देशभर से कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी आम भावना को ही ज़ाहिर करती है... देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा है, असहमति लोकतंत्र के लिए सेफ्टी वॉल्व है, और अगर आप इसे प्रेशर कुकर की तरह दबाएंगे, तो यह फट जाएगा... अगर आप सेफ्टी वॉल्व को अपना काम करने की अनुमति नहीं देंगे, तो प्रेशर कुकर फट जाएगा... अब सब यह जानना चाहते हैं कि क्या ये पांच लोग सचमुच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने की साज़िश रच रहे थे, या ये गिरफ्तारियां चुनावी रणनीति का हिस्सा हैं...
दरअसल, पुणे के भीमा-कोरेगांव में महार सैनिकों के बलिदान की स्मृति में दलित संगठनों के ज़रिये लंबे समय से कार्यक्रमों का आयोजन होता रहा है... इस साल यलगार परिषद ने जो आयोजन किया, वह घटना के200 साल पूरे होने की वजह से खास हो गया था, जिसमें देशभर से मानवधिकारवादी, समाजवादी, वामपंथी और अम्बेडकरवादी सोच के लोग पहुंचे थे... अब इस तरह के आयोजन को माओवादियों का आयोजन करार देना एक प्रकार से दलित अस्मिता को नकारना ही माना जाएगा...
सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि महाराष्ट्र अलग ही तरह की दक्षिणपंथी सोच या अति-हिन्दूवादी सोच अथवा आंदोलन का गढ़ बनता जा रहा है... ठीक वैसे ही, जैसा कर्नाटक में देखने को मिलता है... इसी अति-हिन्दूवादी सोच ने पनसारे और दाभोलकर को महाराष्ट्र में मार डाला, तो कनार्टक में कलबुर्गी और गौरी लंकेश इसका शिकार हुए... अब दलित समाज के आयोजन को माओवाद से जोड़ना बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर का भी अपमान है, जिन्होंने आपको संविधान दिया, मगर दिक्कत है कि दलित-विरोधी लोग संविधान में आस्था रखते भी हैं या नहीं... अब लोगों को एक नया लेबल दिया जा रहा है कि समाज के जो लोग सरकार के साथ नहीं है या अपनी अलग अथवा स्वतंत्र विचारधारा रखते हैं, वे 'शहरी नक्सली' हैं...
यह तो वही बात हुई, जो आएदिन सोशल मीडिया पर दिखती है - यदि आप मेरे साथ नहीं हैं, तो देशद्रोही हैं... यह भी सही है कि नक्सलवाद बड़ी समस्या है, लेकिन वह इसलिए है, क्योंकि उन्होंने हथियार उठा रखे हैं और गुरिल्ला लड़ाइयों के ज़रिये जवानों को निशाना बनाते हैं... मगर ये 'शहरी नक्सली' वे लोग हैं, जिनमें कोई वकील है, कोई कवि, और कोई सामाजिक कार्यकर्ता है... ये इस समाज के सम्मानित लोग हैं... सुप्रीम कोर्ट ने इसीलिए इन सभी को नज़रबंद रखने की अनुमति दी है, गिरफ्तार करने की नहीं... कोर्ट ने यह भी पूछा है कि सरकार अदालत को बताए कि इन लोगों से अपराधी की तरह पेश आने की ज़रूरत क्यों आई... सच में, जब समाज में कानून अमानवीय हों और सरकार अपने विरोध में कुछ भी सुनने के लिए तैयार न हो, तो एक ही आसरा बचता है - सुप्रीम कोर्ट - और इस बार भी कुछ ऐसा ही होता दिख रहा है...
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...
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