प्रियंका गांधी ने लखनऊ में दो बड़ी बातें कहीं. पहले कि लड़की हूं और लड़ सकती हूं और दूसरी बात इससे भी महत्वपूर्ण थी कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में 40 फीसदी टिकट महिलाओं को देगी. और इसी के साथ प्रियंका ने उत्तर प्रदेश के साथ ही देश की आने वाली राजनीति का ऐजेंडा तय कर दिया. देश की राजनीति का एजेंडा इसलिए क्योंकि अभी भी अपने यहां चुनाव जात-पांत के आधार पर ही लड़ा जाता है. वैसे हालात में देश की आधी आबादी की बात करना किसी गेम चेंजर से कम नहीं है. जाहिर है इससे उत्तर प्रदेश की राजनीति काफी दिलचस्प हो जाने की उम्मीद है क्योंकि जब 40 फीसदी टिकट महिलाओं को दिया जाएगा तो मुख्यमंत्री भी महिला ही होनी चाहिए. तो क्या वो चेहरा प्रियंका का होगा? कई मजेदार सवाल हैं जिनका जबाब आना बाकी है.
प्रियंका की बात को मैं गेम चेंजर इसलिए कह रहा हूं कि उत्तर प्रदेश में सपा यादव मुस्लिम कार्ड खेलती है तो बीएसपी दलित और ब्राह्मण का तो बीजेपी प्रधानमंत्री के पिछड़ी जाति यानी ओबीसी का तो योगी के राजपूत होने का कार्ड खेलती है. यहां तक कि उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने तो अब पोस्टरों में अपने नाम के आगे जाटव लिखवाना शुरू कर दिया है, यानी दलित कार्ड भी इसमें जोड़ दिया गया है. ऐसे में प्रियंका का महिला कार्ड कितना चलेगा इस पर सवाल होना लाजिमी है. मगर यह भी सही है पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का महिला कार्ड खूब चला और प्रधानमंत्री के दीदी ओ दीदी के अलाप को महिलाओं ने पसंद नहीं किया. उन्हें लगा कि यह उनकी दीदी का अपमान है और इसका जबाब महिलाओं ने बड़ी संख्या में दीदी को वोट डाल कर दिया. दरअसल ये वोटरों का वो बड़ा तबका है जिसे राजनैतिक दल भूल जाते हैं.
बंगाल ही नहीं बिहार में भी महिलाएं नीतीश कुमार को बड़ी संख्या में वोट डालती हैं क्योंकि वो शराबबंदी के पक्ष में हैं. यही हाल ओडीशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का है. गुजरात में भी नरेन्द्र मोदी जब मुख्यमंत्री थे तब उन्हें महिलाओं का अपार सर्मथन था. और इंदिरा गांधी की बात ही क्या करनी पूरे देश की महिलाओं का सर्मथन उनको मिलता था. उत्तर में इंदिरा या नेहरू की बेटी या दुर्गा तो दक्षिण में इंदिराम्मा, उनकी लोकप्रियता का भी देश गवाह रहा है. 2004 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो सोनिया गांधी ने अपने बल बूते पर कांग्रेस को उस संख्या तक पहुंचाया जिसके बदौलत सरकार बन पाई और दस साल चली. उसी तरह तमिलनाडु की राजनीति में जयललिता और उनकी लोकप्रियता को कौन भूला सकता है. मगर अब फिर लौटते हैं प्रियंका गांधी पर. तो कम से कम उनके पास यह तो कहने के लिए है कि यूपीए के कार्यकाल में ही संसद में राज्यसभा ने महिला आरक्षण बिल को पास किया हुआ है और ये बिल लोकसभा में पास होने के लिए लंबित है. जरूरत है राजनैतिक दलों की इच्छा शक्ति की. इससे विधानसभा और संसद की 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाऐंगी. मगर भारतीय राजनीति की सच्चाई से भी इनकार नहीं किया जा सकता है.
कांग्रेस के विरोधियों का कहना है कि प्रियंका 40 फीसदी महिलाओं को उत्तर प्रदेश में टिकट देने का ऐलान कर सकती हैं क्योंकि कांग्रेस वहां है नहीं. जब हारना ही है तो महिलाओं को ही टिकट दे दिया जाए. वैसे ऐसा होता आया है कि अक्सर राजनैतिक दल कमजोर या हारने वाली सीटों पर महिलाओं को उतारते हैं जिससे कि कहने के लिए हो जाए कि हमने भी इतने फीसदी टिकट महिलाओं को दिए. दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि क्या प्रियंका गांधी कम से कम कांग्रेस में महिला नेताओं को सरपंच पति, प्रधानपति, विधायक पति और सांसद पति के चंगुलों से मुक्त करा पाएंगी क्योंकि अभी भी राजनीति में अधिकतर वही महिलाएं आगे आई हैं जो किसी ना किसी राजनैतिक परिवार से होती हैं. उन्हें मर्दवाद झेलना पड़ता है, उनका चरित्रहनन आसान है.
वैसे प्रियंका के लिए महिलाओं को राजनीति में ऊपर लाना चुनौती से कम नहीं है. मगर इतना तो जरूर है प्रियंका ने उन आधी आबादी की बात की जिनकी आवाज घर में ही दबा दी जाती है. कहते हैं ना हजारों मील के सफर की शुरूआत एक कदम से की जाती है.इसलिए प्रियंका ने यदि 40 फीसदी टिकट महिलाओं को उनकी योग्यता के आधार पर दे दिया तो यह आने वाले दिनों में भारतीय राजनीति का गेम चेंजर होगा यानी राजनीति का चेहरा बदल देगा. यही वजह है कि कई जानकार इसे प्रियंका का मास्टर स्ट्रोक मान रहे हैं.
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...
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