनाए गए लोगों के परिजन पहले से ही उनसे नाराज हैं.वो नेतन्याहू के खिलाफ प्रदर्शन भी कर रहे हैं.
अरबईन के बाद हो सकता है
इजरायल पर युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं, इसलिए यूक्रेन की लड़ाई से इजरायली और अमेरिकी प्रॉक्सी वापस बुलाए जा रहे हैं.रणनीतिक तौर पर अमेरिका और उसके सहयोगी इसे बड़ा नुकसान मान रहे हैं.यह स्थित रूस के लिए फायदेमंद है. इसलिए रूस मध्य-पूर्व में तनाव चाहता है, जिससे यूक्रेन में उसका काम आसान हो जाए. ईरान इस स्थिति को समझ रहा है.उसकी कोशिश है कि इजरायल इसी खौफ में रहे.इस बीच अगर मौका मिले तो उसके खुफिया एजेंट इजरायली टार्गेट सेट करके अपना मिशन पूरा कर लें. अगर बात नहीं बनती है तो रूस और हिजबुल्लाह को मिसाइल, ड्रोन और दूसरे हथियार दिए जाएं, ताकि लड़ाई उसकी सीमाओं से दूर रहे और इजरायल को नुकसान भी पहुंचाया जा सके. इन सबके बीच अगर तनाव बढ़ भी जाता है तो ईरान इसे कुछ दिन तक लड़ाई शुरू नहीं करेगा. इसकी सबसे बड़ी वजह है अरबईन.दस मुहर्रम यानी आशूरा के ठीक चालीसवें दुनिया भर से करीब दो करोड़ शिया इराकी शहर कर्बला में जमा होते हैं.पाकिस्तान और ईरान के श्रद्धालु पैदल और बसों से कर्बला जाते हैं.ऐसे में जब लाखों लोग सड़कों पर हों तो कोई भी देश युद्ध का जोखिम मोल नहीं लेगा.शायद इसी स्थिति में हमारे पहले सवाल का जवाब छिपा है. जब तक अरबईन के लिए कर्बला गए लोग घरों में नहीं लौट आते, तबतक ईरान किसी उकसावे में नहीं आएगा.
हम कह सकते हैं कि मध्य-पूर्व में बड़ा युद्ध टला नहीं था, बस कुछ दिन के लिए आगे खिसक गया था.इस बीच दोनों पक्षों ने यकीनी तौर पर अपनी सुरक्षा के इंतजामों को चाक-चौबंद किया होगा.ऐसे में ये दावा गलत नहीं हैं कि अगर ईरान हमला नहीं करता है तो इजरायल पहल कर देगा. इजरायल और नेतन्याहू के विकल्प अब लगातार कम हो रहे हैं. लेबनान में ताजा संघर्ष इस तरफ इशारा कर रहा है. हमास के साथ संघर्ष को एक साल होने वाला है. हिजबुल्लाह लगातार नुकसान पहुंचा रहा है. अब अगर ईरान सैन्य सहायता बढ़ाता है, रूसी हथियार ईरान या लेबनान पहुंचते हैं तो इजरायल के लिए अगले कुछ दिन निर्णायक हो सकते हैं. इस संघर्ष के खत्म होने तक मध्य-पूर्व के नक्शे में कुछ बड़े बदलाव हो जाएं तो हैरत नहीं होनी चाहिए. अंत में दुनिया या तो स्वतंत्र फलस्तीन देखेगी या फिर ग्रेटर इजरायल की कांस्पिरेसी थ्योरी सच साबित हो जाएगी.
(अस्वीकरण: यह लेखक के निजी विचार हैं. इसमें दिए गए तथ्य और विचारों से एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है. )
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