राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के मामले में जिस मुकदमे की शुरुआत सूरत के मजिस्ट्रेट की अदालत से शुरू हुई थी, उसको एक महीना होने जा रहा है. उस अदालत ने राहुल गांधी को कर्नाटक की एक जनसभा में मोदी सरनेम पर दिए गए भाषण के मामले में दोषी पाया था और 2 साल की सजा सुनाई थी. जिसकी वजह से राहुल गांधी की लोकसभा सांसद के रूप में सदस्यता छिन गई. मजिस्ट्रेट ने उन्हें जमानत भी दी थी और अगली सुनवाई के लिए उन्हें अदालत में मौजूद रहने से छूट भी दी थी.
सदस्यता फिर से बहाल हो इसके लिए राहुल गांधी के पास एक महीने के अंदर उन्हें ऊपरी अदालत से दोषी पाए जाने के फैसले पर रोक लगाने का फैसला लाने का विकल्प है. राहुल गांधी सेशन कोर्ट गए जहां उन्होंने तीन अर्जी दी. पहली यह कि उन्हें जमानत पर ही रखा जाए जो मंजूर हो गई. दूसरी जो फैसला मजिस्ट्रेट ने दिया है दो साल की सजा का उसे निरस्त किया जाए. इस पर अब 20 मई से सुनवाई होगी और तीसरा कि जो उन्हें दोषी करार दिया गया है, उस फैसले पर रोक लगाई जाए. उनकी यह अपील नामंजूर हो गई और अब राहुल गांधी के पास गुजरात हाई कोर्ट जाने का विकल्प है.
मगर राहुल इस मामले में कोई जल्दबाजी नहीं दिखा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के वकील और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि उनको हैरानी है कि लोग कह रहे हैं कि 8 घंटे या 10 घंटे में अपील दायर करनी थी. मैं इस मामले में आपको कोई तारीख नहीं बता सकता. हां, इतना कह सकता हूं कि हम जल्दी ही इस मामले में अगली अदालत जाएंग.
दरअसल, राहुल का प्लान है क्या? सूत्रों की मानें तो राहुल जानते हैं कि यह लड़ाई राजनीतिक है और इसे इसी तरह लड़ा जाना चाहिए. कानूनी लड़ाई तो लड़ी ही जाएगी मगर जिस तेजी से सरकार ने इस मामले में कार्रवाई की है. सदस्यता लेने से लेकर बंगला खाली कराने तक. राहुल जानते हैं कि यह मसला कानूनी के साथ-साथ राजनीतिक भी है. बात यह भी कही जा रही है कि अभी राहुल के लोकसभा क्षेत्र वायनाड के लिए चुनाव आयोग ने कोई उपचुनाव की तारीख की घोषणा तो की नहीं है तो जल्दबाजी किस बात की है. जब उपचुनाव की बात होगी तो सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाने का विकल्प उनके पास है. यदि राहुल को जल्दबाजी में सदस्यता बचानी होती तो वो तुगलक रोड़ का सरकारी बंगला क्यों खाली कर देते.
राहुल गांधी की प्राथमिकता इस वक्त इस लोकसभा की सदस्यता बचानी नहीं है. उनकी प्राथमिकता है कि सेशन कोर्ट में इस मामले को निरस्त करने की जो अपील डाली है और जिस पर 20 मई को सुनवाई है उस पर फोकस करना क्योंकि राहुल के करीबी सूत्रों का मानना है कि इस मामले में 2 साल की सजा नहीं बनती है और यदि यह निरस्त हो गया तो राहुल का अगला चुनाव लड़ने का रास्ता साफ हो जाएगा. ऐसे में यदि वायनाड के लिए उपचुनाव होता है तो वो दोबारा चुनाव लड़ सकते हैं ठीक वैसे ही जैसे सोनिया गांधी ने लाभ के पद मामले में रायबरेली से इस्तीफा दे कर दोबारा चुनाव लड़ा था और जीता था.
यदि यह नहीं हो पाया तो वो 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ेंगे. भले ही तब तक वो बिना सांसदी के रहें. इससे होगा ये कि राहुल और कांग्रेस इस मामले को चुनाव में मुद्दा बना पाएगी और इस मुद्दे पर उन्हें बाकी विपक्षी दलों का भी साथ मिलेगा. वैसे सभी विपक्षी दल सरकार के विभिन्न एजेंसियों के दुरुपयोग का मामला तो लगातार उठा ही रही है. यही वजह है मानहानि के मामले में राहुल गांधी की तरफ से कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई जा रही है. देखते हैं आगे-आगे होता है क्या. यह राजनीति है और जब तक चुनाव है ये खेल चलता रहेगा. कहते हैं ना "तू डाल डाल मैं पात पात".
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...
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