सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक मामले पर रात भर सुनवाई चली. अक्सर अदालतें रात भर नहीं बैठतीं..यह विरले होता है. मेरे करीब 25 साल के पत्रकारिता के कैरियर में यह दूसरी बार हुआ है. पिछली बार जब अदालत ने रात भर काम किया था तब मुद्दा ये था कि मुंबई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन को सुबह फांसी दी जाए या नहीं. तब भी पहले चीफ जस्टिस के घर पर बैठक हुई और तय किया गया कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी और अदालत को रात में बैठना पड़ा. तब मामला फांसी का था कि उसे रोका जाए या नहीं.
मैं उस वक्त भी रात भर सुप्रीम कोर्ट के बाहर से रिर्पोटिंग करता रहा. हमारे सहयोगी आशीष भार्गव अदालत के अंदर थे. वे लगातार मुझे मैसेज कर रहे थे, जानकारियां भेज रहे थे और मैं बाहर से यह सारी खबरें लोगों तक पहुंचा रहा था. हमें मालूम नहीं था कि कोई उस वक्त टीवी देख भी रहा है या नहीं.. मगर आपको यह जानकर हैरानी होगी कि हमारे दफ्तर में लगातार लोग फोन कर करहे थे. ढेर सारे लोग विदेशों से फोन कर रहे थे. यानि लोगों में इस तरह की खबरों को लेकर उत्सुकता बनी हुई थी क्या फैसला आएगा..
इस बार भी यही हुआ, अदालत फिर बैठी. साढ़े दस बजे रात में जेडीएस-कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. रात 11 बजे रजिस्ट्रार ने कागजों की समीक्षा शुरू की. सवा बारह बजे रजिस्ट्रार चीफ जस्टिस के घर पहुंचे. एक बजे रात में तीन जजों की बेंच बनाई गई. दो बजकर दस मिनट पर अदालत में सुनवाई शुरू हुई, कोर्ट की लाइब्रेरी खुलवाई गई. सुबह साढ़े पांच बजे तक कोर्ट नंबर 6 में सुनवाई हुई. सिंघवी ने दलील शुरू की, मगर बीजेपी की तरफ से मुकुल रोहतगी ने आपत्ति जताते हुए कहा कि राज्यपाल को संवैधानिक पद की वजह से पार्टी नहीं बनाया जा सकता है. न ही उन्हें कोई आदेश दिया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि उन्हें केस में पक्षकार नहीं बनाया गया है.
अभिषेक मनु सिंघवी ने लंबी चौड़ी दलील रखीं, किस तरह से कांग्रेस-जेडी-एस ने अपने विधायकों की सूची राज्पाल को सौंप दी है. सिंघवी की दलील थी कि जिसको बहुमत हो उसे बुलाया जाए. इसके बाद प्री पोल गठबंधन को बुलाया जाए न कि सिंगल बड़ी पार्टी को. सिंघवी की दलील थी कि गोवा में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी मगर बीजेपी गठबंधन को सरकार बनाने का न्यौता दिया गया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया था. सिंघवी का कहना था कि राज्यपाल ने बीजेपी को बुलाया, यानि 116 विधायकों के मुकाबले 104 को तरजीह दी.
कोर्ट ने कहा कि वह ये जानना चाहता है कि बीजेपी ने किस आधार पर बहुमत साबित करने की बात कही है, इसलिए अदालत येदियुरप्पा की चिट्ठी देखना चाहती है. सिंघवी की सारी कोशिश थी कि शपथ ग्रहण पर रोक लगाई जाए या उसे टाला जाए. अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल को निर्देश जारी नहीं करता. साथ ही बीजेपी ने राज्यपाल को जो चिट्ठी लिखी वह हमारे पास नहीं है, तो इस मामले में फैसला कैसे दें? अदालत ने बहुमत साबित करने के लिए 15 दिनों का समय देने पर भी टिप्पणी की. अंत में अदालत ने कहा कि हम शपथ ग्रहण को रोक नहीं सकते. अदालत ने अब येदियुरप्पा की चिट्ठी मंगाई है और शुक्रवार को सुबह इस पर सुनवाई होगी.
जो भी फैसला हो, मगर रात भर कोर्ट की रिर्पोटिंग करके मजा आ गया. एक रिर्पोटर को यही बात जिंदा रखती है कि हालात कैसे भी हों, दिन हो या रात, आप डटे हैं... अपने काम के लिए और लोगों तक खबरें और सूचनाएं पहुंचा रहे हैं. इसी बात का अनुभव मैंने याकूब मेमन मामले में किया था और कल रात भी जब उमस भरी रात में रिपोर्टर डटा रहा आप तक खबरें पहुंचाने के लिए...
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं..
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This Article is From May 17, 2018
एक रिपोर्टर का जज्बा : रात भर की रिपोर्टिंग
Manoranjan Bharati
- ब्लॉग,
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Updated:मई 17, 2018 16:33 pm IST
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Published On मई 17, 2018 16:33 pm IST
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Last Updated On मई 17, 2018 16:33 pm IST
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