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This Article is From Nov 05, 2020

क्या नीतीश अपने तरकश से अंतिम तीर चला चुके हैं?

Manoranjan Bharati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 05, 2020 20:15 pm IST
    • Published On नवंबर 05, 2020 20:15 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 05, 2020 20:15 pm IST

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूर्णिया के धमदाहा की रैली में अपने उम्मीदवार के लिए वोट मांगते हुए कहा कि आज चुनाव का आखिरी दिन है और परसों चुनाव है और ये मेरा भी अंतिम चुनाव है.. अंत भला तो सब भला.. बताइए इनको वोट दिजिएगा कि नहीं. इसके कई मतलब लगाए जा रहे हैं. क्या नीतीश कुमार वोटरों को इमोशनल ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रहे हैं. कुछ ये सवाल पूछ रहे हैं कि क्या ये सच में होगा. क्या नीतीश कुमार को लग गया है कि वो हारी हुई बाजी लड़ रहे हैं. क्या बिहार चुनाव के तीसरे चरण तक आते आते नीतीश कुमार को अंदाजा हो गया कि पिछला 15 साल भारी पड़ चुका है.

वैसे भी बिहार के सीमांचल में जहां नीतीश कुमार ने अपने अंतिम चुनाव की बात कही है वहां चौतरफा मुकाबला है और एनडीए अच्छी हालत में नहीं है. और इस पर प्रतिक्रिया देते हुए आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि मैं तो पहले से ही कह रहा हूं कि नीतीश कुमार थक चुके हैं और अब बिहार उनसे संभल नहीं रहा है. तेजस्वी जो भी कहें एक और बात साफ करना चाहता हूं कि नीतीश कुमार खुद विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. दरअसल नीतीश कुमार केवल दो बार विधानसभा का चुनाव लड़े. 1977 में जनता पार्टी की लहर में चुनाव हार गए और 1985 में जीते. अभी वो 2006 से विधान परिषद के सदस्य हैं और ये उनका तीसरा टर्म है.

ये बात और है कि नीतीश कुमार 6 बार सासंद रह चुके हैं. इसका मतलब है अंतिम चुनाव की बात कहने का मतलब नीतीश कुमार का हो सकता है कि किसी तरह अंतिम बार मुख्यमंत्री बना दिीजिए. वैसे भी उनकी दिली इच्छा है कि उनका नाम इतिहास में बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले के रूप में दर्ज हो. क्योंकि नीतीश कुमार ने ये भी कहा है कि अंत भला तो सब भला. यानी मंशा साफ है, जाते-जाते एक बार और मुख्यमंत्री की कुर्सी चाहिए.

अब बताता हूं कि नीतिश कुमार या कहें पलटू बाबू की बातों पर विश्वास क्यों नहीं करना चाहिए. नीतीश कुमार के पुराने साथी शिवानंद तिवारी का मानना है कि नीतीश कुमार ने बिहार के मतदाताओं पर भावात्मक तीर चलाया है. चुनाव प्रचार के अंतिम दिन यह उनका अंतिम अस्त्र था. सबसे पहले1995 में लालू यादव से अलग हो कर समता पार्टी बना कर लालू यादव के खिलाफ चुनाव लड़े. उस वक्त नीतीश कुमार सांसद भी थे और विधानसभा भी जीते. केवल सात विधायक जीत कर आए समता पार्टी के. पटना के गांधी मैदान में एक मीटिंग हुई जिसमें नीतीश कुमार ने घोषणा कि अब वे बिहार में ही खूंटा गाड़ कर बैठेंगे और लालू यादव के खिलाफ संर्घष करेंगे.

मगर उस मीटिंग के बाद नीतीश कुमार दिल्ली गए और वहीं से विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. एक वक्त था जब दिल्ली की राजनीति में नीतीश कुमार को पीएम मैटेरियल माना जाने लगा था और वो नरेंद्र मोदी को चैलेंज भी करने लगे थे. पंजाब में एनडीए की एक रैली में जबरदस्ती मोदी जी का नीतीश कुमार के पास आना, फिर बिहार को गुजरात सरकार की मदद लौटाना. एनडीए में रहते हुए भी राष्ट्रपति चुनाव में प्रणब मुखर्जी को सर्मथन देना जैसी तमाम बातों का इतिहास गवाह है.

यहां तक कि 2015 में लालू यादव के साथ मिल कर विधानसभा चुनाव जीतने के बाद नीतीश कुमार ने विधानसभा के अंदर अपने भाषण में बीजेपी को बहुत लताड़ा था. मगर पलटू बाबू तो ठहरे पलटू बाबू, आदत तो जाती नहीं. सत्ता में तो रहना था और जब नीतीश कुमार को लग गया कि वो नरेंद्र मोदी को मात नहीं दे सकते तो फिर उनके साथ हो लिए और एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए. लेकिन इस चुनाव में बीजेपी ने जिस तरह से चिराग पासवान के रूप में एक जिन्न नीतीश कुमार के पीछे छोड़ रखा है उससे वो हैरान और परेशान हो गए. नीतीश कुमार को भी यह अंदाजा है कि 1974 के बैच का यह आखिरी चुनाव ही है.

जी हां मैं बात कर रहा हूं जयप्रकाश नारायण के आंदोलन की. 1974 के उसी छात्र संर्घष समिति की उपज हैं लालू यादव, नीतीश कुमार, सुशील मोदी और रामविलास पासवान. उस समय जो छात्र संघ का चुनाव हुआ था उसके अध्यक्ष लालू यादव चुने गए थे. अब 2020 में देखिए लालू यादव बीमार हैं, दोषी पाए गए हैं, चुनाव नहीं लड़ सकते, रामविलास पासवान अब हैं नहीं दुनिया में, यानी नीतीश कुमार को लगता है कि अब उनकी अंतिम पारी आ चुकी है. फिर जनता में पिछले 15 सालों के शासन की थकान और बिहार में उभरता एक नया युवा वर्ग. यानी चुनाव के दौरान नीतीश कुमार को आभास हो गया कि जनता का मूड क्या है.

फिर चुनाव के दौरान उनकी भाषा बदलती गई. कुछ से कुछ बोलने लगे और अंत में ये तीर फेंका है जिसमें वोटरों से याचना है, योद्धा जैसा दमखम नहीं. मगर उसमें भी एक र्स्वाथ है कि एक बार और मुख्यमंत्री बनवा दीजिए प्लीज. हांलांकि जनता दल यूनाईटेड अब यह सफाई दे रही है कि नीतीश कुमार के कहने का मतलब अंतिम दिन अंतिम चुनाव मीटिंग से था. मगर राजनीति में जनता उन बातों को भी समझती है जिसे नेता नहीं बोलते हैं और उन बातों को भी जिसे नेता बोलते हैं. कहते हैं ना मुंह से निकली बात और कमान से निकला तीर वापिस नहीं आते. जेडीयू का चुनाव चिह्न भी तीर है. तो क्या यह माना जाए कि नीतीश कुमार ने अंतिम चरण की वोटिंग से पहले अपना अंतिम तीर भी चला दिया है...

(मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर-पॉलिटिकल न्यूज़' हैं.)

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