बिहार में चुनाव धीरे-धीरे रंग पकड़ता जा रहा है. जैसे-जैसे दिन बीतते जाऐंगे, बिहार की स्थिति और साफ होती जाएगी. जब चुनाव शुरू हुए थे तब लग रहा था कि एनडीए यानि BJP और JDU गठबंधन को आसानी से बहुमत मिल जाएगा, क्योंकि इस गठबंधन ने सोशल इंजीनियरिंग के तहत हम पार्टी के जीतन राम माझी और वीआईपी पार्टी के मुकेश साहनी को भी जोड़ लिया. हालांकि लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान ने एक अजीब सी स्थिति खड़ी कर दी, वो बीजेपी के साथ हैं मगर नीतिश के खिलाफ हैं.
ऐसे में बिहार का चुनाव रोचक हो गया है. अब हालत यह है कि आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की मीटिंग में जो भीड़ उमड़ रही है उससे बीजेपी और जेडीयू नेताओं के परेशानी पर बल ला दिया है. नीतिश कुमार 15 साल से लगातार बिहार के मुख्यमंत्री हैं, मगर वोट मांगने वक्त लालू यादव के 15 साल का जिक्र करते हैं. उन्हें मालूम है कि जनता उनके कामों का हिसाब मांग कर रही है. कोरोना के संकट के समय चाहे कोटा से बच्चों को वापस लाने का मामला हो या फिर पैदल चल कर आए प्रवासी मजदूरों का मुद्दा हो नीतिश कुमार विफल रहे हैं. लोग उनसे रोजगार की मांग कर रहे हैं. वो सड़क बिजली के बाद अब अच्छी शिक्षा की मांग कर रहे हैं और नीतिश कुमार के लिए उसका हिसाब देते नहीं बन रहा है.
दरअसल हुआ यह है कि जो भी मजदूर लॉकडाउन में वापस आए या जो मजदूर पहले से ही बिहार में हैं, उनके पास कोई रोजगार नहीं है क्योंकि पहले लॉकडाउन और अब अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत और इस सबका ठीकरा फूट रहा है नीतिश कुमार पर. इस सबके बीच BJP ने बड़ी चालाकी से BJP ने नीतिश कुमार को ही आगे रखे रखा, उन्हें ही चेहरा बनाए रखा.
बीजेपी को मालूम था कि लोगों का गुस्सा नीतीश पर ही फूटेगा और अब यह हो भी रहा है. बीजेपी ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया है कि यदि उनकी सीटें अधिक आई तब भी नीतीश ही मुख्यमंत्री होंगे और यह बात जेडीयू के नेताओं को समझ में नहीं आ रही है. दूसरे जिस तरह बीजेपी चिराग पासवान के प्रति सख्त नहीं हो रही है उससे भी जेडीयू के नेता भिन्नाए हुए हैं. इतिहास गवाह है लगातार 15 साल शासन करने के बाद फिर सत्ता में आने का करिश्मा कुछ ही मुख्यमंत्री कर सके हैं, जिसमें दो मुख्यमंत्री तो बहुत ही छोटे राज्यों पर राज किया है.
15 साल लगातार मुख्यमंत्री रहने वालों में सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन चामलिंग करीब 24 साल, पश्चिम बंगाल के ज्योति बसु करीब 23 साल, ओडिशा के नवीन पटनायक करीब 20 साल, त्रिपुरा के मानिक सरकार करीब 20 साल और बिहार के ही श्री कृष्ण सिंह करीब 15 साल तक राज किए हैं. वहीं, दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित एक नए पार्टी और राजनीति में नौसिखिए अरविंद केजरीवाल से बुरी तरह चुनाव हार गई जबकि उनके कामों का दिल्ली में डंका बोल रहा था.
असम में तरूण गोगोई 2001 से 2016 तक लगातार मुख्यमंत्री रहने के बाद सोनोवाल से चुनाव हार गए. छत्तीसगढ़ में 2003 से 2018 तक मुख्यमंत्री रहने के बाद हारे और मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान भी 2005 से 2018 तक मुख्यमंत्री रहने के बाद कमलनाथ के हाथों शिकस्त हुए. हालांकि वो दो साल ही मुख्यमंत्री रह पाए. यानि लगातार 15 साल तक मुख्यमंत्री रहना कई नेताओं को भारी पड़ा है.
भले ही नीतिश कुमार यह जानते हैं कि इस बार वो बीजेपी के साथ सुरक्षित हैं मगर पब्लिक भी सब जानती हैं. नीतिश कुमार के साथ पासा बदलने का भी दाग है पिछली बार उन्होंने लालू यादव के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, फिर बीच में ही बीजेपी के पक्ष में पाला बदल लिए और पलटू बाबू के रूप में बिहार में मशहूर हो गए. बिहार में ढेरों ऐसे लोग आपके मिल जाएगें जो यह कहते हैं कि हमने नीतीश कुमार को बीजेपी के साथ जाने के लिए वोट नहीं दिया था और उनकी छवि सत्ता से चिपके रहने वाले नेता की भी बनी है. इसलिए नीतिश कुमार पर फिलहाल ये डायलॉग फिट बैठता है कि 15 साल से शासन का दर्द तुम क्या जानो नीतीश बाबू...